मैं कोई नेता नहीं, कोई अभिनेता नहीं। मैं कोई कलाकार नहीं। ज्यादा कला नहीं जानता, फैशन नहीं जानता। कमरे में बैठ कर घरवालों के बीच गप्पें लड़ाने का, फिल्म देखने का, फिल्मों पर चटपटी बातें करने का कभी मौका नहीं मिला। मेरी एक ही पहचान है। दुश्मन की बन्दूक और इस देश के बीच जो दीवार खड़ी होती है, मैं उस दीवार की एक ईंट रहा हूँ। मैं एक फौजी हूँ।
नब्बे के दशक में कश्मीर में था। यही वक़्त था जब बर्फ से ढकी वादियाँ आग उगल रही थीं। हजारों मुजाहिदीन के जत्थे पाकिस्तान से तैयार होकर कश्मीर में आकर मिल रहे थे। मकसद था कश्मीर से कश्मीरी हिन्दू-सिखों और बाकी अल्पसंख्यक समुदाय का क़त्ल ए आम / नर संहार, उनका पलायन और अंत में कश्मीर को हिंदुस्तान से अलग करना। लश्कर ए तैय्यबा, हरकत उल मुजाहिदीन, हिज्ब उल मुजाहिदीन और ना जाने कितने आतंकवादी संगठन कश्मीर से लड़कों की भर्ती करते, उन्हें पाकिस्तान ट्रेनिंग के लिए भेजते और फिर वापस लाकर कश्मीर में खून बहाने के लिए खुला छोड़ देते।
और फिर अल्पसंख्यकों का क़त्ल ए आम, बलात्कार और पलायन शुरू हुआ। तीन से पांच लाख कश्मीरी हिन्दू सिख अपने अपने घर छोड़ कर कश्मीर वादी छोड़ने को मजबूर हुए। सैंकड़ों क़त्ल कर दिए गए। न जाने कितनी महिलाओं को क़त्ल करने से पहले नोच दिया गया, उनके सम्मान मिट्टी में मिलाये गए। दुधमुहे बच्चों से लेकर ३-४ साल तक के बच्चों के सर कुचले गए। पड़ोसी और दुश्मन में कोई फर्क नहीं बचा था, आम आदमी और आतंकवादी में फर्क करना मुश्किल था।
भारत- पाकिस्तान के क्रिकेट मैच होते थे। घाटी पाकिस्तान के झंडों से हरी हो जाती थी। कोई देशभक्त हिंदुस्तान के झंडे के साथ दिख नहीं सकता था। ये वक़्त था जब असली कश्मीरी कश्मीर से निकाले जा चुके थे और पाकिस्तानी मुजाहिदीन कश्मीर पर दावा ठोक रहे थे। और इस वक़्त भारत की सेना ने कश्मीर में लगी आग को अपने खून से बुझाया।
हकीकत में पूरी मानव जाति के इतिहास में भारत की सेना ने जितने मानव अधिकार उल्लंघन सहे उसके उदाहरण ज्यादा नहीं मिलेंगे। हमने अपने घर छोड़े। महीनों महीनों बन्दूक के साये में सोना, जागना, खाना, जीना और मरना। पत्थरों पर पत्थर बन कर कई दिन तक पड़े रहना ताकि सरहद पार से आने वाले आतंकवादियों को रोका जा सके।हममें से कुछ बम धमाकों में मारे जाते। लाश चिथड़े बनकर बिखर जाती और घर केवल खाली वर्दी भेजी जाती। मैंने अपना एक हाथ खोया। किसी ने आँखें किसी ने पैर और किसी ने सर। धमाके में मर जाना भी एक सुकून की बात थी। फौजी अगर मुजाहिदीन के हाथ लगते थे तो जिस्म के एक एक हिस्से को धीरे धीरे काट कर अलग किया जाता था। सब कुछ काट कर मरने के लिए छोड़ दिया जाता था।
कैप्टन सौरभ कालिया याद है? हिन्दुस्तान का फौजी था जो भारत माता के लिए टुकड़े टुकड़े कट कर मरा। जाहिर है किसी विशाल भारद्वाज या शाहिद कपूर जितना उसका नाम नहीं हो पाया। क्योंकि वो कोई फिल्म कलाकार नहीं था। उसके लिए कोई मोमबत्ती नहीं जली। कोई फिल्म नहीं बनी। उसे उसके पांच फौजी साथियों के साथ कश्मीर में पकड़ा गया। उन्हें सरहद पार ले जाया गया और फिर आतंकवादियों के मजहबी तौर तरीके से हलाल किया गया। उसके जिस्म को सिगरेट से दागा गया। कान के परदे गर्म सलाखों से फाड़े गए। आँखों को नोचकर बाहर निकालने से पहले सलाखों से फोड़ा गया। एक एक दांत और जिस्म की एक एक हड्डी को तोड़ा गया। सर फोड़ा, होंठ काटे, नाक काट कर फेंकी गयी, हाथ और पैर काट कर अलग किये गए। गुप्तांग काट कर अलग किया। बाकी के पांच हिन्दुस्तानी फौजियों के साथ भी यही हुआ। बाइस दिन तक यह सब करने के बाद आखिर में दया कर के इन्हें माथे में गोली मार दी गयी।
और इस तरह वो कातिल मुजाहिदीन गाज़ी कहलाये। कश्मीर की ‘आजादी’ के लिए लड़ने वाले इन हीरो गाजियों के लिए जन्नत की सबसे खूबसूरत हूरें इन्तजार करती हैं। गैर मजहबी बुतपरस्त को बेरहमी से क़त्ल करने पर जन्नत मिलेगी ऐसा मुजाहिदीन में मशहूर है। और अगर वो एक हिंदुस्तानी सिपाही है तो उससे बढ़कर क्या हो सकता है?
यह वो वक़्त था जब भारत की सेना ने इन गाज़ियों से कश्मीर, हिंदुस्तान और इंसानियत को बचाया। अपने हाथ, पैर, सर सब कुछ कटाकर बचाया। और यही वो वक़्त है जिस पर विशाल भारद्वाज, शाहिद कपूर और अलगाववादी जिहादी लेखक बशरत पीर ने अपनी फिल्म हैदर बनायी है।
कश्मीर की आज़ादी की जंग- सच्चाई या आतंकवादी बकवास?
कश्मीर की जमीनी हकीकत जानने वाला हर आदमी ये जानता है कि कश्मीर में कोई जंग आज़ादी की नहीं है। यह सिर्फ गैर मजहबी लोगों के खिलाफ नफरत, उनके क़त्ल ए आम और बलात्कार की लड़ाई है। क्योंकि पहला काम जो इस जंग के शुरू में किया गया वो था हजारों सालों से कश्मीर में बसने वाले, कश्मीर को बसाने वाले कश्मीरी हिन्दुओं को कश्मीर से बाहर निकालना। जिस को भी ‘कश्मीरियत’ की सच्चाई जाननी है वो दो दिन कश्मीर घाटी में बिता ले। गैर मजहबी लोगों से जिहादी नफरत का नाम इन्होंने कश्मीरियत रखा है। यह वही नफरत है जो अल क़ायदा और इस्लामिक स्टेट्स (ISIS) की गले काटने वाली वीडिओ में पायी जाती है।
कश्मीरी अलगाववादी और आतंकवादियों की जन्नत के रास्ते हिंदुस्तान की हार से गुजरते हैं। कभी जैश ए मोहम्मद के मौलाना मसूद अज़हर को सुनना। पता चलेगा ये कश्मीरियत और इसकी जंग क्या है। वह कहता है- जिहादी लश्कर हिंदुस्तान को फतह करेंगे ऐसा उसके पैगम्बर ने कहा है। जब तक हिंदुस्तान फतह नहीं होगा, जन्नत नहीं खुलेगी। मजहबी नफरत के इस जहर को कश्मीरियत बता कर कश्मीर की नस्लें बड़ी हुई हैं। मूर्ति पूजा (बुत परस्ती) करने वालों से लड़ो, उन्हें नेस्तो नाबूत करो, यही मजहब है, और मजहब ही कश्मीरियत है। जो इस मजहब में यकीन नहीं लाये, उसे क़त्ल करो। यह है कश्मीरियत जो जैश और लश्कर ने कश्मीरियों को पढ़ाई है।
भारत की सेना ने इस नफरत के जवाब में कभी आपा नहीं खोया। जान पर खेल कर कश्मीरियों की जान बचाई। पीठ पर औरतों, बच्चों, बूढ़ों और जवानों को लादकर बाढ़ से निकाला। फिर भी जवाब में अलगाववादियों की गोली खाई। पाकिस्तान ने सरहद पर गोलियां चलाईं, कश्मीर में ISIS के झंडे बुलंद हुए। जिस वक़्त फ़ौज को देश की सबसे ज्यादा जरुरत थी, उसी वक़्त इस देश ने उसकी पीठ में हैदर नाम का ख़ंजर घोंपा। इस फिल्म को ना सिर्फ प्रदर्शित किया, कुछ ने इसको कला का नमूना बताया। कुछ ने इसे कश्मीर की जमीनी हकीकत बताया। कुछ ने इसे मानवतावादी बताया। कुल मिलाकर फ़ौज पर पाकिस्तान, कश्मीरी आतंकवादी, ISIS और हिन्दुस्तान के अपने लोगों ने हमले किये। पर! मैं फौजी हूँ। जानता हूँ कि कोई फौजी हड़ताल नहीं करेगा। न ही कोई विरोध करेगा। वो नहीं पूछेगा कि वादी में ISIS के झंडे और मुल्क में हैदर का एक ही समय पर आना क्या महज इत्तेफ़ाक़ है? वो चुपचाप सब कुछ सुनेगा और अपनी छाती दुश्मन की गोली के आगे अड़ाए रखेगा।
मैं इन्तजार करता रहा कि कला के प्रदर्शन के नाम पर हुए इस भौंडे नंगे नाच हैदर को कोई रोकेगा, कोई सवाल करेगा। कोई तो होगा जो सौरभ कालिया के कटे हाथ, पैर, नाक, कान, गुप्तांग, फटे कान, नोच कर फोड़ी गयी आँख की आवाज बनेगा। कोई कश्मीर के असली पीड़ित हिन्दू-सिखों की आवाज बनेगा। जिहादी भेड़ियों के बीच रह कर इंसानियत को ज़िंदा रखने वाले फौजियों की आवाज बनेगा। पर मैं सोचता रहा। कोई नहीं आया।
मैं कला नहीं जानता। जिंदगी के मजे नहीं जानता। फैशन नहीं जानता। पर देश से प्यार क्या है, जानता हूँ। देश से गद्दारी क्या है, ये भी जानता हूँ। मुझे शब्दों से खेलना नहीं आता, पर मातृभूमि पर नजर डालने वाले की गर्दन तोड़ने की ट्रेनिंग है मेरी। शहीदों का अपमान करने वाले दुश्मन का हलक सुखाने की ताकत रखता हूँ। और अगर अंदर से भी देश पर हमले होंगे तो उनका जवाब भी लिख कर जरूर दूंगा।
हैदर- लघु विश्लेषण
मेरी नजर में हैदर देशद्रोह है। और देशद्रोह से पैसा कैसे कमाएँ, इसकी सीख है। अगर देशद्रोह में कोई कला प्रेमी कला देख सकता है तो असली खून से चित्र में लाली भरने वाले पागल चित्रकार, बच्चों से कुकर्म करने वाले, बलात्कार करने वाले सब कलाकार हैं क्योंकि वे सब कुछ हट के करते हैं।
हैदर- विस्तृत विश्लेषण
1. यह पहली भारत विरोधी फिल्म है जो खुद भारतीयों ने भारत में बनाई है। यह फिल्म फ़ौज को अपराधी घोषित करती है और मैं इसके बनाने वालों को जयचंद घोषित करता हूँ।
अपनी फिल्म लिखने के लिए ऐसे इंसान को चुनना फिल्म बनाने वाले को जानने के लिए काफी है।
3. हीरो हैदर का पिता एक डॉक्टर है जो आतंकवादियों के एक गुट का सदस्य है। वो एक आतंकवादी का इलाज अपने घर पर करता है। हैदर की माँ और चाचा इस बात की खबर फ़ौज को करते हैं। फ़ौज डॉक्टर को गिरफ्तार करती है और बाकी आतंकवादियों को मार देती है। हीरो हैदर इसका बदला लेने की कसम लेता है। पूरी फिल्म में हिंदुस्तान या फ़ौज का साथ देने वाले विलेन के तौर पर पेश किये गए हैं। वहीं फ़ौज के दुश्मन हीरो घोषित किये गए हैं।
4. फिल्म के हिसाब से भारतीय फ़ौज जालिमों की फ़ौज है जो मासूम कश्मीरियों के गुप्तांग काटती है। एक दृश्य में यह जानते हुए भी कि वो शख्स बेक़सूर है, फौजियों ने उसका गुप्तांग काट दिया। इस झूठ को तो कला के नाम पर दिखा दिया पर असल में पाकिस्तानी आतंकवादियों/सैनिकों के द्वारा हाथ, पैर और गुप्तांग कटवाने वाले सौरभ कालिया के लिए कुछ नहीं।
5. एक और दृश्य में फ़ौज अलगाववादियों को जय हिन्द बोलने को कहती है। हीरो हैदर का पिता साफ़ इंकार करता है और सजा भुगतता है। और इस बात की खबर वो हैदर तक पहुंचाता है और साथ ही इसका बदला लेने के लिए कहता है।बस इस तरह हीरो हैदर का सफर शुरू होता है। हर वो इंसान जो भारत के साथ है, वो हीरो हैदर का दुश्मन है। पूरी फिल्म के अंत तक यही चलता है।
फिल्म बनाने वाले कला प्रेमी ने यह नहीं बताया कि जिस वक़्त की बात उसने दिखाई है ये वो वक़्त था जब हजारों आतंकवादियों ने सरहद पार से कश्मीर पर चढ़ाई की थी, चुपचाप आकर आबादी में मिलकर, छुपकर फ़ौज और अल्पसंख्यकों पर हमले किये थे। उस वक़्त एक आम हिंदुस्तानी से एक आतंकवादी को अलग करने का तरीका यही था कि जो जय हिन्द से नफरत करता है वो हिंदुस्तानी नहीं है। जय हिन्द से नफरत बशरत पीर की तो समझी जा सकती है पर विशाल भारद्वाज और शाहिद कपूर क्यों? जिसे जय हिन्द से नफरत है वो हिन्दुस्तान में क्यों है? हम जय हिन्द के लिए ही जीते मरते हैं। यही हमारा मन्त्र, कलमा और नारा है। जय हिन्द से नफरत करने वाले को क्यों सजा नहीं मिलनी चाहिए?
6. अंत में मारकाट के बाद हीरो हैदर पाकिस्तान की तरफ रुख करता है।
7. एक दृश्य में हीरो हैदर श्रीनगर के लाल चौक पर भाषण करता है की किस तरह भारत ने कश्मीरियों को धोखा दिया और कश्मीर को दबोच लिया। फिर वो आजादी के नारे बुलंद करता है। शर्म की बात ये है कि भारत विरोधी यह दृश्य फिल्म की खूबसूरती के तौर पर पेश हुआ है।
8. दुःख की बात है कि कश्मीरी औरतों के चरित्र को इस फिल्म में गन्दा करके दिखाया है। शौहर को गिरफ्तार करवाकर हैदर की माँ अपने देवर के साथ सोने लगती है। और जब शौहर की मौत की खबर पक्की हो जाती है तो देवर से निकाह कर लेती है। इसके अलावा उसके अपने बेटे हैदर के प्रति भाव भी घिनौने हैं जो बहुत घटिया चुम्बन दृश्यों से प्रकट होते हैं।
9. एक और कश्मीरी औरत जो कि हीरो हैदर की दोस्त है, उसकी अपने मजहब से नफरत दिखाई गयी है। वो साफ़ तौर पर क़ुरान को छूने से मना कर देती है और फिर हीरो हैदर के साथ सोने जाती है जबकि उसके बाप और भाई मना करते रह जाते हैं। असल में फिल्म में यह लड़की भारत से प्यार और हैदर से प्यार के बीच फंसी हुई है जो हीरो हैदर के लिए मुश्किल पैदा करती है।
10. पूरी फिल्म में यही दो औरतें हैं। इससे पता चलता है कि हिन्दुस्तान से नफरत के साथ साथ बशरत पीर इस्लाम और कश्मीरी औरत दोनों से नफरत करता है। उसका मिशन असल में पाकिस्तान का मिशन है और यही वजह है की हीरो हैदर अपनी हिफाजत के लिए पाकिस्तान चला जाता है। जो भी मुसलमान हिंदुस्तान से जरा सी हमदर्दी रखता है, वो इस फिल्म में विलेन है।
11. फिल्म में दो चरित्र हैं जो सलमान खान की नक़ल करते हैं। वो हैदर के दोस्त हैं पर पुलिस का साथ देने की वजह से वो हैदर के दुश्मन हो जाते हैं और हैदर उन्हें क़त्ल करता है।
12. हैदर के दोस्त का पिता एक कमजोर पुलिस वाला है जो अंदर से हिंदुस्तान को गलत मानता है पर कश्मीरी आज़ादी के लड़ाकों के खिलाफ काम करता है। वही अंत में हैदर को मारने का हुक्म देता है।
13. एक बाजारू शब्द “Chutzpah” बार बार इस्तेमाल हुआ है। एक दृश्य में इसे AFSPA (Armed Forces Special Powers Act) के साथ मिलाया गया है और बताया गया है कि क्यों इन दोनों में ज्यादा फर्क नहीं है। शर्म की बात ये है कि जिस AFSPA की वजह से यह फिल्म शूट हो सकी है, उसी को इन्होने गाली दी है।
14. ‘बिस्मिल’ नाम के एक गाने में शैतान की मूर्ति अनंतनाग के मार्तण्ड मंदिर में दिखाई गईं और हीरो हैदर मंदिर के अंदर शैतानी नाच करता है। एक समुदाय के पवित्र स्थल सूर्य मंदिर को शैतान से मिलाना, फिर गाना ख़त्म होने पर अपने चाचा को मारने की कोशिश कला के नाम पर फूहड़पन और नफरत के अलावा कुछ भी नहीं । कुछ हिन्दू संगठनों ने इतने पुराने मंदिर के इस अपमान पर विरोध जताया है।
15. फिल्म में हीरो हैदर अनंतनाग को इस्लामाबाद कहता है। हिन्दू-सिखों के सफाये के बाद अब कश्मीर की जगहों के असली नामों पर भी इन कलाकारों को दिक्कत है। कश्मीर, अनंतनाग, श्रीनगर, कौसरनाग और सब हिन्दू नाम अलगाववादियों को तीर जैसे चुभते हैं, ये हमें पता है। पर फिल्म में कला के नाम पर इस अलगाववाद को बढ़ावा देना क्या गद्दारी नहीं?
16. इस फिल्म के बनाने वाले कश्मीर मुद्दे के बड़े मुरीद बने हुए हैं। जैसे कश्मीर का मुद्दा इनके जीने मरने का सवाल है। पर पता नहीं क्यों, हीरो हैदर की कहानी भारत के कश्मीर में शुरू होकर भारत के कश्मीर में ही ख़त्म हो जाती है जैसे कि कश्मीर केवल भारत के पास है! क्या पाकिस्तान वाला कश्मीर और चीन वाला कश्मीर कश्मीर नहीं है? अगर है तो वहाँ जमीन पर क्या हालात हैं? क्या विशाल भरद्वाज अपने कैमरे लेकर पाकिस्तान या चीन के कश्मीर में घुस सकते हैं और फिर वहां की फ़ौज के बारे में वो सब दिखा सकते हैं जो हिंदुस्तानी फ़ौज के बारे में दिखा दिया? यहीं से इस हैदर के बनाने वाले के घटिया इरादे जाहिर होते हैं। जिस भारतीय सेना ने इन साँपों को शूट करने की इजाज़त दी, इन्होने उसे ही डस लिया। जिन हाथों ने दूध पिलाया, इन साँपों ने उन्हें ही डसा। और जिन्होंने इन्हे घुसने भी नहीं देना उनके लिए एक शब्द भी इस फिल्म में नहीं कहा।
17. पूरी फिल्म में आतंकवादियों के इंसानियत के चेहरे दिखाए हैं, उन पर होने वाले फ़ौज के अत्याचार दिखाए हैं पर १९८९ में घाटी में ३-५ लाख हिन्दू सिखों का कत्ल ए आम, बलात्कार और पलायन एक बार भी नहीं दिखाया। उनके बारे में एक भी बार बात नहीं हुई। आतंकवादियों और अलगाववादियों के जिहादी जज्बात खुले आम बढाए गए हैं पर असली पीड़ित अल्पसंख्यक हिन्दू-सिख समुदाय की पीड़ा एक दृश्य में भी नहीं। क्या यही मिशन पाकिस्तान का भी नहीं?
हैदर के बनाने वालों को फ़ौज से दिक्कत है। क्योंकि फ़ौज ने कश्मीरियों से पूछताछ की, उन्हें दबाया और उन पर अत्याचार किये। बहुत अच्छा! अब ये भी बता देते कि फ़ौज क्या करती? लाखों अलगाववादी घाटी की सड़कों पर जब अल्पसंख्यकों के सर कुचल रहे थे, औरतों को नोच रहे थे, बच्चों को गोली मार रहे थे, आतंकवादियों को घरों में छुपा रहे थे, हिंदुस्तान को गाली दे रहे थे, तब फ़ौज क्या करती? कश्मीर पाकिस्तान के हवाले कर देती या अल्पसंख्यकों को इन जिहादी भेड़ियों के सामने अकेला छोड़ कर वापस आ जाती? जय हिन्द नहीं बोलने वालों की आरती उतारती? अलगाववादियों और आतंकियों के मानवाधिकार पर विधवा आलाप करने वालों! लाखों कश्मीरी हिन्दू-सिखों के अधिकारों और जीवन की रक्षा कौन करता? भारत माता के सम्मान की रक्षा कौन करता? तिरंगे की रक्षा कौन करता?
सीधे शब्दों में इस फिल्म का मकसद है हर उस शख्स के लिए नफरत पैदा करना
– जो देशभक्त मुसलमान है
– जो देशभक्त महिला है
– जो देशभक्त हिन्दू है
– जो देशभक्त फौजी है
– जो देशभक्त कश्मीरी है
निष्कर्ष
फिल्म पर रोक लगाने की मेरी मांग नहीं। रोक लगाकर किसी की आवाज बंद करने के जमाने अब जा चुके हैं। हाँ, इस फिल्म का इस्तेमाल देश को यह बताने में किया जा सकता है कि जब सैनिकों को मरने के लिए सीमा पर छोड़ दिया जाता है और कोई उनकी आवाज उठाने के लिए देश में नहीं होता तो फिर देशद्रोह का कैसा नंगा नाच घर घर में होता है। देशद्रोह को फूहड़पन, अवैध संबंधों और मजहब के मसाले में मिलाकर कैसे बेचा जा सकता है। कैसे आतंकवादियों के शुभ चिंतक फिल्म निर्माता सच्चे कश्मीरी, मुसलमान, हिन्दू और हिन्दुस्तान का मखौल उड़ा सकते हैं और फिर जमीनी हकीकत से बेखबर मासूम देशवासी कैसे इस घिनौने षड्यंत्र को कला मानकर ताली बजा सकते हैं। यह फिल्म यह भी स्पष्ट करती है कि बशरत पीर जैसे देशद्रोही और अलगाववादियों की पहुँच हिन्दी फिल्म उद्योग में कितनी गहरी है और उनके कौन कौन से दोस्त हमारे बीच हैं।
प्रिय भारत के लोगों! मैं नहीं जानता कि अल्पसंख्यकों और फौजियों के गले, हाथ, पैर और गुप्तांग काटने वालों के लिए विशाल भारद्वाज और शाहिद कपूर के मन में हमदर्दी क्यों है। पर मैं जानता हूँ कि जमीन पर ऐसे लोगों से कैसे बात की जाती है। जो भारत माता को गाली दे, झंडे फाड़े, फौजियों को क़त्ल करे, उनके लिए हमारी बंदूकें और छुरे तैयार रहने चाहियें। कातिलों को हिन्द की ताकत का एहसास रहना चाहिए। किसी फौजी के सर काटने से पहले उन्हें पता होना चाहिए कि जवाब में सर उनका भी जरूर कटेगा। अभी अभी पाकिस्तान की तरफ से हुई बमबारी का सुरक्षा बलों ने जो मुँहतोड़ जवाब दिया वैसा ही देश के अंदर बैठे आतंकवादियों को देना होगा।
रही बात कश्मीर की आजादी की, नेहरू के १९४८ के जनमत संग्रह के वादे की, ये सब अब कोई वजूद नहीं रखते। इस देश का बंटवारा अपने आप में एक भयानक गलती थी। माँ और मातृभूमि का बंटवारा नहीं होता, इतना भी जिसे नहीं पता उसके शब्दों की क्या कीमत है? इस देश की भौगोलिक सीमाएँ खुद प्रकृति ने बाँधी हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी और अटक से कटक तक यह एक ही है। यही वो धरती है जिस पर मानवता ने सबसे पहले सभ्यता का स्वाद चखा और जो सबसे पुराने समय से लेकर आज तक भी मानव सभ्यता का केंद्र बिंदु है। इस धरती का और कोई विभाजन हमें स्वीकार नहीं। जिसे इस धरती से, इसकी सभ्यता से और इसके लोगों से नफरत हो, वो इसे छोड़ कर जा सकता है। पर अब ये धरती कहीं नहीं जायेगी।
कश्मीर भारत का हिस्सा था, है और रहेगा। ‘आजादी की लड़ाई’ का ढकोसला कुछ भी नहीं बस हिन्दुस्तान पर ISIS और मजहबी आतंकवादियों के कब्जे की लड़ाई है। पूरी दुनिया में इनकी आजादी की लड़ाई दुनिया देख रही है। अब समय है कि सब मानव शक्तियां इन को अपने पैरों तले रौंद डालें। और इनके कला प्रेमी साथियों को इनकी औकात का अंदाजा कराएं।
अंत में यही कहूँगा कि हैदर नाम की खुराफात देखने के बजाय आप वो पैसे भारतीय सेना या प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा करा सकते हैं ताकि बाढ़ पीड़ितों की मदद हो सके। अग्निवीर बनो, इसे बढ़ाओ और देश की सेवा करो। जो सब कुछ छोड़ कर मरने के लिए सीमा पर चले जाते हैं, जो अपने अधिकार के लिए भी बोल नहीं सकते, उनकी आवाज बनो।जो धमाकों में चिथड़े बनकर हवा में मिल जाते हैं, जिनकी लाश भी नहीं मिलती, जिनके एक एक जिस्म के टुकड़े भारत माँ के लिए कट कर गिरे, उनके अधिकार के लिए लड़ो।
जो भी कुछ यहाँ लिखा गया है वो सब भारतीय सेना को समर्पित है जिसके कारण कश्मीर आज भी हिन्दुस्तान में है और सदा रहेगा।
जय हिन्द। वन्दे मातरम।
From : hindujagruti.org