आयातित और निर्यात सामान से संबंधित विदेशी मुद्रा की विनिमय दरें घोषित

सीमा शुल्‍क अधिनियम 1962 (1962 का 52) की धारा 14 द्वारा प्रदत्‍त अधिकारों का प्रयोग करते हुए और वित्‍त मंत्रालय के राजस्‍व विभाग की अधिसूचना संख्‍या 47/2014-कस्‍टम्‍स (एन.टी.) दिनांक 19 जून, 2014 संख्‍या एस.ओ. 1565(ई) दिनांक 19 जून, 2014 की अधिसूचना का अधिक्रमण करते हुए केंद्रीय उत्‍पाद और सीमा शुल्‍क बोर्ड (सीबीईसी) ने तय किया है कि आयातित और निर्यात के सामान के लिए अनुसूची 1 और अनुसूची 2 के कॉलम (2) में दिखाई गई प्रत्‍येक विदेशी मुद्रा को भारतीय मुद्रा में परिवर्तित करने की दरें अथवा भारतीय मुद्रा को विदेशी मुद्राओं में परिवर्तित करने की विनिमय दर 4 जुलाई, 2014 से कथित धारा के उद्देश्‍य से कॉलम 3 में समतुल्‍य प्रविष्टि के सामने उल्लिखित दर के अनुसार हैं।

अनुसूची – 1 
क्र. सं.
विदेशी मुद्रा
विदेशी मुद्रा की एक इकाई को भारतीय रुपये में बदलने की विनिमय दर
(1)    
(2)
(3)


               (a)
                (b)


(आयातित सामान के लिए)
  (निर्यात सामान के लिए)
1.
ऑस्‍ट्रेलियाई डॉलर
56.65
55.10
2.
बहरीन दीनार
162.70
153.70
3.
कनेडियन डॉलर
56.55
55.10
4.
डेनिश क्रोन
11.10
10.75
5.
यूरो
82.35
80.40
6.
हांगकांग डॉलर
7.75
7.60
7.
कुवेती दीनार
217.65
205.40
8.
न्‍यूजीलैण्‍ड डॉलर
52.90
51.55
9.
नार्वे क्रोन
9.80
9.50
10.
पौंड स्‍टर्लिंग
103.40
101.10
11.
सिंगापुर डॉलर
48.30
47.20
12.
दक्षिण अफ्रीकी रेंड
5.70
5.40
13.
सऊदी अरब का रियाल
16.35
15.45
14.
स्विडन का क्रोन
9.00
8.75
15.
स्विस फ्रैंक
67.90
66.05
16.
यूएई दिरहम
16.70
15.80
17.
अमरीकी डॉलर
60.10
59.10
 अनुसूची – 2
                       क्र. सं.
विदेशी मुद्रा
विदेशी मुद्रा की 100 ईकाइयों को भारतीय रुपये में बदलने की विनिमय दर
(1)    
(2)
(3)


(a)
(b)


(आयातित सामान के लिए)
  (निर्यात सामान के लिए)
1.
जापानी येन
59.25
57.80
2.
कीनियाई शिलिंग
70.00
65.95

भारत की एकता के लिए ‘हिन्दूराष्ट्र’ आवश्यक है !

गत ६६ वर्षोंमें ‘सामाजिक एकता’ बढनेकी जगह उसमें दरारें कैसी उत्पन्न हो इस दृष्टीसेही शासनके स्तरपर अत्यधिक प्रयत्न हूएं हैं ! इससे भारतीय लोकतंत्रकी निरर्थकता स्पष्ट होती है । इसका विस्तृत वर्णन लेखद्वारा किया गया है । उसी प्रकार स्वास्थ्यकी दृष्टीसे भी भारत कैसा पिछडा है तथा इन समस्याओंका समाधान ‘हिन्दू राष्ट्र स्थापना’में ही है यह हम समझ लेंगे ।

१. जातिवाद – अंग्रेजोंद्वारा बोया गया तथा मतांध राजनीतिज्ञोंद्वारा खाद-पानी डालकर सींचा गया विषवृक्ष !

जबतक अंग्रेज भारतके शासक नहीं बने थे, तबतक हिन्दुओंकी जाति-जातिमें संघर्षका उल्लेख कहीं नहीं पाया जाता था । छत्रपति शिवाजी महाराजने तो हिन्दुओंकी सर्व जातिके लोगोंकी सहायतासे ‘हिंदवी स्वराज्य’की स्थापना की । पेशवाओंने भी सर्व जातियोंके सहयोगसे ही सीमापार (अटककेपार) झंडा फहराया ! अंग्रेजोंने ‘फूट डालो और राज्य करो’, यह नीति अपनाकर कुटिलतापूर्वक हिन्दुओंमें जातिभेदके विषैले बीज बोए ।

१ अ. स्वार्थके लिए ८ से १० जातियोंकी संख्या ३,५०० से अधिक बनानेवाले धूर्त राजनीतिज्ञ !

‘अस्पृश्य (Untouchable)’ डॉ. अंबेडकरजीका ग्रंथ है । उसमें उन्होंने कहा है, ‘धर्मशास्त्रमें केवल ८ से १० जातियोंका ही उल्लेख है ।’ अंग्रेजोंने ‘सनातन हिन्दू धर्म हीन एवं जंगली है’, यह दर्शाने हेतु षड्यंत्र रचे । वर्ष १९३५ में उनकेद्वारा की गई जनगणनामें अस्पृश्य जातियोंकी संख्या लगभग १५० है । स्वतंत्रताके पश्चात वह १,००० से भी अधिक हो गई । वर्ष १९९० में स्थापित ‘मंडल आयोग’ने उससे भी आगे बढकर पिछडी जातियोंकी संख्या २,००० से अधिकतक पहुंचा दी । वर्तमान २१ वीं शताब्दीके आरंभमें वह संख्या ३,५०० से अधिक है तथा दिन-प्रतिदिन वह बढती ही जा रही है । धूर्त राजनीतिज्ञ मतोंके लिए उन्हें मान्यता देकर हिन्दू समाजका विध्वंस कर रहे हैं ।’ - गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी

वर्तमानमें समाजमें जो जातिवाद फैला हुआ है, उसका कारण मुख्यतः राजनीति ही है ! भारतीय राजनीति तथा निश्चित कालावधिमें होनेवाले चुनाव जातिनिर्मूलन करनेकी अपेक्षा जातीय अस्मिताको बढावा दे रहे हैं ।

१ आ. ‘हमें पिछडा वर्ग घोषित करें’ इस मांग में विरोधाभास !

पिछडेपन से विकास की ओर जाना ही राष्ट्र की प्रगति है । ऐसा होते हुए भी स्वतंत्रता के ६-७ दशकों के उपरांत भी ‘हमें पिछडा वर्ग घोषित करें’ ऐसी मांग की जाती है, क्या यह लोकतंत्र तथा राष्ट्रकी प्रगतिके लिए विरोधाभास नहीं है ?

२. आरक्षण – गुणवत्ता को निराश करनेवाली नीति !

आरक्षण भारतीय संविधानमें प्रारंभमें केवल १० वर्षोंके लिए रखा गया था; परंतु आगे राजनेताओंने सत्ता-लालसामें उसे बढावा दिया । विद्यालय, महाविद्यालय, शासकीय कार्यालय, निगम-मंडल इत्यादिमें लगभग ५० प्रतिशततक; जबकि कुछ स्थानोंमें ५० प्रतिशतसे अधिक पद आरक्षित होते हैं । समाजके अनेक घटक आरक्षण पानेके लिए प्रयासरत रहते हैं । सर्व राजनीतिक दल उन्हें निरंतर प्रोत्साहित करते हैं । अब तो शासनने पदोन्नतिमें भी आरक्षण देनेका निर्णय लिया है । इससे आगेके चरणमें ‘निजी क्षेत्रोंमें भी आरक्षण’की मांग की जा रही है ।

२ अ. आरक्षण अर्थात अप्राकृतिक पद्धति !

        आरक्षण मूलतः अप्राकृतिक है तथा अप्राकृतिकताका परिणाम सदैव विपरीत ही होता है एवं वह अधिक कालतक नहीं रह सकती । इसलिए यह आरक्षणकी पद्धति स्थायीरूपसे समाप्त करना आवश्यक है । विकासशील देशके नागरिक होनेके कारण भारतीयोंके लिए विश्वमें कहीं भी कोई पद आरक्षित नहीं हैं, यह अवश्य ध्यान रखें ।

किसी अपंगद्वारा बैसाखी पेंâककर स्वयंके पैरोंपर चलनेका अर्थ है विकास; परंतु भारतमें ‘आरक्षण’रूपी बैसाखियां रखनेको ही विकास समझा जाता है !

२ आ. आरक्षणके दुष्परिणाम !

२ आ १. प्रतिभा पलायन (ब्रेन ड्रेन) : अर्थात अर्थार्जनके लिए देशके बुदि्धमान वर्गका विदेशमें बस जाना । यह अधिकांशतः आरक्षणके कारण होता है ।

२ आ २. योग्यता रखनेवालोंके साथ अन्याय : 

आरक्षणका अर्थ है आवश्यक योग्यता न रखनेवालोंको केवल पिछडापन, जाति, लिंग इत्यादि आरक्षणके मापदंडोंपर पद देना । इसीका अर्थ है अधिक योग्य व्यकि्तयोंके साथ अन्याय कर अल्प योग्यता रखनेवालोंके हाथमें कोई कार्यालय, संस्था अथवा राष्ट्र सौंपना ! ऐसी अन्यायकारी नीति क्या कभी राष्ट्रको प्रगतिपथपर ले जा सकती है ?

कभी-कभी ‘महिला आरक्षण’के कारण अशिक्षित अथवा सामाजिक क्षेत्रमें अनुभवहीन महिलाएं केवल नामके लिए निर्वाचित होती हैं । प्रत्यक्षमें उनके नामसे उनके पति राजनीति करते हैं । लालूप्रसाद यादवने अपनी पत्नी राबडीदेवीको बिहारके मुख्यमंत्रीपदपर बिठाकर स्वयं राज्यकार्यभार संभाला था ।

२ आ ३. भ्रष्टाचारमें वृदि्ध : 

‘जैसे-जैसे आरक्षण बढता है, उसी गतिसे भ्रष्टाचार फैलता है’, इस सिद्धांतके अनुसार स्वतंत्रताप्रापि्तके पश्चात शासकीय क्षेत्रमें आरक्षण संस्कृतिने पांव पसारे तथा शासकीय कार्यालय भ्रष्टाचारके गढ बन गए ।

राजनेताओंने गत ६-७ दशकोंके अनुभवसे आरक्षणके कारण हुई हानिकी ओर ध्यान नहीं दिया; इसलिए भारत सर्व क्षेत्रोंमें पिछड गया है !  

जयतु जयतु हिन्दुराष्ट्रम् ।


अब हथियार बंद नागा साधु भिड़ेंगे साईं भक्तों से

शिरडी के साईं बाबा की पूजा को लेकर जारी विवाद खतरनाक मोड़ ले सकता है। नागा साधुओं को सनातन धर्म (हिंदू धर्म) की रक्षा के लिए तैयार रहने को कहा गया है।

नागा साधुओं को हिंदू धर्म के खोए हुए गौरव को लौटाने के लिए कहा गया है। नागा साधुओं को समझाया जा रहा है कि साईं बाबा के अनुयायी सनातन धर्म को नुकसान पहुंचा सकते हैं। अखाड़ों के नेताओं ने सभी नागा साधुओं को प्रयाग और हरिद्वार में एकत्रित होने के लिए कहा है। इनका लक्ष्य होगा ऎसी रणनीति बनाना होगा जिससे इस विश्वास को खत्म किया जा सके कि साईं बाबा ईश्वर थे।

कुंभ में होने वाली शाही स्नान को छोड़कर नागा साधु साल भर तपस्या में लीन रहते हैं लेकिन अब उन्हें तपस्या छोड़कर हिंदू धर्म की रक्षा के लिए जंग के लिए तैयार रहने को कहा गया है। पूरे देश में दो लाख नागा साधु हैं। जानकारों के मुताबिक अगर नागा साधु सड़कों पर उतर आए तो कानून व्यवस्था को संभालना मुश्किल हो जाएगा।

अग्नि अखाड़ा के सचिव गोविंदानंद ब्रह्मचारी ने कहा कि यह धार्मिक आपातकाल की स्थिति है। आदि शंकराचार्य ने जो कार्य सौंपा था,उम्मीद है उसे नागा साधु पूरा करेंगे। हमने नागा साधुओं से प्रयाग और हरिद्वार में एकत्रित होने के लिए कहा है। निरंजानी अखाड़ा के सचिव आचार्य नरेन्द्र गिरी ने बताया कि हमारे कुछ सदस्यों ने मंदिरों से साईं की मूर्तियों को हटाना शुरू कर दिया है। साईं के अनुयायियों ने शंकराचार्य का जो अपमान किया है उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। हमारे हथियार बंद साधु इसका संज्ञान लेंगे।

हालांकि अखाड़ा परिषद के पूर्व प्रमुख महंत ज्ञानदास ने शंकराचार्य की आलोचना करते हुए कहा कि वह अजीब कारणों को लेकर अनावश्यक विवाद खड़ा कर रहे हैं। हम लोगों को किसी विशेष आध्यात्मिक गुरू की पूजा करने से नहीं रोक सकते। मेरा मानना है कि हिंदू धर्म बहुत शक्तिशाली है। यह सिर्फ भ्रम है कि कोई दूसरा सम्प्रदाय इसे नुकसान पहुंचा सकता है।

हिन्दूराष्ट्र समाचार की ओर से हम निवेदन करना चाहते हैं कि हिन्दू अपनी एकता को खंडित न होने दें, कुछ लोग प्रयास कर रहे हैं कि हिन्दू ही हिन्दू को नुक्सान पहुचाएं, हमें उनके प्रयास को असफल करना होगा.



इतिहास में पहली बार शंकराचार्य जी ने किया जगन्नाथ रथयात्रा का बहिष्कार

जगन्नाथपुरी के इतिहास में शंकराचार्य ने परंपरा का पालन नहीं करते हुए रविवार को पहली बार रथयात्रा का बहिष्कार किया और भगवान जगन्नाथ, उनके बडे भाई बलभद्र तथा बहिन सुभद्रा जी के दर्शन नहीं किए। 

पुरी मठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने शनिवार को पूरी में प्रेस कांफ्रेंस में रथयात्रा में शामिल नहीं होने तथा भगवान के दर्शन करने की घोषणा करते हुए कहा था कि मैं राज्य सरकार का आदेश नहीं मानूंगा और रथ यात्रा के दौरान भगवान के दर्शन करने के लिए नहीं जाऊंगा।

शंकराचार्य ने आरोप लगया कि मंदिर समिति तथा राज्य सरकार कुछ ऎसे लोगों के इशारे पर काम कर रही है जिनका मकसद हिंदू संस्थानों तथा पीठ का अपमान करना है और कुछ लोगोें को फायदा पहुंचाना है। उन्होंने कहा कि जगन्नाथ मंदिर समिति प्रशासन ने उन्हें एक पत्र भेजा है जिसमें उन्हें रथ यात्रा के दिन भगवान के दर्शन के लिए अकेले आने के लिए कहा गया। 

इस बीच भारतीय जनता पार्टी की ओडिशा इकाई की उपाध्यक्ष सुरमा पाढी ने राज्य सरकार द्वारा शंकराचार्य को निर्देश दिए जाने को शंकराचार्य एवं हिन्दु परंपरा का अपमान बताया। उन्होंने सरकार के इस कदम की निंदा करते हुए शंकराचार्य से क्षमा याचना की मांग की।

उन्होंने कहा कि इस तरह से मंदिर प्रशासन ने हिंदू परंपरा का उल्लंघन किया है और हिंदू धर्म के कार्यो में हस्तक्षेप किया गया है। उन्होंने कहा कि शंकराचार्य कोई व्यक्ति नहीं है बल्कि यह हिंदू पीठ है और यह शर्म की बात है कि हिंदू पीठ के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति प्रशासन के इशारे पर काम कर रहा है। 

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