मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए नेहरू जी ने डॉ.आंबेडकर का किया था विरोध


रोहित वेमुला मामले में मीडिया और सभी वितंडावादियों का झूठ पकड़ा गया– तेलंगाना सरकर व पुलिस ने अदालत को जो रिपोर्ट सौंपी है, उसमें साफ कहा गया है कि रोहित दलित नहीं था– तो अब, अपने झूठ पर पर्दा डालने, लेकिन इस मुद्दे को लगातार जिंदा रखने के लिए सारे वितंडावादी मिलकर रोहित के पूरे परिवार का धर्म परिवर्तन करवा रहे हैं!

दलित के नाम पर बोले गए झूठ को सच ठहराना है, इसलिए आज अंबेडकर जयंती के दिन रोहित के पूरे परिवार को बौद्ध बनाया जा रहा है। प्रोपोगंडावादियों का लक्ष्य स्पष्ट है– दलित से झूठी सहानुभूति का मुद्दा तब तक जिंदा रखना है, जब तक यूपी चुनाव न हो जाए!

यह अच्छा है कि रोहित के परिवार को मुस्लिम-ईसाई नहीं बनाया गया और यही बाबा साहब की जीत है। मुस्लिम-ईसाई ने बहुत कोशिश की थी कि बाबा साहब उनका धर्म अपना लें, लेकिन बाबा साहब ने कहा भारत की कुरीतियों को भारतीय तरीके से ही दूर किया जा सकता है, विदेशी तरीकों से नहीं।

बौद्ध धर्म के पतन पर बाबा साहब के विचारों को दबा दिया गया है, जिसमें मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा बौद्ध धर्म को नष्ट करने का पूरा प्रमाण उन्होंने दिया है। आप सभी को बाबा साहब की पुस्तक- ‘दि डिक्लाइन एंड फाल आफ बुद्धिज्म’ जरूर पढना चाहिए। इसे सिर्फ इसलिए दबाया गया ताकि चुनावी गणित में दलित-मुस्लिम कांबिनेशन को साधा जा सके! पाकिस्तान निर्माण पर भी उनकी पुस्तक को पढा जाना चाहिए ताकि मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए देश के साथ हो रहा खिलवाड़ बंद हो!

बाबा साहब चाहते थे कि भारत विभाजन के वक्त आबादी का पूरी तरह से अदला-बदली हो और जिन मुसलमानों ने धर्म को आधार बनाकर अलग देश मांगा था, वो सभी पाकिस्तान चले जाएं, अन्यथा भविष्य में भी विभाजन की परिस्थिति बनी रहेगी और यह आज भी बनी हुई है, जो बाबा साहब की भविष्यवाणी को सही ठहरा रहा है!
 बाबा साहब के विचारों का विरोध करते हुए पं नेहरू ने कहा था, ‘हिंदू राष्ट्र का केवल एक ही मतलब है, आधुनिक सोच को पीछे छोड़ना, संकीर्ण होकर पुराने तरीके से सोचना और भारत का टुकड़ों में बंटना।’
नेहरू अपनी इसी सोच के चलते हिंदू कोड बिल लेकर आए, लेकिन जब बाबा साहब ने संविधान में समान नागरिक संहिता लागू करने की बात कही तो मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए नेहरू ने इसका विरोध किया। तब उन्हें मुसलमानों की संकीर्णता और पिछड़ापन नहीं दिखा! साथ ही उन सभी मुस्लिम लीडर ने भी इसका विरोध किया, जो जुबान से धर्मनिरपेक्ष भारत की बात कर रहे थे, लेकिन इस्लामी शरिया के पैरोकार थे। वे अपने पोलिटिकल हित साधने के लिए भारत में रुके थे, न कि भारतप्रेम के लिए!

बाबा साहब ने नेहरू की इसी मुस्लिम परस्ती से तंग आकर संसद से इस्तीफा दे दिया। उनकी यदि चलती तो आज समान नागरिक संहिता इस देश में लागू होता, लेकिन फिर भी अनुच्छेद-44 में वह इसकी संभावना बनाए रखने में कामयाब रहे!

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