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ममता बनर्जी देर तक प्रधानमंत्री के साथ रही और उन्होंने माओवादियो से निपटने की गृह मंत्रालय की शैली की आलोचना की। खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की राय यही है। माओवादियों से वे बार बार हर संभव मौके पर अपील कर रहे हैं कि वे बातचीत के लिए सामने आए और हिंसा का रास्ता छोड़ दे। प्रधानमंत्री तो यहां तक कह चुके हैं कि माओवादी हमारे अपने ही आदमी है और उनसे उनके दुख के कारण पूछे जा सकते हैं।
उधर चिदंबरम प्रधानमंत्री की इस परम नरम मुद्रा से काफी दुखी है। उन्होंने बार बार ऐलान किया है कि ऑपरेशन ग्रीन हंट के जरिए उन्होंने माओवादियों से आर पार की लड़ाई का जब ऐलान कर ही दिया है तो माओवादियों के प्रति इतना प्यार दिखा कर प्रधानमंत्री आखिर साबित क्या करना चाहते हैं?
मगर प्रधानमंत्री की नाराजगी चिदंबरम के साथ माओवाद को ले कर ही नहीं है, वे भगवा आतंकवाद के नाम पर दिए गए चिदंबरम के बयान से भी काफी आहत है। आज तक जब इस देश में आतंकवाद को मुस्लिम या इस्लामी नहीं कहा गया तो फिर भगवा या हिंदू आतंकवाद शब्द कहां से आ गया और उसे खुद गृह मंत्री ने मान्यता क्यों दे दी? यूपीए सरकार के खिलाफ भाजपा का यह अब एक सबसे नया हथियार है और यह हथियार चिदंबरम की मेहरबानी से मिला है।
दरअसल प्रधानमंत्री ममता बनर्जी से मिलने के बाद चिदंबरम को बुलाते समय इतनी नाराजगी में थे कि चिदंबरम ने खुद प्रणब मुखर्जी और एके एंटनी से अनुरोध किया कि वे भी इस बैठक में आए। प्रधानमंत्री पहले ही इन दोनों का बुला चुके थे। चिदंबरम ने ममता बनर्जी की शिकायत को नाजायज बताया जिसमें ममता ने कहा था कि माओवादियों के खिलाफ जो केंद्रीय अर्धसैनिक बल आए हैं उनका फायदा वामपंथी उठा रहे हैं। वैसे भी ममता बनर्जी लालगढ़ की अपनी चर्चित रैली में माओवादियों के नेता आजाद की मौत को ले कर इसे फर्जी मुठभेड़ कह चुकी है और इसकी जांच की मांग भी कर चुकी है।
इस बात की संभावना कम है कि चिदंबरम को हटाया जाएगा या उनकी जगह कोई नया गृह मंत्री ला कर उन्हें किसी दूसरे विभाग में भेजा जाएगा लेकिन उन पर निगरानी करने के लिए बहुत सारे उपाय सोचे गए हैं और इन उपायों के पीछे प्रधानमंत्री ने यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी से अपने तर्कों के आधार पर अनुमति भी ले ली है।
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