ईद पर पाक ने भारत की मिठाई का जबाब गोली से दिया

ईद पर भी पाकिस्तान बाज नहीं आया और उसने भारत की चार सीमा चौकियों पर जमकर गोलीबारी की। हालांकि इस गोलीबारी में कोई नुकसान नहीं हुआ है। ईद-उल-फितर पर बुधवार सुबह कश्मीर के पुंछ जिले के चकना-दा-बाग में सीमा सुरक्षा बल [बीएसएफ] ने पाक रेंजर्स को मिठाइयां भेंट कीं। लेकिन शाम को पाकिस्तान सेना ने इसका जवाब गोलियों से दिया।

भारत की कृष्णा घाटी सेक्टर की कृपाण, क्रांति, नंगी टेकरी व छज्जा मान पोस्ट पर देर शाम पाकिस्तान सेना ने गोलियों की बौछार के साथ रॉकेट दागने शुरू कर दिए। आठ बजे तक यह गोलीबारी होती रही। इसके बाद भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई की। इस गोलीबारी में किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं हुआ।

सूत्रों के अनुसार पाकिस्तान सेना ने आतंकवादियों को भारतीय क्षेत्र में दाखिल करवाने के लिए सीमा पर यह गोलीबारी की लेकिन उसे सफलता नहीं मिल सकी।

सरकार ने स्वामी रामदेव के ट्रस्टों पर फेमा लगाया

प्रवर्तन निदेशालय ने योग गुरु रामदेव और हरिद्वार स्थित उनके ट्रस्टों के खिलाफ विदेशी मुद्रा विनिमय प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के उल्लंघन के आरोप में मामला दर्ज किया है। 
 
अधिकारियों ने बताया कि निदेशालय ने भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट और रामदेव के ट्रस्टों द्वारा किए गए ‘‘संदिग्ध’’ वित्तीय लेनदेन के बारे में विदेश से मिली जानकारी के आधार पर मामला दर्ज किया है।


सूत्रों ने बताया कि प्रवर्तन निदेशालय की जांच में विदेशों से धन मिलने और कुछ अतिरिक्त धन का अंतरप्रवाह पाया गया था और अब विदेशी मुद्रा विनिमय प्रबंधन अधिनियम के प्रावधानों के तहत कार्रवाई की गई है। रामदेव के प्रवक्ता से बार-बार की कोशिशों के बाद भी संपर्क नहीं हो पाया। 
 
रामदेव के लेनेदेन की जांच के संबंध में प्रवर्तन निदेशालय ने ब्रिटेन में अधिकारियों से संपर्क कर योग गुरु को उनके एक अनुयायी दंपती द्वारा स्कॉटलैंड में ‘भेंट’ किए गए एक द्वीप के बारे में वित्तीय लेनदेन का ब्यौरा मांगा था।

वंदे मातरम और तिरंगा सांप्रदायिक, अन्ना खाली बर्तन - अरुंधति

अरुंधति रॉय ने अन्ना हजारे के आंदोलन पर हमला बोलते हुए राष्ट्रगीत वंदे मातरम और राष्ट्रीय झंडे को सांप्रदायिक और बांटने वाला करार दिया है। रवींद्र नाथ टैगोर का हवाला देते हुए रॉय ने कहा, '1937 में टैगोर ने कहा था कि यह अनुचित राष्ट्रगीत है, यह बांटता है। 

अरुंधति के मुताबिक वंदे मातरम का लंबा सांप्रदायिक इतिहास रहा है। ऐसे में भीड़ जब यह नारा लगाती है तो इसका क्या मतलब है? जब आप उपनिवेश के खिलाफ नारे लगाते समय हाथ में राष्ट्रीय झंडा उठाते हैं तो इसका एक मतलब है लेकिन जब आप एक तरह से आज़ाद हैं, तो आप लोगों को बांटते हैं, जोड़ते नहीं हैं।'

एक टीवी चैनल से बातचीत में अन्ना पर निशाना साधते हुए राय ने कहा, 'अन्ना का आंदोलन इसलिए अहिंसक था क्योंकि पुलिस डरी हुई थी और उसने लाठियां नहीं उठाईं। इस आंदोलन के पहले दौर में मंच की पृष्ठभूमि में भारत माता की तस्वीर लगी थी लेकिन दूसरे चरण में इसकी जगह गांधी जी की फोटो ने ले ली। 

वहां पर इस तरह की कई चीजें थीं, जो बेहद खतरनाक हैं। इसके अलावा क्या आप यह सोच सकते हैं कि गांधी जी किसी अनशन के बाद एक निजी अस्पताल में इलाज करवाते? एक ऐसा निजी अस्पताल जो राज्य सत्ता द्वारा गरीबों के इलाज के हक को छीन लेने का प्रतीक है।'

अरुंधति ने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे की जमकर आलोचना की है। अरुंधति ने जनलोकपाल बिल को भी बेहद खतरनाक कानून करार दिया है जिसकी मांग अन्‍ना हजारे और उनकी टीम कर रही है। लेखिका ने अन्‍ना को ‘खाली बर्तन’ कहकर उनका मजाक भी उड़ाया।

रॉय ने कहा कि जनलोकपाल बिल में भी काफी कमियां है, लेकिन इसे जबरदस्ती थोपा नहीं जा सकता है, ऐसा नहीं है कि सरकारी लोकपाल बिल भी पूरी तरह से सही है, लेकिन इस मसले को आम राय से संसद में सुलझाना होगा न कि भीड़ इकट्ठा करने के बाद अनशन करके।

अरुंधति ने कहा, ‘जनलोकपाल पर संसद में सह‍मति बनने पर सभी खुश हैं और लोग इसे जीत करार दे रहे हैं। मैं भी इस पर खुश हूं क्‍योंकि मुझे लगता है कि जनलोकपाल बिल अपने मौजूदा स्‍वरुप में संसद से पास नहीं हो सकता। इसकी कई वजहें भी हैं। सबसे पहला तो यह कि यह कानून मेरे मुताबिक बेहद खतरनाक है।’ 

अरुंधति ने कहा, ‘मेरा मानना है कि अन्‍ना हजारे खाली बर्तन की तरह हैं जिसमें आप अपनी मर्जी के मुताबिक पानी भर सकते हैं। वह गांधी की तरह नहीं हैं जो सार्वजनिक जीवन में अपने आप में एक खासी शख्सियत थे। अन्‍ना हजारे अपने गांव के लिए खास हो सकते हैं लेकिन अभी हाल में जो कुछ हुआ उसमें उनका कोई योगदान नहीं था।'

अरुंधति ने कहा कि अन्‍ना कौन हैं, उनका किन लोगों से जुड़ाव रहा है और उन्‍होंने पहले क्‍या किया है, उसे लोग जानते हैं।’ 

इससे पहले एक अखबार में लिखे लेख में रॉय ने लोगों को भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जुट करने के लिए अन्ना के तरीके और अभियान को गलत बताया था।

उसने अन्ना पर सवाल उठाते हुए कहा कि हजारे अपने गृहराज्य महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या पर मौन क्यों हैं? रॉय ने लिखा कि अन्‍ना के तरीके भले ही गांधीवादी हों, लेकिन मांगें सही नहीं हैं। उनके अनशन का मकसद सिर्फ नया लोकपाल बिल पारित करवाना है।

वही फिल्मकार
अशोक पंडित का कहना है कि  ‘अरुंधति रॉय कहती हैं कि फोर्ड फाउंडेशन ने अन्‍ना हजारे को आर्थिक मदद की। मैं यह जानना चाहता हूं कि लोगों की हत्‍या करने के लिए गिलानी को कौन पैसे देता है जिसकी वो समर्थक हैं।’    -

बंधुआ मजदूरों के सर्वे का 18 लाख डकार गया अग्निवेश

अग्निवेश को कांग्रेस का एजेंट और दलाल यूँ ही नहीं कहा जा रहा है कांग्रेस ने उन्हें सरकारी खजाने से उपकृत भी कर रखा है। दिल्ली सरकार ने बंधुआ मजदूरों के सर्वे के लिए नियम-शर्तो को दरकिनार कर अग्निवेश के बंधुआ मुक्ति मोर्चा को 18 लाख रुपये जारी कर दिए।

जैसे
आनन-फानन में रुपये जारी हुए, एनजीओ ने वैसी ही बिना मतलब की 60 पेज की रिपोर्ट भी जारी कर दी।सर्वे में गेहूं, चावल जैसे किराने के साथ-साथ आफिस के टेलीफोन का बिल तक शामिल है। बंधुआ मजदूर कहां थे, कौन नियोजक था, इसका कोई ब्यौरा नहीं है। हां खर्च का पूरा हिसाब 160 पन्नों में दर्ज है।

दिल्ली
सरकार की इस अंधेरगर्दी भरी दरियादिली के पांच वर्ष बाद अब महालेखा परीक्षक इस साठगांठ की जांच करने की तैयारी में है।बात है 2006 की। उस समय दिल्ली सरकार ने यकायक सभी नौ जिलों में बंधुआ मजदूरों के सर्वे के लिए अग्निवेश के जंतर-मंतर स्थित संगठन को 18 लाख की एकमुश्त राशि दे दी।

इसके
लिए न तो कोई समझौता पत्र तैयार हुआ न ही नियम व शर्ते तय की गईं।आरटीआइ के तहत मांगी गई जानकारी में डिवीजनल मजिस्ट्रेट ने स्पष्ट किया है कि संस्था से सर्वे कराने का फैसला किसी आवेदन के आधार पर नहीं,बल्कि सरकार के स्तर पर हुआ था।

शायद
यही कारण था कि पूरी राशि एकमुश्त अग्रिम मिल गई। संगठन ने 2007 में 60 पेज की रिपोर्ट तो दी लेकिन ऐसी जिसे पहली नजर में ही खारिज किया जा सकता है।दरअसल, दिल्ली में 90 फीसदी बंधुआ मजदूर बताने वाली इस रिपोर्ट के खर्च का लेखा-जोखा लगभग 160 पन्नों में है। इसमें न सिर्फ जंतर मंतर स्थित संगठन के टेलीफोन बिल का 38 हजार का भुगतान बताया गया है, बल्कि मजदूरों के भोजन के नाम पर गेहूं, चावल, आलू, सब्जी, टेंट आदि के भी हजारों रुपये जोड़े गए हैं। हवाई चप्पल तक की रसीद चस्पां है।

अधिकतर
खर्च मुक्ति मोर्चा के अपने वाउचर पर किए गए, जिसमें लाभार्थियों के नाम अधिकतर अस्पष्ट हैं। पांच हजार से ज्यादा के भुगतान पर भी कहीं रसीदी टिकट नहीं है।सर्वे रिपोर्ट में एक भी नियोजक का नाम-पता नहीं है। लिहाजा किसी के खिलाफ कार्रवाई का सवाल ही नहीं उठता।

सर्वे
के लिए दिशा निर्देश तय करने वालों में प्रमुख रहे पूर्व श्रम सचिव लक्ष्मीधर मिश्रा का कहना है कि 'ऐसी रिपोर्ट को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता है, मगर दिल्ली सरकार इस मामले पर कुंडली मारे बैठी है। वहीं स्वामी अग्निवेश ने काफी कोशिशों के बाद भी स्पष्ट जवाब नहीं दिया। उलटे आरोप मढ़ा कि 'मुझे कुछ लोग बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं।

अग्निवेश को 19 सितंबर तक गिरफ्तार करने के आदेश

स्वामी अग्निवेश के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं। हिसार में उपमंडल न्यायिक दंडाधिकारी अश्वनी कुमार मेहता की कोर्ट ने डीएसपी अमरीक सिंह को निर्देश दिए हैं कि वह धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के मामले में नामजद स्वामी अग्निवेश को 19 सितंबर तक गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश करें।

कोर्ट ने शुक्रवार को ही मामले की सुनवाई के दौरान अग्निवेश को पेश करने के लिए कहा था। सोमवार को कोर्ट में मामले के इंवेस्टिगेटिंग ऑफिसर दलबीर ने कहा कि वह दो बार अग्निवेश के जंतर-मंतर (दिल्‍ली) स्थित कार्यालय पर जाने के बावजूद वह वहां नहीं मिले। इस पर कोर्ट ने कहा कि डीएसपी खुद अग्निवेश को गिरफ्तार कर 19 सितंबर तक कोर्ट में पेश करें।

सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीन तायल ने 23 मई, 2011 को कोर्ट में इस्तगासा दायर कर स्वामी अग्निवेश के खिलाफ धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का मामला दर्ज करने की अपील की थी। इसके बाद कोर्ट के आदेश पर सिटी पुलिस ने मामला दर्ज किया था।

पुलिस ने कई बार अग्निवेश को नोटिस भेजा लेकिन वह न तो पुलिस तफ्तीश में शामिल हुए और न ही कोर्ट में पेश हुए। अग्निवेश की तरफ से उनके वकील ने जरूर पुलिस को बयान दिया था कि वह अन्ना हजारे के साथ हैं इसलिए जांच में शामिल नहीं हो सकते। इस बयान को काफी नहीं माना गया। इसके बाद कोर्ट ने अग्निवेश के वारंट जारी किए लेकिन वह शुक्रवार को भी पेशी पर नहीं पहुंचे।

उधर, कपिल सिब्बल से टीम अन्‍ना के खिलाफ बातें करते अग्निवेश का वीडियो सामने आने के बाद जनता भी उनसे नाराज हो गई है। सोमवार को उत्‍तर प्रदेश के गाजियाबाद सहित देश के कई शहरों में अग्निवेश के पुतले फूंके गए और उनके विरोध में नारे लगाए गए।

इस बीच, टीम अन्‍ना के सदस्‍य अरविंद केजरीवाल ने सार्वजनिक रूप से यह साफ कर दिया है कि अग्निवेश अब टीम के सदस्‍य नहीं रह गए हैं। वह टीम अन्‍ना की कोर कमेटी में शामिल थे, लेकिन वीडियो के जरिए उनकी 'दगाबाजी' सामने आने के बाद केजरीवाल ने उनके टीम का सदस्‍य नहीं रहने की बात सार्वजनिक रूप से बता दी है।

कांग्रेसी सांसद अन्ना हजारे को गद्दार और देशद्रोही बताया

मध्यप्रदेश में देवास-शाजापुर के सांसद सज्जन सिंह ने अन्ना हजारे को गद्दार और देशद्रोही बताया है.

आज देश ही नहीं विदेश में भी अन्ना हजारे के अनशन और आंदोलन को भ्रष्टाचार को ख़त्म करने की दिशा में क्रांतिकारी पहल के तौर पर माना जा रहा है.

अन्ना को मिसाल बताया जा रहा है लेकिन मध्य प्रदेश के देवास-शाजापुर के कांग्रेसी सांसद सज्जन सिंह वर्मा की नज़रों में अन्ना हजारे का आंदोलन देश के साथ गद्दारी है.सज्जन सिंह वर्मा का कहना है, “हमारे देश को अभी चीन जैसी शक्तियों से खतरा है. उसने पाकिस्तान में बेस बना लिया है. ऐसे में देश की अस्मिता की रक्षा करना हमारे लिए ज़्यादा अहम है. इस समय कोई व्यक्ति अगर भड़काऊ काम करता है तो मैं उन्हें गद्दार कहूंगा, देशद्रोही कहूंगा.”

सज्जन सिंह ने अन्ना को सलाह दी कि आंदोलन करने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन वे सही तरीका इस्तेमाल करें.

अभी तक कांग्रेस या विपक्ष के किसी नेता ने सज्जन सिंह के बयान पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.

Google has been fined US$500m pharmacies ads

Google has been fined US$500m (£306m) by the US government for allowing online pharmacies in Canada to advertise unlicenced drugs to US customers.

The fine, one of the largest forfeitures ever in the US, represents the revenue received by the company as a result of Canadian pharmacies advertising through Goggle’s AdWords programme, plus gross revenue made by Canadian pharmacies from their sales to US customers.

The distribution of prescription drugs from pharmacies outside the US to customers in the US breaches the Federal Food, Drug and Cosmetic Act and the Controlled Substances Act.

The US Department of Justice (DoJ), which led the investigation, said that while Canada has its own regulatory rules for prescription drugs, Canadian pharmacies that ship prescription drugs to US residents are not subject to Canadian regulatory authority.

This means that many sell drugs obtained from countries other than Canada that lack adequate pharmacy regulations, which could be dangerous for US customers.

The DoJ said Google was aware as early as 2003 that it was illegal for pharmacies to ship controlled and non-controlled prescription drugs into the US from Canada, but had failed to take adequate action.

In fact from 2003 to 2009, the DoJ said that Google provided customer support to some of these Canadian online pharmacy advertisers to assist them in placing and optimising their AdWords advertisements, and in improving the effectiveness of their websites.

‘This investigation is about the patently unsafe, unlawful, importation of prescription drugs by Canadian online pharmacies, with Google’s knowledge and assistance, into the US, directly to US consumers,’ said US Attorney Peter Neronha.

‘It is about taking a significant step forward in limiting the ability of rogue online pharmacies from reaching US consumers, by compelling Google to change its behaviour.

‘It is about holding Google responsible for its conduct by imposing a $500m forfeiture, the kind of forfeiture that will not only get Google’s attention, but the attention of all those who contribute to America’s pill problem.’

The Partnership for Safe Medicines, a non-profit organisation dedicated to curbing counterfeit drugs, said the fine was a ‘welcome and long overdue development’.

‘We are hopeful the Google settlement sends a clear message to other large online advertising companies that this practice is dangerous and in most cases leads to unlawful activity,’ the organisation said.

‘Illicit internet vendors, who often are no more Canadian than their logo or IP address, ship consumers drugs that are at best not FDA-approved and at worst lethal. For several years, they have escalated use of social media channels to advertise to American consumers.

‘We are hopeful that this settlement will send a message to other online advertisers that policies need to be in place to prohibit this type of activity.’

टीम अन्‍ना को जन लोकपाल बिल पारित होने पर अब भी संदेह

टीम अन्ना को जन लोकपाल बिल पारित होने पर अब भी संदेह है। टीम के सदस् प्रशांत भूषण ने कहा कि सरकार और राजनीतिक दलों पर अभी भी भरोसा नहीं किया जा सकता। इन पर कड़ी नजर रखनी होगी, ताकि संसद में पारित प्रस्ताव के अनुकूल जन लोकपाल बिल पारित हो सके। उन्होंने मांग की कि सरकार संसद का विशेष सत्र बुला कर एक महीने के भीतर बिल पारित कराए।

टीम अन्‍ना को डर इस बात का है कि मामला स्‍थायी संसदीय समिति में लटक सकता है। उसे लगता है कि 27 अगस्‍त को संसद में पारित प्रस्‍ताव का हश्र संसदीय समिति में जाने के बाद वही हो सकता है जो बाकी प्रस्‍तावों का होता है।

जिस तरह इस बिल के साथ जनभावना जुड़ी हुई है, उसे देखते हुए सरकार के लिए इसे लटकाना आसान नहीं होगा। राजनीतिक विश्‍लेषक योगेंद्र यादव मानते हैं कि अगर सरकार यह बिल लाने में देरी करती है या कमजोर विधेयक लाती है तो भ्रष्‍टाचार से निपटने के मामले में उसकी विश्‍वसनीयता खत्‍म हो जाएगी। यह जोखिम सरकार को कदम पीछे खींचने से रोकेगा।

साम्प्रदायिक हिंसा संबंधी विधेयक वापस न हुआ तो पूरे देश में जबर्दस्त आन्दोलन

विश्व हिन्दू परिषद ने चेतावनी दी है कि साम्प्रदायिक हिंसा संबंधी विधेयक वापस हुआ तो पूरे देश में जबर्दस्त आन्दोलन होगा।

विहिप अध्यक्ष अशोक सिंघल ने आज यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि प्रस्तावित विधेयक में यह मान लिया गया है कि हिन्दू साम्प्रदायिक है और अल्पसंख्यक पीडित। प्रस्तावित विधेयक पूरी तरह हिन्दू विरोधी है और सरकार इसे वापस नहीं लेगी तो पूरे देश में जनान्दोलन होगा।

उनका कहना था कि जिस तरह श्रीमती इन्दिरा गांधी ने हताश होकर आपातकाल लगाया था उसी तरह श्रीमती सोनिया गांधी हताश हैं और इस विधेयक के माध्यम से एक नये तरीके से अघोषित आपातकाल थोपना चाहती हैं।

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