अरुंधति का कहना है,'' मैंने कश्मीरी लोगों के लिए न्याय की माँग की है जो दुनिया के सबसे नृशंस सैन्य शासन में रहते हैं... भारतीय ग़रीब इस सबकी कीमत अदा कर रहा है.'' '' ये दुखद है कि देश उन लेखकों को चुप करा देना चाहता है जो अपनी बात कहना चाहते हैं. ये दुखद है कि जो न्याय चाहते हैं, उन्हें ये देश जेल भेज देना चाहता है जबकि सांप्रदायिक दंगे करवाने वाले, नरसंहार करने वाले, कॉरपोरेट घोटाले करने वाले, लुटेरे, बलात्कारी और ग़रीबों पर जुल्म ढहाने वाले खुले घूम रहे हैं.''
ग़ौरतलब है कि पिछले दिनों अरुंधति रॉय ने श्रीनगर में एक सेमिनार के दौरान कहा था, " कश्मीर कभी भी भारत का अभिन्न अंग नहीं रहा है. यह ऐतिहासिक तथ्य है. भारत सरकार ने भी इसे स्वीकार किया है."
उन्होंने आरोप लगाया था कि ब्रितानी शासन से आज़ादी के बाद भारत ख़ुद औपनिवेशिक शक्ति बन गया है.
माननीया एक अनुभवी वक्ता हैं यह सारी दुनिया जानती है.
ReplyDeleteउन्हें यह भी मालुम है कि एक ही बात को कई तरह से बोला औए समझाया जा सकता है.
शायद उन्होंने जो चाहा उसे मीडिया ने बखूबी देश के सामने परोस दिया.
ये बात और थी कि यदि वो चाहतीं तो इसी बात को सरकार की मंशा के अनुरूप भी कह सकतीं थी.
- विजय तिवारी ' किसलय '
हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर पर आपके विचार हमारे लिए बेहद महत्त्व पूर्ण हैं.
अगर नहीं भी था हिस्सा तो आज है और यह सब कर के news में तो कम्भखत आ ही गई
ReplyDeletetark or kutark me fark karna mushakil hota he..
ReplyDeletekash tumane kashmiri pandito ke bare me bola hota.. jinke liye inhi logo ne kha ki tumhari jawan betiya or bhuye hamare liye chod jao or kashmir khli kar do. jin pt.kigod me ye khele unhi ki jamin jaydad par ab inka kaBja he. .