उमा भारती और आडवाणी एक साथ पहुंचे सोमनाथ

बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी उमा भारती के साथ शनिवार को गुजरात के सोमनाथ मंदिर पहुंचे हैं. दोनों नेताओं ने मंदिर पहुंचकर पूजा की. 1990 में 25 सितंबर यानी आज के ही दिन आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथयात्रा शुरू की थी. तब से हर 25 सितंबर को आडवाणी वहां जाकर 'संकल्प सिद्धि पूजा' करते हैं.

अयोध्या मामले में अंतिम फैसला सुनाए जाने पर अंतरिम रोक लगाने के उच्चतम न्यायालय के फैसले पर आश्चर्य प्रकट करते हुए वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने आज उम्मीद जतायी कि शीर्ष अदालत अगले सप्ताह इलाहाबाद उच्च न्यायायालय को इस दिशा में आगे बढ़ने देगी.

उन्होंने लोगों से और भाजपा कार्यकर्ताओं से अदालतों के प्रति सम्मान का भाव रखने और शांति बनाए रखने की अपील भी की .

यहां प्रसिद्ध शिव मंदिर में पूजा अर्जना के बाद आडवाणी ने संवाददाताओं से कहा, ‘मैं उच्चतम न्यायालय का फैसला समझ नहीं पाया.’ 20 साल पहले इसी स्थान से उन्होंने अयोध्या के लिए रथयात्रा निकाली थी.

उन्होंने कहा, ‘मैं देश की न्यायपालिका का सम्मान करता हूं. लेकिन जिस समय जनता अयोध्या मामले पर अदालत के फैसले का इंतजार कर रही है. जिस समय इस मामले के पक्षकार भी फैसला चाहते हैं और जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी फैसला टालने संबंधी याचिका को खारिज कर दिया है तब यह निर्णय उच्चतम न्यायालय से आया है.’

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन अब मैं लोगों से और भाजपा कार्यकर्ताओं से हमारी अदालतों के सम्मान के रूप में कुछ और दिनों तक शांति बनाए रखने की अपील करूंगा.’

भारतीय सुरक्षा बल कश्मीरी युवकों, बच्चों और महिलाओं के हत्यारे - शाह महमूद कुरैशी

पाकिस्तान ने एक बार फिर कश्मीर का राग अलापते हुए भारतीय सुरक्षा बलों कश्मीरी युवकों, बच्चों और महिलाओं का हत्यारा बताया है। शुक्रवार को पाक विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा कि कश्मीर मुद्दे के समाधान के बिना क्षेत्र में स्थायी शांति दूर की बात है। इस मसले के हल के लिए उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आगे आने की अपील भी की। न्यूयॉर्क पहुंचे कुरैशी ने एशिया सोसाइटी की बैठक में कहा कि भारत सुरक्षा बलों के जरिए कश्मीरियों की भावना को मार नहीं सकता। वे आत्मनिर्णय के अपने अधिकार की मांग कर रहे हैं।

उन्होंने भारतीय सुरक्षा बलों पर कश्मीरी युवकों, बच्चों और महिलाओं की हत्या का आरोप लगाया। कुरैशी ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को हालात की गंभीरता महसूस करनी चाहिए और दक्षिण एशिया के इस नासूर का इलाज करने के लिए व्यावहारिक कदम उठाना चाहिए। अमेरिका से मामले में हस्तक्षेप की अपील करते हुए कुरैशी ने कहा कि दुनिया के नेता के रूप में उसकी जिम्मेदारी बनती है कि वह कश्मीर मुद्दे का शांतिपूर्ण हल करे। आतंकवाद पर काबू पाने और उसके सफाए के लिए भी हमारा यह संयुक्त प्रयास अहम होगा।

कुरैशी ने एक अन्य बैठक में कश्मीर मुद्दे को फलस्तीन समस्या के साथ रखते हुए कहा कि यह दोनों मुद्दे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में लंबे समय से लंबित एजेंडा हैं। एक बार भारत से करारा जवाब मिलने के बावजूद उन्होंने फिर मानवाधिकार का मुद्दा उठाते हुए कहा कि हम कश्मीरी लोगों पर क्रूरता की निंदा करते हैं। कश्मीरियों के मानवाधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए।

कुरैशी की यह टिप्पणी पाक विदेश मंत्रालय की ओर से जारी उस बयान के एक दिन बाद आई है, जिसमें कहा गया था कि जब तक भारत कश्मीर को अपना अभिन्न हिस्सा मानना और भारतीय संविधान के दायरे में इसका हल करने की इच्छा को नहीं छोड़ता, तब तक इस मुद्दे पर नई दिल्ली के साथ सार्थक नतीजा देने वाली कोई वार्ता नहीं हो सकती है।

साहित्यकार और पत्रकार कन्हैयालाल नंदन का निधन

हिंदी के जाने माने साहित्यकार और पत्रकार कन्हैयालाल नंदन का आज तड़के यहां निधन हो गया। वह 77 वर्ष के थे।

नंदन के परिवार के सदस्यों ने बताया कि उन्हें बुधवार शाम रक्तचाप कम होने और सांस लेने में तकलीफ होने के बाद राष्ट्रीय राजधानी स्थित रॉकलैंड अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्होंने आज तड़के तीन बजकर 10 मिनट पर अंतिम सांस ली। वह पिछले काफी समय से डायलिसिस पर थे।

उनके परिवार में पत्नी और दो पुत्रियां हैं।

नंदन का जन्म उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में एक जुलाई 1933 को हुआ था। डीएवी कानपुर से स्नातक करने के बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर किया और भावनगर विश्वविद्यालय से पीएचडी की।

पत्रकारिता में आने से पहले नंदन ने कुछ समय तक मुम्बई के महाविद्यालयों ने अध्यापन कार्य किया।

वह वर्ष 1961 से 1972 तक धर्मयुग में सहायक संपादक रहे। इसके बाद उन्होंने टाइम्स ऑफ इडिया की पत्रिकाओं पराग, सारिका और दिनमान में संपादक का कार्यभार संभाला। वह नवभारत टाइम्स में फीचर संपादक भी रहे।

नंदन को पद्मश्री, भारतेंदु पुरस्कार, अज्ञेय पुरस्कार और नेहरू फेलोशिप सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

उन्होंने विभिन्न विधाओं में तीन दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखीं। वह मंचीय कवि और गीतकार के रूप में मशहूर रहे। उनकी प्रमुख कृतियां लुकुआ का शाहनामा, घाट-घाट का पानी, आग के रंग आदि हैं।

सूत्रों ने बताया कि उनका अंतिम संस्कार कल लोदी श्मशान घाट पर किया जाएगा।

सोहराबुद्दीन केस में सीबीआई की पोल खुली - एक और गवाह पलटा

सोहराबुद्दीन मुठभेड़ मामले में सीबीआई के अहम गवाह कहे जानेवाले आजम खान ने गुरुवार को आरोप लगाया है कि सीबीआई ने डरा-धमका कर उसका बयान लिया है। आजम खान ने कोर्ट में पेश किए हलफनामे में कहा है कि मैं सोहराबुद्दीन केस में कुछ भी जानता नहीं था, फिर भी हमीद लाला केस में मुझे फंसाने की धमकी देकर सीबीआई ने अपनी इच्छानुसार बयान दर्ज किए हैं।



सीबीआई ने फर्जी कागजात पर मेरे हस्ताक्षर लिए और टीवी के सामने भी मुझे गलत बोलने के लिए मजबूर किया गया था।


सोहराबुद्दीन केस की जांच कर रही सीबीआई के विरोध में कई महत्वपूर्ण गवाह अपना बयान बदल रहे हैं। इसी कड़ी में महत्वपूर्ण माने जानेवाले सोहराबुद्दीन के साथी आजम खान के भी मुकर जाने से सीबीआई को बड़ा नुकसान हुआ है।

आजम खान ने सीबीआई स्पेशल कोर्ट में पेश किए हलफनामे में कहा है कि जब सीबीआई ने सोहराबुद्दीन केस की जांच के सिलसिले में उससे मुलाकात की थी तब उसने कहा था की वह इस केस के सिलसिले में कुछ भी नहीं जानता। सीबीआई के अधिकारीयों ने पापुलर फायरिंग केस और हमीदलाला मर्डर केस में मुझे फंसाने की धमकी दी थी। इस वजह से में डर गया था और सीबीआई के अधिकारियों ने 20 से ज्यादा कोरे कागजों पर मेरे हस्ताक्षर करवा लिए थे।

अभय चूडासमा को नहीं जानता : आजम खान ने बताया कि सीबीआई ने मेरे बयान में लिखा है कि हमीदलाला हत्या केस में अभय चूडासमा से मिलने मैं अहमदाबाद आया था। लेकिन यह बात गलत है। मैं अभय चूडासमा को जानता भी नहीं और न ही कभी उनसे मिला हुं।

सीबीआई ने मेरे नाम से गलत बयानात तैयार किए: आजम खान ने आगे बताया कि उसे पता चला है कि उसके बयान में जोड़ा गया है कि ‘सोहराबुद्दीन के अभय चूडासमा के साथ अच्छे ताल्लुक थे और वह अभय चूडासमा के लिए काम करता था, चूडासमा के इशारे पर ही सोहराबुद्दीन व्यापारियों को धमकी देता था और यह सारी बातें सोहराब ने मुझे बताईं थीं।’

यह सारी बातें गलत हैं और मेरे नाम का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। इस केस के बारे में मैं कुछ भी नहीं जानता।

सिख विरोधी दंगों के लिए कांग्रेस जिम्मेदार : सुखबीर सिंह बादल

पंजाब में सत्तारूढ़ शिरोमणि अकाली दल ने 1984 के सिख विरोधी दंगों के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए आगामी एसजीपीसी चुनाव और 2012 में प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों के दौरान पार्टी तथा उसके सहयोगियों को सबक सिखाने का आह्वान किया है।

शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख और पंजाब के उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से मतभेद भूलते हुए मिलकर काम करने का आह्वान किया ताकि कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों की हार सुनिश्चित हो सके।

उन्होंने आरोप लगाया कि घटना के 26 साल बीत जाने के बाद भी अब तक कांग्रेस के किसी आरोपी नेता को जेल नहीं भेजा गया। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी के सांसदों ने जब संसद में जोरदार तरीके से मामला उठाया तो सज्जन कुमार के खिलाफ मामला दर्ज किया गया।

उन्होंने केंद्र की कांग्रेस नीत संप्रग सरकार पर आरोप लगाया कि वह केंद्रीय करों में पंजाब को उचित हिस्सेदारी नहीं दे रही है। संवाददाताओं से बातचीत में बादल ने आरोप लगाया कि केंद्र ने पंजाब से एकत्र करों में सिर्फ 1.29 प्रतिशत राशि ही राज्य को दिया है।

मध्यप्रदेश की नेता प्रतिपक्ष और वरिष्ठ कांग्रेस नेता जमुना देवी का निधन

कैंसर से पीड़ित जमुना देवी का आज सुबह इंदौर में एक निजी नर्सिंग में निधन हो गया।

प्रदेश के आदिवासी बहुल धार जिले के सरदारपुर में 19 नवंबर 1929 को जन्मी जमुना देवी 1952 में तत्कालीन मध्य भारत विधानसभा की सदस्य निर्वाचित हुई थीं। वर्ष 1962 में वह लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद के निचले सदन में पहुंच गयीं।

जमुना देवी वर्ष 1964 से मध्यप्रदेश कांग्रेस समिति की लगातार सदस्य रहीं। वर्ष 1978.81 के बीच उन्होंने राज्यसभा में प्रदेश की नुमाइंदगी की।

वर्ष 1985 में जमुना देवी आठवीं विधानसभा की सदस्य चुनी गयीं और उन्होंने प्रदेश मंत्रिमंडल में आदिम जाति और अनुसूचित जाति तथा पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग की राज्यमंत्री :स्वतंत्र प्रभार: का दायित्व संभाला।

वर्ष 1993 में वह दसवीं विधानसभा की सदस्य निर्वाचित हुइ’ और समाज कल्याण और महिला एवं बाल विकास विभाग की मंत्री के रूप में शपथ ली।

वर्ष 1998 में ग्यारहवीं विधानसभा की सदस्य चुनी गयी जमुना देवी कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार के दो उपमुख्यमंत्रियों में शामिल रहीं।

वहां न तो पहले कभी मस्जिद थी, न आज है और न ही भविष्य में रहेगी।-गुलाम अली आजाद

जम्मू एवं कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री वरिष्ठ कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद के छोटे भाई गुलाम अली आजाद ने यह कहते हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना को जायज ठहराया है कि अयोध्या में कभी मस्जिद थी ही नहीं।

1992 में हुई बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना के लिए भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को जिम्मेदार ठहराने के लिए कांग्रेस की कड़ी आलोचना करते हुए गुलाम अली आजाद ने कहा,"वहां न तो पहले कभी मस्जिद थी, न आज है और न ही भविष्य में रहेगी।"

उन्होंने कहा, "बाबर एक आक्रमणकारी था। उसे हम किसी भी प्रकार से मुसलमानों का आदर्श नहीं मान सकते।" उल्लेखनीय है कि पहले मुगल सम्राट बाबर ने 16वीं शताब्दी में अयोध्या में मस्जिद का निर्माण कराया था। 6 दिसम्बर, 1992 को हिन्दू लोगों के एक दल ने उस मस्जिद को तोड़ दिया। हिन्दू लोगों का मानना है कि बाबर ने राम मंदिर तोड़कर वहां पर मस्जिद का निर्माण करवाया था।

इस बारे में गुलाम नबी आजाद से जब प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने एक स्थानीय टेलीविजन से बातचीत में कहा, "गुलाम अली आजाद ने जो कहा है, मुझे उससे कुछ लेना-देना नहीं है।"

अयोध्या पर फैंसला एक हफ्ते के लिए टला

उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद रामजन्म भूमि स्वामित्व विवाद पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा कल 24 सितम्बर को दिये जाने वाले फैसले पर आज एक सप्ताह के लिये रोक लगा दी और मामले की अगली सुनवाई की तिथि 28 सितम्बर तय की।



उच्चतम न्यायालय ने रमेश चन्द्र त्रिपाठी की याचिका पर सभी संबद्ध पक्षों को नोटिस जारी किया।

त्रिपाठी ने अपनी याचिका में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें स्वामित्व विवाद पर फैसला टालने से रोक लगाने से इंकार कर दिया गया था।

न्यायालय अगले मंगलवार को फैसले को टालने के त्रिपाठी के आग्रह पर सुनवाई करेगा।

विश्व हिन्दू परिषद ने की शांति की अपील

विश्व हिन्दू परिषद ने लोगों से अपील की है कि वे अयोध्या मसले पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के कल 24 सितंबर को संभावित फैसले के बाद शांति बनाये रखें।

विहिप के मालवा प्रांत के प्रमुख जड़ावचंद जैन ने इंदौर में जारी विज्ञप्ति में कहा, ‘अयोध्या मसले पर 24 सितंबर को अदालती फैसला जो भी हो, जनता को उसका सम्मान करना चाहिये और अफवाहों से सावधान रहते हुए शांति बनाये रखनी चाहिये।’ उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों के लिये इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के संभावित फैसले के बाद उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का रास्ता खुला है।

अयोध्या में सुरक्षा के अभूतपूर्व इंतजाम

अयोध्या विवाद पर कल उच्च न्यायालय के संभावित फैसले के मद्देनजर शहर में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं।

पूरे शहर में जगह जगह पुलिस कर्मी तैनात हैं। विवादास्पद स्थल की सुरक्षा की जिम्मेदारी केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल को सौंपी गई है।

अयोध्या की सीमा से सटे जिलों से आने वाले वाहनों के मार्ग बदल दिए गए हैं। शहर में प्रवेश मार्गों पर अस्थायी अवरोधक लगा कर वाहनों की जांच की जा रही है। संदिग्ध लोगों पर कड़ी नजर रखी जा रही है।

प्रशासनिक अधिकारी और राजनीतिक दलों के नेता लोगों से शांति और कानून व्यवस्था बनाए रखने की अपील कर रहे हैं।

पूरे शहर में जगह जगह पुलिस कर्मी तैनात हैं। विवादास्पद स्थल की सुरक्षा की जिम्मेदारी केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल को सौंपी गई है।

अयोध्या की सीमा से सटे जिलों से आने वाले वाहनों के मार्ग बदल दिए गए हैं। शहर में प्रवेश मार्गों पर अस्थायी अवरोधक लगा कर वाहनों की जांच की जा रही है। संदिग्ध लोगों पर कड़ी नजर रखी जा रही है।

प्रशासनिक अधिकारी और राजनीतिक दलों के नेता लोगों से शांति और कानून व्यवस्था बनाए रखने की अपील कर रहे हैं।

सोफिया मदनी को मिली अपने पति अब्दुल नासिर मदनी से मिलने की अनुमति

कोच्चि की एक अदालत ने वर्ष 2005 में एक बस को आग लगाने के मामले में आरोपी सोफिया मदनी की जमानत शर्तों में आज ढील देते हुए उसे अपने पति और पीडीपी नेता अब्दुल नासिर मदनी से मिलने की अनुमति दे दी जो फिलहाल बेंगलूर जेल में बंद है।

एनआईए अदालत के न्यायाधीश एस. विजयकुमार ने इस संबंध में सोफिया की याचिका पर उसे दो सप्ताह की ढील दी और निर्देश दिया कि वह अपने बेंगलूर जाने और वहां ठहरने की जानकारी एनआईए को दे।

सूफिया की जमानत शर्तों के अनुसार वह अदालत की अनुमति के बिना एर्णाकुलम जिले से बाहर नहीं जा सकती थी। इससे पहले अदालत ने उसे तीन बार मदनी से मिलने के लिए कोल्लम जाने की इजाजत दी थी। हालांकि पहली बार उसे राज्य से बाहर जाने की इजाजत दी जा रही है।

कर्नाटक पुलिस ने सोफिया के पति अब्दुल नासिर मदनी को 2008 के बेंगलूर बम विस्फोट मामलों में पिछले महीने गिरफ्तार किया था, जिसमें एक महिला की मौत हो गयी थी और 20 लोग घायल हो गये।

सोफिया नौ सितंबर 2005 को केरल के कालामसेरी में तमिलनाडु राज्य परिवहन की एक बस में आग लगाने के मामले में दसवीं आरोपी है। वह कोयंबटूर बम विस्फोट मामले में मदनी की हिरासत के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते हुए कथित तौर पर आग लगाने में शामिल थी।

राष्ट्रमंडल खेलों पर बॉलीवुड भी शर्मिंदा

हर तरफ से आलोचनाओं का शिकार राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन पर अब हिंदी फिल्म जगत ने भी निशाना साधा है और इसकी तैयारियों में सामने रही लचर स्थिति पर निराशा जतायी है।

फिल्म निर्देशक मधुर भंडारकर ने अक्तूबर में होने वाले इस आयोजन को डार्क कॉमेडी की संज्ञा दे डाली। उन्होंने ट्विटर पर अपने संदेश में लिखा, ‘‘मुझे लगता है कि ‘गेम्स’ शीषर्क से राष्ट्रमंडल खेलों में एक डार्क कॉमेडी फिल्म बनायी जा रही है जहां पुल गिर रहा है, सीलिंग टूट रही है।’’ अभिनेता अजरुन रामपाल ने ट्विटर पर लिखा कि राष्ट्रमंडल खेलों पर 70 हजार करोड़ खर्च हो गये, सेंसेक्स 20 हजार के पार चला गया लेकिन भारत में गरीबी वैसी ही बनी हुई है। क्या यही लोकतंत्र है या केवल पाखंड है।

अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी ने कहा कि यह देश के लिए गौरवान्वित होने का अच्छा अवसर था लेकिन दुर्भाग्य से राष्ट्रमंडल खेलों ने हमें गर्व और सम्मान का एहसान नहीं कराया।

शिल्पा ने ट्विटर पर लिखा है, ‘‘खेलों से एक सप्ताह पहले ही चीजों का गिरना शुरू हो गया है ये और खिलाड़ी स्वास्थ्य तथा सुरक्षा का हवाला देकर पीछे हट रहे हैं इन खबरों से मुझे शर्मिंदगी महसूस हो रही है।’’ गायिका आशा भोंसले ने अपने ट्विटर संदेश में कहा, ‘‘राष्ट्रमंडल खेलों के निर्माण स्थलों की गंदगी या तो कालीन के नीचे दबाई जा रही है या कचरापेटी में डाली जा रही है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘सब चलता है चलने दो। आगे बढ़ो भाई। इधर सोचने का टाइम नहीं है।’’

मेरे पास अयोध्या विवाद के लिये कई विकल्प-कल्बे सादिक

शिया उलेमा और आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना कल्बे सादिक ने दावा किया है कि उनके पास सदियों से विवादित राम जन्मभूमि..बाबरी मस्जिद विवाद के समाधान का तीसरा विकल्प है, जिसे वह 24 सितंबर के बाद बोर्ड के समक्ष रखेंगे।

आज यूपी प्रेस क्लब में ‘‘अयोध्या फैसला--समाज में संयम और सद्भावना की जरुरत है’’ विषय पर आयोजित एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए मौलाना कल्बे सादिक ने कहा, ‘‘मेरे पास अयोध्या विवाद के समाधान के लिए तीसरा और सकारात्मक विकल्प है, जिसे मैं 24 सितंबर के बाद बोर्ड के सामने रखूगां, जिस दिन कि अयोध्या के विवादित स्थल पर स्वामित्व को लेकर 60 साल से चल रहे मुकदमे पर अदालत को निर्णय आने वाला है।’’ यह भरोसा जताते हुए कि मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड उनके सुझाये विकल्प को स्वीकार कर लेगा, मौलाना सादिक ने दावा किया कि यदि ऐसा नहीं होता तो उनके पास विवाद के समाधान के लिए चौथा विकल्प भी है, जिस पर अमल के लिए वह अपनी तरफ से पहल करेंगे।

मौलाना सादिक ने कहा, ‘‘मैं पूरी निष्ठा से इस कोशिश में लगा हूं कि वर्ष 2010 के अंत तक सदियों से चले आ रहे इस विवाद का समाधान हो जाये, ताकि देश के हिन्दू मुसलमान राहत की सांस ले सकंे।’’ उन्होंने कहा कि उनकी पूरी कोशिश होगी कि देश की प्रतिष्ठा और सम्मान पर आंच न आये और उन्हें पूरा विश्वास है कि विवाद का समाधान अतिशीघ्र हो जायेगा।

अयोध्या मामले में 24 सितंबर को आ रहे अदालत के निर्णय पर उन्होंने कहा, ‘‘अदालत का निर्णय किसी के पक्ष में जायेगा तो किसी के विपक्ष में। मगर यह संकल्प करके कि फैसला जो भी आये हम किसी तरह का खून खराबा नहीं होने देंगे और आपसी सौहार्द को बनाये रखेंगे। इससे हम दोनों पक्षों की जीत सुनिश्चित कर सकते हैं।

बसपा विधायक मोहम्मद आलीम के गिरफ्तारी वारंट की कॉपी विधानसभा अध्यक्ष को भी

जिले की स्थानीय अदालत ने आज पुलिस को निर्देश दिया कि वह बसपा विधायक मोहम्मद आलीम के खिलाफ बलात्कार के एक मामले में चल रही सुनवाई में उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करे।

बसपा विधायक मोहम्मद आलीम के खिलाफ बलात्कार का मामला चल रहा है। अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी विकास गोयल ने पुलिस को विधायक के खिलाफ जारी गिरफ्तारी वारंट को 21 अक्तूबर से पहले तामील करने का निर्देश दिया।

अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी विकास गोयल ने मेरठ जोन के पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया कि वह गिरफ्तारी वारंट की एक प्रति विधानसभा अध्यक्ष को भी भेजे।

सरकारी वकील के अनुसार पुलिस ने पांच जून 2003 को 48 नेपाली लड़कियों को एक सर्कस से मुक्त कराया था। उन लड़कियों ने मोहम्मद आलीम पर यौन उत्पीड़न और अवैध रुप से उन्हें बंदी बना कर रखने का आरोप लगाया था।

पुलिस ने जब इनमें से दो लड़कियों का चिकित्सकीय परीक्षण कराया तो उनसे बलात्कार की पुष्टि हुयी थी। मों. आलीम बुलंदशहर से बसपा के निर्वाचित विधायक है।

कर्नाटक की येदियुरप्पा सरकार के मंत्रिमण्डल में फेरबदल

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी. एस. येदियुरप्पा ने अपने मंत्रिमण्डल के कल होने वाले विस्तार तथा फेरबदल का मंच तैयार करते हुए आज तीन मंत्रियों को हटा दिया।

बहुप्रतीक्षित फेरबदल के तहत येदियुरप्पा अपने मंत्रिमण्डल में छह मंत्रियों को शामिल करेंगे।

पद से हटाए जाने पर आत्महत्या की चेतावनी देने वाले खेल मंत्री गूलीहट्टी शेखर, प्रौढ़ शिक्षा मंत्री शिवानागौड़ नायक तथा उच्च शिक्षा मंत्री अरविन्द लिम्बावली को येदियुरप्पा ने अपनी भाजपा सरकार के मंत्रिमण्डल से बाहर का रास्ता दिखा दिया है।

पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व से सलाह मशविरे के बाद येदियुरप्पा ने राज्यपाल एच. आर. भारद्वाज से तीन मंत्रियों को हटाने की सिफारिश की जिसे तुरंत स्वीकार कर लिया गया।

सुरक्षा इंतजामों की तैयारियों के चलते शिवराज सिंह चौहान ने सभी कार्यक्रम रद्द किये

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले पर 24 सितंबर को आने वाले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के मद्देनजर राज्य में किये जा रहे सुरक्षा इंतजामों की तैयारियों पर आज पूरे दिन नजर रखेंगे तथा किसी सार्वजनिक समारोह अथवा बैठक आदि में भाग नहीं लेंगे।

मुख्यमंत्री निवास के सूत्रों ने आज यहां बताया कि चौहान ने आज का पूरा दिन आरक्षित रखा है तथा वह मुख्य सचिव अवनि वैश्य एवं पुलिस महानिदेशक संतोष कुमार राउत से जिलों की स्थिति और सुरक्षा को लेकर उठाए गए कदमों पर चर्चा करेंगे।

उन्होने भोपाल के सभी विधायकों, महापौर कृष्णा गौर, सभी धर्मो के प्रमुखों तथा अन्य जनप्रतिनिधियों की एक बैठक भी अपने निवास पर बुलाई है, जिसमें साम्प्रदायिक सौहार्द का वातावरण कायम रखने के उपायों पर विचार किया जाएगा।

दूसरी ओर, पुलिस मुख्यालय ने प्रदेश के नागरिकों के नाम अपील में कहा है कि अफवाहों को नजरअंदाज कर शांति एवं सौहार्द बनाए रखें तथा यदि उनके पास मोबाइल पर किसी भी प्रकार के भड़काउ संदेश मिलते हैं, तो वे तत्काल अपने क्षेत्र के पुलिस नियंत्रण कक्ष अथवा वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को इसकी सूचना दें। इस तरह के एसएमएस के मामले में कल इंदौर में दो मामले दर्ज कर एक युवक को हिरासत में लिया गया है।

कर्नाटक में भारत का पहले बाघ संरक्षण दस्ते का गठन

कर्नाटक में लुप्तप्राय बाघों को बचाने के लिए देश में अपनी तरह के पहले बाघ संरक्षण दस्ते का गठन हुआ है

कर्नाटक के मुख्य वन्यजीव संरक्षक बी के सिंह ने बताया कि विशेष बाघ संरक्षण बल :एसटीपीएफ: के जवानों को बांदीपुर रिजर्व में तैनात कर दिया गया है ।

एसटीपीएफ का गठन राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण :एनटीसीए: के दिशा निर्देशों के तहत किया गया है । एनटीसीए के अनुसार एसटीपीएफ में 18 वनकर्मियों के अलावा 90 गार्ड होने चाहिए ।

एसटीपीएफ की कमान सहायक वन संरक्षक :एसीएफ: के हाथों में होगी । एसीएफ के अंतर्गत बाघ संरक्षण बल से जुड़े तीन अधिकारी होंगे ।

सिंह ने बताया कि एसटीपीएफ के तहत दस्ते में शामिल 18 वनकर्मियों और 63 सीमावर्ती गाडरें को वन क्षेत्र में 15 सितंबर से प्रशिक्षण दिया जा रहा है । यह प्रशिक्षण पूरे एक वर्ष चलेगा ।

नरेश ज्ञानेंद्र को धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होने से रोका

नेपाल के अपदस्थ नरेश ज्ञानेंद्र को अपने ही पूर्व महल मेंजीवित देवीके सम्मान में आयोजित एक प्राचीन धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होने से रोक दिया गया।

अटकलें हैं कि देश में दिन-प्रतिदिन गहराते संवैधानिक संकट के बीच ज्ञानेंद्र ने सार्वजनिक कार्यक्रमों में शिरकत बढ़ा दी है।

राजधानी के मध्य में स्थित हनुमानधोका महल में आयोजित इस कार्यक्रम में ज्ञानेंद्र को मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया था।

लेकिन अंतिम क्षणों में सुरक्षा का हवाला देते हुए ज्ञानेंद्र को इसमें आने से रोक दिया गया।

सुरक्षाकर्मियों ने ज्ञानेंद्र को अपने निजी आवास ‘निर्मल निवास’ से बाहर नहीं निकलने दिया।

पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ज्ञानेंद्र को सुरक्षा संबंधी दिक्कत होने की आशंका के कारण ऐसा किया गया।

हिन्दू अमेरिकन फाउंडेशन ने पाकिस्तानी दूतावास के अधिकारियों से मुलाकात की

पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दू सिंधी समुदाय के कथित तौर पर मानवाधिकारों के हनन के मुद्दे को लेकर हिन्दू अमेरिकन फाउंडेशन :एचएएफ: के एक प्रतिनिधिमंडल ने अमेरिका स्थित पाकिस्तानी दूतावास के अधिकारियों से मुलाकात कर चिंता व्यक्त की।

पाकिस्तानी दूतावास अधिकारियों के साथ मुलाकात में एचएएफ प्रतिनिधिमंडल ने पाकिस्तान के सिंध इलाके में चिकित्सा सहायता के लिए तत्काल हिन्दू अमेरिकी चिकित्सकों का एक दल वहां भेजने का प्रस्ताव रखा।

एचएएफ के अरविंद चन्द्रकांतन ने बताया ‘‘पाकिस्तानी हिन्दू सिंधी समुदाय को समुचित आहार, मनोविज्ञानी चिकित्सा और पुनर्वास की जरूरत है।’’ उन्होंने बताया ‘‘हम लोगों को पूरा विश्वास है कि हिन्दू अमेरिकन फाउंडेशन का चिकित्सा दल वहां के समुदाय की भविष्य की जरूरत पूरी कर सकता है और चिकित्सा सुविधा मुहैया करा सकता है।’’ भेंट के दौरान प्रतिनिधिमंडल ने दूतावास को एचएएफ के मानव अधिकारों पर अपनी रिपोर्ट ‘हिन्दूज इन साउथ एशिया एंड द डायस्पोरा : ए सर्वे ऑफ ह्यूमन राइट्स 2009’ के नवीनतम संस्करण की प्रति भी भेंट की।

अलगाववादियों से मिलना उचित नहीं था - सुषमा स्वराज

सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के कुछ सदस्यों की कश्मीर के अलगाववादी नेताओं से मुलाकात पर अपनी आपत्ति जताते हुए भाजपा की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज ने आज कहा कि अलगाववादियों से मुलाकात दल के कार्यक्रम में शामिल नहीं थी और ही यह सामूहिक फैसला था।

सुषमा ने कहा ‘‘यह उनका स्वयं का फैसला था, पूरे प्रतिनिधिमंडल का नहीं। अगर कोई जाना चाहता था, तो हम उन्हें कैसे रोक सकते थे? वे लोग गए, पर हमारा फैसला वहां नहीं जाने का था, इसलिए हम नहीं गए।’’ सुषमा से संवाददाताओं ने पूछा था कि सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के कुछ सदस्यों ने अलगाववादी नेताओं से बातचीत की और कुछ नेता कल उनके घर जाकर उनसे मिले, इस बारे में उनकी क्या प्रतिक्रिया है।

प्रतिनिधिमंडल के कुछ सदस्यों ने हुर्रियत के कट्टरपंथी और उदारवादी धड़े के प्रमुखों सय्यद अली शाह गिलानी और मीरवाइज उमर फारुक से उनके घरों पर और जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक से उनके कार्यालय में मुलाकात की थी।

सुषमा ने कहा कि अलगाववादियों से मिलने के मुद्दे पर प्रतिनिधिमंडल में विभाजन का कोई प्रश्न नहीं था।

पासवान ने गिलानी से उनके घर पर मुलाकात की

लोक जनशक्ति पार्टी के नेता राम विलास पासवान ने आज हुर्रियत के कट्टरपंथी नेता सय्यद अली शाह गिलानी से उनके घर पर मुलाकात की। पासवान ने इस दौरान घाटी में रह रहे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर चिंता जाहिर की।

हुर्रियत सूत्रों ने बताया कि पासवान ने इस दौरान घाटी में रह रहे पंडितों और सिखों समेत अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर चिंता जाहिर की।

उन्होंने बताया कि गिलानी ने पासवान को आश्वासन दिया कि अल्पसंख्यक भी कश्मीरी समाज का भाग हैं और वे यहां सुरक्षित हैं।

गिलानी ने इस बात पर भी जोर दिया कि जहां-जहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, वहां अल्पसंख्यकों की रक्षा करना मुस्लिमों का कत्र्तव्य है।

हुर्रियत अध्यक्ष ने कहा कि इस्लाम की छवि को अनावश्यक तौर पर धूमिल किया जा रहा है, जबकि इस्लाम जीवन, सम्मान और अल्पसंख्यकों की स्वतंत्रता का अधिकार देता है।

इस बैठक के दौरान गिलानी ने कश्मीर में नागरिकों की हत्या का मुद्दा भी उठाया।

पासवान ने गिलानी को आश्वासन दिया कि वह कश्मीर के लोगों की परेशानियों का मुद्दा संसद में उठाएंगे।

इसके पहले कल माकपा नेता सीताराम येचुरी के नेतृत्व में पांच सदस्यीय एक दल हुर्रियत नेता गिलानी से उनके घर में मिला था।

सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल से नहीं मिलेंगे अलगाववादी

घाटी में तीन महीने से चल रही अशांति को खत्म करने के रास्ते तलाशने के लिए गृहमंत्री पी चिदंबरम के नेतृत्व में एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल आज यहां बैठकें कर रहा है।

अलगाववादियों ने इन बैठकों से खुद को दूर कर लिया है। वहीं पीडीपी की ओर से भी पार्टी प्रमुख महबूबा मुफ्ती प्रतिनिधिमंडल से नहीं मिलने वाली हैं।

प्रदेश के वास्तविक हालाता का आकलन करने के लिए 42 सदस्यीय दल यहां पहुंचा, जिसकी अगवानी मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने की। राजधानी में आज भी कफ्र्यू लगा हुआ है।

पीडीपी की ओर से प्रतिनिधिमंडल से पार्टी के महासचिव मोहम्मद दिलावर मीर अपने 14 सदस्यों के साथ मुलाकात करेंगे। इस बैठक में पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती शामिल नहीं होंगी।

दूसरी ओर जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक ने बताया कि मीरवाइज उमर फारुक के नेतृत्व वाला हुर्रियत कांफ्रेंस का उदारवादी धड़ा और जेकेएलएफ भी प्रतिनिधिमंडल से नहीं मिलेगा और दल को सिर्फ एक ज्ञापन सौंपेगा।

मलिक ने कहा ‘‘यह एक रचनात्मक ज्ञापन है। आशा है कि इसे सही तरीके से लिया जाएगा और प्रतिनिधिमंडल लोगों की नब्ज को समझ सकेगा।’’

कश्मीरी पंडितों ने मनाया ‘काला दिवस’

कश्मीरी पंडितों ने जम्मू-कश्मीर में केन्द्र के सर्वदलीय शिष्टमंडल के आगमन पर आजकाला दिवसमनाया।

सिर तथा कंधों पर काला कपड़ा बांधे यूथ ऑल इंडिया कश्मीरी समाज :वाईएआईकेएस: के 900 से ज्यादा कार्यकर्ताओं ने शहर में धरना दिया और राज्य तथा केन्द्र सरकार विरोधी नारेबाजी की।

वाईएआईकेएस के अध्यक्ष आर. के. भट ने यहां संवाददाताओं से कहा ‘‘हम शिष्टमंडल की राज्य की यात्रा के इन दो दिनों को कालादिवस के तौर पर मनाएगा। हम आज से शुरू हुए दो दिवसीय धरने पर बैठे हैं।’’ उन्होंने आरोप लगाया ‘‘घाटी के हालात से मजबूती से निपटने के बजाय केन्द्र ने मुख्यमंत्री तथा अलगाववादियों के दबाव में कश्मीर मुद्दे पर सौदेबाजी के लिये प्रतिनिधिमंडल भेजा है।’’

भाजपा, विहिप, आरएसएस के लोग कुछ भी कर सकते हैं :दिग्विजय सिंह

कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा है कि अयोध्या विवाद के संबंध में वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और विश्व हिंदू परिषद (विहिप) पर भरोसा नहीं कर सकते, क्योंकि ये लोग कुछ भी कर सकते हैं।

सिंह ने कहा कि 1992 में संघ परिवार द्वारा दाखिल किए गए हलफनामे पर विश्वास करके कांग्रेस ने एक गलती की थी। ज्ञात हो कि अयोध्या में जुटी हिंदुओं की भीड़ ने छह दिसम्बर, 1992 को बाबरी दांचे को जमींदोज कर दिया था।

पार्टी के उत्तर प्रदेश प्रभारी सिंह ने कहा, "मैं भाजपा, आरएसएस, विहिप पर विश्वास नहीं कर सकता। वर्ष 1992 में हमने उनके हलफनामे पर विश्वास करके एक गलती की थी।"

सिंह ने कहा कि उनके पास सूचना है कि संघ परिवार कुछ योजनाएं तैयार कर रहा है। इस बात की उम्मीद है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ अयोध्या विवाद पर अपना फैसला 24 सितम्बर को सुना देगी।

सिंह ने कहा कि पार्टी ने उत्तर प्रदेश के अपने सांसदों व विधायकों से कहा है कि 24 सितम्बर को वे अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में मौजूद रहे और सांप्रदायिक सौहाद्र्र बनाए रखने के लिए काम करें।

सिंह ने आरोप लगाया है कि हिंदू कट्टरपंथी संगठनों द्वारा लोगों की भर्ती के लिए भोपाल और इंदौर में पोस्टर चस्पा किए गए हैं।

आरजेडी के मोहम्मद तस्लीमुद्दीन के खिलाफ रंगदारी का मुकदमा

केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के नेता मोहम्मद तस्लीमुद्दीन के खिलाफ अररिया जिले के जोकिहाट थाना में दो करोड़ रुपये रंगदारी मांगने का एक मुकदमा दर्ज कराया गया है।

पुलिस सूत्रों ने मंगलवार को यहां बताया कि बीएस कंस्ट्रक्शन के अजय कुमार झा की ओर से जोकिहाट थाना में दर्ज कराई गई प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि तस्लीमुद्दीन समेत करीब छह लोगों ने कंपनी से अररिया-बहादुरगंज मुख्य सड़क के निर्माण के एवज में दो करोड़ रुपया रंगदारी देने की मांग की है। सूत्रों ने बताया कि पुलिस मामले की छानबीन कर रही है।

अरे भाई, मस्जिद है ही कहाँ ?

"पर आप लोग उसे मस्जिद क्यों बोल रहें हैं ? मस्जिद है कहाँ ? मेरे दोस्तों जब वहां नमाज़ नहीं पड़ी जाती, और लगभग 40 साल से मूर्ति पूजा की जा रही है, तो वह किस प्रकार की मस्जिद ? वहां सिर्फ हमारे प्यारे राम का मंदिर है. "
यह शब्द लाल कृष्ण आडवानी ने वी पी सिंह से नहीं कहें बल्कि वी पी सिंह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं से बातचीत के दौरान कहे.

The elections had not yet been announced. V P Singh had traveled to Bombay to meet the RSS leaders. Persons I know intimately were present throughout the meeting, which was held at his request in Mr Ramnath Goenka's penthouse at Express Towers. V P Singh said then that as the structure was valued by the Muslims and the site was sacred to the Hindus, he was for Rajmohan Gandhi's proposal -- i.e., for shifting the mosque bricks to another site and constructing the temple at the site.

This is in essence what the VHP and the BJP came to espouse, with the improvement that the Hindus shall raise the funds to bear the entire cost of shifting the structure.

Later, too, I know from one of the senior most leaders of the BJP, one who measures every word he says, Kidar Nath Sahni, V P Singh used the exact expressions of the BJP leaders.

Later still -- and I know this directly from my friend Jaswant Singh, the BJP MP and today the Chairman of the Estimates Committee of Parliament - he used the very expressions to Jaswant Singh. To him V P Singh added that as the structure was a mandir in any case, why "demolish" it?

"Where is the need for demolition?" V P Singh had asked, "One shove and it will crumble. If each of you were to carry just one brick home, there will be nothing left there."

The Formula

Nor was there any change in the ensuing months. I know -- again from persons who were directly involved that V P Singh did not just endorse the three-point formula which was worked out, he actively participated in devising it.

Under it the entire property -- i.e. the structure and the land -- was to be acquired by the government. The structure was termed Part A, and the land around it Parts B and C, for reasons we shall just see.

As for Part A, the Supreme Court was to be asked to determine the character of the structure.' Till the determination was handed down, VHP etc., though continuing their movement, would not touch the structure. The lands around the structure were divided into two parts - and only because the method of acquiring them had to be different. The lands around the structure which were owned privately had to be acquired under the Land Acquisition Act. In normal circumstances to acquire these, notices of up to two years would have to be given. The notices were dispensable in emergencies, but even then it was necessary to give notices of three weeks or so. This latter is what was to be done in the case of this land.

The rest of the land was Nazul land. This the Government could, and therefore would, acquire immediately.

The lands had some structures on them -- a temple, a dharmashala, an office, etc. It was decided that for the time being the government would keep these intact.

The lands per se were to be made over to the VHP, etc., and they were to commence construction from the spot where the shilanyas had been done last November.

It was then noticed that actually the entire land could be acquired by Government under a special ordinance. There was therefore no reason to hand over the Nazul land one day and the privately owned land three weeks later. It was all to be done in one go.

All this was worked out between V P Singh and others between Monday, October 15, and Thursday, October 18.

George Fernandes met Bhaurao Deoras and Atal Behari Vajpayee on the night of Thursday, October 18, and confirmed the arrangement. As did P Upendra. V P Singh confirmed it on Friday, around 11 am.

At 3 pm that day two minister, Madhu Dandavate and Subodh Kant Sahay, met Moropant Pingle, the RSS strong man overseeing the VHP, and reconfirmed the arrangement. Pingle expressed the VHP's reservation: it would accept the formula, but it would not give up its right to continue its movement for shifting the mosque, he said; however, he agreed, it would not disturb the structure for the time being in any way.

Then came a stormy meeting of Muslim leaders with V P Singh. And so around 5 pm V P Singh let it be known that he had changed his mind. What was the "disputed structure became the "disputed land". And all lands, the titles to which were in dispute before the Allahabad High Court were now to be taken to be covered by the expression "disputed land".

As nothing was to be done to disturb what was "disputed", this change meant that nothing could be commenced anywhere, not even at the spot where the shilanyas had been done.

"But once Government acquires the land," the law officer of the Government explained to him, "all disputes about its titles would end. There is thus no reason for going back on what has been agreed -- about commencing construction."

"Then I won't acquire the land," said V P Singh.

The Ordinance

That night however came the Ordinance. It did not make the distinction which had been agreed to originally between the structure and the land. Government did not spell out what exactly was to be referred to the Supreme Court. And there was nothing about transferring anything to the VHP. Even so, the Ordinance had at least acquired the land.

The VHP was furious. It felt it had been taken for a ride, not just by government but the mediators, among whom were two I know and work with intimately. But the impression was given on behalf of Government the next morning, on Saturday that is, that the Ordinance had been just the first step, that the rest would follow within the next two or three days. Moderate leaders, L K Advani and Vajpayee, therefore declared that while the Ordinance was a small step, it was a small step forward.

The initial reactions of the Muslim leaders too were of cautious relief: they had been in what was being negotiated; they did not reject what was announce; they said the details would be studied.

Even on Saturday therefore, the original arrangement was alive.

But by Sunday recriminations had started among the Muslim leaders: you have agreed to a step which will become precedent for taking over waqf properties anywhere and everywhere, charged some about the others.

The hard liners prevailed. And so the Muslim leaders warned V P Singh, if you allow any construction even in the plot in which the shilanyas had been done, the Muslims will spurn you the same way they spurned Rajiv last year.

And it became clear too that Mulayam Singh, who had already outdone V P Singh in chatting up the Muslims, might seize upon the Ordinance as opportunity. It wasn't just that he could, by halting the rathyatra, undo on the ground whatever might have been agreed to in Delhi. It was that a word from him that V P Singh had caved in to "Hindu fundamentalists" would erase the image which V P Singh had been so assiduously cultivating all this while.

The CPM stepped in too, in minatory tones.

These things and nothing else were the spur to the "secularism" which burst upon everyone so suddenly on Monday, and of which we have heard so much in the last five days.

Secularism has not been upheld. It has been given a body blow. The one and only inference which will be drawn from the fact that a Prime Minister of India went back on what he had himself helped put together, and thereafter even withdrew the Ordinance which had been issued in the name of the President of India, and that he did all this because of pressure from secularists like Imam Bukhari, the only moral that will be drawn from this is that Hindus too should raise Bukharis among them.

Not just secularism, the authority of the State has been dealt a body blow. And in the long run no one will be harmed as much by such weakening of the State as the minorities.

The Tragedy of it

I am not so much on what all this reveals about V P Singh: no one has to labour much on that these days, he is doing all the revealing himself day and night. I am on the tragedy of it for our society, and for the Muslims in particular.

Throughout the last few decades the rational course for all citizens has been to work together to strengthen the institutions, in the proper functioning of which alone the security and prosperity of all lies. But section after section has been led to believe by the thekedars in it that its security and prosperity lies in fortifying itself as a group separate from the others. And at each turn the lay members of it have been led to believe that this leader or that -- Mrs Gandhi one day, Bahuguna the next -- was the one and only available guarantor of their security and prosperity.

The real reason behind this has been simply that that leader has won over the thekedars by the customary devices, that the interests not of the poor Muslim masses were secure in the hands of that leader but that the interests of those thekedars had been taken care of by him.

That has been the real reason. But the poor Muslims have been made to fall for the contrived superficials: the achkan with a Lakhnavi or Hyderabadi cut, the cap of this cut rather than that, the person's demeanour at Iftaar parties, the smattering of Urdu in the person's speeches. They have been led to fall for surface promises -- "The Minorities Commission shall be given Constitutional status," "There shall be special financial institutions for the minorities."

It is not only that so many of these promises have been hollow - what is the poor Muslim weaver, his trade being swamped as that of any other weaver by the rush of technology, or the poor Muslim boy toiling away over a carpet like any other poor boy, going to get from the conferment of constitutional status on the Minorities Commission? It is that many of these sops will worsen the lot of the Muslims: Just set up separate financial institutions for them and see the attitudes of managers in ordinary banks towards Muslim clients.

But because a leader has held out such baubles, the Muslim masses have been enticed by their thekedars to repose faith in him.

Of course, the leaders and the thekedars are not the only ones who have contributed to this. The pseudo-secularists have done even more. They have not cared to study the details of any controversy that has arisen be it Shah Bano or Rushdie's book or the affair on hand. The hand slogan and the smear have been all for them. But these have been let loose ferociously. Every rational solution has thus been drowned.

And the very thing they said they were out to prevent -- Hindu reaction -- has been enflamed.

V P Singh taunts the BJP leaders today, asserting that they embarked on the rathyatra for electoral purposes. Assume they did.

But what is portentous is not the rath they launched. What is portentous is the tumultuous response it evoked. Today no one stokes that reaction more the sudden secularists, V P Singh and Mulayam Singh.

And the poor Muslims are led to believe by the thekedars among them, by the pseudo-secularists, and of course by the two of them that these two are their protectors!


Arun Shourie in The Indian Express, October 25, 1990

अयोध्या विवाद में अब भी बातचीत से हो सकता है समाधान - न्यायमूर्ति डी. वी. शर्मा

अयोध्या मसले पर इस महीने की 24 तारीख को आने वाले फैसले को स्थगित करने के लिए दायर याचिका को खारिज करने वाली इलाहाबाद उच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय खण्डपीठ के एक सदस्य ने साथी न्यायाधीशों से असहमति जताते हुए प्रस्तावित फैसले को स्थगित करने को कहा है।


गत 17 सितम्बर के फैसले पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले न्यायमूर्ति डी. वी. शर्मा ने कहा कि मसले का अदालत के बाहर समाधान ढूंढ़ने की अब भी कोशिश की जानी चाहिए। पीठ के तीसरे न्यायाधीश न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा ने कहा कि फैसला दिए जाने से पहले तक इस मामले में सुलह-सफाई का रास्ता अपनाया जा सकता है। पिछले सप्ताह प्रस्तावित फैसले को स्थगित करने संबंधी एक अपील को अदालत ने खारिज कर दिया था।

शर्मा ने अपने आदेश में कहा कि इस प्रकार के प्रार्थनापत्र को सभी अथवा किसी कोण से देखते हुए सिर्फ यही निर्देश दिए जाने योग्य है कि फैसला सुनाए जाने की तारीख से पहले विवाद को समझौते के जरिये सुलझने के लिए पक्षकार स्वतंत्र हैं। न्यायमूर्ति शर्मा ने अपने आठ पृष्ठीय आदेश में यह भी कहा कि दीवानी प्रक्रिया संहिता की धारा 35-ए के तहत अदालत तीन हजार रुपए से ज्यादा का जुर्माना नहीं लगा सकती। गत 17 सितंबर को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवादित स्थल के मालिकाना हक संबंधी याचिकाओं की सुनवाई कर रही पीठ के दो न्यायाधीशों न्यायमूर्ति एसयू खां और न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने रमेश चन्द्र त्रिपाठी की विवाद को सुलह-समझौते से हल करने के लिए दायर अर्जी को ‘शरारतपूर्ण कृत्य’ बताते हुए खारिज कर दिया था और अर्जीदाता पर 50 हजार रुपए का हर्जाना लगाया था। इस फैसले से 60 साल पुराने विवाद का फैसला 24 सितम्बर को आना तय हो गया था।

न्यायमूर्ति शर्मा ने अपने आदेश में यह भी कहा कि मुझे यह कहते हुए अफसोस है कि 17 सितम्बर को आदेश पारित करते समय मुझसे सलाह मशविरा नही किया गया, अन्यथा मै माननीय न्यायमूर्तियों को अपना भी मत देता। न्यायमूर्ति ने सुलह सफाई के लिये विचार विमर्श की हिमायत करते हुए कहा कि इस प्रकार के प्रार्थनापत्र को सभी अथवा किसी भी कोण से देखते हुए सिर्फ यही निर्देश दिये जाने योग्य है कि फैसला सुनाये जाने की तारीख से पहले विवाद को समसे सुलके लिए पक्षकार स्वतंत्र हैं और इस स्तर पर अदालत के हस्तक्षेप की कोई जरूरत नहीं है। अर्जीकर्ता प्रतिवादी संख्या 17 को 50 हजार रुपएहर्जाना देने की जरुरत नही है और तदनुसार प्रार्थनापत्र को निस्तारित कर दिया। रमेश चन्द्र त्रिपाठी ने 13 सितम्बर को न्यायालय की विशेष पीठ मे अर्जी देकर रामजन्म भूमि बाबरी मस्जिद विवादित परिसर के मालिकाना हक संबंधी विवाद को आपसी सुलह समके जरिये हल किये जाने एवं फिलहाल इस बाबत विशेष पीठ के फैसले की तारीख को बढाये जाने का अनुरोध किया था।

अयोध्या में विवादित रामजन्मभूमि -बाबरी मस्जिद स्थल पर स्वामित्व को लेकर पहला मुकदमा 1950 में गोपाल विशारद की तरफ से दाखिल हुआ था। उसके बाद इसमें निर्मोही अखाड़े, सुन्नी वक्फ बोर्ड और रामलला विराजमान की तरफ से भी मुकदमे दर्ज किए गए। अदालत ने उक्त चारों मुकदमों में 26 जुलाई को अपनी सुनवाई पूरी करके फैसला सुरक्षित रख लिया था और 27 जुलाई को सभी पक्षों को बुलाकर उनसे कहा था कि यदि वे मामले को आपसी बातचीत से तय करने का प्रयास करना चाहते हैं तो अदालत के निर्णय से पहले अदालत के विशेष कार्याधिकारी को उसके बारे में सूचित कर सकते हैं। मामले की सुनवाई कर रही तीन सदस्यीय विशेष पीठ ने अपना निर्णय सुरक्षित रखने के लगभग डेढ़ महीने बाद आठ सितंबर को यह निर्णय लिया था कि फैसला 24 सितंबर को सुनाया जायेगा।

Lucknow’s Shia Muslims protest against vandalism of Iraq religious spot

Scores of Shia Muslims staged a protest in Uttar Pradesh’s Lucknow city on Saturday against the alleged vandalism of their religious spot in Iraq.

They later took to the streets to protest against the demolition of the graveyards of one of their religious leader.

Maulana Kalbe Jawad, a Shia cleric said that several revered tombs and graves have been vandalized in Iraq.

“All the graves in the graveyards belonging to the family members of Hazrat Mohammad Saheb have been demolished. All the tombs have been demolished. They have vandalized the graveyards. We had graves of four Imams, even they have been demolished,” said Jawad.

“We want the government to understand our feelings and religious sentiments. Majority of the Muslims are with us and the government should understand us,” he added.

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