विद्युत अधिनियम संशोधन विधेयक, 2014 लोकसभा में पेश

इस विधेयक का उद्देश्य प्रतिस्‍पर्धा को बढ़ावा देना, परिचालन में दक्षता लाना और बिजली आपूर्ति की गुणवत्‍ता में सुधार लाना है.

बिजली, कोयला और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) श्री पीयूष गोयल ने लोक सभा में विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2014 पेश किया। इन संशोधनों से विद्युत क्षेत्र में बहुप्रतीक्षित सुधारों का मार्ग प्रशस्‍त होगा। इससे प्रतिस्‍पर्धा को बढ़ावा मिलेगा, परिचालन में दक्षता आएगी और देश में बिजली आपूर्ति की गुणवत्‍ता में सुधार होगा। इस तरह बिजली उत्‍पादन की क्षमता में बढ़ोतरी होगी और अंतत: उपभोक्‍ता लाभान्वित होंगे। 

प्रस्‍तावित संशोधनों की खास बातें भारतीय विद्युत अधिनियम 1910, विद्युत (आपूर्ति) अधिनियम 1948 और विद्युत नियामक आयोग अधिनियम, 1998 जैसे पूर्ववर्ती विद्युत कानूनों का आपस में विलय करने तथा उन्‍हें आधुनिक बनाने के उद्देश्‍य से विद्युत अधिनियम, 2003 बनाया गया था। वर्ष 2004 तथा वर्ष 2007 में इस अधिनियम की दो बार समीक्षा की गई, ताकि आवश्‍यक समझे जाने वाले बदलावों को मूर्त रूप दिया जा सके। 

विगत वर्षों में हासिल अनुभवों के आधार पर प्रावधानों की फिर से समीक्षा करने की जरूरत महसूस की गई ताकि वितरण क्षेत्र में दक्षता एवं प्रतिस्‍पर्धा सुनिश्चित हो सके, ग्रिड की सुरक्षा को मजबूती प्रदान की जा सके और शुल्‍क दरों को तर्कसम्‍मत बनाया जा सके। 

व्‍यापक सलाह-मशविरा के बाद विद्युत अधिनियम, 2003 में कुछ खास संशोधनों का प्रस्ताव किया गया, जिनमें निम्‍नलिखित क्षेत्रों को कवर किया गया है: 

क. ग्रिड की सुरक्षा बढ़ाना: ग्रिड की सुरक्षा बढ़ाने तथा उसे मजबूती प्रदान करने के लिए कुछ खास उपायों पर विचार किया गया है। स्पिनिंग रिजर्व की देख-रेख करना और राज्‍यों तथा क्षेत्रीय लोड प्रेषण केन्‍द्रों इत्‍यादि द्वारा दिये गए निर्देशों के उल्‍लंघन पर ज्‍यादा जुर्माना लगाने के रूप में इसकी रोकथाम की कारगर व्‍यवस्‍था करना इनमें शामिल हैं। 

ख. वितरण क्षेत्र में कैरेज (वितरण नेटवर्क) एवं कन्‍टेंट को अलग करना : बिजली बाजार के विभिन्‍न खण्डों में प्रतिस्‍पर्धा के जरिये उपभोक्‍ताओं को विकल्‍प देने और दक्षता बढ़ाने के लिए वितरण क्षेत्र में कैरेज एवं कन्‍टेंट को अलग करते हुए एकाधिक आपूर्ति वाले लाइसेंसों की अवधारणा का प्रस्‍ताव किया गया है। इसमें बाजार सिद्धांतों के आधार पर शुल्‍क दरों के निर्धारण पर भी ध्‍यान केन्द्रित किया गया है। उपभोक्‍ताओं के हितों की रक्षा के लिए बिजली की खुदरा बिक्री की दरों की सीमा नियामक द्वारा तय किये जाने का प्रस्‍ताव है। इसके अलावा, मौजूदा वितरण लाइसेंसधारकों की सेवाएं उनका कार्यकाल समाप्‍त होने तक जारी रखने का प्रस्‍ताव है। 

ग. नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा : नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों के विकास में तेजी लाने के लिए अनेक उपायों पर ध्‍यान केन्द्रित किया गया है। एक अलग राष्‍ट्रीय नवी‍करणीय ऊर्जा नीति के लिए प्रावधान करना, नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग का विकास करना, कोयला एवं लिग्‍नाइट आधारित ताप विद्युत संयंत्रों पर नवीकरणीय उत्‍पादन प्रतिबद्धता और ओपन एक्‍सेस के अधिभार से नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों को विशेष छूट देना भी इन उपायों में शामिल हैं। 

घ. दरों को तर्कसम्‍मत बनाना : वितरण क्षेत्र की लाभप्रदता सुनिश्चित करने के लिए ठोस वित्‍तीय सिद्धांतों के आधार पर शुल्‍क ढांचे को तर्कसम्‍मत बनाने एवं बिना किसी अंतर के लाइसेंसधारकों की राजस्‍व जरूरतों की वसूली के लिए शुल्‍क (टैरिफ) नीति के प्रावधानों को अनिवार्य बनाने का प्रस्‍ताव किया गया है ताकि दरों का निर्धारण हो सके। इस विधेयक में विद्युत क्षेत्र से जुड़े निकायों द्वारा दर संबन्‍धी याचिकाओं को समय पर दाखिल करने का भी उल्‍लेख किया गया है। 

पेटेंटेड औषधियों को अनिवार्य लाइसेंस जारी होना शुरू हुआ

पेटेंड, डिजाइन और व्‍यापार चिह्न महानियंत्रक ने अभी तक एक औषधि विनिर्माता कंपनी अर्थात मैसर्स नैटको फार्मा लिमिटेड को कैंसर रोधी दवा के लिए अनिवार्य लाइसेंस प्रदान किया है। 

इस दवा में ‘सोराफिनीब टोसिलेट’ घटक मौजूद है और इसका गुर्दे और जिगर के कैंसर के इलाज में उपयोग किया जाता है। यह स्‍वीकृति पेटेंट अधिनियम 1970 (यथा संशोधित) की धारा-84 के तहत दी गई है। यह पेटेंट मूल रूप से भारतीय पेटेंट कार्यालय द्वारा मैसर्स बेयर कोरपोरेशन, यूएसए को दिया गया था। 

यह जानकारी वाणिज्‍य और उद्योग राज्‍य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्रीमती निर्मला सीतारमण ने  लोक सभा में दी। 
अनिवार्य लाइसेंस के प्रावधान पेटेंट अधिनियम में मौजूद हैं और ये प्रावधान उचित स्थिति में लागू किए जाएंगे। 

उन्‍होंने बताया कि स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय ने जनवरी 2013 में भारत में औषधियों के अनिवार्य लाइसेंसिंग का प्रावधान शुरू करने के लिए गठित समिति की बैठक का कार्यवृत्‍त इस विभाग को भेजा था। इस कार्यवृत्‍त में सिफारिश की गई थी कि पेटेंट अधिनियम 1970 की धारा 92 के प्रावधानों के अनुसार तीन औषधियों- हर्सेप्टिन, डेसाटिनिब और एलजाबिपाइलोन को अनिवार्य लाइसेंसिंग के तहत लाया जाये। 

इस विभाग ने इस सिफारिश की विस्‍तृत जांच की और स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय से संबंधित सूचना भेजने का अनुरोध किया। इसके बाद पेटेंटी ने हर्सेप्टिन के पेटेंट का नवीकरण नहीं किया तथा एलजाबिपाइलोन को स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय द्वारा असुरक्षित पाया गया। इसके बाद स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय से डेसाटिनिब के बारे में अतिरिक्‍त जानकारी मांगी गई। 

नौकरी दिलाने के नाम पर हिन्दू को मुस्लिम बना दिया

तहसील दिवस पर लखनऊ की पिण्डरा तहसील में कुछ इसी तरह की फरियाद लेकर पहुंचे पुरारघुनाथपुर निवासी कृष्ण मोहन मिश्र ने सनसनी फैला दी।

एयरपोर्ट में संविदा पर नौकरी दिलाने के नाम पर इस्लाम धर्म कुबूल कराने का आरोप लगाते हुए उप जिलाधिकारी (पिण्डरा) एके शुक्ल को प्रार्थनापत्र दिया।

धर्मातरण के मुद्दे पर फरियादी ने आरोप लगाया कि एयरपोर्ट पर पिछले सात साल से वह संविदा पर बतौर लोडर काम कर रहा है। एक समुदाय के कई लोगों को स्थायी नौकरी दे दी गई लेकिन मेरे लिए इस्लाम धर्म कुबूल करने पर ही नौकरी देने की शर्त रख दी गई। 

कृष्ण मोहन मिश्र के अनुसार उसे मजबूरन इस्लाम धर्म कुबूल करना पड़ा। यह सुनकर तहसील दिवस में मौजूद अधिकारी सकते में आ गए। बहरहाल, उप जिलाधिकारी एके शुक्ल ने थानाध्यक्ष फूलपुर को मामले की जांचकर कार्रवाई करने का आदेश दिया है।

भारत में घुसपैठ के लिए पाकिस्तान दे रहा अल-कायदा का साथ

जांच एजेंसियों द्वारा गिरफ्तार किए गए आतंकवादियों से पूछताछ के बाद इस बात का पता चला कि पाकिस्तान का इंटर-सर्विस इंटेलिजेंस (आईएसआई) सभी प्रकार के आतंकवादियों को आश्रय, संरक्षण और धन उपलब्ध करा कर भारत में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है। 

03 सितंबर, 2014 को एक वीडियो अपलोड किया गया था, जिसमें अल-कायदा के शेख अय्यम अल-जवाहिरी का भाषण शामिल है। इसमें अल-जवाहिरी ने 'भारतीय उपमहाद्वीप में अल-कायदा' (एक्यूआईएस) नामक अल-कायदा की एक नई शाखा स्थापित करने की घोषणा की थी। पता चला है कि असीम उमर और उस्माना महमूद को एक्यूआईएस का क्रमशः 'अमीर' और 'प्रवक्ता' नियुक्त किया गया है। 

सरकार ने गृह/आंतरिक मंत्री/सचिव स्तरीय वार्ताओं, विदेश सचिव स्तरीय वार्ताओं आदि जैसे अनेक मंचों पर विभिन्न आतंकवादी संगठनों को पाकिस्तान की ओर से मिल रही सहायता का मुद्दा उठाया है और पाकिस्तान के अधिकारियों को संबंधित तथ्य/डोजियर सौंपे गए हैं। इतना ही नहीं, सरकार अपनी ओर से भारत में पाकिस्तान आधारित/समर्थित आतंकवादी संगठनों की नापाक गतिविधियों को विफल करने के लिए सभी आवश्यक उपाय कर रही है। 

घर वापसी में सरकार भी करे सहयोग - योगी आदित्यनाथ

भाजपा के सांसद योगी आदित्यनाथ ने रविवार को कहा कि जिन हिंदुओं को जबरदस्ती अन्य धर्मो में शामिल कर लिया गया है, अगर वे अपने फिर से हिंदू धर्म में वापस आना चाहते हैं तो इसमें सरकार को सहयोग करना चाहिए और ऐसे लोगों का स्वागत होना चाहिए। 21वीं सदी के युवा सांसद ने सर्द मौसम में ठिठुरते संतों में गर्मी भरने का प्रयास भी किया। बिहार के वैशाली जिले के वैशाली गढ़ में धर्म जागरण मंच द्वारा आयोजित 'संत समागम' में सांसद आदित्यनाथ ने संतों को एकजुट होने का आह्वान करते हुए कहा कि वर्ष 1992 में संत एकजुट हुए थे तो उनकी शक्ति विश्व ने देखी थी और बाबरी मस्जिद का ढांचा धूल में मिल गया था।

आज एक बार फिर भारत विरोधी ढांचों को ध्वस्त करने के लिए संतों को एकजुट होने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि देश के 15 लाख संत अगर देश के 6.23 लाख गांवों में निकल जाएं तो उस क्षेत्र में पादरी और मौलवी कुछ नहीं कर पाएंगे। आजादी के बाद या पहले जितने लोगों का धर्म-परिवर्तन कराया गया है, उन्हें पुन: अपने धर्म में लाने का कार्य किया जाएगा। सांसद ने हालांकि जबरदस्ती धर्म-परिवर्तन को गलत बताया और कहा कि सरकार को धर्म-परिवर्तन बंद करना चाहिए और इसके लिए कानून भी बनना चाहिए, परंतु ऐसे लोगों का स्वागत भी करना चाहिए जिन्हें पूर्व में जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराया गया है और वे हिंदू धर्म में वापसी कर रहे हैं।

उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय का उदाहरण देते हुए कहा कि आज इस विश्वविद्यालय को पुन: स्थापित किया जा रहा है, लेकिन इसके समाप्त होने के कारणों पर विचार नहीं किया जा रहा है। भाजपा सांसद ने बिहार सरकार पर 'मुस्लिम तुष्टिकरण' का आरोप लगाते हुए कहा कि आज उनके पास मदरसों के विकास के लिए पैसा है, लेकिन सामान्य विद्यालयों के विकास के लिए पैसा नहीं है। उन्होंने कहा कि धार्मिक न्यास बोर्ड का पैसा हिंदू संगठनों के लिए खर्च किया जाना चाहिए। इस समागम में बिहार के विभिन्न मंदिरों और मठों के 2,200 संत समेत देश के विभिन्न क्षेत्रों से बड़ी संख्या में साधु-संत पहुंचे।

मध्यप्रदेश में 10 मुस्लिमों ने विधिवत घर वापसी की

मध्यप्रदेश के खनियांधाना के बुकर्रा व छिरवाहा गांव के कुछ दलित परिवारों का धर्मातरण कर मुस्लिम धर्म अपनाने के मामले का गुरूवार को नाटकीय पटाक्षेप हो गया। हिन्दूवादी संगठनों और दलित समाज के नेताओं की मौजूदगी में मनीराम, तुलाराम, सरदार व अनरत सहित 10 लोगों ने खनियांधाना के टेकरी सरकार मंदिर में विधिवत मंत्रोच्चार के बीच पुन: हिन्दू धर्म अपना लिया है।

इस पूरे घटनाक्रम के दौरान अब्दुल्ला बन चुके मनीराम ने न केवल इस्लामिक पहनावा उतार दिया, बल्कि उसने दाढ़ी भी कटवा दी। हिन्दू धर्म को पुन: अपनाने की इच्छा के बाद गुरूवार दोपहर इन सभी नहला धुलाकर व पुरूषों को सफेद धोती व बनियान कुर्ता पहनाया गया,जबकि महिलाओं को नई साड़ी, मंदिर में हिन्दू धर्म से जुड़े मंत्रों के उच्चारण और यज्ञ के बीच इन लोगों ने पुन: हिन्दू धर्म अपनाने की घोषणा की।

इस पूरे मामले की खास बात यह रही कि पुन: हिन्दू धर्म अपनाने वाले इन लोगों का इस बार भी यही कहना था कि वे बिना किसी दबाव के पुन: हिन्दू धर्म अपना रहे हैं।

गुरूवार को हिन्दू रीति रिवाजों के साथ जिन 10 लोगों ने पुन: हिन्दू धर्म अपनाया है,उनमें तुलाराम (अब्दुल करीम) पुत्र प्रीतम, मनीराम (अब्दुल्ला) पुत्र रघुवर, नीलेश पुत्र मनीराम, मक्खो (अमीना) पत्नी मनीराम, प्रीतम पुत्र रघुना, गीता पत्नी प्रीतम, समरत पुत्र रघुना तथा सरदार (इलियास) पुत्र समरत, राजेश उर्फ राजू पुत्र समरत एवं समरत की पत्नी शामिल हैं।

पूरा पढ़िए 14 दिसंबर को प्रधानमंत्री ने क्या कहा अपनी 'मन की बात' में

मेरे प्यारे देशवासियों, 

आज फिर मुझे आप से मिलने का सौभाग्य मिला है। आपको लगता होगा कि प्रधानमंत्री ऐसी बातें क्यों करता है। एक तो मैं इसलिए करता हूँ कि मैं प्रधानमंत्री कम, प्रधान सेवक ज्यादा हूँ। बचपन से मैं एक बात सुनते आया हूँ और शायद वही ‘मन की बात’ की प्ररेणा है। हम बचपन से सुनते आये हैं कि दुःख बांटने से कम होता है और सुख बांटने से बढ़ता है। ‘मन की बात’ में, मैं कभी दुःख भी बांटता हूँ , कभी सुख भी बांटता हूँ। मैं जो बातें करता हूँ वो मेरे मन में कुछ पीड़ाएं होती हैं उसको आपके बीच में प्रकट करके अपने मन को हल्का करता हूँ और कभी कभी सुख की कुछ बातें हैं जो आप के बीच बांटकर के मैं उस खुशी को चौगुना करने का प्रयास करता हूँ।

मैंने पिछली बार कहा था कि लम्बे अरसे से मुझे हमारी युवा पीढ़ी की चिंता हो रही है। चिंता इसलिए नहीं हो रही है कि आपने मुझे प्रधानमंत्री बनाया है, चिंता इसलिए हो रही है कि किसी मां का लाल, किसी परिवार का बेटा, या बेटी ऐसे दलदल में फंस जाते हैं तो उस व्यक्ति का नहीं, वो पूरा परिवार तबाह हो जाता है। समाज, देश सब कुछ बरबाद हो जाता है। ड्रग्स, नशा ऐसी भंयकर बीमारी है, ऐसी भंयकर बुराई है जो अच्छों अच्छों को हिला देती है।

मैं जब गुजरात में मुख्यमंत्री के रूप में काम करता था, तो कई बार मुझे हमारे अच्छे-अच्छे अफसर मिलने आते थे, छुट्टी मांगते थे। तो मैं पूछता था कि क्यों ? पहले तो नहीं बोलते थे, लेकिन जरा प्यार से बात करता था तो बताते थे कि बेटा बुरी चीज में फंसा है। उसको बाहर निकालने के लिए ये सब छोड़-छाड़ कर, मुझे उस के साथ रहना पड़ेगा। और मैंने देखा था कि जिनको मैं बहुत बहादुर अच्छे अफसर मानता था, वे भी सिर्फ रोना ही बाकी रह जाता था। मैंनें ऐसी कई माताएं देखी हैं। मैं एक बार पंजाब में गया था तो वहां माताएं मुझे मिली थी। बहुत गुस्सा भी कर रही थी, बहुत पीड़ा व्यक्त कर रही थीं।

हमे इसकी चिंता समाज के रूप में करनी होगी। और मैं जानता हूँ कि बालक जो इस बुराई में फंसता है तो कभी कभी हम उस बालक को दोशी मानते हैं। बालक को बुरा मानते हैं। हकीकत ये है कि नशा बुरा है। बालक बुरा नही है, नशे की लत बुरी है। बालक बुरा नही है हम अपने बालक को बुरा न माने। आदत को बुरा मानें, नशे को बुरा मानें और उससे दूर रखने के रास्ते खोजें। बालक को ही दुत्कार देगें तो वो और नशा करने लग जाएगा। ये अपने आप में एक Psycho-Socio-Medical problem है। और उसको हमें Psycho-Socio-Medical problem के रूप में ही treat करना पड़ेगा। उसी के रूप में handle करना पड़ेगा और मैं मानता हूँ कि कुछ समस्याओं का समाधान मेडिकल से परे है। व्यक्ति स्वंय, परिवार, यार दोस्त, समाज, सरकार, कानून, सब को मिल कर के एक दिशा में काम करना पड़ेगा। ये टुकड़ों में करने से समस्या का समाधान नहीं होना है।

मैंने अभी असम में डी0जी0पी0 की Conference रखी थी। मैंने उनके सामने मेरी इस पीड़ा को आक्रोश के साथ व्यक्त किया था। मैंने पुलिस डिपार्टमेंट में इसकी गम्भीर बहस करने के लिये, उपाय खोजने के लिए कहा है। मैंने डिपार्टमेंट को भी कहा है कि क्यों नहीं हम एक टोल-फ्री हैल्पलाईन शुरू करें। ताकि देश के किसी भी कोने में, जिस मां-बाप को ये मुसीबत है कि उनके बेटे में उनको ये लग रहा है कि ड्रग की दुनिया में फंसा है, एक तो उनको दुनिया को कहने में शर्म भी आती है, संकोच भी होता है, कहां कहें? एक हैल्पलाईन बनाने के लिए मैंने शासन को कहा है। वो बहुत ही जल्द उस दिशा में जरूर सोचेंगे और कुछ करेंगे।

उसी प्रकार से, मैं जानता हूँ ड्रग्स तीन बातों को लाता है और मैं उसको कहूँगा, ये बुराइयों वाला Three D है - मनोरंजन के Three D की बात मैं नहीं कर रहा हूँ।

एक D है Darkness, दूसरा D है Destruction और तीसरा D है Devastation।

नशा अंधेरी गली में ले जाता है। विनाश के मोड़ पर आकर खड़ा कर देता है और बर्बादी का मंजर इसके सिवाय नशे में कुछ नहीं होता है। इसलिये इस बहुत ही चिंता के विषय पर मैंने चर्चा की है।

जब मैंने पिछले ‘मन की बात’ कार्यक्रम में इस बात का स्पर्श किया था, देश भर से करीब सात हजार से ज्यादा चिट्ठियां मुझे आकाशवाणी के पते पर आईं। सरकार में जो चिट्ठियां आईं वो अलग। ऑनलाइन, सरकारी पोर्टल पर, MyGov.in पोर्टल पर, हजारों ई-मेल आए। ट्विटर, फेसबुक पर शायद, लाखों कमेन्ट्स आये हैं। एक प्रकार से समाज के मन में पड़ी हुई बात, एक साथ बाहर आना शुरू हुआ है।

मैं विशेषकर, देश के मीडिया का भी आभारी हूँ कि इस बात को उन्होनें आगे बढ़ाया। कई टी. वी. ने विशेष एक-एक घंटे के कार्यक्रम किये हैं और मैंने देखा, उसमें सिर्फ सरकार की बुराइयों का ही कार्यक्रम नहीं था, एक चिन्ता थी और मैं मानता हूं, एक प्रकार से समस्या से बाहर निकलने की जद्दो-जहद थी और उसके कारण एक अच्छा विचार-विमर्श का तो माहौल शुरू हुआ है। सरकार के जिम्मे जो बाते हैं, वो भी Sensitised हुई हैं। उनको लगता है अब वे उदासीन नहीं रह सकते हैं।

मैं कभी-कभी, नशे में डूबे हुए उन नौजवानों से पूछना चाहता हूँ कि क्या कभी आपने सोचा है आपको दो घंटे, चार घंटे नशे की लत में शायद एक अलग जिन्दगी जीने का अहसास होता होगा। परेशानियों से मुक्ति का अहसास होता होगा, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि जिन पैसों से आप ड्रग्स खरीदते हो वो पैसे कहां जाते हैं? आपने कभी सोचा है? कल्पना कीजिये! यही ड्रग्स के पैसे अगर आतंकवादियों के पास जाते होंगे! इन्हीं पैसों से आतंकवादी अगर शस्त्र खरीदते होंगे! और उन्हीं शस्त्रों से कोई आतंकवादी मेरे देश के जवान के सीने में गोलियां दाग देता होगा! मेरे देश का जवान शहीद हो जाता होगा! तो क्या कभी सोचा है आपने? किसी मां के लाल को मारने वाला, भारत मां के प्राण प्रिय, देश के लिए जीने-मरने वाले, सैनिक के सीने में गोली लगी है, कहीं ऐसा तो नहीं है न? उस गोली में कहीं न कहीं तुम्हारी नशे की आदत का पैसा भी है, एक बार सोचिये और जब आप इस बात को सोचेंगे, मैं विश्वास से कहता हूँ, आप भी तो भारत माता को प्रेम करते हैं, आप भी तो देश के सैनिकों को सम्मान करते हैं, तो फिर आप आतंकवादियों को मदद करने वाले, ड्रग-माफिया को मदद करने वाले, इस कारोबार को मदद कैसे कर सकते हैं।

कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि जब जीवन में निराशा आ जाती है, विफलता आ जाती है, जीवन में जब कोई रास्ता नहीं सूझता, तब आदमी नशे की लत में पड़ जाता है। मुझे तो ऐसा लगता है कि जिसके जीवन में कोई ध्येय नहीं है, लक्ष्य नहीं है, उंचे इरादे नहीं हैं, एक वैक्यूम है, वहां पर ड्रग का प्रवेश करना सरल हो जाता है। ड्रग से अगर बचना है, अपने बच्चे को बचाना है तो उनको ध्येयवादी बनाइये, कुछ करने के इरादे वाले बनाइये, सपने देखने वाले बनाइये। आप देखिये, फिर उनका बाकी चीजों की तरफ मन नही लगेगा। उसको लगेगा नहीं, मुझे करना है।

आपने देखा होगा, जो खिलाड़ी होता है...ठण्ड में रजाई लेकर सोने का मन सबका करता है, लेकिन वो नहीं सोता है। वो चला जाता है खुले मैदान में, सुबह चार बजे, पांच बजे चला जाता है। क्यों ? ध्येय तय हो चुका है। ऐसे ही आपके किसी बच्चे में, ध्येयवादिता नहीं होगी तो फिर ऐसी बुराइयों के प्रवेश का रास्ता बन जाता है।

मुझे आज स्वामी विवेकानन्द के वो शब्द याद आते हैं। हर युवा के लिये वो बहुत सटीक वाक्य हैं उनके और मुझे विश्वास है कि वाक्य, बार-बार गुनगुनायें स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा है - ‘एक विचार को ले लो, उस विचार को अपना जीवन बना लो। उसके बारे में सोचो, उसके सपने देखो। उस विचार को जीवन में उतार लो। अपने दिमाग, मांसपेशियां, नसों, शरीर के प्रत्येक हिस्से को उस विचार से भर दो और अन्य सभी विचार छोड़ दो’।

विवेकानन्द जी का यह वाक्य, हर युवा मन के लिये है, बहुत काम आ सकता है और इसलिये, मैं युवकों से कहूँगा ध्येयवादी बनने से ही बहुत सी चीजों से बचा जा सकता।

कभी-कभी यार दोस्तों के बीच रहते हैं तो लगता है ये बड़ा Cool है। कुछ लोगों को लगता है कि ये Style statement है और इसी मन की स्थिति में कभी- कभी पता न रहते हुए ही, ऐसी गम्भीर बीमारी में ही फंस जाते हैं। न ये Style statement है और न ये Cool है। हकीकत में तो ये बरबादी का मंजर है और इसलिए हम सब के हृदय से अपने साथियों को जब नशे के गौरव गान होते हो, अब अपने अपने मजे की बाते बताते हो, तालियां बजाते हो, तब ‘No’ कहने की हिम्मत कीजिए, reject करने की हिम्मत कीजिए, इतना ही नही, उनको भी ये गलत कर रहे हो, अनुचित कर रहे हो ये कहने की आप हिम्मत जताइए।

मैं माता- पिता से भी कहना चाहता हूँ। हमारे पास आज कल समय नही हैं दौ़ड़ रहे हैं। जिंदगी का गुजारा करने के लिए दौड़ना पड़ रहा है। अपने जीवन को और अच्छा बनाने के लिये दौड़ना पड़ रहा है। लेकिन इस दौड़ के बीच में भी, अपने बच्चों के लिये हमारे पास समय है क्या ? क्या कभी हमने देखा है कि हम ज्यादातर अपने बच्चों के साथ उनकी लौकिक प्रगति की ही चर्चा करते हैं? कितने marks लाया, exam कैसे गई, ज्यादातर क्या खाना है ? क्या नहीं खाना है ? या कभी कहाँ जाना है? कहां नहीं जाना है , हमारी बातों का दायरा इतना सीमित है। या कभी उसके हृदय के भीतर जाकर के अपने बच्चों को अपने पास खोलने के लिये हमने अवसर दिया है? आप ये जरूर कीजिये। अगर बच्चे आपके साथ खुलेंगे तो वहां क्या चल रहा है पता चलेगा। बच्चे में बुरी आदत अचानक नहीं आती है, धीरे धीरे शुरू होती है और जैसे-जैसे बुराई शुरू होती है तो घर में उसका बदलाव भी शुरू होता है। उस बदलाव को बारीकी से देखना चाहिये। उस बदलाव को अगर बारीकी से देखेंगे तो मुझे विश्वास है कि आप बिल्कुल beginning में ही अपने बालक को बचा लेंगे। उसके यार दोस्तों की भी जानकारी रखिये और सिर्फ प्रगति के आसपास बातों को सीमित न रखें। उसके जीवन की गहराई, उसकी सोच, उसके तर्क, उसके विचार उसकी किताब, उसके दोस्त, उसके मोबाइल फोन्स....क्या हो रहा है? कहां उसका समय बीत रहा है, अपने बच्चों को बचाना होगा। मैं समझता हूं जो काम मां-बाप कर सकते हैं वो कोई नहीं कर सकता। हमारे यहां सदियों से अपने पूर्वजों ने कुछ बातें बड़ी विद्वत्तापूर्ण कही हैं। और तभी तो उनको स्टेट्समैन कहा जाता है। हमारे यहां कहा जाता है -

5 वर्ष लौ लीजिये

दस लौं ताड़न देई

5 वर्ष लौ लीजिये

दस लौं ताड़न देई

सुत ही सोलह वर्ष में

मित्र सरिज गनि देई

सुत ही सोलह वर्ष में

मित्र सरिज गनि देई

कहने का तात्पर्य है कि बच्चे की 5 वर्ष की आयु तक माता-पिता प्रेम और दुलार का व्यवहार रखें, इसके बाद जब पुत्र 10 वर्ष का होने को हो तो उसके लिये डिसिप्लिन होना चाहिये, डिसिप्लिन का आग्रह होना चाहिये और कभी-कभी हमने देखा है समझदार मां रूठ जाती है, एक दिन बच्चे से बात नहीं करती है। बच्चे के लिये बहुत बड़ा दण्ड होता है। दण्ड मां तो अपने को देती है लेकिन बच्चे को भी सजा हो जाती है। मां कह दे कि मैं बस आज बोलूंगी नहीं। आप देखिये 10 साल का बच्चा पूरे दिन परेशान हो जाता है। वो अपनी आदत बदल देता है और 16 साल का जब हो जाये तो उसके साथ मित्र जैसा व्यवहार होना चाहिये। खुलकर के बात होनी चाहिये। ये हमारे पूर्वजों ने बहुत अच्छी बात बताई है। मैं चाहता हूं कि ये हमारे पारिवारिक जीवन में इसका कैसे हो उपयोग।

एक बात मैं देख रहा हूं दवाई बेचने वालों की। कभी कभी तो दवाईयों के साथ ही इस प्रकार की चीज आ जाती हैं जब तक डॉक्टर के Prescription के बिना ऐसी दवाईयां न दी जायें। कभी कभी तो कफ़ सिरप भी ड्रग्स की आदत लेने की शुरूआत बन जाता है। नशे की आदत की शुरूआत बन जाता है। बहुत सी चीजे हैं मैं इसकी चर्चा नहीं करना चाहता हूं। लेकिन इस डिसिप्लिन को भी हमको स्वीकार करना होगा।

इन दिनों अच्छी पढ़ाई के लिये गांव के बच्चे भी अपना राज्य छोड़कर अच्छी जगह पर एडमिशन के लिये बोर्डिंग लाइफ जीते हैं, Hostel में जीते हैं। मैंने ऐसा सुना है कि वो कभी-कभी इस बुराइयों का प्रवेश द्वार बन जाता है। इसके विषय में शैक्षिक संस्थाओं ने, समाज ने, सुरक्षा बलों ने सभी ने बड़ी जागरूकता रखनी पड़ेगी। जिसकी जिम्मेवारी है उसकी जिम्मेवारी पूरा करने का प्रयास होगा। सरकार के जिम्मे जो होगा वो सरकार को भी करना ही होगा। और इसके लिये हमारा प्रयास रहना चाहिये।

मैं यह भी चाहता हूं ये जो चिट्ठियां आई हैं बड़ी रोचक, बड़ी दर्दनाक चिट्ठियां भी हैं और बड़ी प्रेरक चिट्ठियां भी हैं। मैं आज सबका उल्लेख तो नहीं करता हूं, लेकिन एक मिस्टर दत्त करके थे, जो नशे में डूब गये थे। जेल गये, जेल में भी उन पर बहुत बंधन थे। फिर बाद में जीवन में बदलाव आया। जेल में भी पढ़ाई की और धीरे धीरे उनका जीवन बदल गया। उनकी ये कथा बड़ी प्रचलित है। येरवड़ा जेल में थे, ऐसे तो कईयों की कथाएं होंगी। कई लोग हैं जो इसमें से बाहर आये हैं। हम बाहर आ सकते हैं और आना भी चाहिये। उसके लिये हमारा प्रयास भी होना चाहिये, उसी प्रकार से। आने वाले दिनों में मैं Celebrities को भी आग्रह करूंगा। चाहे सिने कलाकार हों, खेल जगत से जुड़े हुए लोग हों, सार्वजनिक जीवन से जुड़े हुए लोग हों। सांस्कृतिक सन्त जगत हो, हर जगह से इस विषय पर बार-बार लोगों को जहां भी अवसर मिले, हमें जागरूक रखना चाहिये। हमें संदेश देते रहना चाहिये। उससे जरूर लाभ होगा। जो सोशल मीडिया में एक्टिव हैं उनसे मैं आग्रह करता हूं कि हम सब मिलकर के Drugs Free India hash-tag के साथ एक लगातार Movement चला सकते हैं। क्योंकि इस दुनिया से जुड़े हुए ज्यादातर बच्चे सोशल मीडिया से भी जुड़े हुए हैं। अगर हम Drugs Free India hash-tag, इसको आगे बढायेंगे तो एक लोकशिक्षा का एक अच्छा माहौल हम खड़ा कर सकते हैं।

मैं चाहता हूं कि इस बात को और आगे बढायें। हम सब कुछ न कुछ प्रयास करें, जिन्होंने सफलता पाई है वो उसको Share करते रहें। लेकिन मैंने इस विषय को इसलिये स्पर्श किया है मैंने कहा कि दुख बांटने से दुख कम होता है। देश की पीड़ा है, ये मैं कोई उपदेश नहीं दे रहा हूं और न ही मुझे उपदेश देने का हक है। सिर्फ अपना दुख बांट रहा हूं, या तो जिन परिवारों में ये दुख है उस दुख में मैं शरीक होना चाहता हूं। और मैं एक जिम्मेवारी का माहौल Create करना चाहता हूं। हो सकता है इस विषय में मत-मतान्तर हो सकते हैं। लेकिन कहीं से तो शुरू करना पड़ेगा।

मैंने कहा था कि मैं खुशियां भी बांटना चाहता हूं। मुझे गत सप्ताह ब्लाइंड क्रिकेट टीम से मिलने का मौका मिला। World Cup जीत कर आये थे। लेकिन जो मैंने उनका उत्साह देखा, उनका उमंग देखा, आत्मविश्वास देखा, परमात्मा ने जिसे आंखें दिये है, हाथ-पांव दिये हैं सब कुछ दिया है लेकिन शायद ऐसा जज्बा हमारे पास नहीं है, जो मैंने उन ब्लांइड क्रिकेटरों में देखा था। क्या उमंग था, क्या उत्साह था। यानि मुझे भी उनसे मिलकर उर्जा मिली। सचमुच में ऐसी बातें जीवन को बड़ा ही आनंद देता है।

पिछले दिनों एक खबर चर्चा में रही। जम्मू कश्मीर की क्रिकेट टीम ने मुम्बई जाकर के मुम्बई की टीम को हराया। मैं इसे हार-जीत के रूप में नहीं देख रहा हूं। मैं इस घटना को दूसरे रूप में देख रहा हूँ। पिछले लम्बे समय से कश्मीर में बाढ़ के कारण सारे मैदान पानी से भरे थे। कश्मीर संकटों से गुजर रहा है हम जानते हैं कठिनाइयों के बीच भी इस टीम ने जो Team- Spirit के साथ, बुलन्दी के के हौसले के साथ, जो विजय प्राप्त किया है वो अभूतपूर्व है और इसलिये कठिनाइंयां हैं, विपरीत परिस्थितियां हो, संकट हो उसके बाद भी लक्ष्य को कैसे प्राप्त किया जा सकता है, ये जम्मू कश्मीर के युवकों ने दिखाया है और इसलिये और इसलिये मुझे इस बात को सुन करके विशेष आनन्द हुआ, गौरव हुआ और मैं इन सभी खिलाडि़यों को बधाई देता हूं।

दो दिन पहले यूनाइटेड नेशन ने, योग को, पूरा विश्व 21 जून को योग दिवस के रूप में माने इसके लिये स्वीकृति दी है। भारत के लिये बहुत ही गौरव का, आनन्द का अवसर है। सदियों से हमारे पूर्वजों ने इस महान परम्परा को विकसित किया था, उससे आज विश्व जुड़ गया। योग व्यक्तिगत जीवन में तो लाभ करता था, लेकिन योग ने ये भी दिखा दिया वो दुनिया को जोड़ने का कारण बन सकता है। सारी दुनिया योग के मुद्दे पर यू.एन. में जुड़ गई। और मैं देख रहा हूं कि सर्वसम्मति से प्रस्ताव दो दिन पहले पारित हुआ। और 177 देश, Hundred and Seventy Seven Countries Co-Sponsor बनी। भूतकाल में नेल्सन मंडेला जी के जन्म दिन को मनाने का निर्णय हुआ था। तब Hundred and Sixty Five Countries Co- Sponsor बनी थी। उसके पूर्व International Toilet Day के लिये प्रयास हुआ था तो Hundred and Twenty Two Countries Co- Sponsor हुई थी। उससे पहले 2 अक्तूबर को Non-Violence Day के लिये Hundred and Forty Countries Co- Sponsor बनी थी। इस प्रकार के प्रस्ताव से Hundred and Seventy Seven Countries ने Co-Sponsor बनना यानि एक World Record हो गया है। दुनिया के सभी देशों का मैं आभारी हूं जिन्होंने भारत की इस भावना का आदर किया। और विश्व योग दिवस मनाने का निर्णय किया। हम सबका दायित्व बनता है कि योग की सही भावना लोगों तक पहुंचे।

पिछले सप्ताह मुझे मुख्यमंत्रियों की मीटिंग करने का अवसर मिला था। मुख्यमंत्रियों की मीटिंग तो 50 साल से हो ही रही है, 60 साल से हो रही है। लेकिन इस बार प्रधानमंत्री के निवास स्थान पर मिलना हुआ और उससे भी अधिक हमने एक Retreat का कार्यक्रम प्रारंभ किया, जिसमें हाथ में कोई कागज नहीं, कोई कलम नहीं, साथ में कोई अफसर नहीं, कोई फाइल नहीं। सभी मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बराबर के मित्र के रूप में बैठे। दो ढाई घण्टे तक समाज के, देश के भिन्न भिन्न विषयों पर बहुत गम्भीरतापूर्वक बातें की, हल्के फुल्के वातावरण में बातें कीं। मन खोलकर के बातें कीं। कहीं उसको राजनीति की छाया नहीं दी। मेरे लिये ये बहुत ही आनन्ददायक अनुभूति थी। उसको भी मैं आपके बीच Share करना चाहता हूं।

पिछले सप्ताह मुझे Northeast जाने का अवसर मिला। मैं तीन दिन वहां रहा। मैं देश के युवकों को विशेष आग्रह करता हूं कि आपको अगर ताज महल देखने का मन करता है, आपको अगर सिंगापुर देखने का मन करता है, आपको कभी दुबई देखने का मन करता है। मैं कहता हूं दोस्तो, प्रकृति देखनी है, ईश्वर का प्राकृतिक रूप देखना है तो आप Northeast जरूर जाइये। मैं पहले भी जाता था। लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में जब गया, तो वहां की शक्ति को पहचानने का प्रयास किया। अपार शक्तियों की संभावनाओं से भरा हुआ हमारा Northeast है। इतने प्यारे लोग हैं, इतना उत्तम वातावरण है। मैं सचमुच में बहुत आनन्द लेकर आया हूं। कभी कभी लोग पूछते हैं न? मोदी जी आप थकते नहीं हैं क्या? मैं कहता हूं Northeast जाकर के तो लगता है कि कहीं कोने भी थकान हुई होगी, वो भी चली गई। इतना मुझे आनन्द आया। और जो प्यार दिया वहां के लोगों ने जो मेरा स्वागत सम्मान वो तो एक बात है। लेकिन जो अपनापन था वो सचमुच में, मन को छूने वाला था, दिल को छूने वाला था। मैं आपको भी कहूंगा ये सिर्फ मोदी को ही ये मजा लेने का अधिकार नहीं है भारत के हर देश वासी को है। आप जरूर इसकी मजा लीजिये।

अगली ‘मन की बात’ होगी तब तो 2015 आ जायेगी। 2014 का ये मेरा शायद ये आखिरी कार्यक्रम है। मेरी आप सबको क्रिसमस की बहुत बहुत शुभकामनायें हैं। 2015 के नववर्ष की मैं Advance में आप सबको बहुत बहुत शुभकामनायें देता हूं। मेरे लिये ये भी खुशी की बात है कि मेरे मन की बात को Regional Channels की जो Radio Channels हैं आपके जो प्रादेशिक चैनल हैं उसमें जिस दिन सुबह मेरे ‘मन की बात’ होती है उस दिन रात को 8 बजे प्रादेशिक भाषा में होती है। और मैंने देखा है कुछ प्रादेशिक भाषा में तो आवाज भी मेरे जैसे कुछ लोग निकालते हैं। मैं भी हैरान हूं कि इतना बढि़या काम हमारे आकाशवाणी के साथ जो कलाकार जुड़े हुए हैं वो कर रहे हैं मैं उनको भी बधाई देता हूं। और ये लोगों तक पहुंचने के लिये मुझे बहुत ही अच्छा मार्ग दिखता है। इतनी बड़ी मात्रा में चिट्ठियां आई हैं। इन चिट्ठियों को देखकर के हमारे आकाशवाणी ने इसका जरा एक तरीका ढूंढा है। लोगों को सहूलियत हो इसलिये उन्होंने पोस्ट-बॉक्स नम्बर ले लिया है। तो ‘मन की बात’ पर अगर आप कुछ बात कहना चाहते हैं तो आप पोस्ट-बॉक्स पर लिख सकते है अब।

मन की बात

पोस्ट बॉक्स 111, आकाशवाणी

नई दिल्ली

मुझे इंतजार रहेगा आपके पत्रों का। आपको पता नहीं है, आपके पत्र मेरे लिये प्रेरणा बन जाते हैं। आपके कलम से निकली एक-आध बात देश के काम आ सकती है। मैं आपका आभारी हूं। फिर हम 2015 में जनवरी में किसी न किसी रविवार को जरूर 11 बजे मिलेंगे बाते करेंगे।

बहुत बहुत धन्यवाद।

गंगा संरक्षण कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया गया

केन्‍द्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने सचि‍वों के एक समूह की सि‍फारिशों को ध्‍यान में रखते हुए गंगा संरक्षण कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया जिसमें तीन समूह, सात उद्देश्‍य और 21 बिन्‍दु शामिल होंगे। 

गंगा के अवि‍रल प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए गठित मंत्रालय के वरिष्‍ठ अधिकारियों और सात आईआईटी के संकायों की एक समिति इस महीने के अंत तक अपनी अंतिम रिपोर्ट सौपेगी। मंत्री ने केन्‍द्रीय जल आयोग (सीडब्‍ल्‍यूडी) को गैर मानसून सीजन के दौरान गंगा, यमुना और उसकी सहायक नदियों के पास जलाश्‍यों का निर्माण करने के लिए योजना तैयार करने के निर्देश दिए। 

गंगा और यमुना की सफाई सुनिश्चित करने के लिए सीडब्‍ल्‍यूसी विशेषज्ञों की 41 टीमों ने इन नदियों में खुले नालों के गिरने के प्रभाव और सीवेज प्रशोधन संयंत्रों (एसटीपी) की स्थिति का जायजा लेने के लिए कई स्‍थानों का दौरा किया। नए एसटीपी स्‍थापित करने और मौजूदा एसटीपी के आधुनिकीकरण के लिए उपायों के बारे में सलाह देने के लिए तीन विशेषज्ञ टीम गठित की गई हैं। ये समितियां अब तक 18 प्रमुख सुझावों की जांच पड़ताल कर चुकी हैं। नदी के आगे के भाग के विकास और घाटों के सौन्‍दर्यीकरण के लिए डीपीआर ने दिल्‍ली और हरिद्वार में इस तरह के दो घाट तैयार किए हैं। मथुरा, वृंदावन और अन्‍य स्‍थानों पर पीपीपी प्रणाली में घाटों के विकास के लिए जल्‍द ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा। 

गंगा संरक्षण कार्यक्रम का समुचित कार्यान्‍वयन सुनिश्चित करने के लिए गंगा कार्यबल गठित करने का निर्णय लिया गया है। रक्षा मंत्रालय इसके लिए श्रम‍शक्ति उपलब्‍ध कराएगा। 

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