चर्चो और मंदिरों में भी देगी नौकरी के विज्ञापन गोवा सरकार


गोवा की भाजपा सरकार सूबे में नौकरियों के विज्ञापनों के लिए धार्मिक प्रतिष्ठानों और गैर सरकारी संगठनों की सहायता लेगी। मुख्यमंत्री मनोहर पार्रिकर ने गुरुवार को राज्य विधानसभा में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि भविष्य में सरकारी रिक्तियों को भरने में पर्याप्त निष्पक्षता अपनाई जाएगी। उन्होंने कहा, 'मैं चाहता हूं कि रिक्तियों के लिए लोग आवेदन करें। मैं चर्चो, मंदिरों और एनजीओ के माध्यम से विज्ञापन दूंगा। इन उपायों के अलावा स्थानीय समाचार पत्रों में भी विज्ञापन की व्यवस्था की जाएगी।'

विपक्षी विधायक एलेक्सिो लॉरेंस रेगिनाल्डो और विजय सरदेसाई ने आरोप लगाया कि सरकार वास्तविक योग्य युवाओं, जो विभिन्न पदों के लिए चयनित हुए थे, उनके साथ अन्याय कर रही है। मालूम हो कि राज्य सरकार ने विभिन्न विभागों में ऐसे कई सौ पदों को समाप्त कर दिया है, जो चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करके भरे गए थे। प्रदेश में इस साल के शुरू में ही राज्य विधानसभा चुनाव हुए हैं।

संघ के पूर्व प्रमुख के एस सुदर्शन मैसूर से लापता हुए

राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के पूर्व प्रमुख केएस सुदर्शन शुक्रवार सुबह मैसूर से लापता हो गए हैं। न्यूज चैनलों के मुताबिक केएस सुदर्शन मैसूर में अपने भाई के यहां ठहरे हुए थे। वे शुक्रवार सुबह 5.20 बजे टहलने के लिए निकले थे। इसके बाद से उनके बारे में कोई सूचना नहीं है।

मैसूर पुलिस ने एक टीम का गठन किया है जो सुदर्शन की तलाश में जुट गई है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सुदर्शन के लापता होने की घटना को चिंताजनक बताया है। साथ ही उन्होंने पुलिस से जल्द से जल्द ढूंढने की मांग की है।

जानकारी के अनुसार केएस सुदर्शन जब टहलने जाते थे तो अंगरक्षक उनके साथ होते थे, लेकिन शुक्रवार को वे बिना अंगरक्षक के टहलने के लिए निकले थे। सुदर्शन अपने साथ मोबाइल नहीं रखते हैं, इसलिए उनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई। पुलिस उनकी तलाश में जुटी हुई है। उनके परिचितों का कहना है कि वह बिना किसी पूर्व सूचना के कहीं बाहर नहीं जाते थे।

हालांकि कहा गया है कि सुदर्शन को पिछले कुछ अरसे से भूलने की बीमारी है और हो सकता है कि वह रास्ता भूल गए हों या किसी परिचित के पास गए हों। पुलिस ने इसके पीछे किसी घटना की आशंका नहीं जताई है। सुदर्शन साल 2000 से 2009 तक आरएसएस के प्रमुख रहे थे।

कश्मीरी पंडितों को सात दिन के अंदर वादी छोड़ने का फरमान

उमर अब्दुल्ला सरकार पंडितों की वापसी लायक माहौल बनने के लाख दावे करे, लेकिन आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद ने कश्मीरी पंडितों को सात दिन के अंदर वादी छोड़ने का फरमान सुनाया है।

इस धमकी के बाद पुलिस ने सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर संदिग्ध तत्वों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है। इस बीच, आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के दोनों गुटों ने कश्मीरी विस्थापितों को सुरक्षा का यकीन दिलाते हुए कहा कि वह इस धमकी को गंभीरता से न लें। 

यह किसी सुरक्षा एजेंसी की कश्मीरी पंडितों और कश्मीरी मुस्लिमों के बीच मतभेद पैदा करने की साजिश है। विभिन्न आतंकी संगठनों के साझा मंच यूनाइटेड जेहाद काउंसिल और हिजबुल मुजाहिदीन के सुप्रीमो सल्लाहुदीन ने भी कश्मीरी पंडितों को मिली इस धमकी की निंदा करते हुए इसे भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की साजिश करार दिया है।

आतंकी संगठन ने यह धमकी पोस्टर लगाकर नहीं बल्कि डाक के जरिये एक खत भेजकर दी है। यह खत बडगाम जिले के शेखपोरा इलाके में कश्मीरी पंडितों के लिए बनाई गई आवासीय कॉलोनी के अध्यक्ष के नाम भेजा गया है। जैश कमांडर जुबैर ने इस खत में कश्मीरी पंडितों को सात दिन के अंदर कश्मीर छोड़ने का फरमान सुनाया है। 

खत में कश्मीर में गैर इस्लामिक गतिविधियों को बढ़ावा देने और भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के साथ मिलकर जेहाद को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया गया है। इस धमकी के बाद न सिर्फ शेखपोरा में बल्कि वादी के अन्य हिस्सों में रह रहे कश्मीरी पंडितों में भी भय पैदा हो गया है।

केरल में 2006 से अब तक 7713 लोग मुस्लिम बनाये गये - ओमान चांडी


केरल के कांग्रेसी मुख्यमंत्री ओमान चांडी द्वारा गत 26 जून को केरल विधानसभा में दिए एक लिखित जवाब से केरल का हिन्दू समाज स्तब्ध रह गया है। एक सवाल के जवाब में, चांडी ने बताया था कि 2006 से अब तक, राज्य में 7713 लोग इस्लाम में मतांतरित किए गए हैं। इनमें कुल मतांतरित 2688 महिलाओं में से 2196 हिन्दू थीं और 492 ईसाई।

सेकुलर मीडिया की चुप्पी

चांडी के इस जवाब ने राज्य के हिन्दू संगठनों के उस मत को सही ठहराया है कि 'लव जिहाद' के नाम से राज्य का बड़े पैमाने पर इस्लामीकरण किया जा रहा है। हैरानी की बात है कि यहां के सेकुलर मीडिया ने मुख्यमंत्री की इस स्पष्ट स्वीकारोक्ति को पूरी तरह अनदेखा कर दिया। करीब एक माह पहले, प्रमुख मलयालम साप्ताहिक 'कलाकौमुदी' ने 'लव जिहाद', मतांतरण और केरल में तेजी से बढ़ती फर्जी मुद्रा के दुष्प्रभावों पर एक खास रपट छापी थी। वह रपट राज्य के खुफिया विभाग के सूत्रों पर आधारित थी। पर जैसे ही इस साप्ताहिक की प्रतियां छपकर आईं, पूरे केरल में बड़ी संख्या में मुस्लिम कट्टरवादियों ने इन्हें खरीदा और फाड़ कर जला डाला। अगले दिन दुकानों में गिनती की प्रतियां ही रह गईं। रपट में लिखा था कि भारतीय खुफिया एजेंसियों को विदेश स्थित मुस्लिम अलगाववादी गुटों द्वारा केरल के मुस्लिमों को मुख्यधारा से अलग करके उन्हें अपने इशारों पर चलाने की बाबत एक गुप्त योजना का पता चला है।

इस योजना में पहला एजेंडा है भड़काए जा सकने वाले मुस्लिमों की पहचान करना और केरल की कुल हिन्दू आबादी में 9 प्रतिशत अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों में से कम से कम 5 प्रतिशत को इस्लाम में मतांतरित करके उन्हें आतंकी गतिविधियों में लगाना। केरल के आर्थिक तंत्र को सोचे-समझे एजेंडे के तहत फर्जी नोटों से तबाह करना। इसी गुप्त एजेंडे के तहत प्रेम जाल में फांसकर हिन्दू युवतियों से निकाह करके उन्हें मतांतरित करने और गरीबों को लालच देकर मतांतरित करने का षड्यंत्र जारी है। बताते हैं, केरल में हर महीने 100 से 180 युवतियां मतांतरित की जा रही हैं।

सब जानता है गृह मंत्रालय

साप्ताहिक की रपट यह भी बताती है कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय का एक विशेष प्रकोष्ठ दूसरे राज्यों से केरल में आए अप्रवासी श्रमिकों के जरिए फर्जी नोटों का प्रचलन कराए जाने के बारे में जानता है। वह अलगाववादी मंसूबे वाले लोगों के राज्य में घुसने, माओवादियों के प्रशिक्षिण शिविर लगाने, मतांतरण के लिए कई मजहबी संगठनों के विदेशों से आर्थिक मदद पाने के बारे में भी जानता है।

रपट केरल में पिछले 50 सालों के दौरान बदले जनसंख्या के आंकड़ों पर भी प्रकाश डालती है। इसके अनुसार, 1961 में केरल की कुल आबादी में 17 फीसदी मुस्लिम थे जो 2001 में 24.6 फीसदी हो गए। 2012 के जनसंख्या आंकड़ों के हिसाब से अब मुस्लिम 27 फीसदी हैं। इतनी तेजी से बढ़ती मुस्लिम आबादी शायद मुस्लिम कट्टरवादी गुटों को कम दिखती है इसीलिए अब उन्होंने 55 फीसदी हिन्दू आबादी में अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग के 9 फीसदी हिन्दुओं में से 5 फीसदी को मतांतरित करने का खाका तैयार किया है ताकि 27 में 5 जुड़कर उनका प्रतिशत 32 हो जाए और वे केरल में दबदबा रखने की स्थिति में आ जाएं।

हो चुकी है घुसपैठ

पूरी जांच-पड़ताल के बाद तैयार की गई यह रपट कुछ हैरान करने वाले तथ्य पेश करती है। यह कहती है कि इस्लामी आतंकी गुट केरल के हिन्दू और ईसाई समुदायों में घुसपैठ करके अपनी जड़ें जमा चुके हैं और उन्होंने अपने शिकारों की पहचान भी कर ली है। केरल में साल-दर-साल हिन्दुओं और ईसाइयों की संख्या कम होती जा रही है। 1961 में हिन्दू कुल आबादी का 60 फीसदी थे जो अब घटकर 55 फीसदी रह गए हैं। 1961 में 22 फीसदी रही ईसाई आबादी आज घटकर 19 फीसदी हो गई है।

चौंकाने वाली बातें और भी हैं। रपट के अनुसार, मुस्लिम समुदाय में अलगाववादी भावनाएं भड़काने की गुप्त योजना पर काम चल रहा है। इसे दूसरे राज्यों से केरल में काम करने आने वाले श्रमिकों के जरिए किया जा रहा है। ऐसे लोगों की संख्या 14 लाख है जो विधानसभा के 14 विधायकों के भाग्य का फैसला करने की ताकत रखते हैं। इनमें घुसपैठिए बंगलादेशी मुस्लिमों की अच्छी- खासी तादाद है। केरल में जाली नोटों के कारोबार में पकड़े गए ज्यादातर श्रमिक बंगलादेशी मुस्लिम ही हैं। आईएसआई बंगलादेश के रास्ते पाकिस्तान में छपी जाली भारतीय मुद्रा भारत में झोंक रही है। यहां जमीन के ज्यादातर सौदे बेनामी हो रहे हैं। ऐसी गंभीर स्थिति के बावजूद केरल पुलिस इन अप्रवासी श्रमिकों के बारे में ज्यादा जानकारी हासिल करने में नाकाम रही है। रपट बताती है कि जनवरी 2009 से अब तक, केरल में 3812 लोग इस्लाम में मतांतरित हो चुके हैं। ईसाई बनने वालों की संख्या महज 79 है और 8 लोग ही हिन्दू बने हैं। इस्लाम में मतांतरित हुए कुल लोगों में से 1596 युवतियां हैं। केरल के सभी 14 जिलों में 'लव जिहाद' जोरों पर है।

राज्य सरकार की पल्टी

उच्च न्यायालय में दर्ज केरल पुलिस की रपट बताती है कि 2005 से अब तक 2500 युवतियां 'लव जिहाद' के झांसे में फंस चुकी हैं। लेकिन इस रपट के तुरंत बाद मुस्लिम गुटों के दबाव पर राज्य सरकार ने अदालत में प्रतिवेदन दर्ज करके उसका ठीक उलट कहा कि 'लव जिहाद' जैसी कोई चीज नहीं है। जबकि साप्ताहिक में छपी रपट साफ कहती है कि 'लव जिहाद' केरल के संभ्रांत हिन्दू परिवारों और रईस ईसाई परिवारों को भी बेखटके निशाना बना रहा है। इसके लिए व्यावसायिक कालेजों और तकनीकी शिक्षण संस्थानों पर नजर रखी जाती है। इन अलगाववादियों का पहला निशाना होते हैं गरीब मुस्लिम लड़के, जो इन संस्थानों में दाखिला पा जाते हैं। उन्हें पढ़ने के लिए पैसों का लालच दिया जाता है। इसके बाद ये मुस्लिम गुट उन लड़कों को तमाम तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम करने और उनमें गैर मुस्लिम लड़कियों को इनाम देने को उकसाते हैं ताकि उन्हें फांसा जा सके। जो लड़कियां उनकी तरफ आकर्षित होती हैं उन्हें मुस्लिम लड़कियों के साथ घुलने-मिलने का भरपूर मौका दिया जाता है। इन शुरुआती तैयारियों के बाद, 'लव जिहाद' के खाके को क्रियान्वित किया जाता है। प्रेम के झांसे में फंसने वाली लड़कियों को मतांतरित करने के लिए ये अलगाववादी किसी भी हद तक जा सकते हैं।

तिरुअनंतपुरम का एक मामला गौर करने लायक है। एक संभ्रांत हिन्दू परिवार की लड़की एक मुस्लिम ड्राइवर के साथ गायब हो गई। जब पुलिस ने उन्हें पकड़ा तो ड्राइवर ने कबूला कि वह शादीशुदा है, उसके बच्चे हैं। जब लकड़ी से पूछा गया कि ऐसे आदमी के साथ कैसे रहोगी, तो उसका जवाब चौंकाने वाला था। उसने कहा, 'मैं मुस्लिम बनने जा रही हूं। मत बदलने के बाद वह मुझसे निकाह कर पाएगा।' अलग-थलग रहने वाले गैर मुस्लिमों को भी मतांतरण का निशाना बनाया जा रहा है। ऐसे कई मुस्लिम संगठन हैं जो 'लव जिहाद' के लिए निकाह कराने में जी-जान से जुटे हैं। रपट में केरल में कार्यरत कई इस्लामी काउंसिलों का खास जिक्र है जो मतांतरण कराने में लगी हैं। एक काउंसिल तो साल में 500 से 700 लोगों को मुस्लिम बनाती है।

मालाबार की ऐसी ही एक इस्लामी काउंसिल के मतांतरण के आंकड़े बताते हैं कि 2007 में 627 लोग मुस्लिम बने, जिसमें से 441 हिन्दू थे और 186 ईसाई। 2008 में 885 में से 727 हिन्दू थे, 158 ईसाई। 2009 में 674 में से 566 हिन्दू थे, 108 ईसाई। 2010 में 664 में से 566 हिन्दू थे, 98 ईसाई। 2011 में 393 में से 305 हिन्दू थे, 88 ईसाई। मतांतरित होने वालों में युवतियों की बड़ी संख्या है।

डराने में माहिर

अजीब बात है कि गैर मुस्लिमों को फुसलाने के साथ ही, अलगाववादी गुट मुस्लिम युवतियों को किसी गैर मुस्लिम लड़के से बात तक नहीं करने देते। मालाबार में 'मोरल पुलिस' सक्रिय है। हाल ही में एक पुलिस वाले की इसलिए पिटाई कर दी गई क्योंकि उसने रास्ते में मिली एक पुरानी शिष्या (मुस्लिम लड़की) से बात करने का 'जुर्म' किया था। ये गुट उदारवादी मुस्लिमों या मुस्लिम गुटों को भी नहीं बख्शते। उन्हें खूब सताया जाता है। उनके खिलाफ थानों और अदालतों में झूठी रपटें दर्ज करा दी जाती हैं। इससे घबराकर कई उदारवादी मजबूरन उनका कहा मानने लगते हैं। डीवाईएफआई और यूथ कांग्रेस जैसे संगठनों में करीब 10 फीसदी सदस्य ऐसे ही कट्टरवादी हैं। रपट कहती है कि ये अलगाववादी तत्व मुस्लिम महिलाओं को हिन्दुओं के घरों में काम करने से रोकते हैं। रपट एक दिलचस्प आंकड़ा देती है कि 2008 से अब तक, महज 8 मुस्लिम महिलाओं ने ही गैर मुस्लिम पुरुषों से प्रेम विवाह किया है।

साभार : पाञ्चजन्य

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