विनायक : नायक या खलनायक

छत्तीसगढ़ की एक अदालत ने मानवाधिकार कार्यकर्ता और पीपल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज के उपाध्यक्ष विनायक सेन को राजद्रोह के मामले में उम्र कैद की सजा सुनाई है। विनायक सेन को यह सजा नक्सलियों के साथ संबंध रखने और उनको सहयोग देने के आरोप साबित होने के बाद सुनाई गई है।

अदालत द्वारा विनायक सेन को उम्रकैद की सजा सुनाए जाने के बाद देशभर के चुनिंदा वामपंथी लेखक, बुद्धिजीवी आदोलित हो उठे हैं। इन्हें लगता है कि न्यायपालिका ने विनायक सेन को सजा सुनाकर बेहद गलत किया है और उसने राज्य की दमनकारी नीतियों का साथ दिया है। उन्हें यह भी लगता है कि यह विरोध की आवाज को कुचलने की एक साजिश है। विनायक सेन को हुए सजा के खिलाफ वामपंथी छात्र संगठन से जुड़े विद्यार्थी और नक्सलियों के हमदर्द दर्जनों बुद्धिजीवी दिल्ली के जंतर-मंतर पर इकट्ठा हुए और जमकर नारेबाजी की। बेहद उत्तेजक और घृणा से लबरेज भाषण दिए गए।जंतर-मंतर पर जिस तरह के भाषण दिए जा रहे थे वह बेहद आपत्तिजनक थे। वहा बार-बार यह दुहाई दी जा रही थी कि राज्य सत्ता विरोध की आवाज को दबा देती है और अघोषित आपातकाल का दौर चल रहा है।

वहा मौजूद एक वामपंथी विचारक ने शकर गुहा नियोगी और सफदर हाशमी की हत्या को सरकार-पूंजीपति गठजोड़ का नतीजा बताया। उनका तर्क था जब भी राज्य सत्ता के खिलाफ कोई आवाज अपना सिर उठाने लगती है तो सत्ता उसे खामोश करने का हर संभव प्रयास करता है।शकर गुहा नियोगी और सफदर हाशमी की हत्या तो इन वामंपंथी लेखकों-विचारकों को याद रहती है, उसके खिलाफ डंडा-झडा लेकर साल दर साल धरना प्रदर्शन और विचार गोष्ठिया भी आयोजित होती हैं, लेकिन उसी साहिबाबाद में नवंबर में पैंतालीस साल के युवा मैनेजर की मजदूरों द्वारा पीट-पीट कर हत्या किए जाने के खिलाफ इन वामपंथियों ने एक भी शब्द नहीं बोला।

मजदूरों द्वारा मैनेजर की सरेआम पीट-पीटकर नृशस तरीके से हत्या पर इनमें से किसी ने भी मुंह खोलना गंवारा नहीं समझा। कोई धरना प्रदर्शन या बयान तक जारी नहीं हुआ, क्योंकि मैनेजर तो पूंजीपतियों का नुमाइंदा होता है लिहाजा उसकी हत्या को गलत करार नहीं दिया जा सकता है।

परंतु हमारे देश के वामपंथी यह भूल जाते हैं कि गाधी के इस देश में हत्या और हिंसा को किसी भी तरह जायज नहीं ठहराया जा सकता है। शकर गुहा नियोगी या सफदर हाशमी की हत्या की जिसकी पुरजोर निंदा की जानी चाहिए और दोषियों को किसी भी कीमत पर नहीं बख्शा जाना चाहिए, लेकिन उतने ही पुरजोर तरीके से फैक्ट्री के मैनेजर की हत्या का भी विरोध होना चाहिए और उसके मुजरिमों को भी उतनी ही सजा मिलनी चाहिए जितनी नियोगी और सफदर के हत्यारे को।

दो अलग-अलग हत्या के लिए दो अलग-अलग मापदंड नहीं अपनाए जा सकते।ठीक उसी तरह से अगर विनायक सेन के कृत्य राजद्रोह की श्रेणी में आते हैं तो उन्हें इसकी सजा मिलनी ही चाहिए और अगर निचली अदालत से कुछ गलत हुआ है तो वह हाईकोर्ट या फिर सुप्रीम कोर्ट से निरस्त हो जाएगा। अदालतें सुबूत और गवाहों के आधार पर फैसला करती हैं। आप अदालतों के फैसले की आलोचना तो कर सकते हैं, लेकिन उन फैसलों को वापस लेने के लिए धरना प्रदर्शन करना घोर निंदनीय है।

भारतीय संविधान में न्याय की एक प्रक्रिया है और यदि निचली अदालत से किसी को सजा मिलती है तो उसके बाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का विकल्प खुला हुआ है। अगर निचली अदालत में कुछ गलत हुआ है तो ऊपर की अदालत उसको हमेशा सुधारती रही है। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जहा निचली अदालत से मुजरिम बरी करार दिए गए हैं, लेकिन ऊपरी अदालत ने उनको कसूरवार ठहराते हुए सजा मुकर्रर की है।दिल्ली के चर्चित मट्टू हत्याकाड में आरोपी संतोष सिंह को निचली अदालत ने बरी कर दिया, लेकिन उसे ऊपरी अदालत से जमानत मिली। ठीक इसी तरह से निचली अदालत से दोषी करार दिए जाने के बाद भी कई मामलों में ऊपर की अदालत ने मुजरिमों को बरी किया है।

लोकतंत्र में संविधान के मुताबिक एक तय प्रक्रिया है तथा संविधान और लोकतंत्र में आस्था रखने वाले सभी जिम्मेदार नागरिकों से उस तय संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करने की अपेक्षा की जाती है।विनायक सेन के मामले में भी उनके परिवार वालों ने हाईकोर्ट जाने का ऐलान कर दिया है, लेकिन बावजूद इसके यह वामपंथी नेता और बुद्धिजीवी अदालत पर दबाव बनाने के मकसद से धरना-प्रदर्शन और बयानबाजी कर रहे हैं।

दरअसल इन वामपंथियों के साथ बड़ी दिक्कत यह है कि अगर कोई भी संस्था उनके मन मुताबिक चले तो वह संस्था आदर्श है, लेकिन अगर उनके सिद्धातों और चाहत के खिलाफ कुछ काम हो गया तो वह संस्था सीधे-सीधे सवालों के घेरे में आ जाती है। अदालतों के मामले में भी ऐसा ही हुआ है जो फैसले इनके मन मुताबिक होते हैं उसमें न्याय प्रणाली में इनका विश्वास गहरा जाता है, लेकिन जहा भी उनके अनुरूप फैसले नहीं होते हैं वहीं न्यायप्रणाली संदिग्ध हो जाती है।

रामजन्म भूमि बाबरी मस्जिद विवाद के पहले यही वामपंथी नेता कहा करते थे कि कोर्ट को फैसला करने दीजिए वहा से जो तय हो जाए वह सबको मान्य होना चाहिए, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला उनके मनमुताबिक नहीं आया तो अदालत की मंशा संदिग्ध हो गई। इस देश में इस तरह के दोहरे मानदंड नहीं चल सकते।

अगर हम वामपंथ के इतिहास को देखें तो उनकी भारतीय गणतंत्र और संविधान में आस्था हमेशा से शक के दायरे में रही है। जब भारत को आजादी मिली तो उसे शर्म करार देते हुए उसे महज गोरे बुर्जुआ के हाथों से काले बुर्जुआ के बीच शक्ति हस्तातरण बताया गया था।यह भी ऐतिहासितक तथ्य है कि कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया यानी सीपीआई ने फरवरी 1948 में नवजात राष्ट्र भारत के खिलाफ हथियारबंद विद्रोह शुरू किया था और उस पर काबू पाने में तकरीबन तीन साल लग गए थे और वह भी रूस के शासक स्टालिन के हस्तक्षेप के बाद ही संभव हो पाया था। 1950 में सीपीआई ने संसदीय व्यवस्था में आस्था जताते हुए आम चुनाव में हिस्सा लिया, लेकिन साठ के दशक के शुरुआत में पार्टी दो फाड़ हो गई और सीपीएम का गठन हुआ।

सीपीएम हमेशा से रूस के साथ-साथ चीन को भी अपना रहनुमा मानता आया है। तकरीबन एक दशक बाद सीपीएम भी टूटा और माओवादी के नाम से एक नया धड़ा सामने आया। सीपीएम तो सिस्टम में बना रहा, लेकिन माओवादियों ने सशस्त्र क्राति के जरिए भारतीय गणतंत्र को उखाड़ फेंकने का ऐलान कर दिया।

विचारधारा के अलावा भी वह हर चीज के लिए चीन का मुंह देखते थे।माओवाद में यकीन रखने वालों का एक नारा उस समय काफी मशहूर हुआ था कि चीन के चेयरमैन हमारे चेयरमैन। माओवादी नक्सली अब भी सशस्त्र क्राति के माध्यम से भारतीय गणतंत्र को उखाड़ फेंकने की मंशा पाले बैठे हैं। क्या इस विचारधारा को समर्थन देना राजद्रोह नहीं है?नक्सलियों के हमदर्द हमेशा से यह तर्क देते हैं कि वो हिंसा का विरोध करते हैं, लेकिन साथ ही वह यह जोड़ना नहीं भूलते कि हिंसा के पीछे राज्य की दमनकारी नीतिया हैं।

देश में हो रही हिंसा का खुलकर विरोध करने के बजाय नक्सलियों को हर तरह से समर्थन देना कितना जायज है इस पर राष्ट्रव्यापी बहस होनी चाहिए।एंटोनी पैरेल ने ठीक कहा है कि भारत के मा‌र्क्सवादी पहले भी और अब भी भारत को मा‌र्क्सवाद के तर्ज पर बदलना चाहते हैं, लेकिन वह मा‌र्क्सवाद में भारतीयता के हिसाब से बदलाव नहीं चाहते हैं। एंटोनी के इस कथन से यह साफ हो जाता है कि यही भारत में मा‌र्क्स के चेलों की सबसे बड़ी कमजोरी है।

विनायक सेन अगर बेकसूर हैं तो अदालत से वह बरी हो जाएंगे, लेकिन अगर कसूरवार हैं तो उन्हें सजा अवश्य मिलेगी। भारत के तमाम बुद्धिजीवियों को अगर देश के संविधान और कानून में आस्था है तो उनको धैर्य रखना चाहिए और अंतिम फैसले का इंतजार करना चाहिए। इसलिए न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल खड़े करने अथवा किसी तरह दबाव बनाने की राजनीति से बाज आना चाहिए और इसके लिए किए जा रहे धरने-प्रदर्शन को तत्काल बंद कर दिया जाए।

चीन ने कश्मीर के लिए स्टेपल वीजा बंद किया

जम्मू-कश्मीर के बाशिंदों के लिए चीन ने अब स्टेपल वीजा देना बंद कर दिया है। चीन ने यह कदम बिना किसी आधिकारिक घोषणा के उठाया है। आला सरकारी अधिकारियों के मुताबिक चीन ने इसकी आधिकारिक घोषणा इसलिए नहीं की है क्योंकि यह जाहिर नहीं होने देना चाहता है कि यह कदम भारत के दबाव में उठाया गया है।

नई दिल्ली में एक आला सरकारी सूत्र ने कहा है कि स्टेपल वीजा मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए भारत की ओर से भी इस बारे में आधिकारिक तौर पर बयान नहीं जारी किया जा रहा है।

चीन के प्रधानमंत्री वन च्या पाओ ने 15-17 दिसंबर के भारत दौरे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से बातचीत के दौरान अपनी ओर से ही नत्थी वीजा के मसले को छेड़ा था और कहा था कि यह मसला अधिकारियों के बीच बातचीत में सुलझा लिया जाएगा। इस तरह चीनी प्रधानमंत्री वन च्या पाओ ने यह कहने की कोशिश की थी कि यह इतना बड़ा मसला नहीं है कि इस पर दो प्रधानमंत्रियों के बीच बातचीत हो। अब यहां आला अधिकारियों का कहना है कि चीन ने बिना किसी सार्वजनिक ऐलान के जम्मू-कश्मीर के बाशिंदों को सामान्य वीजा जारी करना शुरू कर दिया है।

वास्तव में, प्रधानमंत्री वन च्या पाओ के भारत आने के पहले ही चीन ने एशियाई खेलों के लिए गई जम्मू की एक कलाकार को सामान्य वीजा जारी किया था। लेकिन तब इसे एशियाई खेलों से जोड़कर देखा गया था और यहां चीनी दूतावास की प्रवक्ता ने इस बारे में जवाब दिया था कि चीन की वीजा नीति में कोई बदलाव नहीं आया है।

चीन ने पिछले कुछ सालों से जम्मू-कश्मीर के लोगों के पासपोर्ट पर नत्थी वीजा जारी करना शुरू किया था, क्योंकि चीन ने जम्मू-कश्मीर को एक विवादास्पद इलाका बताया था। लेकिन इसी साल जुलाई में जब थलसेना के उत्तरी कमांड के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल बी. एस. जसवाल को जम्मू-कश्मीर में तैनात होने की वजह से चीन ने स्टेपल वीजा देने की कोशिश की, तो भारत ने उनकी अगुवाई में चीन जा रहे सैन्य शिष्टमंडल का चीन दौरा रद्द कर दिया। इसके बाद भारत ने चीन के साथ रक्षा संबंध स्थगित करने की घोषणा की।

छत्तीसगढ़ में राहुल गाँधी पर एक और मुकदमा

विकीलीक्स के खुलासे के अनुसार हिंदुवादी संगठनों के बारे में की गयी कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की टिप्पणी को लेकर उनके खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग वाली याचिका छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में जिला न्यायालय में दाखिल की गयी है।

भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष सौरभ कोठारी ने सांसद और कांग्रेस महासचिव राहुल के खिलाफ स्थानीय अदालत में आज यह याचिका दाखिल की।

यह याचिका राहुल के हिंदू संगठनों को लश्कर ए तैयबा से ज्यादा खतरनाक बताये जाने संबंधी कथित टिप्पणी के खिलाफ दाखिल की गयी है।

गौरतलब है कि विकीलीक्स के एक खुलासे के मुताबिक, राहुल ने अमेरिकी राजदूत टिमोथी रोमर से कहा था कि लश्कर ए तैयबा से हिंदुवादी चरमपंथी संगठन ज्यादा खतरनाक हैं।

यहां संवाददाता सम्मेलन में जिला भाजयुमो अध्यक्ष कोठारी ने कहा कि राहुल ने महत्वपूर्ण पद पर रहते हुए बेहद गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणी की है। उन्होंने हिंदू संगठनों की तुलना दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन से की है।

उन्होंने कहा कि यही नहीं, राहुल ने बिना किसी तथ्य और प्रमाण के हिंदू संगठनों को देश के लिये लश्कर ए तैयबा से ज्यादा खतरनाक करार दिया है। इससे देश और दुनिया के तमाम हिंदू संगठन और आम जनता आहत है। राहुल गांधी की इस टिप्पणी ने देश में अशांति फैलाने वाला काम किया है और इसके जिम्मेदार वह खुद हैं।

दोपहर भाजयुमो कार्यकर्ताओं के साथ कोठारी जिला न्यायालय पहुंचे और मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी वी. टोको की अदालत में परिवाद दायर करते हुए गांधी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 153 :क:, धारा 153 :ख:, 295 :क:, धारा 504 के तहत प्रकरण दर्ज करने का आग्रह करते हुए याचिका दाखिल की।

संजय गांधी की नीतियाँ गलत थीं - रीता बहुगुणा

उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने आज कहा कि कांग्रेस के दिवंगत पूर्व नेता संजय गांधी द्वारा अपनी नीतियों पर अमल के लिये उतावलापन दिखाया जाना और बलप्रयोग करना गलत था।

बलिया में एक निजी कार्यक्रम में शिरकत करने आईं रीता ने संवाददाताओं से कहा ‘‘हर नेता की अपनी विचारधारा होती है लेकिन संजय गांधी ने अपनी नीतियों पर अमल के लिये जिस तरह उतावलापन दिखाया और उसके लिये दबाव और बल का प्रयोग किया, वह गलत था।’’ हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि संजय गांधी के ज्यादातर विचार कांग्रेस की विचारधारा से मेल खाते थे।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और केन्द्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा सम्पादित किताब ‘द कांग्रेस एण्ड द मेकिंग आफ द इंडियन नेशन’ में संजय गांधी के बारे में किये गए आकलन के बारे में पूछे जाने पर रीता ने कहा कि वह व्यक्तिगत राय है।

उन्होंने कहा कि मुखर्जी एक वरिष्ठ मंत्री होने के साथ-साथ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और इतिहासकार भी हैं।

ढाई साल की जांच के बाद सीबीआई ने अरुषि हत्या कांड की जांच की फाइल बंद की

नोएडा के बहुचर्चित आरुषि तलवार मर्डर केस में करीब ढाई साल की जांच के बाद भी केंद्रीय जांच ब्यूरो ( सीबीआई ) के हाथ कुछ भी नहीं लगा। सीबीआई ने गाजियाबाद के स्पेशल कोर्ट में जांच करने के लिए पर्याप्त सबूत मिलने की बात कहते हुए इसकी जांच को बंद करने की रिपोर्ट फाइल कर दी। सीबीआई ने कोर्ट को बताया कि उसे घटना स्थल पर पर्याप्त सबूत नहीं मिल पाए थे।।

नोएडा के जलवायु विहार अपार्टमेंट में 16 मई 2008 को आरुषि का शव मिला था। अगले ही दिन यानी 17 मई को घर की छत पर नौकर हेमराज भी मृत मिला था। 15 दिनों तक केस पर काम करने के बाद यूपी पुलिस के किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाने के कारण इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी। एक जून 2008 को जॉइंट डायरेक्टर अरुण कुमार के नेतृत्व में सीबीआई ने आरुषि के पिता राजेश तलवार की गिरफ्तारी के साथ ही इस मामले की जांच शुरू की।

राजेश तलवार 50 दिनों तक जेल में भी रहे थे। बीआई ने इस मामले में आरुषि के पिता डॉ. राजेश तलवार के कपाउंडर कृष्णा को आरोपी बनाया था। उत्तर प्रदेश पुलिस का कहना था कि शवों के पोस्टमार्टम के बाद यह बात सामने आई कि दोनों हत्याओं में एक ही तरह के हथियार का इस्तेमाल किया गया।

फिर भौंका दिग्गी - शहीद करकरे पर दिए बयान पर दी सफाई

मुंबई एटीएस के पूर्व प्रमुख दिवंगत हेमंत करकरे को मुस्लिमों के लिये खुदा बताने वाले अपने बयान को हल्का करते हुए कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने सफाई दी कि उन्होंने सिर्फ यह कहा था कि अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों को महसूस हुआ कि उन्हें पुलिस अधिकारी की शक्ल मेंखुदा का पैगाम देने वालामिल गया है।

कांग्रेस इस बयान पर अपना पल्ला झाड़ती नजर आई। इसी कड़ी में कांग्रेस प्रवक्ता शकील अहमद ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘किसी भी मजहब में आप इंसान की तुलना ईश्वर से नहीं कर सकते हैं। उन्होंने :दिग्विजय: शायद मुहावरे में यह बात कह दी।’’ वहीं दिग्विजय सिंह ने प्रेट्र को बताया, ‘‘मैंने कहा था कि हेमंत करकरे ने मालेगांव धमाके के सिलसिले में हिंदू संगठनों से जुड़े कुछ लोगों को गिरफ्तार किया तो मुस्लिमों को राहत मिली। उन्हें महसूस हुआ कि कम से कम इस ईमानदार पुलिस अधिकारी ने यह कार्रवाई ऐसे समय में की जब आतंकवादी मामलों में केवल मुस्लिमों को पकड़ा जाता है। उन्हें महसूस हुआ कि करकरे की शक्ल में खुदा का पैगाम देने वाला मिल गया। इसके लिये मुस्लिम करकरे का बेहद सम्मान करते थे।’’

इससे पूर्व मीडिया में आई खबरों में दिग्विजय के हवाले से कहा गया था ‘‘हेमंत करकरे देश में मुसलमानों के लिए खुदा के रूप में आए..उन्होंने समुदाय को कलंकित होने से बचाया।’’ दिग्विजय ने यह टिप्पणी मुम्बई में एक किताब के विमोचन समारोह के दौरान की थी ।

अपराधी को टिकेट नहीं तो करूँगा ममता की पार्टी का प्रचार - स्वामी रामदेव

योग गुरु स्वामी रामदेव अगले साल होने वाले राज्य विधानसभा के चुनाव में तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी के लिए प्रचार करेंगे। उन्होंने कहा कि वह ऐसा करने के लिए तैयार हैं, बशर्ते ममता यह वादा करें कि वह किसी आपराधिक छवि वाले व्यक्ति को चुनाव में टिकट नहीं देंगी।

योग गुरु सोमवार को मर्चेट चैंबर ऑफ कामर्स की ओर से आयोजित प्रश्नोत्तर सत्र में पूछे गए एक सवाल का जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी के बारे में काफी सुना है। उनका राजनीतिक जीवन साफ-सुथरा है। वह चाहते हैं कि बंगाल में राजनीतिक सत्ता का परिवर्तन हो और राज्य के विकास का मार्ग प्रशस्त हो।स्वामी रामदेव ने कहा कि बंगाल पहले काफी शक्तिशाली हुआ करता था, लेकिन अब इसमें ठहराव आ गया है। लंबे समय से सत्ता में बने रहने के कारण वामो सरकार निरंकुश हो गई है।

उन्हें उम्मीद है कि 2011 में सत्ता परिवर्तित होगी। रविवार को ममता के बेहद करीबी पार्थ चटर्जी से बाबा रामदेव की फोन पर बात हुई थी।उन्होंने कहा कि ममता से वह आग्रह करेंगे कि अगले साल होने वाले राज्य विधान सभा चुनाव के लिए साफ छवि वाले लोगों को ही उम्मीदवार बनाएं। यदि ऐसा होता है तो वे बंगाल के गांवों में रहने वाले अपने अनुयायियों से तृणमूल का समर्थन करने के लिए कहेंगे। इतना ही नहीं वह खुद भी चुनाव प्रचार करेंगे।

बलूचिस्तान के 27 हिंदू परिवारों ने भारत में शरण माँगी

पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में हिंदू समुदाय के सदस्यों की हत्या और फिरौती के लिए अपहरण की घटनाएं बढ़ जाने के कारण 27 हिंदू परिवारों ने भारत में राजनीतिक शरण मांगी है। इन परिवारों ने भारत जाने के कारण के रूप में फिरौती के लिए अपहरण और हत्या की घटनाओं में वृद्धि का जिक्र किया है।

समाचार पत्र 'डॉन' में सोमवार को प्रकाशित खबर के अनुसार संघीय मानवाधिकार मंत्रालय से सम्बद्ध क्षेत्रीय निदेशक, सईद अहमद खान ने 'बलूचिस्तान संकट पर प्रांतीय सम्मेलन' शीर्षक पर आयोजित एक संगोष्ठी में यह जानकारी दी है। खान ने कहा है कि बलूचिस्तान में सदियों से हिंदू निवास कर रहे हैं। लेकिन, हाल के सप्ताहों में अल्पसंख्यक समुदाय के कई सदस्यों को या तो अगवा कर लिया गया या फिर उनकी हत्या कर दी गई। इस कारण वे भारत में शरण लेने के लिए मजबूर हो रहे हैं।

अखबार ने खान के हवाले से कहा है, 'बलूचिस्तान के 27 हिंदू परिवारों ने भारत में शरण लेने के लिए भारतीय दूतावास में आवेदन भेजा है।' खान ने कहा है कि यह एक गम्भीर चिंता का विषय है। उन्होंने सरकार से आग्रह किया है कि वह बलूचिस्तान में कानून-व्यवस्था की स्थिति में सुधार के लिए तत्काल कदम उठाए।

मानवाधिकार मंत्रालय के आंकड़े भी बताते हैं कि बलूचिस्तान में बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है और लोगों को फिरौती के लिए अगवा किया जा रहा है। नेशनल पार्टी के उपाध्यक्ष इशाक बलूच ने कहा कि बलूच युवक निराश हो गए हैं, क्योंकि उन्हें उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया है और उनकी राष्ट्रीय पहचान को मान्यता नहीं दी गई है। हजारा डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष अब्दुल खालिक हजारा ने बलूचिस्तान में कानून-व्यवस्था की खराब स्थिति के लिए अराजक तत्वों को जिम्मेदार ठहराया है। बलूचिस्तान में फिरौती के लिए अपहरण करने वाले 100 से अधिक समूह सक्रिय हैं।

भ़डकाऊ सवाल पूछने पर कश्मीर यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर गिरफ्तार

कश्मीर यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर को एक प्रश्न-पत्र में भ़डकाने वाले प्रश्न पूछने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। इस प्रश्न-पत्र में कई सवाल भ़डकाने वाले माने जा रहे हैं।

प्रोफेसर नूरमोहम्मद भट्ट ने बीएससी के छात्रों के लिए बनाए प्रश्न-पत्र में एक सवाल पूछा है- क्या पत्थर फेंकने वाले वास्तविक हीरो हैं! गौरतलब है कि कश्मीर में पिछले तीन महीनों में पत्थर फेंकने और उसके बाद पुलिस कार्रवाई में 110 लोगों की मौत हो चुकी है। इसी प्रश्न-पत्र में एक प्रश्न में उर्दू से अंग्रेजी में अनुवाद करना था जो इस तरह था- कश्मीरियों का खून पानी की तरह बहाया गया है। कश्मीरी बच्चे पुलिस द्वारा मारे जा रहे हैं और कश्मीरी औरतों पर गोलियों की बौछार हो रही है।

यूनिवर्सिटी में बीस साल से पढ़ा रहे नूरमोहम्मद भट्ट को कारण बताओ नोटिस भी दिया गया है। प्रोफेसर के साथ उनके इस कृत्य से हैरान हैं, क्योंकि वे शांत प्रवृत्ति के माने जाते हैं। उनके कई साथी यह भी मानते हैं कि वह लंबे प्रदर्शन और पत्थर फेंकने के तरीके को निर्रथक मानते थे।

अब परीक्षा नियंत्रक सभी प्रश्न-पत्रों की जांच करवा रहे हैं जिससे कि किसी और प्रश्न-पत्र में ऎसे सवाल छात्रों तक न पहुंचें।

भाजपा ने प्रधानमंत्री से इस्तीफे की मांग की

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव रविशंकर प्रसाद ने प्रधानमंत्री से नैतिकता के आधार पर इस्तीफे की मांग करते हुए रविवार को यहां आधिकारिक दस्तावेज जारी किए। ये दस्तावेज तत्कालीन दूरसंचार मंत्री राजा और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के बीच पत्राचार से जुड़े हैं। उन्होंने दावा किया कि पीएमओ को नवंबर, 2007 से अनियमितताओं की जानकारी थी। उन्होंने जेपीसी की मांग फिर दोहराई।

रविशंकर प्रसाद ने कहा कि प्रधानमंत्री दावा करते हैं कि वे ईमानदार हैं तो फिर वे जनता के पैसे की लूट पर चुप्पी कैसे साध सकते हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी और अन्य पार्टी नेताओं को कॉपरेरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया से जोड़े जाने के मामले में कांग्रेस को बिना शर्त माफी मांगनी चाहिए।

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