दामिनी की मौत की कहानी, दोस्त की जुबानी (पढ़िये पूरा सच)


दिल्ली गैंगरेप की पीड़ित लड़की जिसकी मौत हो चुकी है उनके पुरुष मित्र और इस केस में एकमात्र गवाह ने शुक्रवार को पहली बार इस मसले पर ज़ी न्यूज़ से बात की। बातचीत में पीड़िता के दोस्त ने बताया कि 16 दिसंबर 2012 की रात हैवानियत वाली घटना के बाद भी उनकी दोस्त जीना चाहती थी। 

उस भयावह रात क्या-क्या हुआ, उसे विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि छह आरोपियों ने जब उन्हें बस से बाहर फेंक दिया तो कोई भी उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया। यहां तक कि पुलिस की तीन-तीन पीसीआर वैन आई और पुलिस थानों को लेकर उलझी रही। उन्हें अस्पताल ले जाने में दो घंटे से अधिक का समय लगा दिया गया।

पीड़िता के दोस्त ने कहा कि छह आरोपियों ने जब उन्हें बस से बाहर फेंक दिया तो कोई भी उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया। यहां तक कि पुलिस आई और उन्हें अस्पताल ले जाने में दो घंटे से अधिक समय लगा दिया। उन्होंने कहा कि 16 दिसंबर से विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। गैंगरेप के खिलाफ लोग सड़कों पर हैं। 

उन्होंने कहा, ‘इस भयावह घटना पर मीडिया में बहुत सारी चीजें आई हैं और लोग इसके बारे में अलग-अलग बातें कर रहे हैं। मैं लोगों को बताना चाहता हूं कि हमारे साथ उस रात क्या हुआ। मैं बताना चाहता हूं कि मैंने और मेरी दोस्त ने उस रात किन-किन मुश्किलों का सामना किया।’  उन्होंने उम्मीद जताई कि इस त्रासदपूर्ण घटना से अन्य लोग सबक सीखेंगे और दूसरे का जीवन बचाने के लिए आगे आएंगे। 

उन्होंने कहा कि छह आरोपियों ने 16 दिसंबर की रात उन्हें बस में चढ़ने के लिए प्रलोभन दिया। पीड़ित लड़की के दोस्त ने बताया, ‘बस में काले शीशे और पर्दे लगे थे। बस में सवार लोग पहले भी शायद अपराध में शामिल थे। 
ऐसा लगा कि बस में सवार आरोपी पहले से तैयार थे। ड्राइवर और कंडक्टर के अलावा बस में सवार अन्य सभी यात्री की तरह बर्ताव कर रहे थे। हमने उन्हें किराए के रूप में 20 रुपए भी दिए। इसके बाद वे मेरी दोस्त पर कमेंट करने लगे। इसके बाद हमारी उनसे नोकझोंक शुरू हो गई।’

उन्होंने बताया, ‘मैंने उनमें से तीन को पीटा लेकिन तभी बाकी आरोपी लोहे की रॉड लेकर आए और मुझ पर वार किया। मेरे बेहोश होने से पहले वे मेरी दोस्त को खींच कर ले गए।’ पीड़िता के दोस्त ने बताया, ‘हमें बस से फेंकने से पहले अपराध के साक्ष्य मिटाने के लिए उन्होंने हमारे मोबाइल छीने और कपड़े फाड़ दिए।’ 

पीड़िता के दोस्त ने बताया, ‘जहां से उन्होंने हमें बस में चढ़ाया, उसके बाद करीब ढाई घंटे तक वे हमें इधर-उधर घुमाते रहे। हम चिल्ला रहे थे। हम चाह रहे थे कि बाहर लोगों तक हमारी आवाज पहुंचे लेकिन उन्होंने बस के अंदर लाइट बंद कर दी थी। यहां तक कि मेरी दोस्त उनके साथ लड़ी। उसने मुझे बचाने की कोशिश की। मेरी दोस्त ने 100 नंबर डॉयल कर पुलिस को बुलाने की कोशिश की लेकिन आरोपियों ने उसका मोबाइल छीन लिया।’

उन्होंने कहा, ‘बस से फेंकने के बाद उन्होंने हमें बस से कुचलकर मारने की कोशिश की लेकिन समय रहते मैंने अपनी दोस्त को बस के नीचे आने से पहले खींच लिया। हम बिना कपड़ों के थे। हमने वहां से गुजरने वाले लोगों को रोकने की कोशिश की। करीब 25 मिनट तक कई ऑटो, कार और बाइक वाले वहां से अपने वाहन की गति धीमी करते और हमें देखते हुए गुजरे लेकिन कोई भी वहां नहीं रुका। तभी गश्त पर निकला कोई व्यक्ति वहां रुका और उसने पुलिस को सूचित किया। 

पीड़िता के दोस्त ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि बस से फेंके जाने के करीब 45 मिनट बाद तक घटनास्थल पर तीन-तीन पीसीआर वैन पहुंचीं लेकिन करीब आधे घंटे तक वे लोग इस बात को लेकर आपस में उलझते रहे कि यह फलां थाने का मामला है, यह फलां थाने का मामला है। अंतत: एक पीसीआर वैन में हमने अपनी दोस्त को डाला। वहां खड़े लोगों में से किसी ने उनकी मदद नहीं की। संभव है लोग ये सोच रहे हों कि उनके हाथ में खून लग जाएगा। दोस्त को वैन में चढ़ाने में पुलिस ने मदद नहीं की क्योंकि उनके शरीर से अत्यधिक रक्तस्राव हो रहा था। घटनास्थल से सफदरजंग अस्पताल तक जाने में पीसीआर वैन को दो घंटे से अधिक समय लग गए। 

दिवंगत लड़की के दोस्त ने बताया कि पुलिस के साथ-साथ किसी ने भी हमें कपड़े नहीं दिए और न ही एम्बुलेंस बुलाई। उन्होंने कहा, ‘वहां खड़े लोग केवल हमें देख रहे थे।’ उन्होंने बताया कि शरीर ढकने के लिए कई बार अनुरोध करने पर किसी ने बेड शीट का एक टुकड़ा दिया। उन्होंने बताया,‘वहां खड़े लोगों में से किसी ने हमारी मदद नहीं की। लोग शायद इस बात से भयभीत थे कि यदि वे हमारी मदद करते हैं तो वे इस घटना के गवाह बन जाएंगे और बाद में उन्हें पुलिस और अदालत के चक्कर काटने पड़ेंगे।’

उन्होंने बताया, ‘यहां तक कि अस्पताल में हमें इंतजार करना पड़ा और मैंने वहां आते-जाते लोगों से शरीर पर कुछ डालने के लिए कपड़े मांगे। मैंने एक अजनबी से उनका मोबाइल मांगा और अपने रिश्तेदारों को फोन किया। मैंने अपने रिश्तेदारों से बस इतना कहा कि मैं दुर्घटना का शिकार हो गया हूं। मेरे रिश्तेदारों के अस्पताल पहुंचने के बाद ही मेरा इलाज शुरू हो सका।’

उन्होंने कहा, ‘मुझे सिर पर चोट लगी थी। मैं इस हालत में नहीं था कि चल-फिर सकूं। यहां तक कि दो सप्ताह तक मैं इस योग्य नहीं था कि मैं अपने हाथ हिला सकूं।’ उन्होंने कहा, ‘मेरा परिवार मुझे अपने पैतृक घर ले जाना चाहता था लेकिन मैंने दिल्ली में रुकने का फैसला किया ताकि मैं पुलिस की मदद कर सकूं। डॉक्टरों की सलाह पर ही मैं अपने घर गया और वहां इलाज कराना शुरू किया।’

उन्होंने कहा, ‘जब मैं अस्पताल में अपनी दोस्त से मिला था तो वह मुस्कुरा रही थीं। वह लिख सकती थीं और चीजों को लेकर आशावान थीं। मुझे ऐसा कभी नहीं लगा कि वह जीना नहीं चाहतीं।’ उन्होंने बताया, ‘पीड़िता ने मुझसे कहा था कि यदि मैं वहां नहीं होता तो वह पुलिस में शिकायत भी दर्ज नहीं करा पाती। मैंने फैसला किया था कि अपराधियों को उनके किए की सजा दिलाऊंगा।’

पीड़िता के दोस्त ने बताया कि उनकी दोस्त इलाज के खर्च को लेकर चिंतित थी। उन्होंने कहा, ‘मेरी दोस्त का हौसला बढ़ाए रखने के लिए मुझे उनके पास रहने के लिए कहा गया।’ उन्होंने बताया, ‘मेरी दोस्त ने महिला एसडीएम को जब पहली बार बयान दिया तभी मुझे इस बात की जानकारी हुई कि उनके साथ क्या-क्या हुआ। उन आरोपियों ने मेरी दोस्त के साथ जो कुछ किया, उस पर मैं विश्वास नहीं कर सका। यहां तक जानवर भी जब अपना शिकार करते हैं तो वे अपने शिकार से इस तरह की क्रूरता के साथ पेश नहीं आते।’

दिवंगत लड़की के दोस्त ने कहा, ‘मेरी दोस्त ने यह सब कुछ सहा और उन्होंने मजिस्ट्रेट से कहा कि आरोपियों को फांसी नहीं होनी चाहिए बल्कि उन्हें जलाकर मारा जाना चाहिए।’ उन्होंने बताया, ‘मेरी दोस्त ने एसडीएम को जो पहला बयान दिया वह सही था। मेरी दोस्त ने काफी प्रयास के बाद अपना बयान दिया था। बयान देते समय वह खांस रही थीं और उनके शरीर से रक्तस्राव हो रहा था। बयान देने को लेकर न तो किसी तरह का दबाव था और न ही हस्तक्षेप। लेकिन एसडीएम ने जब कहा कि बयान दर्ज करते समय उन पर दबाव था तो मुझे लगा कि सभी प्रयास व्यर्थ हो गए। महिला एसडीएम का यह कहना कि बयान दबाव में दर्ज किए गए, गलत है।’

यह पूछे जाने पर कि इस तरह की घटना दोबारा से न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए वह क्या सुझाव देना चाहेंगे। इस पर दोस्त ने कहा, ‘पुलिस को यह हमेशा कोशिश करनी चाहिए कि पीड़ित व्यक्ति को जितनी जल्दी संभव हो अस्पताल पहुंचाया जाए। पीड़ित को भर्ती कराने के लिए पुलिस को सरकारी अस्पताल नहीं ढूढ़ना चाहिए। साथ ही गवाहों को भी परेशान नहीं किया जाना चाहिए।’

उन्होंने कहा कि कोई मोमबत्तियां जलाकर किसी की मानसिकता को नहीं बदल सकता। उन्होंने कहा, ‘आपको सड़क पर मदद मांग रहे लोगों की सहायता करनी होगी।’ उन्होंने कहा, ‘विरोध-प्रदर्शन और बदलाव की कवायद केवल मेरी दोस्त के लिए नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए भी होना चाहिए।’

पीड़िता के दोस्त ने कहा कि सरकार द्वारा गठित जस्टिस वर्मा समिति से वह चाहते हैं कि वह महिलाओं की सुरक्षा और बेहतर करने और शिकायतकर्ता के लिए आसान कानून बनाने के लिए उपाय सुझाए। उन्होंने कहा, ‘हमारे पास ढेर सारे कानून हैं लेकिन आम जनता पुलिस के पास जाने से डरती है क्योंकि उसे भय है कि पुलिस उसकी प्राथमिकी दर्ज करेगी अथवा नहीं। आप एक मसले के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह फास्ट ट्रैक कोर्ट हर मामले के लिए क्यों नहीं।’

पीड़िता के दोस्त ने खुलासा किया, ‘मेरे इलाज के बारे में जानने के लिए सरकार की तरफ से किसी ने मुझसे संपर्क नहीं किया। मैं अपने इलाज का खर्च स्वयं उठा रहा हूं।’ उन्होंने कहा, ‘मेरी दोस्त का इलाज यदि अच्छे अस्पताल में शुरू किया गया होता तो शायद आज वह जिंदा होती।’ 

बता दें कि गैंगरेप पीड़िता का इलाज पहले सफदरजंग अस्पताल में किया गया था। इसके बाद उन्हें बेहतर इलाज के लिए सिंगापुर भेजा गया। पीड़िता के दोस्त ने यह भी बताया कि पुलिस के कुछ अधिकारी ऐसे भी थे जो यह चाहते थे कि वह यह कहें कि पुलिस मामले में अच्छा काम कर रही है। 

उन्होंने बताया, ‘पुलिस अपना काम करने का श्रेय क्यों लेना चाहती थी? सभी लोग यदि अपना काम अच्छी तरह करते तो इस मामले में कुछ ज्यादा कहने की जरूरत नहीं पड़ती।’ पीड़िता के दोस्त ने कहा, ‘हमें लम्बी लड़ाई लड़नी है। मेरे परिवार में यदि वकील नहीं होते तो मैं इस मामले में अपनी लड़ाई जारी नहीं रख पाता।’

उन्होंने कहा, ‘मैं चार दिनों तक पुलिस स्टेशन में रहा, जबकि मुझे इसकी जगह अस्पताल में होना चाहिए था। मैंने अपने दोस्तों को बताया कि मैं दुर्घटना का शिकार हो गया हूं।’ उन्होंने कहा, ‘मामले में दिल्ली पुलिस को स्वयं आकलन करना चाहिए कि उसने अच्छा काम किया है अथवा नहीं।’

उन्होंने  कहा, ‘यदि आप किसी की मदद कर सकते हैं तो उसकी मदद कीजिए। उस रात किसी एक व्यक्ति ने यदि मेरी मदद की होती तो आपके सामने कुछ और तस्वीर होतीं। मेट्रो स्टेशन बंद करने और लोगों को अपनी बात कहने से रोकने की कोई जरूरत नहीं है। व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि जिसमें लोगों का विश्वास कायम रहे।’

उन्होंने बताया, ‘हादसे की रात मैं अपनी दोस्त को छोड़कर भागने के बारे में कभी नहीं सोचा। ऐसी घड़ी में यहां तक कि जानवर भी अपने साथी को छोड़कर नहीं भांगेंगे। मुझे कोई अफसोस नहीं है। लेकिन मेरी इच्छा है कि शायद उसकी मदद के लिए मैं कुछ कर पाया होता। कभी-कभी सोचता हूं कि मैंने ऑटो क्यों नहीं किया, क्यों अपनी दोस्त को उस बस तक ले गया।’

आतंकवादी के समधी को प्रधानमंत्री कार्यालय की अनुशंसा पर वीजा


पूर्व क्रिकेटर और माफिया सरगना दाउद इब्राहिम के समधी जावेद मियांदाद को दिल्ली आने के लिए वीजा देने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। भाजपा और शिवसेना के अलावा कांग्रेस के एक सांसद ने भी मियांदाद को वीजा देने का कड़ा विरोध किया है। विशेषज्ञ भी दाउद के समधी को वीजा दिए जाने पर सवाल खड़े कर रहे हैं। 

विशेषज्ञों का सवाल है कि क्या भारत सरकार मुंबई के जख्म को भूल गई है। खबर यह भी है कि मियांदाद को कोलकाता में खेले गए दूसरे वनडे के बाद सम्मानित किया जाना था लेकिन वह नहीं आए। पीसीबी के चीफ जका अशरफ ने कहा है कि जहां तक मुझे जानकारी है उन्होंने वीजा के लिए आवेदन नहीं किया है। इसलिए वह नहीं आए। 

खबर है कि भारत सरकार ने सुरक्षा एजेंसियों की आपत्ति के बावजूद मियांदाद को वीजा दिया है। उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक मियांदाद को वीजा देने का फैसला प्रधानमंत्री कार्यालय के स्तर पर हुआ था। एक खुफिया अधिकारी ने बताया कि मियांदाद को वीजा देने का फैसला पूरी तरह से राजनीतिक और कूटनीतक है। दिसंबर में पाकिस्तान के गृह मंत्री रहमान मलिक की भारत यात्रा को मंजूरी दी गई थी। उसी आधार पर मियांदाद को वीजा देने का फैसला लिया गया। खुफिया एजेंसिया इस कदम से हैरान नहीं है। वे भारत सरकार के फैसले से खुश नहीं है।

एक खुफिया अधिकारी के मुताबिक 2005 में जब दाउद इब्राहिम की बेटी की शादी मियांदाद के बेटे से हुई थी तब से उसका परिवार खुफिया एजेंसियों की नजर में था। तब सैद्धांति तौर पर यह फैसला लिया गया था उन्हें भारत आने की अनुमति नहीं दी जाएगी। तब से इस मामले में कुछ भी बदलाव नहीं हुआ है। हमें उन्हें भारत आने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। मियांदाद को भारत आने से रोकने का फैसला तब के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन और आईबीए के प्रमुख ईएसएल नरसिम्हन ने लिया था। नारायणन इस समय पश्चिम बंगाल के राज्यपाल हैं और नरसिम्हन आंध्र प्रदेश के।

सोनिया-राहुल ने वायुसेना के विमानों का जमकर दुरुपयोग किया


संप्रग, कांग्रेस और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पिछले करीब सात सालों में लगभग 50 बार वायुसेना के विमानों और हेलाकाप्टरों का उपयोग किया जिनमें से सबसे ज्यादा 23 बार वह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सह यात्री थीं।

सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के मुताबिक 2006-07 से सितंबर 2012 के बीच उन्होंने 49 बार वायु सेना के विमानों और हेलीकाप्टरों से यात्रा की जबकि राहुल गांधी ने 2008-09 से सितंबर 2012 तक आठ बार वायु सेना के विमानों और हेलीकाप्टरों का उपयोग किया। सोनिया गांधी या राहुल गांधी अपने नाम से वायुसेना का विमान या हेलीकाप्टर आरक्षित कर यात्रा करने की पात्रता नहीं रखते हैं। इसके लिए उन्‍हें ऐसी पात्रता रखने वाले के साथ यात्रा करनी होती है।

वायुसेना के मुताबिक, नियमों के तहत वायुसेना के विमानों का उपयोग करने के पात्र व्यक्ति अपनी यात्रा के उद्देश्यों के लिए किसी व्यक्ति को अपने साथ ले जा सकते है। केंद्र सरकार के अन्य मंत्री भी प्रधानमंत्री से मंजूरी प्राप्त कर वायुसेना के विमानों का उपयोग कर सकते हैं और सरकारी कार्यो के लिए जरूरत के अनुरूप किसी व्यक्ति को अपने साथ ले जा सकते हैं। प्रधानमंत्री के बाद सोनिया गांधी के साथ सबसे ज्यादा यात्रा करने का सौभाग्य रक्षा मंत्री एके एंटनी और पूर्व विदेश एवं वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी (अब राष्ट्रपति) को मिला। इन दोनों के साथ सोनिया गांधी ने छह-छह बार वायुसेना के विमान एवं हेलीकाप्टर से यात्रा की।

रक्षा मंत्री एके एंटनी की संसद में सात मई 2012 को दी गई जानकारी के अनुसार नियमों के तहत, प्रधानमंत्री, उपप्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और गृह मंत्री सरकारी कामकाज के लिए वायुसेना के विमानों का उपयोग करने के पात्र हैं जबकि गैर सरकारी कार्यों के लिए केवल प्रधानमंत्री वायुसेना के विमानों का उपयोग कर सकते हैं।

हिसार स्थित आरटीआई कार्यकर्ता रमेश वर्मा ने रक्षा मंत्रालय एवं वायुसेना मुख्यालय से वायुसेना के वीआईपी वायुयान और हेलीकाप्टरों से सोनिया गांधी और राहुल गांधी की यात्रा एवं खर्च के बारे में जानकारी मांगी थी। मिली जानकारी के अनुसार, 30 सितंबर 2012 तक सोनिया गांधी की यात्रा के किराये के मद में कर्नाटक सरकार पर एक करोड़ 17 लाख 15 हजार 83 रूपये और राहुल गांधी की यात्रा के मद में असम सरकार पर आठ लाख 26 हजार 457 रूपये बाकी है। चूंकि दोनों कांग्रेस नेताओं ने इनके नाम पर विमान आरक्षित कराकर यात्रा की थी इसलिए देनदारी भी इन्हीं दोनों सरकारों की बनती है।

सोनिया गांधी ने 49 बार वायुसेना के विमान की सेवाएं ली जिसमें 42 बार उन्होंने इन सेवाओं का उपयोग प्रधानमंत्री या किसी ऐसे पात्र व्यक्ति के नाम पर किया जिन्हें इसके बदले कोई भुगतान नहीं करना पड़ता है। उन्होंने सात बार प्रधानमंत्री की स्वीकृति से ऐसे मंत्रियों आदि के साथ यात्रा की जिन्हें इसके बदले वायुसेना को भुगतान देय होता है। ऐसे ही छह मामलों में किराये के रूप में 96 लाख रूपये का भुगतान किया गया। जबकि एक बार की यात्रा का भुगतान अभी तक नहीं किया गया है।

सोनिया गांधी ने कर्नाटक की यात्रा बाढ़ के हालात का जायज़ा लेने के लिए की थी परंतु वहां की भाजपा सरकार इस राशि का भुगतान नहीं कर रही है। राहुल गांधी ने चार वर्षो में आठ बार वायु सेना के हेलीकाप्टरों का उपयोग किया जिसमें से उन्होंने चार बार यात्रा पात्र व्यक्ति के नाम पर की जिसका कोई भुगतान नहीं होना था। वहीं उन्होंने 27 जनवरी 2009 को तब के रेल मंत्री लालू प्रसाद के नाम पर आरक्षित विमान से दिल्ली-फुर्सतगंज-दिल्ली की यात्रा की थी जिसके बदले संबंधित मंत्रालय 14 लाख रूपये का भुगतान कर चुका है।

राहुल ने हाल में दो बार असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई के नाम आरक्षित विमान से यात्रा की। इनमें से दो मई 2012 को वह गुवाहाटी-धुबरी-गुवाहाटी की यात्रा पर थे जिसके एवज में अभी तक आठ लाख 26 हजार 457 रूपये का भुगतान असम सरकार ने नहीं किया है। जबकि 11 सितंबर 2012 को हुई गुवाहाटी-कोकराझार की यात्रा के किराये की गणना अभी वायुसेना कर ही रही है।

जब पूरा देश शोक मना रहा था तो राहुल कहां थे? - नकवी


कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी फिर भाजपा के निशाने पर हैं। सामूहिक दुष्कर्म की घटना को लेकर जहां जनता का आक्रोश बरकरार है, भाजपा उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने कांग्रेस से पूछा है कि देश की जनता को भूलकर राहुल कहां नए वर्ष का जश्न मना रहे थे?

दिल्ली में सामूहिक दुष्कर्म की घटना के बाद हुए प्रदर्शनों ने सरकार और कांग्रेस के लिए परेशानी खड़ी कर दी थी। यही कारण था कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल ने प्रदर्शनकारियों से मुलाकात कर लोगों की संवेदना जीतने की कोशिश की थी। बाद में युवती का शव भारत आने पर सोनिया और प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह देर रात एयरपोर्ट पर भी मौजूद थे। संवेदनशीलता को देखते हुए किसी भी राजनीतिक दल ने नए वर्ष का जश्न नहीं मनाया था।

ऐसे में नकवी ने राहुल को लेकर सवाल खड़ा कर दिया। उन्होंने कांग्रेस से पूछा है कि जब पूरा देश शोक मना रहा था तो राहुल कहां थे? राहुल गांधी कांग्रेस के न सिर्फ बड़े नेता हैं बल्कि भावी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार भी हैं। जाहिर है जनता भी जानना चाहेगी कि उनका प्रतिनिधि उस वक्त कहां था जब देश शोक में डूबा था?

दवाओं के गैर कानूनी परीक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को फटकार लगाईं


सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को नई दवाओं के अनियंत्रित ट्रायल पर चिंता जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश में कहा कि नयी दवाओं के तमाम क्लिनिकल परीक्षण स्वास्थ्य सचिव की निगरानी में होने चाहिएं। 

कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस बात के लिए डांट लगाई कि वह अवैध क्लीनिकल परीक्षणों को होने से रोकने में असमर्थ रही और कहा कि ऐसे दवा परीक्षणों पर रोक लगाई जाए ।

गौरतलब है कि देश में पिछले ढाई साल में दवा परीक्षण के दौरान 1,317 लोगों की मौत हुई। सरकार ने इसे गंभीरता से लेते हुए नये नियमों का प्रावधान करके मुआवजा प्रदान करने संबंधी मसौदा अधिसूचना जारी की। दवा परीक्षण के दौरान 2010 में 668, 2011 में 438 और जून 2012 तक 211 लोगों की मौत हुई। 2010 में तीन कंपनियों, 2011 में पांच कंपनियों और 2012 एक कंपनी पर क्लिनिकल परीक्षण के दौरान अनियमितता के आरोपों पर कार्रवाई की गई।

और उधर अश्लील डांस पर तृणमूल कांग्रेस नेता पैसे लुटा रहा था...


पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के एक स्थानीय नेता ने पार्टी के स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में संगीत की धुन पर छोटे-छोटे कपड़ों में थिरकती लड़कियों पर नोटों की बारिश करके विवाद पैदा कर दिया है।

मामले से शर्मिंदा हुई तृणमूल कांग्रेस ने दक्षिण 24 परगना जिले में मंगलवार रात समारोह आयोजित करने वाले पार्टी के एक जिला परिषद सदस्य और अन्य पार्टी पदाधिकारियों को आज निलंबित कर दिया।

भांगड़ पुलिस थाने के पास ही आयोजित किए गए कार्यक्रम के दौरान तृणमूल नेता और 24 परगना जिला परिषद के सदस्य मीर ताहिर अली मंच पर चढ़ गए और उन्होंने वहां नाच रही लड़कियों पर नोट बरसाने शुरू कर दिए। पुलिस ने आधी रात के बाद कार्यक्रम रुकवाया।

तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि अनुशासन समिति की बैठक हुई है और कार्यक्रम में शामिल होने के मामले में पार्टी पदाधिकारियों को निंलबित कर दिया गया है।

उन्होंने उक्त नेताओं को पार्टी से निकाले जाने की संभावना को भी खारिज नहीं किया। ब्रायन ने कहा कि उन्होंने पार्टी अध्यक्ष ममता बनर्जी से बात की है और इस मामले में वे रत्ती भर बर्दाश्त नहीं करने का रुख रखती हैं।

ब्रायन ने कहा कि कृपया इसे इस तरह पेश मत करिए जैसे इसे तृणमूल का समर्थन हासिल हो। तृणमूल कांग्रेस के लिए सांस्कृतिक और लैंगिक संवेदना सर्वोपरि है। कृपया इस बात को लेकर फिर से आश्वस्त हो जाएं कि तृणमूल कांग्रेस की ओर से इसे कोई समर्थन नहीं मिला है। हम देखेंगे कि इसमें कौन शामिल रहा है।

टीवी चैनलों पर इस घटना से जुड़ी खबरें लगातार दिखाए जाने के बाद राजनीतिक दलों और महिला आयोग सहित समाज के विभिन्न तबकों ने इसकी कड़ी निंदा की है।

राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा ने कहा कि यह बड़े शर्म की बात है कि वे इस तरह के कार्यक्रम आयोजित कर जश्न मना रहे हैं। सभी राजनीतिक दलों की मानसिकता में बदलाव की जरूरत है। जानी-मानी शिक्षाविद सुनंदा सान्याल ने कहा कि यदि पश्चिम बंगाल में इसी तरह की राजनीतिक संस्कृति कायम रही तो नौजवान लड़के-लड़कियों का भविष्य बर्बाद हो जाएगा। 

कांग्रेस समर्थित ओवैसी आखिर चाहता क्या है?


मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एमआईएम) विधायक अकबरुद्दीन ओवैसी आखिर चाहता क्या हैं..? क्या  वह अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समुदाय को एक-दूसरे का दुश्मन बनाना चाहता हैं..? या फिर अपनी भड़काऊ बयानबाजी से आंध्रप्रदेश की कांग्रेस सरकार और केन्द्र की कांग्रेस नीत यूपीए सरकार को चुनौती देना चाहते हैं कि यदि हिम्मत है तो मेरे खिलाफ कार्रवाई कर के बताओ।

आंध्रप्रदेश के चंद्रायानगुट्टा विधानसभा क्षेत्र से विधायक ओवैसी ने पिछले दिनों एक सभा में बहुसंख्यक समुदाय के खिलाफ निहायत ही शर्मनाक टिप्पणियां की हैं, जिनका यहां उल्लेख नहीं किया जा सकता। ...लेकिन आश्चर्यजनक रूप से केन्द्र सरकार की इस मामले में चुप्पी इस ओर इशारा अवश्य करती है कि उसकी धर्मनिरपेक्षता (?) कितनी छद्‍म है। और यह दर्शाता है कि कांग्रेस का समर्थन ओवैसी को प्राप्त है, खासकर राहुल गाँधी तो ओवैसी के बहुत करीबी माने जाते हैं .

यह भी हो सकता है कि कांग्रेस सरकार ओवैसी की इस 'जहरीली टिप्पणी' में भी वोटों का गणित ढूंढ रही हो। अन्यथा ऐसा क्या है कि कांग्रेस के किसी भी नेता का बयान इसके विरोध में नहीं आया। इसी कांग्रेस के नेताओं ने भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाए गए अन्ना हजारे के आंदोलन को नाकाम करने के‍ लिए क्या-क्या नहीं कहा था। उस समय के प्रवक्ता (वर्तमान में मंत्री) मनीष तिवारी तो अन्ना के विरोध में बोलते समय तमाम मर्यादाओं को लांघ गए थे।

अकबरुद्दीन ओवैसी, जिसके सांसद भाई का केन्द्र की यूपीए सरकार को समर्थन प्राप्त है, ने तो गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेन्द्र मोदी की तुलना अजमल कसाब से कर डाली। उन्होंने कहा कि 200 निर्दोष लोगों को मारने वाले कसाब को इसलिए फांसी दे दी गई क्योंकि वह पाकिस्तान से आया था, जबकि दो हजार लोगों की हत्या के गुनहगार मोदी को गद्दी मिली।

हालांकि एक वकील ने ओवैसी के खिलाफ अदालत में एक याचिका दाखिल की है, लेकिन इस पूरे मामले में कांग्रेस सरकार की चुप्पी से संदेह पैदा होना स्वाभाविक है।

अटल बिहारी वाजपेयीजी को `भारत रत्न` दिया जाए: यशवंत सिन्हा


भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने आज प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मांग की कि देश के विकास में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के योगदान को देखते हुए उन्हें भारत रत्न दिया जाए और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना नाम बदल कर ‘अटल बिहारी वाजपेयी ग्राम सड़क योजना’ किया जाए। झारखंड से सांसद सिन्हा ने सिंह को लिखे पत्र में कहा कि पृथक राज्य बनाने के लिए झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड की जनता हमेशा वाजपेयी की रिणी रहेगी।

पत्र में उन्होंने लिखा, ‘‘झारखंड से निर्वाचित सांसद के रूप में, मैं इसे अपना कर्तव्य समझता हूं कि आप आने वाले गणतंत्र दिवस पर वाजपेयी को भारत रत्न से सम्मानित करें और प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना को उनके नाम पर रखने की मांग को स्वीकार करें।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मुझे पूरा यकीन है कि आप उदारता और बड़प्पन का परिचय देते हुए इस महान व्यक्ति को उनका वाजिब सम्मान प्रदान करेंगे।’’ सिन्हा ने कहा कि वाजपेयी ने देश के विकास और सार्वजनिक जीवन में ‘‘अनूठा योगदान’’ किया है।

वाजपेयी को यह सम्मान देने की मांग करते हुए उन्होंने प्रोफेसर अरविंद पनगड़िया के एक अखबार में छपे लेख का हवाला दिया जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री को ये दोनों सम्मान देने की सलाह दी गई है। भाजपा नेता ने कहा कि पनगड़िया किसी राजनीतिक दल के साथ नहीं जुड़े हैं और उन्होंने वस्तुपरक ढंग से उस बात को अपने लेख में लिखा है जिसकी वह और लाखों लोग ख्वाहिश करते हैं। 

वीरभद्र सिंह के विरोध में कई विधायक दिल्ली पहुंचे


वीरभद्र सिंह का विरोध करते रहे करीब आधा दर्जन विधायक हिमाचल में बनी कांग्रेस की सरकार में जगह पाने के लिए दिल्ली के दरबार जा पहुंचे हैं। सूत्रों के अनुसार राज्य कांग्रेस के प्रभारी चौधरी वीरेंद्र सिंह की मार्फत इन लोगों ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने का समय मांगा है। इनका कहना है कि वीरभद्र सरकार में इन्हें न तो कोई अहमियत मिल रही है और न ही कोई सम्मान। सरकार में भी केवल वीरभद्र समर्थकों को ही एडजस्ट किया जा रहा है।

जानकारी के अनुसार हाईकमान के दबाव के सहारे यह लोग एक तो प्रदेश मंत्रिमंडल में खाली पड़े दो पदों को लेना चाह रहे हैं दूसरे इनकी नजरें विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की कुर्सी पर है। इनकी यह भी कोशिश है कि मुख्य संसदीय और संसदीय सचिवों की नियुक्तियों में भी इन्हें तरजीह मिले। विभिन्न निगमों और बोर्डों के अध्यक्षों व उपाध्यक्षों पर होने वाली ताजपोशियों में भी यह लोग अपनी हिस्सेदारी चाह रहे हैं।

गौरतलब है कि राज्य मंत्रिमंडल में अभी दो और मंत्रियों को शामिल किया जाना है। इसके अलावा 8 जनवरी से शुरू हो रहे हिमाचल विधानसभा के पहले सत्र में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पदों पर भी दो विधायकों को पदासीन किया जाना है। मंत्रिपद के दावेदारों के तौर पर इस समय पूर्व मंत्री अनिल शर्मा और कर्ण सिंह के नाम सबसे ऊपर चल रहे हैं। अगर यह दोनों मंत्री बन जाते हैं तो उस सूरत में मंत्रिपद के अन्य दावेदारों के मंत्री बनने की सम्भावनाएं समाप्त हो जाएगी। 

यही वजह है कि यह लोग पहले से ही दबाव बनाकर अपना रास्ता साफ करना चाह रहे हैं। जो विधायक दिल्ली में डेरा जमाए हुए हैं उनमें से दो मंत्रिपद ही नहीं बल्कि विधानसभा अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। शेष चार विधायक ऐसे हैं जिन्हें अन्य स्थानों पर भी एडजस्ट किया जा सकता है। 

वीरभद्र मंत्रिमंडल में हालांकि समर्थकों और विरोधियों दोनों को जगह मिली है लेकिन फिर भी कई विधायक नाराज चल रहे हैं। सबसे अधिक नाराज पूर्व मंत्री आशा कुमारी और बृजबिहारी बुटेल माने जा रहे हैं। इनके अलावा रवि ठाकुर, सोहन लाल, राकेश कालिया और किशोरी लाल जैसे विधायकों के नाम भी इस तरह के विधायकों में शामिल हैं।  यहां यह जानना जरूरी है कि स्वास्थ्य मंत्री ठाकुर कौल सिंह और खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री जीएस बाली भी हाईकमान के दबाव से ही मंत्री बन पाए हैं। 

यह दोनों पहले जहां मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे, वहीं बाद में इन्हें उप मुख्यमंत्री बनाए जाने की चर्चाएं भी चली। पूर्व मंत्री आशा कुमारी को भी पहले मंत्री बनाया जा रहा था लेकिन बाद में उनका नाम कट गया। वीरभद्र सिंह को क्योंकि मुख्यमंत्री बनने के बाद अब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोडऩा पड़ेगा इसलिए इस पद भी किसी की ताजपोशी होगी। बताया जाता है कि वीरभद्र समर्थक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर अपने किसी खासमखास की तैनाती के लिए प्रयास कर रहे हैं लेकिन विरोधी धड़े के अड़ जाने की वजह से मामला लटका हुआ है।

वीरभद्र सिंह समर्थकों के तौर पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए पूर्व मंत्री रंगीला राम राव, चंद्र कुमार ओर गंगूराम मुसाफिर जैसे लोगों के नाम लिए जा रहे हैं जबकि विरोधी खेमा अपने लोगों में से किसी एक को इस पद पर चाह रहा है। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की सचिव आशा कुमारी का नाम भी यह लोग अध्यक्ष पद के लिए चला रहे हैं। इसी तरह विरोधी खेमे का यह प्रयास भी है कि विधानसभा अध्यक्ष  और उपाध्यक्ष के पद भी झटक लिए जाएं। 

विधानसभा अध्यक्ष के पद के लिए पूर्व मंत्री कुलदीप कुमार का नाम चल रहा है। कुलदीप को वीरभद्र समर्थक माना जाता है। अब देखना यह होगा कि अब तक राजनीति के हर मोर्चे पर वीरभद्र सिंह से शिकस्त खा चुके उनके विरोधी अपनी इस आखिरी लड़ाई को जीत पाते है या नहीं। 

दिल्ली वाले नववर्ष न मनाने के वादे तोड़कर सनी लियोनी संग झूमे


तमाम विरोध प्रदर्शन और जनता द्वारा नव वर्ष नहीं मनाने की घोषणाओं के बावजूद हिन्दी फिल्म और भारतीय मूल की कनाडाई पोर्न स्टार सनी लियोन ने नव वर्ष के मौके पर दिल्लीवासियों को सर्दी में गर्मी का अहसास कराया और अपने पहले स्टेज कार्यक्रम में हजारों की तादाद में दर्शकों का हुजूम इकट्ठा करने में कामयाबी पायी। सनी लियोन ने 31 दिसम्बर की रात नई दिल्ली में नव वर्ष के स्वागत में कार्यक्रम पेश किया।

इस कार्यक्रम के दौरान सनी लियोन को दर्शकों की जो प्रतिक्रिया मिली उसे देखकर उन्हें बेहद हैरानी हुई। कहा जा रहा है कि सनी लियोन को अपने कार्यक्रम के लिए इतनी बडी सफलता की उम्मीद नहीं थी।

इस कार्यक्रम के प्रति लोगों का उल्लास देखने लायक था। सनी दर्शकों के इस उत्साह और प्रतिक्रिया से अपने बॉलीवुड सफर के प्रति अब ज्यादा आशान्वित हो गई हैं। राजधानी के ललित होटल में करीब 2000 लोग मौजूद थे। सनी के पति और उनके प्रबंधक डेनियल वीबर ने भी कहा कि प्रस्तुति कमाल की थी।

दर्शकों ने भरपूर आनंद लिया। सनी ने बॉलीवुड के हिट आइटम गीतों जैसे “अनारकली डिस्को चली”, “चिकनी चमेली”, “डिस्को दीवाने” आदि पर प्रस्तुति दी।

दून क्षेत्र के कांग्रेस विधायक पर कानूनी कार्रवाई हो - धूमल

दून विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक के मामले में भाजपा ने दिल्ली में घटी घटना से जोड़ते हुए कानूनी कार्रवाई की मांग की है। हमीरपुर में पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने पत्रकारों से कहा कि बलात्कार की आग में आज पूरा देश झुलस चुका है। 

बेटी किसी की भी हो उसकी सुरक्षा के लिए हर व्यक्ति का फर्ज है तथा दून के विधायक जिस तरह एक युवती की हत्या में संलिप्त बताए जा रहे हैं उससे हिमाचल की देवभूमि शर्मसार हो रही है। ऐसे अपराधियों के प्रति तुरंत आवश्यक कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह मामला एक अनुसूचित जाति के परिवार से जुड़ा है, जिसकी बेटी आज इस दुनिया में नहीं है। 

उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि पूर्व भाजपा सरकार ने प्रदेश का चहुंमुखी विकास किया है, लेकिन जो परिणाम या जनादेश विधानसभा चुनावों की मतगणना में मिला है, उससे परिणाम यह स्पष्ट करते हैं कि चुनाव विकास नहीं, किन्हीं और ही कारणों से जीते जा सकते हैं और इस पर भाजपा के आला नेता कार्यकर्ता व बुद्धिजीवी वर्ग मंथन कर रहे हैं। जहां भी कमी रहेगी उसे दूर किया जाएगा। 

उन्होंने कहा कि हार का जिम्मा किसी एक नेता का नहीं है, इसके लिए समस्त पार्टी ही जिम्मेदार है तथा इससे उबरने के लिए समस्त पार्टी को ही एकजुटता से कार्य करना पडे़गा। उन्होंने प्रदेश वासियों को नववर्ष की बधाई देते हुए कहा कि आगामी वर्ष में देश-प्रदेश उन्नति के शिखर पर रहे तथा यहां की जनता हर उस दुख, दर्द से दूर रहे जो अब तक जनता ने सहे हैं। इस मौके पर धूमल से कांगड़ा का एक विशिष्ट मंडल भी मिला। गुप्त रूप से हुई इस मंत्रणा की सुगबुगाहट रही।

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