मुस्लिम आक्रान्ताओं के नाम वाले साइन बोर्डो पर कालिख पोती

मुस्लिम शासकों और आक्रान्ताओं के नाम पर रखी गई सड़कों के नाम वाले रोड साइन पर हिंदू संगठन शिव सेना हिंदुस्‍तान ने कालिक पोत दी। इसके अलावा उस पर पोस्‍टर भी चिपका दिए गए। पोस्‍टर में लिखा था भारत में इस्‍लामीकरण मंजूर नहीं। सफर में मुश्‍िकलें आएं तो हिम्‍मत बढ़ती है। कोई अगर रास्‍ता रोके तो जरूरत और बढ़ती है। जय हिंद! जय भारत!

शिव सेना हिंदुस्‍तान के नाम से लगाए गए इन पोस्‍टरों में राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष के रूप में राजिंदर सिंह, राष्‍ट्रीय महासचिव चरण सिंह, राष्‍ट्रीय सचिव दिनेश कुमार, सचिव विनय सोनकर का नाम लिखा है। संगठन के अध्‍यक्ष राजिंदर सिंह ने बताया कि करीब 17 सदस्‍यों ने तीन टीमों में बंटकर इस अभियान को 13-14 मई की रात में 11 से एक बजे के बीच पूरा किया।

यह पूछे जाने पर कि ऐसे करने से उन्‍हें पुलिस कार्रवाई का डर नहीं लग रहा है। राजिंदर ने कहा कि उन्‍हें शिकायत दर्ज करने दें। यदि देश का कानून हमें दोषी पाता है, तो हम सजा भुगतने के लिए तैयार हैं। हमने कोई वास्‍तविक नुकसान नहीं किया है। यह प्रतीकात्‍मक नुकसान है।

पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार को हम इस बारे में कई बार पत्र लिख चुके हैं। हम इस देश जिसे हिंदुस्‍तान कहते हैं, वहां मुस्लिमों के नाम पर सड़कों का नाम रखने का विरोध दर्ज करा चुके हैं। सभी हिंदू अब नरेंद्र मोदी जैसी हमारे नेता की ओर देख रह हैं और उम्‍मीद है कि वह हमारी चिंता को लेकर कुछ समाधान जरूर करेंगे।

अमेरिका में हिन्दुओं की आबादी चौथे नंबर पर हुई

अमेरिका में एक अध्ययन से पता चला है कि हिंदुओं की आबादी चौथे नंबर पर है। इस अध्ययन के मुताबिक अमेरिका में हिंदुओं की आबादी तकरीबन 22 लाख है यह आबादी पिछले सात वर्ष में इस ताताद में दस लाख से भी अधिक बढ़ी है। आबादी के हिसाब से हिंदू वहां चौथे नंबर पर हैं। भारत में अन्य समूहों के मुकाबले बसे पढ़े-लिखे हिंदु की तादाद सबसे अधिक है। अमेरिकी में हिंदुओं की जनसंख्या वर्ष 2007 में कुल जनसंख्या का 0.4 फीसदी का आकडा था। जो कि वर्ष 2014 में बढक़र 0.7 फीसदी हो गया है।

इस तरह से वहीं मुस्लिम धर्म की आबादी अमेरिका की कुल जनसंख्या का 0.9 फीसदी, बौद्ध धर्म की 0.7 फीसदी है। यहूदियों के साथ हिंदू आबादी अमेरिका में सबसे पढी-लिखी है। जिनकी प्रति परिवार आय सभी धर्मों के समूहों से कई अधिक है। मंगलवार को अध्ययन की एक विज्ञप्ति में यह बताया गया कि इसके अनुसार, अमेरिका में तमाम वयस्को में 27 फीसदी कॉलेज ग्रेजुएट हैं। इसके मुकाबले हिंदुओं में यह 77 फीसदी और यहूदियों में 59 फीसदी है। देश में 36 फीसदी हिंदू परिवारों की सालाना आय एक लाख अमेरिकी डॉलर से ज्यादा है, जबकि देश की कुल आबादी में इतनी आय अर्जित करने वाले 19 फीसदी हैं।

साध्वी को जेल, सलमान को बेल, यह न्याय नहीं - तोगड़िया

भारतीय न्याय व्यवस्था पर निशाना साधते विश्व हिंदू परिषद् के नेता प्रवीण तोगडिया ने 2002 हिट एंड रन मामले में सलमान खान को बॉम्बे हाईकोर्ट से जमानत मिलने पर सवाल उठाए हैं. शिमला में रविवार को हिंदू संगम कार्यक्रम के दौरान यह बयान दिया. साथ ही 2008 मालेगांव बम धमाके के मामले में जेल में बंद साध्वी प्रज्ञा का समर्थन किया.

उन्होंने कहाकि, हिंदू समाज सलमान खान को जमानत दिए जाने पर सवाल उठा रहा है. हिंदू साध्वी को जेल और सलमान खान को बेल, यह न्याय नहीं है. भारत पर हिंदुओं का शासन होना चाहिए जिससे कि भारत को हिंदूराष्ट्र बनाने में मदद मिलेगी.

तोगडिया ने घर वापसी जैसे कार्यक्रमों का भी समर्थन किया और कहाकि लोगों के विरोध के बावजूद यह कार्यक्रम चलता रहेगा. गौरतलब है कि इससे पहले साध्वी प्राची ने भी सलमान खान को बेल दिए जाने पर सवाल उठाए थे.

लव जेहाद हिंदू लड़कियों को मुसलमान बनाने का षड्यंत्र -मुनि तरुण सागर जी

जैन मुनि तरुण सागर जी ने कहा है कि लव जेहाद हिंदू लड़कियों को मुसलमान बनाने का षड्यंत्र है। सरकार इसे पहचाने, नहीं तो एक और पाकिस्तान बन जाएगा। बेटियों को भागकर नहीं, जागकर शादी करनी होगी। यहां पैर के नीचे जब आप चींटी नहीं आने देती हो, तो विधर्मी के घर पकता मांस कैसे देख पाओगी। शादी की खुशी में अपने मां-बाप को शामिल करो। 

मेरठ में इन दिनों जैन मुनि तरुण सागर के कड़वे प्रवचन कार्यक्रम आयोजित किया गया है। उन्होंने ये बातें उसी कार्यक्रम में कही। 

तरुण सागर ने कहा अंडे को शाकाहार बताना षड्यंत्र है। क्योंकि जब अड्डा फेंका जाने लगा तो उसे शाकाहार कहने लगे। जैन मुनि ने उपस्थित श्रद्घालुओं को परिवार और समाज सुधार के कई महत्वपूर्ण सूत्र दिए।

उन्होंने कहा कि चादर छोटी है तो पैर सिकोड़ना सीखो। आज आपके पुण्य की चादर छोटी है पर इच्छाओं के पैर बड़े हैं। मन को वश में रखने की जरूरत है। घर में कई रूम होते हैं, लेकिन कंट्रोल रूम अवश्य होना चाहिए। अगर आपके घर का सदस्य कोई कंट्रोल के बाहर हो जाए तो उसे कंट्रोल रूम में भेज दो। 

जैन मुनि ने उदाहरण देकर समझाया कि पुलिस की भाषा है कि स्थिति तनावपूर्ण है, लेकिन कंट्रोल में है। यही हालत परिवार के साथ होती है। स्थिति अगर नियंत्रण के बाहर हो जाए तो कंट्रोल रूम उस समस्या का हल करता है। 

जैन मुनि ने कहा विडंबना है कि घर में दहलीज समाप्त हो गई है। जूते रसोई तक पहुंच गए हैं। 

किचन और रसोई में अंतर बताते हुए उन्होंने कहा कि जहां रस बरसे वह रसोई है और जहां किच किच होती है वह किचन है। भगवान महावीर स्वामी का संदेश देते हुए कहा कि दिन का बना रात में न खाना और रात का बना भी रात में न खाना। सिर्फ दिन का बना दिन में खाना। पेट का एक हिस्सा अगर खाली रखा तो दवा की आवश्यकता नहीं होगी, जो दबाकर खाता है वह ही दवाखाने जाता है।

जैन मुनि कहा अगर दया रखते तो अपना पेट भरने के लिए किसी की गर्दन पर छुरी नहीं चला सकते। शराब छोड़ोगे तो यह लोक सुधर जाएगा और मांसाहार त्यागोगे तो परलोक भी सुधर जाएगा। नदी नाले में डूबकर मरने के बजाए आज लोग शराब के प्याले में डूबकर मर रहे हैं। अंडा घर से बाहर फेंको या आंगन से तुलसी को हटा लो। कार्यक्रम के अंत में तरुण सागर जी लिखित और 14 भाषाओं में अनुवादित पुस्तक तरुण सागर का विमोचन हुआ। 

जैन मुनि ने कहा चेहरे की शोभा पाउडर से नहीं मधुर मुस्कान से है। होठों की शोभा लिपिस्टिक से नहीं, मीठी जुबान से है। माताओं और बहनों चाय में चीनी डालना भूल जाओ तो कोई बात नहीं, लेकिन जुबान में मिठास डालना मत भूलना। कड़वा मत बोलो, इस काम के लिए तो मैं ही बहुत हैं। उन्होंने कहा कि बिन मांगे किसी को भी सलाह न दो। 

जैन मुनि ने कहा देश को आज एक और क्रांति की जरूरत है। सत्य और अहिंसा की क्रांति से ही देश का उत्थान संभव है।

दांतेवाड़ा में जब लिया बच्चों ने प्रधानमंत्री मोदी का इंटरव्यू - पूरा जरुर पढ़िए

प्रश्न- आप को काम करने की प्रेरणा कहाँ से मिलती है? 

प्रधानमंत्री जी: बहुत बार खुद की घटनाओं से ज्‍यादा और की घटनाओं से प्रेरणा मिलती है। लेकिन उसके लिए हमें उस प्रकार का स्‍वभाव बनाना पड़ता है। कठिन से कठिन चीज में किस प्रकार से जीवन को जीया जा सकता है। आप लोगों में से पढ़ने का शौक किस-किस को है? वो मास्‍टर जी कह रहे हैं, वो किताबें नहीं उसके सिवाय किताबें पढ़ने का शौक.. ऐसे कितने हैं.. हैं ! आप लोग कभी एक किताब जरूर पढि़ए Pollyanna…..Pollyanna कर के एक किताब है। मैंने बचपन में पढ़ी थी वो किताब। हर करीब-करीब सभी भाषाओं में उसका भाषांतर हुआ है। 70-80 पन्‍नों की वो किताब है, और उस किताब में एक बच्‍ची का पात्र है, और उसके मन में विचार आता है, कि हर चीज में से अच्‍छी बात कैसे निकाली जा सकती है। 

तो उसने घटना लिखी है, उसके घर के बगीचे में जो माली काम कर रहे थे, वो बूढ़े हो गये और शरीर ऐसा टेढ़ा हो गया, तो एक बार बच्‍ची ने जाके पूछा कि दादा कैसे हो? तो उन्‍होंने कहा कि नहीं-नहीं अब तो बूढ़ा हो गया, देखिए मैं बड़ा ऐसे ऊपर खड़ा भी नहीं हो सकता हूं, मेरी कमर ऐसी टेढ़ी हो गई है, बस मौत का इंतजार कर रहा हूं। तो बच्‍ची ने कहा नहीं-नहीं दादा ऐसा मत करो। देखिए भगवान आप पर कितना मेहरबान है। पहले आप खड़े होते थे और बगीचे में काम करने के लिए आपको ऐसे मुड़ना पड़ता था। अब भगवान ने ऐसी व्‍यवस्‍था कर दी आपको बार-बार मुड़ना नहीं पड़ता है और अब बगीचे के काम आप आसानी से कर सकते हैं। यानी एक घटना एक के लिए दुख का कारण भी दूसरे के लिए वो प्रेरणा का कारण थी और इसलिए मैं मानता हूं कि घटना कोई भी हो हमारा उसके तरफ देखने का दृष्टिकोण कैसा है, उसके आधार पर जीवन की प्रेरणा बनती है। तो मैं आप सबको कहूंगा और यहां की व्‍यवस्‍था को कहूंगा लाइब्रेरी में पांच-छह किताबें Pollyanna की रखें और बारी-बारी से सब बच्‍चे पढ़ लें। कभी एसेंबलिंग में मीटिंग हो तो उसमें भी पर कोई न कोई प्रसंग बताएं। ठीक है! 

प्रश्‍न – आप कितने घंटे काम करते हैं, तनाव का सामना कैसे करते हैं? 

प्रधानमंत्री जी: मैं कितने घंटे काम करता हूं, इसका हिसाब-किताब तो मैंने किया नहीं है, और इसका आनंद इसलिए आता है कि मैं गिनता ही नहीं हूं कि मैंने कितने घंटे काम किया जब हम गिनना शुरू कर देते हैं कि मैंने इतने घंटे काम किया, ये काम किया, वो काम किया, तो फिर लगता है यार बहुत हो गया। दूसरा आप लोगों ने देखा होगा अपने अनुभव में जब मास्‍टर जी ने आपको कोई Home work दिया हो और उस Home work जब मास्‍टर जी लिखवाते हैं तो ओ ओ! ये तो Saturday-Sunday खराब हो जाएगा! सब टीचर ने इतना लिखवा कर दिया है। लेकिन जब कमरे में जा करके लिखना शुरू कर देते हैं और Home work पूरा कर देते हैं तो आपने देखा होगा जैसे ही Home work पूरा हो जाता होगा, आपकी थकान उतर जाती है। आपने देखा है कि नहीं ऐसा, काम पूरा होते ही थकान उतर जाती है या नहीं उतर जाती है। जब तक काम बाकी है तब तक थकान लगती है कि नहीं लगती है। तो ये बात पक्‍की है कि काम की थकान कभी नहीं होती, काम न करने की थकान होती है, एक बार कर देते हैं, तो काम का आनंद होता है। संतोष होता है, और इसलिए जितना ज्‍यादा काम करते हैं, उतना ज्‍यादा आनंद मिलता है। जितना ज्‍यादा काम करते हैं ज्‍यादा संतुष्‍ट होता है। 

दूसरा, एक पुरानी कथा है बहुत बढि़या कथा है, कोई एक स्‍वामी जी, पहाड़ पर किनारे बैठे थे और एक आठ साल की बच्‍ची अपने तीन साल के भाई को उठा करके पहाड़ चढ़ने जा रही थी, तो स्‍वामी जी ने पूछा अरे बेटी तुम्‍हें थकान नहीं लगती क्‍या ? तो उसने जवाब में नहीं ये तो मेरा भाई है, तो स्‍वामी जी ने बोला मैं ये नहीं पूछ रहा हूं कि तुम्‍हारे साथ कौन है, मैं ये पूछ रहा हूं कि तुम्‍हें थकान नहीं लगती इतना बड़ा पहाड़ चढ़ना है, तुम अपने छोटे भाई को ले करके चढ़ रही हो, तुम्‍हें थकान नहीं लगती। नहीं नहीं पंडत जी मेरा भाई है। तो स्‍वामी जी ने फिर से पूछा। अरे मैं तुम्‍हें नहीं पूछ रहा हूं कि कौन है, मैं तुमसे पूछ रहा हूं कि तुझे थकान नहीं लग रही है, तो उसे अरे नहीं स्‍वामी जी मैं आपको बता रही हूं न की मेरा भाई है। कहने का तात्‍पर्य ये था कि जो अपनो के लिए जीते हैं, तो थकान कभी नहीं लगती। समझे! मुझे सवा सौ करोड़ देशवासी मेरे अपने लगते हैं। मेरे, मैं उन परिवार का सदस्‍य हूं सवा सौ करोड़ का देशवासियों का मेरा परिवार है। उनके लिए कुछ करने का आनंद आएगा या नहीं आएगा और मेहनत करने का मन करेगा या नहीं करेगा। अपनों के लिए जीने का मन करेगा या नहीं करेगा। फिर थकान लगेगी! बस यही है इसका कारण। 

प्रश्‍न – जीवन की सबसे बड़ी सफलता किसे मानते हैं, श्रेय किसे देते हैं? 

प्रधानमंत्री जी: जीवन को सफलता और विफलता के तराजू से नहीं तौलना चाहिए, जिस दिन हम सफलता-विफलता, सफलता-विफलता इसी के हिसाब लगाते रहते हैं, तो फिर निराशा आ जाती है। हमारी कोशिश ये रहनी चाहिए कि एक ध्‍येय ले करके चलना चाहिए। कभी रूकावट आए, कभी कठिनाइयां आए, कभी दो कदम पीछे जाना पड़े, लेकिन अगर उस ध्‍येय को सामने रखते हैं तो फिर ये सारी बातें बेकार हो जाती हैं। तो एक तो सफलता और विफलता को जीवन के लक्ष्‍य को पाने के तराजू के रूप में कभी देखना नहीं चाहिए, लेकिन विफलता से बहुत कुछ सीखना चाहिए। ज्‍यादातर लोग सफल इसलिए नहीं होते है वो विफलता से कुछ सीखते नहीं है। हम विफलताओं से जितना ज्‍यादा सीख सकते हैं, शायद सफलता उतना हमें शिक्षा नहीं देती। मेरा जीवन ऐसा है जिसको हर कदम विफलताओं का ही सामना करना पड़ा और मैं सफलताओं का हिसाब लगाता नहीं हूं, न सफल होने के मकसद से काम करता हूं। एक लक्ष्‍य की प्राप्ति करनी है अपनी भारत मां की सेवा करना। सवा सौ करोड़ देशवासियों की सेवा करना। विफलता-सफलता आती रहती है। लेकिन कोशिश करता हूं, विफलता से ज्‍यादा से ज्‍यादा सीखने का प्रयास करता हूं। 

प्रश्‍न - आप राजनीति में नहीं होते तो क्‍या होते? 

प्रधानमंत्री जी: देखिए जीवन का सबसे बड़ा आनंद ये होता है, बालक रहने का.. बालक बने रहने का कितना आनंद होता है और जब बड़े हो जाते हैं तब पता चलता है कि बालकपन छूटने का कितना नुकसान होता है तो अगर ईश्‍वर मुझे पूछता कि क्‍या चाहते हो तो मैं कहता जिन्‍दगी भर बालक बना रहूं।

प्रश्‍न – कठिनाइयों का सामना करते हुए सफलता का राज। 

प्रधानमंत्री जी: मैं समझता हूं अभी मुझे ये सवाल पूछा ही गया है, करीब-करीब वैसा ही सवाल है। जीवन में किसी को भी अगर कोई भी क्षेत्र हो अगर सफल होना है तो हमें पता होना चाहिए कि मुझे कहा जाना है, हमें पता होना चाहिए कि किस रास्‍ते जाना तय है, हमें पता होना चाहिए, हमें पता होना चाहिए कैसे जाना है, हमें पता होना चाहिए कब तक जाना है। अगर इन बातों में हमारी सोच एकदम स्‍पष्‍ट होगी तो फिर विफलताएं आएंगी तो भी, रूकावटें आएंगी तो भी आपका लक्ष्‍य कभी ओझल नहीं होगा। ज्‍यादातर लोगों को क्‍या होता है अगर आज कोई अच्‍छी movie देख करके आ गए तो आप पूछोगे कि आप क्‍या चाहते हो तो शाम को कह देगा, मैं actor बनना चाहता हूं। 

आज कहीं world cup देख करके आया किसी ने पूछ लिया कि क्‍या चाहते हो तो बोले मुझे cricketer बनना है। युद्ध चल रहा है सेना के जवान शहीद हो रहे है, तो खबरें आ रही है तो मन करता है नहीं-नहीं अब तो बस सेना में जाना है और देश के लिए मर-मिटना है। ये जो रोज नए-नए विचार करते हैं उनके जीवन में कभी भी सफलता नहीं आती और इसलिए हमारी मन की जो इच्‍छा है वो seal होनी चाहिए। आज एक इच्‍छा कल दूसरी इच्‍छा परसों तीसरी इच्‍छा, तो फिर लोग कहते हैं- ये तो बड़ा तरंगिया! ये कल तो ये सोचता था-ये सोचता था, ये तो बेकार है.. तो इच्‍छा seal होनी चाहिए और जब इच्‍छा seal हो जाती है, तो अपने आप में संकल्‍प बन जाती है और एक बार संकल्‍प बन गया फिर पीछे मुड़ करके देखना नहीं चाहिए। बाधाएं हो कठिनाईयां हो, तकलीफें हो हमें लगे रहना है। सफलता आपके कदम चूमती हुई चली आएंगी। 

अच्‍छा आप में से.. यहां रहते हो, इतना बड़ा परिसर है, आपमें से कभी किसी को बहुत अच्‍छे खिलाड़ी बनने की इच्‍छा होती है? Sports man! है किसी को.. हरेक को पढ़-लिख करके बाबू बनना है। अभी मैं पूछूंगा पुलिस अफसर किस को बनना है, तो सब हाथ ऊपर करेंगे, डॉक्‍टर किसने बनना है, सब हाथ ऊपर करेंगे, ऐसा ही होता है न! अच्‍छा आपके मन में.. कुछ बनने के लिए कर रहे हो काम क्‍या? क्‍या बनने के लिए कर रहे हो? जो डॉक्‍टर बनने के लिए कर रहे हैं, वो जरा खड़े हो जाएं, जो डॉक्‍टर बनने के लिए मेहनत कर रहे हैं.. बैठिए। जो कलेक्‍टर बनने के लिए काम कर रहे हैं वो कौन-कौन हैं? .. अच्‍छा। जो लोग आईआईटी में जाना चाहते हैं, उसके लिए कर रहे हैं वो कौन-कौन हैं? एक बात बताऊं? अगर सपने देखने हैं तो बनने के सपने कम देखो करने के सपने ज्‍यादा देखो और एक बार करने के सपने देखोगे तो आपको उसे करने का आनंद और आएगा। 

लेकिन मैं चाहूंगा.. इतना बढि़या परिसर है, अभी से तय करना चाहिए कि तीन खेल में, तीन खेल के अंदर... तो ये हमारी धरती, ये हमारी आदिवासियों की भूमि.. हम दुनिया में नाम कमा करके ले आएंगे और आप देखिए ला सकते हैं। आपने एक साल पहले देखा होगा, पड़ोस में, झारखंड में अपनी बालिकाएं.. कोई साधन नहीं था उनके पास लेकिन अंतर्राष्‍ट्रीय जगत में गए। बेचारों के पास वो कपड़े भी नहीं थे, कुछ नहीं था, विमान क्‍या होता है ये मालूम भी नहीं था लेकिन दुनिया में नाम कमा करके आ गए, खेल के अंदर। .. झारखंड की आदिवासी बालिकाएं थी। हमारे मन में इरादा रहना चाहिए कि सिर्फ खेलने के लिए नहीं, एक अच्‍छा खिलाड़ी बनने के लिए मैं एक माहौल बनाऊंगा। मैं खुद एक अच्‍छा खिलाड़ी बनूंगा। .. और जहां ये परिसर होता है वहां अच्‍छे खिलाड़ी तैयार करने की संभावना होती है, talent search करने की संभावना होती है और मैं चाहूंगा कि इस बढि़या परिसर में.. ।

दूसरा, आपमें से कितने लोग हैं जो बिल्‍कुल सप्‍ताह में एक दिन भी खेलने की बात आए तो कमरे के बाहर नहीं निकलते, शर्मा जाते हैं, घबरा जाते हैं, कितने हैं? .. हां बताएंगे नहीं आप लोग। देखिए जीवन में खेल-कूद होना चाहिए, कितना भी पढ़ना क्‍यों न हो। दिन में तीन-चार बार तो पसीना आना ही चाहिए, इतनी मेहनत करनी चाहिए, दौड़ना चाहिए, खेल-कूद करना चाहिए। उससे पढ़ाई को कोई नुकसान नहीं होता। sports है, तो sports man spirit आता है और sports man spirit आता है तो जीने का भी एक अलग आनंद आता है। तो करेंगे? करेंगे? दिन में चार बार पसीना छूट जाए, ऐसा करेंगे? तो क्‍या इसके लिए धूप में जाकर खड़े रहेंगे क्‍या? ऐसा तो नहीं करेंगे न। 

धन्‍यवाद 

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