कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधा मोहन सिंह ने 22 सितम्बर 2015 को दो दिवसीय रबी सम्मेलन- 2015 का शुभारम्भ किया। सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने जानकारी दी कि “रबी 2014-15 के लिए निर्धारित 130.75 मिलियन टन के लक्ष्य की तुलना में रबी 2015-16 के लिए 132.78 मिलियन टन का महत्वकांक्षी खाद्यान्न लक्ष्य निर्धारित किया गया है। श्री सिंह ने यह भी जानकारी दी कि दलहन के लिए एनएफएसएम के तहत 50 प्रतिशत निधियां निर्धारित कि गई है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने कहा कि मृदा स्वास्थ्य कार्ड के अन्तरगत सभी जोतों को कवर करने के प्रयास किए जा रहे हैं और वर्तमान वर्ष 2015-16 के लिए लक्ष्य को 83 लाख से बढ़ाकर 100 लाख नमूने कर दिया गया है।
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधा मोहन सिंह का संबोधन निम्नवत है:
“मुझे आज सुबह आप सबके समक्ष उपस्थित होकर प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। हम सब यहां देश के सफल रबी फसलन कार्यक्रम के लिए विचार-विमर्श करने के लिए एकत्र हुए हैं। मुझे पक्का विश्वास है कि रबी सम्मेलन 2015-16 आगामी रबी मौसम के लिए कार्यक्रम तैयार करने में सफल विचार-विमर्श, चिंतन व अनुभव बांटने के लिए मंच प्रदान करेगा। रबी 2014-15 के लिए निर्धारित 130.75 मिलियन टन के लक्ष्य की तुलना में रबी 2015-16 के लिए 132.78 मिलियन टन का महत्वकांक्षी खाद्यान्न लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
मुझे यह जानकर खुशी है कि कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों में लक्षित 4 प्रतिशत वार्षिक विकास प्राप्त करने के लिए वर्ष 2014-15 से कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की विभिन्न स्कीमों को विशिष्ट मिशनों, स्कीमों व कार्यक्रमों में पुन:संरचित किया गया है। 17.8.2015 को जारी चतुर्थ अग्रिम आकलन के अनुसार 2013-14 के दौरान 265.04 मिलियन टन उत्पादन की तुलना में 2014-15 के दौरान कुल खाद्यान्न उत्पादन 252.68 मिलियन टन था। उत्पादन में कमी असमान व असामयिक वर्षा व प्राकृतिक आपदाओं के कारण थी। 886.9 मिमी की सामान्य वर्षा की तुलना में वर्ष 2014-15 में देश में 777.5 मिमी वर्षा हुई जो 12 प्रतिशत कम थी। रबी 2014-15 में बाढ़ व ओलावृष्टि जैसी प्राकृतिक आपदा आई जिससे उत्पादन प्रभावित हुआ। मॉनसून की ऐसी अनियमितताओं के बावजूद हमारे मेहनती किसानों ने देश में पर्याप्त उत्पादन सुनिश्चित किया है।
जैसा कि आप सब जानते हैं, इस वर्ष भारत में सामान्य से कम वर्षा हुई (दक्षिण पश्चिम मॉनसून) जिससे राष्ट्रीय स्तर पर 21 सितम्बर यानी आज की स्थिति के अनुसार 14 प्रतिशत कम वर्षा हुई। देश के कुछ क्षेत्रों में इससे भी कम वर्षा हुई। उत्तर पश्चिमी भारत में 20 प्रतिशत व प्रायद्वीपीय भारत में 14 प्रतिशत कम वर्षा हुई। दूसरी तरफ असम व गुजरात में विनाशकारी बाढ़ आई। कुल मिलाकर देश में 317 जिलों (जिलों का 52 प्रतिशत) में कम वर्षा हुई। देश ने सूखे से उत्पन्न आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए अपने आपको तैयार कर लिया है। केंदीय शुष्कभूमि क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (सीआरआईडीए) ने देश में सूखा प्रभावित जिलों के लिए जिला-वार आकस्मिक योजना तैयार की। राष्ट्रीय कृषि विश्वविद्यालयों (एसएयू) के परामर्श से राज्य सरकारों ने आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए अपने क्षेत्र के लिए उपयुक्त योजनाओं में संशोधन किया। जून, 2015 में कुछ सीमा तक प्रारंभिक कमी पूरी की गई। इसके कारण सितम्बर, 2015 को खरीफ अनाज के तहत फसल कवरेज 54.94 मिलियन है जो 2014-15 के इसी सप्ताह के लिए सामान्य से अधिक है। मुझे खुशी है कि चावल, दलहन व तिलहन के तहत कुल कवरेज संतोषजनक रही है। दुर्भाग्य से ज्वार जैसे मोटे अनाज में सामान्य से कम क्षेत्रफल रिकार्ड किया गया। हालांकि देश के लिए खरीफ में समग्र फसल कवरेज संतोषजनक रही है।
हालांकि दलहन उत्पादन में भारत का पहला स्थान है, लेकिन उत्पादन व खपत में अभी भी अंतर है। इसलिए भारत सरकार क्षेत्र विस्तार व उत्पादकता वृद्धि के जरिए दालों के उत्पादन में वृद्धि करने के लिए देश में फसल विकास कार्यक्रम अर्थात्राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) व राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के माध्यम से रबी दलहन को बढ़ावा देने पर ध्यान दे रही है। दलहन की खेती को बढ़ावा देने के लिए पहाड़ी और पूर्वोत्तर राज्यों सहित 27 राज्यों के 622 जिलों में एनएफएसएम – दलहन का कार्यान्वयन किया जा रहा है। भारत के लिए दलहन के महत्व को ध्यान में रखते हुए हमने दलहन के लिए एनएफएसएम के तहत 50 प्रतिशत निधियां भी निर्धारित की है। इससे पोषाहारीय सुरक्षा में योगदान मिलेगा। रबी के दौरान अरहर, मटर व मसूर को बढ़ावा देने के लिए 2012-13 से रबी/ग्रीष्म के दौरान दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए अतिरिक्त क्षेत्रफल कवरेज कार्यक्रम का कार्यान्वयन किया जा रहा है। वर्तमान वर्ष के दौरान 440 करोड़ रुपये भारत सरकार का 220 करोड़ रुपये का अंशदान परिव्यय प्रस्तावित है। दलहन उत्पादन को बढ़ाने के लिए दूसरा कार्यक्रम जिसे अनुमोदित किया गया है, वह 27 दलहन उगाने वाले राज्यों में कृषि विज्ञान केंद्रों को शामिल करना है। 12 करोड़ रुपये के परिव्यय से इनमें नई बीज किस्मों और प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन किया जाएगा ताकि अधिक उत्पादन किया जा सके।
हाल के वर्षों में खाद्य तेलों की घरेलू खपत में काफी वृद्धि हुई है और वर्ष 2013-14 के दौरान इसका स्तर 21.06 मिलियन टन हो गया है। अभी भी वर्ष 2013-14 के दौरान हमने 56000 करोड़ रुपये से भी अधिक की लागत से 11 मिलियन टन वनस्पति तेल का आयात किया है ताकि वनस्पति तेल के उत्पादन और खपत के बीच के अंतर को समाप्त किया जा सके। अत: तिलहन उत्पादन एक बड़ी चुनौती है ताकि घरेलू मांग को पूरा किया जा सके और आयात बिल में कमी की जा सके।
खरीफ और रबी/ग्रीष्म मौसम के दौरान लगभग 27 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र में देश भर में तिलहन की खेती की जाती है। मूंगफली और सोयाबीन दो प्रमुख तिलहन फसलें हैं जिन्हें अधिक निवेश जोखिम के साथ वर्षा सिंचित स्थिति में बृह्त स्तर पर बोया जाता है। तोरिया और सरसों प्रमुख रबी फसलें हैं जिन्हें पछेती खरीफ वर्षा पर निर्भर करते हुए 6-7 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र में बोया जाता है। सरसों की फसल में निम्न बीज दर (4-5 किग्रा. प्रति हैक्टेयर) का अतिरिक्त लाभ है और गेहूं (बीज 80-100 किग्रा. प्रति हैक्टेयर) की तुलना में सिंचाई सहित अन्य आदान का लाभ है। अत: गेहूं के कुछ वर्षा सिंचित क्षेत्रों में पहले से ही सरसों की खेती की जा रही है। अत: गेहूं के मामले में सरप्लस उत्पादन है और खाद्य तेलों के मामले में बहुत अधिक कमी है। कम गेहूं उत्पादक क्षेत्रों में सरसों की खेती की शुरूआत से न केवल आयात पर हमारी निर्भरता कम होगी बल्कि किसानों को बेहतर लाभ भी मिलेगा।
तिलहन के आयात को कम करने के लिए आयात शुल्क को कच्चे खाद्य तेल पर 2.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 7.5 प्रतिशत कर दिया गया था और रिफाइन्ड तेल के मामले में यह शुल्क 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत कर दिया गया है। एनएमओओपी के तहत देश में बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए तिलहन के उत्पादन हेतु 200 करोड़ रुपये के परिव्यय से एक अतिरिक्त कार्यक्रम की शुरूआत की गई है। 8 करोड़ रुपये के परिव्यय से कृषि विज्ञान केंद्रों के तहत नई बीज प्रौद्योगिकी के प्रदर्शन के लिए दूसरे कार्यक्रम की शुरूआत की गई है। ऐसे राज्य, जहां चावल की परती भूमि वाले क्षेत्र उपलब्ध हैं, उनमें पूर्वी भारत में हरित क्रांति लाने के तहत प्रदर्शन की शुरूआत की गई। यह उपयोगी होगा यदि अन्य राज्य भी इस प्रकार के क्षेत्रों, जिनमें परती भूमि को तिलहन और दलहन की खेती के लिए उपयोग में लाया जा सके, को चिन्हित करें। इससे उपलब्ध नमी का लाभ लेने में मदद मिलेगी और देश की फसल गहनता में भी वृद्धि होगी।
विलम्ब से और कम वर्षा की स्थिति में किसानों को प्रतिपूर्ति के लिए तिलहन फसलों हेतु वर्धित बीज राजसहायता प्रदान की गई थी। यह एनएमओओपी के तहत सामान्य किस्मों के मामले में 1200 से बढ़कर 1800 रुपये प्रति क्विंटल और तिलहन की संकर किस्मों के लिए 2500 रुपये से बढ़कर 2750 रुपये हो गई। एनएफएसएम के तहत चावल, गेहूं, दलहन और मोटे अनाजों के लिए भी इसी प्रकार की वृद्धि की गई है ताकि विलम्बित और कम मॉनसून की स्थिति में फसलों की पुन:बुआई के लिए किसानों को प्रतिपूर्ति प्रदान की जा सके।
जैसा कि आप जानते हैं कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी देश के किसानों के कल्याण के लिए कार्य करने हेतु तत्पर और कृतसंकल्प हैं। 15 अगस्त, 2015 को उन्होंने घोषणा की है कि हमारा मंत्रालय किसान कल्याण पर ध्यान केंद्रित करेगा ताकि हम कृषि क्षेत्र के दीर्घावधिक विकास को बढ़ावा दे सकें। अब हमारे मंत्रालय का नाम कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय हो गया है। हमारे विभाग का नाम कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग हो गया है। एक संयुक्त सचिव स्तरीय अधिकारी की देखरेख में किसान कल्याण के लिए विभाग के भीतर एक प्रभाग तैयार किया गया है। अब से हम न केवल फसलों के उत्पदन और उत्पादकता को बढ़ाने के लिए काम करेंगे बल्कि किसानों की निवल आय को बढ़ाने पर भी ध्यान देंगे। रणनीति में निम्न लागत प्रौद्योगिकी को अपनाने के माध्यम से खेती की लागत को कम करना, समेकित राष्ट्रीय मंडी के माध्यम से उत्पाद का बेहतर मूल्य प्रदान करना, समग्र बीमा योजना के माध्यम से जोखिम कम करना और अन्य महत्वपूर्ण कल्याणकारी कार्यकलाप शुरू करना शामिल हैं। मैं अपने किसानों के जीवन को बेहतर बनाने में नवाचारी कार्यक्रम तैयार करने और शुरू करने में सभी राज्यों की सक्रिय भागीदारी की आशा करता हूं। इस संबंध में बेहतर परिणाम प्राप्त करने में केंद्र और राज्य दोनों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
सरकार किसानों के दीर्घावधिक हित के लिए कई कदम उठा रही है। मृदा स्वास्थ्य को बढ़ावा देना इस प्रकार के महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में से एक हैं। फरवरी, 2015 में माननीय प्रधानमंत्री द्वारा एक नई योजना – मृदा स्वास्थ्य कार्ड की शुरूआत की गई थी। देश में 14 करोड़ जोतों में मृदा परीक्षण आधारित उर्वरकों और आवश्यक मृदा पोषकतत्वों के प्रयोग को बढ़ावा देने का लक्ष्य है। 12 मापदंडों पर मृदा आधारित सेंपलिंग और परीक्षण में एकरूपता लाने पर जोर है। इन मृदा स्वास्थ्य कार्डों का प्रत्येक 3 वर्ष में नवीनीकरण किया जाएगा ताकि मृदा स्वास्थ्य स्थिति में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का लगातार मॉनिटरिंग किया जा सके। शुरूआत में योजना की अवधि 3 वर्ष की है। तथापि प्रथम चरण के दौरान 2 वर्षों के भीतर अर्थात वर्ष 2015-16 और 2016-17 में सभी जोतों को कवर करने के प्रयास किए जा रहे हैं। अत: वर्तमान वर्ष 2015-16 के लिए लक्ष्य को 83 लाख से बढ़ाकर 100 लाख नमूने कर दिया गया है। मृदा नमूना संकलन फील्ड स्तर पर सकारात्मक वातावरण सृजित करके अभियान मोड में किया जाएगा। मैं आपकी पूरी सहायता चाहता हूं। आप सभी यह जानते हैं कि वर्ष 2015 को ‘अंतर्राष्ट्रीय मृदा वर्ष’ के रूप में मनाया जा रहा है।
हम राज्य सरकार की सक्रिय भागीदारी से इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए कृतसंकल्प है और वे आईसीएआर संस्थानों, एसएयू और केवीके को भी शामिल कर सकते हैं। राज्य सरकार अपने स्टाफ और प्रयोगशालाओं का उपयोग कर सकते हैं तथा वे मृदा परीक्षण के प्रयोजन के लिए निजी एजेंसियों को भी ऑउटसोर्स कर सकते हैं। दिशा निर्देशों में कुछ नमूनों के संकलन हेतु स्थानीय व्यक्ति को भी काम पर लगाने की व्यवस्था की गई है। इस स्कीम से ऐसे उर्वरकों, जो लागत की बचत करने वाले हैं, के संतुलित उपयोग को अपनाने के लिए किसानों को भी लाभ मिलेगा तथा प्रति यूनिट फसल उपज में सुधार होगा।
नई मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं शीघ्र स्थापित करके तथा वर्तमान प्रयोगशाला जिनके पास सूक्ष्म पोषकतत्व पैरामीटरों को विश्लेषण करने की सुविधा नहीं है, को उन्नत बनाकर मृदा परीक्षण अवसंरचना को अद्यतन बनाया जाए तथा साथ ही आईसीएआर के सभी केंद्रों, एसएयू तथा केवीके की प्रयोगशाला सुविधाओं का भी उपयोग किया जाए। राज्य सरकार, आईसीएआर, एसएयू और केवीके के सेवा क्षेत्र तथा विभिन्न परीक्षण प्रयोगशाला के बीच विस्तृत मानचित्रण किया जाए ताकि मृदा नमूना संकलन तथा एसएचसी के वितरण के बीच में एक कड़ी हो। राज्य सरकारों सहित विभिन्न एजेंसियों के नियंत्रणाधीन सभी मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं को प्रतिदिन न्यूनतम 2 शिफ्ट में काम करने की सलाह दी जाए। स्थैतिक और गतिशील मृदा परीक्षण प्रयोगशाला को मजबूत बनाने के अलावा किए गए विस्तृत मानचित्रण के आधार पर जहां आवश्यक हो, अंतर को पाटने के लिए मिनी प्रयोगशालाओं का इस्तेमाल किया जाए। आईसीएआर ने ‘मृदा-परीक्षक’ नामक मिनी प्रयोगशाला विकसित की है।
मुझे इस बात की जानकारी है कि राज्यों द्वारा इस संबंध में की गई प्रगति संतोषजनक है और कुछ राज्यों ने 60 प्रतिशत से भी अधिक लक्ष्य की प्राप्ति की है। फिर भी, हम मार्च 2016 तक 100 लाख मृदा संकलन और परीक्षण प्राप्त करना चाहेंगे। आपको अधिक तेजी से स्कीम की योजना बनानी होगी तथा उसे कार्यान्वित करना होगा। हमारे पास शेष मृदा नमूनों के संकलन के लिए अक्तूबर और नवम्बर दो महीने का अल्प समय होगा। हम इसके लिए तत्पर हैं कि किसान शीघ्र ही मृदा स्वास्थ्य कार्ड प्राप्त करें तथा इससे लाभ उठाएं। मंत्रालय में मेरे अधिकारी इस कार्य को समय पर पूरा करना सुनिश्चित करने के लिए सभी संभावित सहायता प्रदान करेंगे।
हमारी सरकार ने देश में केवल नीम कोटिड यूरिया उत्पादित करने के लिए इस वर्ष एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया। यह पौधों को आसानी से पोषकतत्व उपलब्ध कराएगा। मैं आपको इसके उपयोग को बढ़ावा देने तथा अत्यधिक उपयोग तथा बरबादी से बचने की सलाह दूंगा।
अन्य उभरती चिंता विभिन्न प्रकार उर्वरकों के उपयोग, जिससे मृदा स्वास्थ्य बिगड़ रही है, में असंतुलन को लेकर है। जैव कृषि को बढ़ावा देने तथा जैव उत्पादों को सक्षम मंडियों का विकास करने के लिए मेरे मंत्रालय ने राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए) के तहत ‘परम्परागत कृषि विकास योजना’ के अधीन दिशा-निर्देश तैयार किए हैं। यह व्यापक जैव कृषि पद्धति को बढ़ावा देता है और यह मुख्यत: वर्षा सिंचित और पहाड़ी क्षेत्रों पर अपना ध्यान केंद्रित करेगा। राज्यों को उन क्षेत्रों में किसानों को प्रेरित करना चाहिए जो कम अकार्बनिक उर्वरकों का उपयोग करते हैं तथा उन्हें 50 एकड़ के समूह में संघटित करना चाहिए। यदि क्षेत्र कम्पैक्ट है तो जैव उत्पादों को अपनाना आसान होगा। किसानों को अपने आप को जैव किसान में परिवर्तित करने के लिए 3 वर्षों के दौरान प्रति एकड़ 20000 रुपये दिए जाएंगे। हमारा लक्ष्य देश में 5 लाख एकड़ तक प्रमाणित क्षेत्र बढ़ाने के लिए प्रत्येक 50 एकड़ के 10000 समूह का विकास करना है। हम प्रमाणीकरण की सहभागी प्रणाली अपना रहे हैं जिसमें किसान स्वयं जिम्मेवार होंगे। आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि पीजीएस – इंडिया सफल हो तथा बाजार में विश्वसनीयता प्राप्त करे।
सरकार ने वर्ष 2015-16 हेतु 300 करोड़ रुपये का आबंटन किया है। 6068 समूहों के विकास के लिए भारत सरकार के शेयर के 214.68 करोड़ रुपये से 22 राज्यों और एक संघशासित क्षेत्र की वार्षिक कार्य योजना का अनुमोदन किया गया है; इसमें से 163 करोड़ रुपये राज्यों को पहले ही निर्गत किए जा चुके हैं। जिन राज्यों में अब तक अपनी वार्षिक कार्य योजना नहीं भेजी है, वे शीघ्र ही प्रस्ताव प्रस्तुत करें और जिन राज्यों ने निधियां प्राप्त कर लीं हैं प्रस्तावित समूह के गठन हेतु कार्य शुरू करें।
अब हम जल के संबंध में विचार-विमर्श करना चाहते हैं क्योंकि यह फसल उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण साधन है। इस संबंध में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) शुरू की गई जिसके अंतर्गत 5 वर्षों (2015-16 से 2019-20) के लिए 50000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को पीएमकेएसवाई के कार्यान्वयन हेतु नोडल विभाग के रूप में अभिनामित किया गया है। वर्तमान वित्तीय वर्ष के लिए 5300 करोड़ रुपये का परिव्यय किया गया है जिसमें कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के लिए 1800 करोड़ रुपये शामिल हैं।
पीएमकेएसवाई सिंचाई आपूर्ति श्रृंखला के संपूर्ण समाधान के परिकल्पना करती है अर्थात जल संसाधन, वितरण नेटवर्क फार्म स्तर अनुप्रयोग और नई प्रौद्योगिकियों एवं सूचना पर विस्तार सेवाएं। स्कीम को ‘विकेन्द्रीकृत राज्य स्तर योजना एवं परियोजनात्मक निष्पादन’ अपनाते हुए क्षेत्र विकास पद्धति से कार्यान्वित किया जाएगा जिसमें राज्यों को उनकी स्वयं की सिंचाई विकास योजनाएं तैयार करने के लिए अनुमत्य किया जाएगा। यह स्कीम उप जिला/जिला/राज्य स्तर पर व्यापक सिंचाई योजना के माध्यम से खेत स्तर पर सिंचाई में निवेश की समाभिरूपता के लिए एक प्लेटफॉर्म के रूप में सेवा करेगी। कृपया याद रहे कि ये स्कीमें केवल स्रोत सृजन पर फोकस की गई पिछली सिंचाई स्कीमों से भिन्न हैं और पीएमकेएसवाई का उद्देश्य स्रोत सृजन और जल प्रयोग कौशल दोनों पर है। माननीय प्रधानमंत्री ने सलाह दी है कि नौजवान आईएएस एवं आईएफएस अधिकारियों को प्रशिक्षित किया जाए और जिला सिंचाई योजनाएं तैयार करने के लिए नियोजित किया जाए। मैं इस बारे में आपका सक्रिय समर्थन चाहूंगा।
बागवानी क्षेत्र में विभिन्न स्कीमों के कार्यान्वयन में संकेन्द्रित दृष्टिकोण के साथ भारत विश्व में फलों के विश्व में सबसे बड़े उत्पादक के रूप में उभरा है। इसी प्रकार भारत सब्जियों के लिए भी विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक के रूप में उभरा है। हमनें फूलों, मसालों इत्यादि के उत्पादन में भी पर्याप्त उपलब्धि हासिल की है। बागवानी क्षेत्र के विकास के लिए कार्यान्वित की गई सभी स्कीमों एवं मिशनों को अब एकीकृत बागवानी विकास मिशन (एमआईडीएच) के छाते के तहत लाया गया है। इस क्षेत्र को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी द्वारा भी आदान मिल रहे हैं। हमने 2014 में ‘सीएचएएमएएन’ (चमन) प्रारंभ किया है जो बागवानी फसल के उत्पादन एवं क्षेत्र मूल्यांकन के लिए नई दूर संवेदी सुविधा है। उपभोक्ताओं को उचित दरों पर फल एवं सब्जियां उपलब्ध कराने के लिए दिल्ली में किसान मंडी स्थापित की जा रही है। इस बीच में किसान उत्पादन संगठनों (एफपीओ) द्वारा फलों एवं सब्जियों का सीधा विक्रय भी प्रारंभ किया गया है। मेरा मंत्रालय अनाजों के साथ-साथ फलों, सब्जियों, दलहनों एवं तिलहनों को बढ़ावा देने का इच्छुक है जिससे कि न केवल खाद्य सुरक्षा से संतोष किया जाए बल्कि देश की पोषक तत्व सुरक्षा भी हासिल की जा सके।
सतत उत्पादन पर जोर देने के साथ-साथ, हमें उस लाभ को भी ध्यान में रखना आवश्यक है जो एक किसान को उसके उत्पाद से प्राप्त होता है। वर्तमान में भारतीय कृषि बाजार एपीएमसी द्वारा विभाजित है। ये बाजार किसानों के लाभ के लिए अकुशल हैं। हमारी सरकार एक एकीकृत राष्ट्रीय बाजार सृजन करने के लिए प्रतिबद्ध है, वह किसानों को बेहतर लाभ वसूली में मदद करेगा। इस बारे में सरकार ने पहले ही ‘राष्ट्रीय कृषि बाजार’ के कार्यान्वयन की पहल कर दी है जिसे जुलाई, 2015 में घोषित किया गया था। स्कीम के अनुसार, देश में चुनिंदा 585 थोक विक्रय विनियंत्रित बाजारों को जोड़ने के लिए एक सांझा ई-नीलामी प्लेटफार्म नियोजित किया जाएगा। सरकार संबंधित अवसंरचना/उपस्कर अधिप्राप्त करने के लिए प्रति मंडी 30 लाख रू. और राज्यों को नि:शुल्क साफ्टवेयर उपलब्ध कराएगी। सफलता प्रत्येक मंडी में मानकीकरण एवं ग्रेडिंग सुविधाएं स्थापित करने पर निर्भर करेगी। ऐसी सहायता के लिए अर्हता के लिए राज्यों को अपने एपीएमसी अधिनियम को संशोधित करना होगा जिससे कि एकल बिन्दु शुल्क प्राप्ति, एकल व्यापार लाइसेंस, राज्य के मध्य जिंसों का मुक्त संचलन और ई-नीलामी प्लेटफार्म पर व्यापार को समर्थ बनाया जा सके। हमारा साफ्टवेयर दिसंबर के मध्य तक प्रारंभ किया जाएगा और आप सभी प्लेटफार्म प्रयोग करने के लिए तब तक तैयार रहें। हमारा लक्ष्य मार्च, 2016 तक कम से कम थोक बाजारों को जोड़ने का है।
सूखा प्रभावित क्षेत्रों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हमारी सरकार ने 100 करोड़ रू. के आवंटन से फसलों की सिंचाई हेतु डीजल सब्सिडी स्कीम के कार्यान्वयन; बीजों की उपयुक्त किस्मों की पुन: बुवाई और/अथवा खरीद में किए गए अतिरिक्त व्यय हेतु किसानों को आंशिक रूप से क्षतिपूर्ति करने के लिए बीज सब्सिडी पर सीमा में वृद्धि; समेकित बागवानी विकास मिशन (एमआईडीएच) के तहत 150 करेाड़ रू. के अतिरिक्त आवंटन से बारहमासी बागवानी फसलों से संबंधित कार्यों के कार्यान्वयन; और 50 करोड़ के आवंटन से राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की उप स्कीम के रूप में अतिरक्त चारा विकास कार्यक्रम (एएफडीपी) के कार्यान्वयन की घोषणा की।
सूखे की लंबी अवधि के वर्षा पैटर्न में हाल ही में हुए परिवर्तन जिसके परिणामस्वरूप कुछ क्षेत्रों में भू-जल के अति दोहन के साथ-साथ सूखे की स्थिति में भू-जल स्तर में तेजी से कमी आई है, पर विचार करते हुए केन्द्रीय भू-जल बोर्ड ने लगभग 150 ऐसे प्रखंडों/तालुकाओं को अधिसूचित किया है जो सर्वाधिक संवेदनशील है। ये क्षेत्र नियमित रूप से कृषि संकट का सामना कर रहे हैं तथा किसान दबाव की स्थिति में है। स्थिति की गंभीरता को महसूस करते हुए भारत सरकार ने सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करने के लिए पहली बार प्रयास किया है जिनमें प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) के तहत जल संरक्षण हेतु तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग ने हाल में सूखे के प्रभाव को कम करने तथा भू-जल पुनर्भरण में सुधार करने की प्रक्रिया में पहल करने के लिए 20 राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों में भू-जल प्रखंडों को कवर करने के लिए वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान 410 करोड़ रू. की राशि का आवंटन किया है।
चूंकि रबी मौसम आ रहा है, इसलिए राज्य सरकारें फसलों की अपेक्षित किस्मों की गुणवत्ता बीजों की पर्याप्त मात्रा की खरीद की योजना शुरू कर सकते हैं, किसानों के लिए उर्वरकों की पर्याप्त मात्रा एकत्र कर सकते हैं तथा सुनिश्चित कर सकते हैं कि बुआई मौसम के दौरान आदानों की कोई कमी ना रहे। राज्य सरकारें नहर प्रणाली तथा विद्युत में सिंचाई जल की पर्याप्त मात्रा छोड़ने के लिए भी प्रयास कर सकते हैं, जहां समय पर बुआई तथा रबी फसलों के क्षेत्र कवरेज में टयूबवेल सिंचाई प्रचलन में है। ऋण संपर्क एक अन्य महत्वपूर्ण संपर्क है जिसे हमें सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। उपज क्षमता सुनिश्चित करने में समय पर बुआई बहुत महत्वपूर्ण है। समय समय पर किसानों के साथ उत्पादन प्रौद्योगिकी शेयर करने के लिए विस्तार कर्मियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। समय पर किसानों के लिए महत्वपूर्ण सूचना पहुंचाने के लिए हमें सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करना है। मेरे मंत्रालय ने इस उद्देश्य से सॉफ्टवेयर विकसित किया है। कृपया उचित परामर्श भेजने के लिए एसएमएस सुविधा तथा किसान कॉल केन्द्र का उपयोग करें। हमने इस वर्ष किसान चैनल की शुरूआत की है, जो कृषि क्षेत्र के लिए समर्पित है। राज्य सरकारों द्वारा प्रभावपूर्ण तरीके से इसका उपयोग किया जाना चाहिए।
अंत में, एक बार फिर मैं आप सबको तथा किसानों को कृषि क्षेत्र में प्राप्त महत्वपूर्ण उपलब्धियों के लिए बधाई देना चाहूंगा। हमारे किसान राष्ट्र की खाद्य सुरक्षा उपलब्धियों के लिए उत्तरदायी हैं। वे कई अन्य उत्पादों का भी उत्पादन कर रहे हैं जो कृषि-प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ावा देता है तथा ऑफ-फार्म नौकरियां भी पैदा करता है। मुझे विश्वास है कि हमारे सम्मिलित प्रयासों से, हम 12 वीं पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान परिकल्पित 25 मिलियन टन अतिरिक्त खाद्यान उत्पादन का लक्ष्य प्राप्त करने के योग्य होंगे। आज हमारे पास कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग, पशुपालन एवं डेयरी विकास विभाग, कृषि अनुसंधान एवं शिक्षण विभाग, उर्वरक विभाग के साथ नाबार्ड के प्रशासक एवं वैज्ञानिक हैं। हमारे पास आईसीएआर के वैज्ञानिक भी हैं। वे सभी आपकी सेवा में हैं। केन्द्र तथा राज्य सरकार दोनों को भारत के किसानों के हित में एक साथ कार्य करना होगा तथा मैं आप सभी से सम्मिलित तरीके से काम करने के लिए अपील करता हूं।
मैं इस आशा के साथ भाषण समाप्त करता हूं कि राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों तथा अन्य विशिष्ट सहभागियों के बीच इस 2 दिवसीय परस्पर वार्ता से नई कार्य नीतियों के निर्माण में सहायता प्राप्त होगी जिससे देश को रबी मौसम में सफलता प्राप्त करने तथा देश के आर्थिक विकास तथा किसानों के कल्याण के लिए योगदान के लिए सहायता मिलेगी।
मैं सम्मेलन के सफल होने की कामना करता हूं।