कांग्रेस की घातक तुष्टीकरण नीति के कारण देश की अखण्डता खतरे में


असम में हिंसा पर उतारू बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठियों का कहर अभी भी जारी है और वोटों के सौदागर सेकुलर राजनेता तथा केन्द्र सरकार इन सामूहिक नृशंस हत्याओं पर घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। सभी जानते हैं कि पहले पूर्वी पाकिस्तान और बाद में बंगलादेश ने सुनियोजित ढंग से घुसपैठ कर असम को मुस्लिमबहुल बनाने की नीति को साकार करने में काफी हद तक सफलता प्राप्त कर ली है। असम में अब 40 से ज्यादा विधानसभा क्षेत्र मुस्लिमबहुल बना दिए गए हैं। यहां घुसपैठिये अपना विधायक चुनकर लोकतंत्र को खुली चुनौती देते हैं। पाकिस्तान व बंगलादेश से प्रेरित मुस्लिम युनाइटेड लिबरेशन टाइगर्स आफ असम (मुल्टा) काफी समय से हिन्दू युवतियों को प्रेमजाल में फंसाने और फिर उनका जबरन मतांतरण कराने के दुष्कृत्य में संलग्न है। अधिकांश गांवों से बोडो हिन्दुओं को आतंकित कर खदेड़ने में भी इन मुस्लिम घुसपैठियों ने सफलता प्राप्त की है।

10 अप्रैल, 1992 को असम विधानसभा में तत्कालीन मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया ने स्वीकार किया था कि 1981 के बाद से असम में 35 लाख बंगलादेशी घुसपैठिये प्रवेश कर चुके हैं। पश्चिम बंगाल में भी तब 44 लाख घुसपैठियों ने अवैध घुसपैठ करने में सफलता पाई थी। सेकुलर राजनीतिक दलों और उसके नेताओं में वोट बैंक बढ़ाने के लालच में इन घुसपैठियों के राशन कार्ड बनवाने तथा मतदाता सूची में उनके नाम दर्ज कराने की होड़-सी लगी रहती है। 1992 से लेकर अब तक इन घुसपैठियों की संख्या में कई गुना वृद्धि हो जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। मुस्लिम कट्टरवादियों द्वारा सुलगाई गई आग में अब असम जल रहा है और राज्य तथा केन्द्र की कांग्रेस सरकारें हिंसा के इस नग्न तांडव की भी अनदेखी कर असम की आग में राजनीतिक रोटियां सेंकने की कोशिश कर रही हैं।

वस्तुत: असम को मुस्लिमबहुल बनाने का षड्यंत्र अविभाजित भारत में सन् 1941 में बंगाल और असम के मुस्लिम लीग के मंत्रिमंडल ने रचा था। असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री मियां सादुल्ला खां ने घोषणा की थी असम में खाली जमीन पड़ी है, उस पर खेती के लिए बंगाल से जो भी मुस्लिम आकर यहां बसना चाहें, उन्हें मुफ्त में जमीन दी जाएगी। लार्ड वेवल ने अपनी डायरी में लिखा, 'सादुल्ला खां का यह आह्वान अधिक अन्न उत्पादन की आड़ में असम को मुस्लिमबहुल बनाने के लिए था।' उधर शुरू में ब्रिटिश सरकार ने बोडो हिन्दुओं की गरीबी का लाभ उठाकर उन्हें ईसाई बनवाया, बाद में मुस्लिम लीग ने उन्हें मुसलमान बनाने के लिए कुटिल योजना बनाई। 1944 में कांग्रेसी नेता गोपीनाथ बारदोलोई के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने पंचगनी जाकर गांधी जी को सूचना दी थी कि असम को मुस्लिमबहुल बनाने के लिए मुस्लिम लीग हर तरह के हथकंडे अपना रही है। उस समय अपने लेख में गांधी जी ने इस षड्यंत्र पर चिंता व्यक्त की थी। मुस्लिम लीग ने भारत विभाजन के दौरान असम व बंगाल को मुस्लिमबहुल बताकर पाकिस्तान में शामिल किए जाने की मांग की थी। डा.श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इसका विरोध करते हुए कहा था, 'असम हिन्दूबहुल क्षेत्र है तथा बंगाल का अधिकांश भाग भी हिन्दूबहुल ही है’ भारत विभाजन के दौरान असम के सिलहट जिले को मुस्लिमबहुल मानकर पाकिस्तान में मिला दिया गया था, किन्तु शेष असम हिन्दूबहुल होने के कारण भारत में ही रहा।

मोहम्मद अली जिन्ना ने भी उस समय लिखे एक लेख में कहा था 'यदि मुस्लिम लीग के नेता कुछ साल पहले से इस दिशा में प्रयास करते तो पूरे असम को मुस्लिमबहुल बनाया जा सकता था। अब भी अगले कुछ वर्षों में हम पूरे असम को मुस्लिमबहुल बना सकते हैं’ फजलुल हक, सुहरावर्दी तथा मौलाना मसानी ने पूर्वी पाकिस्तान के मुसलमानों को असम व बिहार में घुसपैठ कर बसने की अपील की थी, जिससे इन्हें मुस्लिमबहुल क्षेत्र बनाया जा सके।

जुल्फिकार अली भुट्टो ने अपनी एक पुस्तक में साफ लिखा था, 'पाकिस्तान के लिए केवल कश्मीर ही नहीं, असम भी महत्वपूर्ण है। जब तक असम हमें नहीं मिलेगा हम चैन से नहीं बैठेंगे. सूचना और प्रसारण मंत्रालय के विज्ञापन और प्रचार विभाग द्वारा 1963 में प्रसारित एक लेख में कहा गया था, 'सरकार के पास पूरे प्रमाण हैं कि किस प्रकार पूर्वी पाकिस्तान से सीमा पार कराकर असम में अवैध प्रवेश कराया जाता है। इन घुसपैठियों ने सीधे-सादे असमी किसानों की जमीन-जायदाद हथियाई है। यहां तक कि वे झूठे कागजात देकर उस जमीन के मालिकाना हक का दावा करने लगे हैं। स्थानीय अधिकारियों से साठगांठ करके उन्होंने सम्पत्ति पंजीकरण प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिए हैं। राजनीतिक दलों ने वोटों के लालच में इन घुसपैठियों के नाम मतदाता सूचियों में चढ़वाने शुरू कर दिए हैं’

सितम्बर, 1978 में चुनाव अधिकारियों की एक बैठक में तत्कालीन चुनाव आयुक्त श्री श्यामलाल शकधर ने स्वीकार किया था, 'असम के राजनीतिक दलों के नेताओं ने ऐसे असंख्य लोगों के नाम मतदाता सूचियों में दर्ज करवा दिए हैं जो भारत के नागरिक नहीं हैं। चुनाव आयोग को ऐसे नाम तलाश कर सूची से हटाने चाहिए’ लेकिन चुनाव आयोग ने प्रयास किया तो सेकुलर राजनीतिक दलों के नेता नाम न हटाए जाने पर अड़ गए। सन् 1980 में लोकसभा के मध्यावधि चुनाव की घोषणा होते ही अखिल असम छात्र संघ (आसू) तथा असम गण परिषद (अगप) ने आंदोलन चलाकर मतदाता सूचियों में से बंगलादेशी नागरिकों के नाम हटाए जाने की मांग की। एक राष्ट्रवादी नेता ने तर्क दिया था कि यदि एक विदेशी घुसपैठिया चुनाव लड़कर सांसद बन गया तो क्या यह हमारे देश के लिए कलंक की बात नहीं होगी?

असम विधानसभा या लोकसभा चुनावों से पूर्व हर बार घुसपैठियों के नाम काटे जाने के लिए फामूले बनाए गए, किन्तु सेकुलर राजनीतिक दल घुसपैठियों को निकाले जाने का खुलकर विरोध करते रहे। बदरूद्दीन अजमल ने तो घुसपैठियों को निकाले जाने का खुलेआम विरोध किया था। इस घातक कुटिल नीति के परिणामस्वरूप असम में निरंतर बंगलादेशी मुसलमान घुसपैठ करते रहे। उन्होंने स्थानीय हिन्दू किसानों की जमीनों पर कब्जा करने में सफलता प्राप्त कर ली। इतना ही नहीं, बंगलादेशी घुसपैठियों ने सुनियोजित ढंग से असम से बाहर राजधानी दिल्ली तथा आसपास के क्षेत्रों यहां तक देश के विभिन्न भागों तक पहुंचकर वहां भी ठिकाने बना लिए हैं, जिनकी संख्या करीब 4 करोड़ आंकी जाती है। इनमें से अधिकांश आतंकवाद व अलगाववाद की घटनाओं में शामिल होने लगे। चोरी, लूट व हत्या आदि अपराधों व तस्करी में भी बंगलादेशी मुसलमान लिप्त पाए गए हैं।

असम की इस वर्तमान विकराल समस्या के लिए वास्तव में केवल वे सेकुलर दल दोषी हैं जो वोटों व सत्ता के लिए राष्ट्र की एकता व अखंडता की उपेक्षा करके बंगलादेशी घुसपैठियों का पालन-पोषण कर उन्हें असम में बसे रहने के लिए बेशर्मी से सक्रिय रहते हैं। तुष्टिकरण की यह नीति अत्यंत शर्मनाक है।

उधर, कश्मीर घाटी को योजनापूर्वक पाकिस्तानी आतंकवादियों का चरागाह बना दिया गया है। किसी आतंकवादी के मारे जाने पर उसे बेकसूर बताकर पाकिस्तान से प्रेरित तत्व सड़कों पर उतर कर सुरक्षा बलों के विरुद्ध प्रदर्शन करने लगते हैं। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला अन्य अलगाववादियों के स्वर में स्वर मिलाकर कश्मीर घाटी से सेना हटाने की मांग कर पाकिस्तान की कुटिल नीति को ही साकार करने का मार्ग प्रशस्त करने में लगे हैं। कश्मीरी वार्ताकारों ने जो रपट प्रस्तुत की है उसका गंभीरता से अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि वह कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने के पाकिस्तानी एजेंडे का ही एक भाग है। इनमें से कई वार्ताकारों के चेहरे बेनकाब हो चुके हैं, क्योंकि वे पाकिस्तान के पक्ष में अंतरराष्ट्रीय मानस बनाने के लिए विदेशों में होने वाली गोष्ठियों में सक्रिय रहे हैं।

असम, त्रिपुरा, कश्मीर तथा अन्य क्षेत्रों में पनप रहे इस आतंकवाद का एकमात्र कारण वोटों के लिए मुस्लिम- तुष्टीकरण की नीति ही है। किसी भी तरह वोट बैंक बढ़ाकर सत्ता पर कब्जा करने की नीयत रखने वाले सेकुलर दलों में होड़ लगी हुई है कि राष्ट्रद्रोहियों, अलगाववादियों को, आतंकवाद को संरक्षण देने वालों को किस प्रकार संतुष्ट कर चुनावों में उनके वोट झटके जाएं। इसी स्वार्थ को पूरा करने की रणनीति के अन्तर्गत समय-समय पर हिन्दू आतंकवाद का झूठा षड्यंत्र रचकर निर्दोष साधु-साध्वियों को झूठे मामलों में फंसाकर मुस्लिमों को अपने पक्ष में करने की घातक नीति अपनाने में भी संकोच नहीं किया जाता।

स्वाधीनता से पूर्व कांग्रेस के अनेक वरिष्ठ नेता समय-समय पर यह चेतावनी देते रहे हैं कि यदि जिन्ना व मुस्लिम लीग के समक्ष कांग्रेस निरन्तर झुककर उनकी राष्ट्रघाती मांगें मानती रही तो एक दिन देश के विभाजन का दंश झेलना पड़ेगा। महामना मालवीय जी, डा.राजेन्द्र प्रसाद, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन आदि ने कई बार यह चेतावनी दी थी। आचार्य कृपलानी ने 22 नवम्बर, 1946 को मेरठ में कांग्रेस के 54 वें अधिवेशन में अध्यक्ष पद से भाषण देते हुए कहा था, ‘¨मैं पहले भी कह चुका हूं कि कांग्रेस को अल्पसंख्यकों की उचित मांगों को स्वीकार करना चाहिए, पर देश का अहित करके नहीं। 

आज की अनेक कठिनाइयां पिछले दिनों गलत मांगें मानने से हुई हैं। यदि हमने पृथक निर्वाचन का जनतंत्र विरोधी सिद्धांत मानने से इनकार कर दिया होता तो वर्तमान उपद्रव नहीं होते। आज भी यदि हम दबाव में आकर राष्ट्रीयता की जड़ें काटने वाले सिद्धांत मान लें तो भले ही उपद्रव बंद हो जाएं, पर वह देश के साथ विश्वासघात होगा।' आचार्य कृपलानी कुछ ही दिन पूर्व पूर्वी बंगाल में हिन्दुओं के नरसंहार की घटनाओं का अवलोकन कर लौटे थे। उन्होंने कांग्रेस के अध्यक्षीय भाषण में कहा, 'मैं अभी बंगाल, बिहार से लौटा हूं।  ये लोग आग से खेल रहे थे। अहिंसक होते हुए भी मैं नहीं कह सकता कि उस अत्याचार के सामने यदि मैं होता तो मुझ पर क्या प्रतिक्रिया होती? इन उपद्रवियों ने मानवता को कलंकित किया है।'

राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन आचार्य कृपलानी के साथ नोआखली आदि उपद्रवग्रस्त क्षेत्रों में गए थे। श्री टंडन ने अपनी रपट में लिखा 'बंगाल को नोआखली ने कलंकित ही कर दिया। नोआखली आदि में जो कुछ हुआ है उसकी तुलना हीनतम नाजियों की क्रूरताओं के साथ ही हो सकती है। गुंडों के गिरोहों ने लोगों के जान-माल की होली जलाई है। इसे आचार्य कृपलानी, श्रीमती सुचेता कृपलानी, श्री शरत बोस तथा मैंने देखा है। हम कलकत्ता हवाई जहाज से पहुंचे तो अनेक नर-नारियों की आंखों में करुणा के आंसू थे। ज्योंही हम शरत बाबू के घर पहुंचे लोगों ने हमें घेर लिया। भयावह कथानक सुनाने वालों का तांता लग गया था’ राजर्षि टंडन आगे लिखते हैं, 'सायं को कोमिला पहुंचे। लोगों ने हमें घेर कर पूछा 'कांग्रेस हमारे लिए क्या कर रही है ?’ नोआखली में बताया गया, एक हिन्दू जान बचाने के लिए पेड़ पर चढ़ गया, भूखा-प्यासा लटका रहा। थक कर गिरा, बेहोश पड़ा था। हत्यारे पहुंचे, ताकि उसे जीवन बचाने की सजा दी जाए। उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिये गए ’

टंडन जी ने आगे लिखा, 'एक पीड़ित ने हमें बताया, 'हम रक्षा के लिए चिल्लाए। परंतु पुलिस की जगह लुटेरों, गुंडों के झुंड आ पहुंचे। उन्होंने बहनों के साथ भाइयों के सामने बलात्कार किया, पुत्रों के सामने माताओं को नंगा किया गया। उन्हें जमीन पर लिटाकर के बाद हलाल किया गया। फिर हाथों को खून से रंगकर उनकी महिलाओं के मुंह पर पोता गया। तत्पश्चात उनके साथ बलात्कार किया गया। यह सब मुस्लिम लीग के आगे आत्मसमर्पण करने की नीति का ही दुष्परिणाम है’ कांग्रेसी नेताओं द्वारा जिन्ना और मुस्लिम लीग को तुष्ट करने की आत्मघाती नीति का दुष्परिणाम भारत विभाजन के साथ- साथ लाखों हिन्दुओं के संहार के रूप में देश को भोगना पड़ा।

कांग्रेस के अन्य अनेक नेताओं ने भी चेतावनी दी थी कि भारत विभाजन से हिन्दू-मुस्लिम समस्या का स्थायी निदान कदापि नहीं होगा। समाजवादी नेता डा.राम मनोहर लोहिया की तो स्पष्ट चेतावनी थी कि भारत विभाजन के गुनाहगार कांग्रेसी नेता यदि सत्ता प्राप्ति के लिए अलगाववादियों को तुष्ट करने की घातक नीति का अनुसरण करते रहे तो पूरा देश एक दिन फिर अलगाववाद की गिरफ्त में आ जाएगा। आज उन महापुरुषों की भविष्यवाणी अक्षरश: सत्य सिद्ध हो रही है तथा पूरा देश आज अलगाववाद, आतंकवाद से घिर चुका है तथा हमारे देश के एक और विभाजन की साजिश सुनियोजित ढंग से रची जा रही है।

आज चीन-पाकिस्तान के साथ साठगांठ करके हमारे देश की अखंडता के लिए खुली चुनौती दे रहा है और हम इस भीषण खतरे को अनदेखा करते जा रहे हैं। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी चाहे जब हमारी सीमा में घुसपैठ कर हमें आंखें दिखाने लगती है। चीन समय-समय पर भारत के राज्य अरुणाचल प्रदेश को चीन का हिस्सा बताता है तो हम विरोध पत्र भेजने के अलावा कोई ठोस कार्रवाई नहीं करते हैं। वह समय-समय पर झूठा आरोप लगाता है कि भारत ने सिक्किम व अरुणाचल क्षेत्र में चीन की 20 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि दबाई हुई है। वह जम्मू-कश्मीर प्रदेश को मानचित्र पर पाकिस्तान का अंग दिखाकर हमें उत्तेजित करने का प्रयास करता रहता है।

पाकिस्तान द्वारा हमारे जिस कश्मीर के भू-भाग पर कब्जा किया हुआ है, उस स्कार्दू क्षेत्र में कारोकरम राजमार्ग के आसपास चीनी सैनिक अपने अड्डे बना चुके हैं। चीन पाकिस्तान तक अपनी सड़क बना चुका है, जो हमारे देश की सुरक्षा के लिए खतरा सिद्ध हो सकती है। नवम्बर, 2009 में लद्दाख में केन्द्र द्वारा प्रायोजित नरेगा योजना के अन्तर्गत बनाई जा रही सड़क के निर्माण में चीन ने न केवल व्यवधान डाला अपितु उसने नियंत्रण रेखा के अंदर पहुंचकर 54 किलोमीटर लम्बी अपनी सड़क बना डाली। समय-समय पर चीन और पाकिस्तान भारत में सक्रिय आतंकवादियों को शस्त्रास्त्र उपलब्ध कराते रहे हैं। उन्हें आतंकवादी घटनाओं और बम विस्फोटों का प्रशिक्षण देते हैं, यह अब किसी से छिपा नहीं है।

पं. नेहरू की चीन के प्रति दुर्बल नीति से ही चीन का दु:साहस निरंतर बढ़ता रहा। तिब्बत एक दीवार के रूप में हमारे देश की सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था। नेहरू जी ने मनमाने ढंग से 1951 में तिब्बत को एक तरह से चांदी की तश्तरी में रखकर चीन को उपहार में भेंट कर दिया। चीन ने कुछ ही समय बाद 1955 में भारत की सीमा में अतिक्रमण शुरू कर हमें आंखें दिखानी शुरू कर दी थीं। सीमा विवाद के हल के लिए चाऊ एन लाई को भारत आमंत्रित किया गया तो राजधानी दिल्ली को ‘हिंदी चीनी भाई भाई  के उद्घोषों से गुंजा दिया गया। चीन को तिब्बत उपहार में दिए जाने का समाजवादी नेता डा.राममनोहर लोहिया, आचार्य डा.रघुवीर तथा सुविख्यात राजनेता श्री कन्हैयालाल मणिकलाल मुंशी ने डटकर विरोध किया था।  अक्तूबर, 1962 में चीन ने खुले रूप में हमारी उत्तरी सीमा पर आक्रमण किया तो पूरा देश उद्वेलित हो उठा था। डा.सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने उस समय कहा था, 'हमारे अत्यधिक विश्वास और असावधानी के कारण ही हमें चीन के इस आक्रमण के रूप में इस घोर संकट का सामना करना पड़ा है’

डा. क.मा. मुंशी ने भवन जर्नल तथा भारती पत्रिका में ‘एक स्तंभ में लिखा था, 'पंचशील और भाई-भाई वाद के जादुई प्रभाव में हम पंडित नेहरू के शब्दों में, ‘हमारे ही रचे एक अवास्तविक वातावरण में, विस्तारवादी चीन के साथ हम सनातन मैत्री की दुहाई देते रहे। चीनी अजगर को संतुष्ट करने के लिए हम उसके द्वारा तिब्बत का निगल जाना भी शांति से देखते रहे।' श्री मुंशी आगे लिखते हैं, 'इस समय हमारी हजारों वर्ग मील भूमि चीन के कब्जे में है। आक्रांता को हटाने के लिए हमारे पास कोई निश्चित कार्यक्रम नहीं है। चीन के साथ हम कूटनीतिक व्यवहार अब भी इसी आशा में बनाए हुए हैं कि शायद यह अपना रवैया बदले। यह वैसा ही है जैसे नाग पंचमी के दिन सांपों को इस आशा से दूध पिलाना कि वे हमें काटेंगे नहीं ’

चीन के 1962 के आक्रमण के दौरान कम्युनिस्टों के एक गुट ने चीनी सेना को ‘¨शांति प्रिय  बताते हुए कहा था, चीन ने भारत पर कोई आक्रमण नहीं किया। हिन्दू महासभा के प्रखर सांसद श्री विशन चन्द्र सेठ ने पं. नेहरू को पत्र लिखकर कम्युनिस्ट पार्टी को राष्ट्रद्रोही करार देने की मांग की थी। उन्होंने 13 नवम्बर, 1962 को लोकसभा में भाषण में कहा था, ‘यदि वीर सावरकर की रणनीति-राजनीति के हिन्दूकरण और हिन्दुओं के  सिद्धांत को मान लिया गया होता तो चीन या पाकिस्तान कभी भी भारत पर आक्रमण का दु:स्साहस नहीं करते।' 

श्री सेठ ने निर्भीकता के साथ चीन के आक्रमण के लिए प्रधानमंत्री पं. नेहरू की ढुलमुल नीति को जिम्मेदार बताते हुए चेतावनी दी थी कि यदि यही नीति चलती रही तो भारत के एक और विभाजन की मांग उठेगी तथा हम मूकदर्शक बन सब कुछ सहन करते रहेंगे। महामना मालवीय, डा. राजेन्द्र प्रसाद, आचार्य कृपलानी, राजर्षि टंडन, डा. लोहिया, विशन चन्द्र सेठ सहित सभी राष्ट्रभक्त राजनेताओं की चेतावनियों की अनदेखी का ही परिणाम है आज का जलता असम। पर दुर्भाग्य यह कि इस आग की तपिश न सम्पूर्ण देशवासियों को उद्वेलित कर रही है और न ही सेकुलरों को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए विवश कर रही है।

- शिवकुमार गोयल (पाञ्चजन्य में)

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