दिल्ली में हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी का घर सीज हुआ


हुर्रियत कॉन्‍फ्रेंस पर कानूनी शिकंजे के साथ अब इनकम टैक्‍स विभाग ने भी शिकंजा कसना शुरू कर दिया है. इसी कड़ी में आज इनकम टैक्‍स विभाग ने हुर्रियत के चेयरमैन और अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी का दिल्‍ली स्थित आवास को सीज कर दिया है. गिलानी का यह आवास दिल्‍ली के मालवीय नगर स्थित खिड़की एक्‍सटेंशन में स्थित है. इस आवास में गिलानी के साथ ही उसके दामाद की भी हिस्‍सेदारी बताई जा रही है.

आयकर विभाग के अनुसार, अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी पर 1996-97 से लेकर 2001-2002 से लेकर 3.62 करोड़ से अधिक की देनदारी है. इससे पहले भी अलगाववादी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की गई थी. बता दें कि पाक के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी और जम्मू-कश्मीर के हुर्रियत नेता मीरवाइज उमर फारूक की फोन पर बातचीत को लेकर उपजे विवाद के बाद पाकिस्तान ने एक बार फिर भारत को उकसाने का काम किया था. अब शाह महमूद ने कश्मीर के कट्टर अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी से फोन पर बातचीत की थी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दौरे से पहले पाकिस्तान ने पिछले 4 दिनों में कश्मीर के मामलों में दोबारा हस्तक्षेप किया था. सूत्रों के मुताबिक शाह कुरैशी ने गिलानी से कश्मीर की स्थिति और मानवाधिकार उल्लंघन के मुद्दों पर बातचीत की थी.

इससे पहले शाह ने कश्मीरी अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारूक से इन्हीं मुद्दों पर बातचीत की थी, जिसके बाद भारत ने पाकिस्तान उच्चायुक्त को बुलाकर कड़ा विरोध जताया था और पाक को कश्मीर के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने को कहा था. बता दें कि कश्मीर घाटी में गिलानी एक प्रमुख अलगाववादी नेता हैं और कई दशकों से कश्मीर के अलग होने की आवाज उठाते रहे हैं. पिछले साल केंद्र सरकार की तरफ से भेजे गए वार्ताकार (विशेष प्रतिनिधि) से उन्होंने बातचीत के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था.


आयकर अधिनियम की धारा 44 AD के तहत अब 6% ही लाभ मिलेगा


सरकार का बैंकिंग चैनल/डिजिटल साधनों से प्राप्‍त राशि और प्राप्तियों के संदर्भ में आयकर अधिनियम की धारा 44एडी के तहत मानित मुनाफे को कम करने का फैसला 

आयकर अधिनिमय,1961(अधिनियम) की धारा 44एडी के तहत कुछ करदाताओं (उदाहरण के लिए व्‍यक्तिगत ,एचयूएफ या एलएलपी को छोड़कर किसी साझेदारी फर्म) जिनका करोबार दो करोड़ रुपये या इसे कम है के लिए कुल कारोबार पर मानित मुनाफे का प्रावधान 8 प्रतिशत है।

सरकार के कम नकदी व्‍यवस्‍था की ओर बढ़ने के मिशन को प्राप्‍त करने के लिए छोटे व्‍यापारियों को प्रोत्‍साहित करने /लगातार डिजिटल साधनों से भुगतान स्‍वीकार करने के लिए अधिनियम की धारा 44एडी के तहत लगने वाली मौजूदा मानित लाभ की दर 8 प्रतिशत से घटाकर 6 प्रतिशत कर दी गई है। यह दर वित्‍तीय वर्ष 2016-17 के दौरान बैंकिंग चैनल/डिजिटल साधनों के माध्‍यम से प्राप्‍त कुल कारोबार या सकल प्राप्तियों के संदर्भ में ही लागू होगी।

हालांकि नकद प्राप्तियों के मामले में कुल कारोबार या सकल प्राप्तियों के संदर्भ में अधिनियम की धारा 44 एडी के तहत मानित मुनाफे की मौजूदा दर 8 प्रतिशत ही जारी रहेगी।

इस संदर्भ में विधायी संशोधन 2017 के वित्‍त विधेयक में लाया जाएगा।

आयकर अधिनियम, 1961 के तहत राजनीतिक दलों की स्थिति का स्‍पष्‍टीकरण

 कुछ समाचार पत्रों में छपी रिपोर्ट से इस तरह के गलत संकेत मिलते हैं कि पुराने करेंसी नोटों को जमा करने के परिप्रेक्ष्‍य में चुनाव आयोग में पंजीकृत राजनीतिक दलों के आयकर रिटर्न की कोई जांच नहीं हो सकती। ऐसा लगता है कि इस तरह के निष्‍कर्ष इस तथ्‍य की वजह से निकाले गए हैं कि राजनीतिक दलों की आय को खंड-13ए के तहत आयकर से छूट प्राप्‍त है।

इस परिप्रेक्ष्‍य में निम्‍नलिखित स्‍पष्‍टीकरणों को ध्‍यान में रखे जाने की जरूत है –

1. आयकर से छूट कुछ खास शर्तों के तहत केवल पंजीकृत राजनीतिक दलों को दी जाती है। जिनका जिक्र खंड-13ए में है। इसमें बहीखातों का रख-रखाव तथा अन्‍य दस्‍तावेज शामिल हैं, जिससे निर्धारण अधिकारी उनकी आय को घटाने में समर्थ हो सकें।

2. 20,000 रुपये से अधिक के प्रत्‍येक स्‍वैच्छिक योगदान के संबंध में राजनीतिक दल को ऐसा योगदान देने वाले व्‍यक्ति के नाम एवं पते समेत ऐसे योगदानों के रिकॉर्ड का रख-रखाव करना होगा।

3. ऐसे प्रत्‍येक राजनीतिक दल के खातों का एक चार्टर्ड एकाउंटेंड द्वारा लेखा परीक्षण किया जाएगा।

4. राजनीतिक दल को एक अनुशंसित समय सीमा के भीतर ऐसे प्राप्‍त अनुदानों के बारे में चुनाव आयोग को एक रिपोर्ट प्रस्‍तुत करनी होगी।

आयकर अधिनियम में राजनीतिक दलों के खातों की जांच करने के लिए पर्याप्‍त प्रावधान हैं तथा ऐसे राजनीतिक दल रिटर्न भरने समेत आयकर के अन्‍य प्रावधानों के भी विषय हैं।

कराधान कानून (दूसरा संशोधन) विधेयक के बारे में कुछ स्पष्टीकरण


कराधान कानून (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2016 के परिणामस्‍वरूप, जोकि लोकसभा में पारित हो गया है तथा राज्‍यसभा में विचाराधीन है, कुछ अफवाहों का दौर बना दिया गया है कि पैतृक आभूषणों सहित सोने के सभी आभूषणों पर 75 प्रतिशत की दर से कर और उपकर लगाया जाएगा। इसके साथ ही भुगतान योग्‍य कर की 10 प्रतिशत देयता पर अतिरिक्‍त शास्‍ति भी लगेगी।

2. यह एतद्द्वारा स्‍पष्‍ट किया जाता है कि उपर्युक्‍त विधेयक में आभूषणों पर कर लगाने संबंधी कोई नया प्रावधान अंत: स्‍थापित नहीं किया गया है। इस विधेयक का उद्देश्‍य केवल आयकर अधिनियम, 1961 (इस अधिनियम) की धारा 115 खखड़ के तहत लागू कर की मौजूदा दर को 30 प्रतिशत से बढ़ाकर 60 प्रतिशत करना है, जिसमें 25 प्रतिशत अधिभार तथा उस पर उपकर भी शामिल है। इस धारा में केवल आभूषण सहित परिसंपत्‍तियों में अस्‍पष्‍ट निवेश के मामले में लगाए जाने वाली कर की दर का उपबंध किया गया है। आय के रूप में इन परिसंपत्‍तियों की प्रभार्यता धारा 69, 69क तथा 69ख के प्रावधानों के द्वारा शासित होती हैं, जोकि 1960 से इस अधिनियम का भाग है। इस विधेयक का उद्देश्‍य इन धाराओं के प्रावधानों में संशोधन करना नहीं है। 

धारा 115 खखड़ के तहत कर की दर को बढ़ाए जाने का प्रस्‍ताव है क्‍योंकि यह रिपोर्ट मिली है कि कर अपवंचक अपनी अघोषित आय को बिजनेस आय या अन्‍य स्रोतों से होने वाली आय के रूप में आय की विवरणी में शामिल करने का प्रयास कर रहें हैं। धारा 115 खखड़ के प्रावधान उन मामलों में लागू होते हैं जहां परिसंपत्‍ति अथवा नकदी आदि को ‘अस्‍पष्‍ट नकदी अथवा परिसंपत्‍ति‘ के रूप में घोषित किया जाना प्रार्थित है अथवा जहां इसे निराधार बिजनेस आय के रूप में छिपाया गया हो, तथा निर्धारिती अधिकारी ने इसका पता लगा लिया हो। ये कार्रवाइयां मुख्‍यत: उन मामलों में की जाती हैं, जहां विवरणी दाखिल की गई हो।

3. यह स्‍पष्‍ट किया जाता है कि अघोषित आय अथवा छूट प्राप्‍त आय जैसे कृषि से होने वाली आय या युक्‍तियुक्‍त घरेलू बचतों या कानूनी रूप से प्राप्‍त विरासत, जोकि स्‍पष्‍ट स्रोतों से अर्जित की गई हो, से खरीदे गए आभूषण/सोने पर न तो वर्तमान प्रावधानों के तहत, न ही प्रस्‍तावित संशोधित प्रावधानों के तहत कर लगता है। इस संबंध में, अनुदेश सं. 1916 के संदर्भ में भी ध्‍यान आकर्षित किया जाता है, जिसमें यह प्रावधान है कि तलाशी अभियानों के दौरान प्रति विवाहित महिला से 500 ग्राम, प्रति अविवाहित महिला से 250 ग्राम तथा परिवार के प्रति पुरूष सदस्‍य से 100 ग्राम तक सोने के आभूषणों तथा गहनों की जब्‍ती नहीं की जाएगी। इसके अतिरिक्‍त किसी भी सीमा तक वैध तरीके से आभूषणों को रखना पूरी तरह से सुरक्षित है।

4. उपर्युक्‍त को देखते हुए, यह शंका व्‍यक्‍त की जानी कि अघोषित स्रोतों या छूट प्राप्‍त आय से अर्जित घरेलू आभूषणों को प्रस्‍तावित संशोधन के अंतर्गत कर योग्‍य बनाया जाएगा, पूरी तरह से निराधान तथा बेबुनियाद है। 

कराधान कानून (द्वितीय संशोधन) विधेयक लोकसभा में पेश,पढ़िए क्या बदला


कराधान कानून (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2016 लोकसभा में पेश, ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना, 2016 (पीएमजीकेवाई) के लिए कराधान और निवेश व्‍यवस्‍था’ नामक योजना विधेयक में प्रस्तावित 

करों की चोरी के कारण राष्ट्र महत्वपूर्ण संसाधनों से वंचित हो जाता है, जिनका उपयोग सरकार गरीबी उन्मूलन और विकास कार्यक्रमों को शुरू करने में कर सकती है। काले धन पर अंकुश लगाने की दिशा में एक महत्‍वपूर्ण कदम के तहत भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों को वापस ले लिया है। 

इस बात को लेकर चिंता जताई गई है कि काले धन को छिपाने के मकसद से आयकर अधिनियम, 1961 (अधिनियम) के कुछ मौजूदा प्रावधानों का संभवतः इस्तेमाल किया जा सकता है। अधिनियम के प्रावधानों में संशोधन के लिए कराधान कानून (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2016 को संसद में पेश कर दिया गया है, ताकि कर अदायगी में चूक करने वाले करदाताओं पर अपेक्षाकृत उच्च दर से टैक्‍स लगाने के साथ-साथ कठोर दंड का प्रावधान भी सुनिश्चित किया जा सके। 

‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना, 2016 (पीएमजीकेवाई) के लिए कराधान और निवेश व्‍यवस्‍था’ नामक एक वैकल्पिक योजना को इस विधेयक में प्रस्तावित किया गया है। इस व्यवस्था के तहत घोषणा करने वालों को अपनी अघोषित आय के 30 प्रतिशत की दर से कर का भुगतान करना होगा और अपनी अघोषित आय के 10 प्रतिशत की दर से पेनाल्‍टी देनी होगी। इसके अलावा 'प्रधानमंत्री गरीब कल्याण उपकर' के नाम से एक अधिभार (सरचार्ज) भी कुल टैक्स राशि के 33 प्रतिशत की दर से लगाने का प्रस्‍ताव है। टैक्स, सरचार्ज और पेनाल्‍टी (कुल मिलाकर लगभग 50 प्रतिशत) के अतिरिक्त घोषणा करने वालों को अपनी अघोषित आय के 25 प्रतिशत को एक जमा योजना में जमा कराना होगा, जिसे भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण जमा योजना, 2016’ के तहत अधिसूचित किया जाएगा। इस राशि को सिंचाई, आवास, शौचालयों, बुनियादी ढांचागत सुविधाओं, प्राथमिक शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य, आजीविका, इत्‍यादि से जुड़ी योजनाओं में उपयोग किया जाना प्रस्तावित है, ताकि न्याय और समानता को सुनिश्चित किया जा सके। 

शेयरों से प्राप्‍त राशि के निर्धारण के लिए मसौदा नियम तैयार हुए

शेयरों के संदर्भ में कंपनी को प्राप्‍त राशि के निर्धारण का तरीका तय करने के लिए मसौदा नियम तैयार किये गये (आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 115 क्‍यूए) 

आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 115 क्‍यूए के तहत कंपनी द्वारा गैर सूचीबद्ध शेयरों के बायबैक (वापस खरीदना) से जुड़ी वितरित आय पर 20 फीसदी की दर से अतिरिक्‍त आयकर लगाया जाता है। 

वित्‍त अधिनियम, 2016 में 1 जून, 2016 से ‘वितरित आय’ की परिभाषा को संशोधित किया गया है, जिसका मतलब यह है कि शेयरों के बायबैक के लिए कंपनी द्वारा अदा की जाने वाली राशि को उस रकम में से घटा दिया जाएगा, जो कंपनी को इन शेयरों को जारी करने के दौरान प्राप्‍त हुई थी। इसका निर्धारण तय किये गये तरीके से किया जा सकता है।

इस संबंध में कंपनी को विभिन्‍न परिस्थितियों में अपने शेयरों के उपयोग से प्राप्‍त होने वाली धनराशि के निर्धारण के लिए मसौदा नियम तैयार कर लिये गये हैं और उन्‍हें वित्‍त मंत्रालय की वेबसाइट (www.finmin.nic.in)  और आयकर विभाग की वेबसाइट (www.incometaxindia.gov.in)  पर अपलोड कर दिया गया है, ताकि हितधारकों एवं आम जनता की टिप्‍पणियां प्राप्‍त हो सकें।    

मसौदा नियमों पर टिप्‍पणियों एवं सुझावों को 31 जुलाई, 2016 तक इलेक्‍ट्रॉनिक ढंग से ईमेल पता  ustpl1@nic.in पर भेजा जा सकता है।

आयकर घोषणा योजना में भुगतान करने के लिए समय में संशोधन हुआ

देश के विभिन्‍न भागों में आयोजित बैठकों और गोष्ठियों में हितधारकों ने इस बात पर चिंता प्रकट की थी कि कर, अधिभार तथा पेनल्टी का भुगतान करने के लिए 30 नवंबर, 2016 तक का उपलब्ध समय बहुत कम समय है, विशेषकर आय घोषित करने वालों के पास तरल रूप में धन उपलब्ध नहीं है। यह भी कहा गया कि 30 नवंबर, 2016 तक भुगतान करने के लिए आय घोषित करने वालों को अपनी परिसंपत्तियों को बाध्य होकर बेचना पड़ सकता है। 

सरकार ने हितधारकों की व्‍यावहारिक कठिनाइयों को ध्‍यान में रखते हुए भुगतान करने के लिए समय में संशोधन इस प्रकार किया है : 

1. कर, अधिभार तथा पेनल्टी की न्‍यूनतम 25 प्रतिशत राशि का भुगतान 30 नवंबर, 2016 तक किया जा सकेगा। 

2. कर, अधिभार तथा पेनल्टी की एक और न्‍यूनतम 25 प्रतिशत राशि का भुगतान 31 मार्च, 2017 तक किया जा सकेगा। 

3. और शेष राशि का भुगतान 30 सितम्‍बर, 2017 को या उससे पहले किया जा सकता है। 

इस आशय की अधिसूचना शीघ्र जारी की जाएगी। 

वित्‍त मंत्रालय ने विकास एवं रोजगार सृजन के लिए उठाए ये कदम


राजस्‍व विभाग ने विकास एवं रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्‍न उपाय किए: छोटे करदाताओं एवं छोटे व्‍यवसाय एवं व्‍यावसायियों को राहत देने के लिए कदम उठाए
वित्‍त मंत्रालय के राजस्‍व विभाग ने विकास एवं रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्‍न कदम उठाए हैं:

क. नई विनिर्माण कंपनियों के लिए कंपनी कर दरों को घटाकर 25 प्रतिशत करना।

ख. निर्माण उद्योग को बढ़ावा देने के लिए आवास क्षेत्र के लिए कर लाभों को विस्‍तारित करना।

ग. तकनीकी सेवाओं के लिए रॉयल्‍टी एवं शुल्‍कों पर कर की दरों को 25 प्रतिशत से कम करके 10 प्रतिशत करना।

घ. स्‍टार्ट अप इंडिया के लिए कर रियायत।


ठीक इसी प्रकार, राजस्‍व विभाग ने छोटे करदाताओं एवं छोटे व्‍यवसाय एवं व्‍यावसायियों को राहत देने के लिए कदम उठाए हैं :

आयकर अधिनियम 1961 के सेक्‍शन 80 (सी) के तहत छूट की सीमा को सालाना एक लाख रुपये से बढ़ाकर दो लाख रुपये सालाना कर दिया गया है, जोकि एनपीएस को अतिरिक्‍त पचास हजार रुपये के योगदान का विषय होगा। इसके अतिरिक्‍त, छोटे व्‍यावसायों के लिए प्रकल्पित कराधान क्षेत्र के दायरे को बढ़ाकर 2 करोड़ रुपये के टर्नओवर तक कर दिया गया है। प्रकल्पित कराधान लाभ अब व्‍यावसायों के लिए 50,00,000 रुपये के टर्नओवर तक उपलब्‍ध है।

आयकर अधिनियम,1961 के अंतर्गत फंड मैनेजर के संबंध में नए नियम


आयकर अधिनियम 1961 के सेक्‍शन 9ए में भारत ने विदेशी फंडों के फंड मैनेजरों के लोकेशन में मदद के लिए 01-04-2016 से विशेष कर लगाने की व्‍यवस्‍था का प्रावधान है। इस व्‍यवस्‍था के तहत एक पात्र निवेश फंड द्वारा भारत में पात्र फंड मैनेजर के माध्‍यम से चलाए जा रहे काम से भारत में कारोबारी संबंध स्‍थापित नहीं होता और इससे भारत में फंड का अवसर साबित नहीं होता।  

15-03-2016 को जारी अधि‍सूचना संख्‍या SO 1101(E) के माध्‍यम से अधिनियम के सैक्‍शन 9ए के प्रावधानों को लागू करने के लिए नियम आयकर अधिनियम 1961 में जोड़ दिया गया है। इन नियमों में निम्‍न व्‍यवस्‍थाएं हैं।
  • एक पूर्व स्‍वीकृति व्‍यवस्‍था जिसके अंतर्गत एक फंड  अपने विकल्‍प पर सीबीडीटी से स्‍वीकृति की मांग सकता है और एक बार स्‍वीकृति मिल जाने पर सेक्‍शन 9ए के लाभ से तब तक वंचित नहीं किया जा सकता जब तक सीमित परिस्थितियों के अंतर्गत स्‍वीकृति वापस न ले ली गई हो।
  • यह देखकर कि फंड में निवेश एक संस्‍थागत कंपनी द्वारा प्रत्‍यक्ष रूप से की गई है तो सदस्‍यों की संख्‍या का निर्धारण तथा फंड में भागीदारी हितनिर्धारण।
  • फंड के 18वें महीने या इसके अंतिम क्‍लोजिंग, जो भी पहले हो, में निवेशक विविधिकरण शर्त से छूट। यह छूट फंड की चरण स्‍थापना तथा फंड के समाप्‍त होने में एक वर्ष की अवधि के लिए मान्‍य।
  • 90 दिनों तक निवेशक विविधिकरण शर्तों को अल्‍पकालीक रूप से पूरा न करने के मामले में फंड की पात्रता प्रभावित नहीं करेगी।
  • फंड की पात्रता पर काम का ब्‍यौरा देने में देरी से कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, बशर्ते विलंब की अवधि 90 दिनों से अधिक न हो।
  • यदि फंड प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष रूप से 26 प्रतिशत वोटिंग अधिकार है तो किसी कंपनी द्वारा कारोबार चलाने में फंड का नियंत्रण और प्रबंधन समझा जाएगा।

अधि‍सूचना संख्‍या SO 1101(E) दिनांक 15-3-2016 आयकर विभाग की वेबसाइट  www.incometaxindia.gov.in. पर उपलब्‍ध है।

Hinduism not a Religion; Don't ask for benefits - IT Dept


Following is the excuse by  INCOME TAX APPELLATE TRIBUNAL, NAGPUR to not include Hindu Religious institutions from exempting from seeking the benefit of Charity Institutions under SECTION 80(G).According to this order Hinduism is only a ‘Technical term ‘ and because of that Government cannot extend the benefits which they accord to Christianity and Islam as a Religion! This Anti Hindu order has been issued on 11.10.2012 by Income Tax appellate Tribunal in Nagpur while considering the application of Shiv Mandir Devsttan Panch Committee Sanstan, Nagpur

The word “Hindu” has not been defined in any of the texts nor in judgment made law. The word was given by British administrators to inhabitants of India, who were not Christians, Muslims, Parsis or Jews. The alleged Hindu religion consists of four castes Brahmins, kshatriyas, vaishyas and sudras belonging ultimately to two schools of law, mitaksharas and dayabhaga. There is, however, no religion by the name ~Hindu’. It only shows that so calledHindu religion has been called for convenience.” CIT must be aware of that the Hindu consists of a number of communities having the different gods who are being worshipped in a different manner, different rituals, different ethical codes. Even the worship of god is not essential for a person who has adopted Hinduism way of life. Thus, Hinduism holds within its fold men of divergent views and traditions who have very little in common except a vague faith in what may be called the fundamentals of the Hinduism. The word ‘community’ means a society of people living in the same place, under the same laws and regulations and who have common rights and privileges. This may apply to Christianity or moslem but not to Hinduism. Therefore, it cannot be said that Hindu is a separate community or a separate religion. Technically Hindu is neither a religion nor a community. Therefore, expenses incurred for worshipping of Lord Shiva, , Hanuman, Goddess Durga and for maintenance of temple cannot be regarded to be for religious purpose. 

टैक्सेबल इनकम 5 लाख रुपये से कम होने पर भी भरना पड सकता है रिटर्न

अगर आप नौकरी करते हैं और टैक्सेबल इनकम पांच लाख रुपये से कम है तो असेसमेंट ईयर 2011-12 यानी इस साल रिटर्न भरने की जरूरत नहीं है। सीबीडीटी की ओर से गुरुवार को जारी नोटिफिकेशन के अनुसार, ऐसे व्यक्ति जिनकी वित्त वर्ष 2010-11 में हर तरह के डिडक्शन के बाद वेतन के जरिए कुल टैक्सेबल इनकम 5 लाख रुपये से कम है, उन्हें इस साल टैक्स रिटर्न फाइल करने की जरूरत नहीं है।

किन्हें नहीं मिलेगी छूट :

1.अगर आप दो जगह काम करते हैं तो आपकी इनकम कितनी भी क्यों न हो, आपको रिटर्न भरना होगा।

2. भले ही किसी व्यक्ति की वेतन से टैक्सेबल इनकम 5 लाख रुपये से कम हो, लेकिन अगर उसने साल 2010-11 में ही किसी समय अपनी नौकरी बदली हो तो उसे टैक्स रिटर्न भरना होगा

3. सेविंग अकाउंट से मिलने वाली ब्याज की राशि 10 हजार रुपये से ज्यादा है तो आपको रिटर्न भरना होगा।

4. ऐसे लोग, जो वेतन के अलावा किसी अन्य सोर्स से कमाई करते हैं या जिन्होंने रिफंड क्लेम किया है, वे भी इस स्कीम के दायरे से बाहर रहेंगे। यानी फिक्स्ड डिपॉजिट, शेयर या म्युचुअल फंड में निवेश के जरिये आमदनी होने पर रिटर्न दाखिल करना ही होगा।

5.अगर आपको इनकम टैक्स विभाग सेक्शन 142 (1) या 148 के तहत रिटर्न भरने के लिए नोटिस भेजता है या फिर सेक्शन 153 ए और 153 सी के तहत रिव्यू के लिए आपसे रिटर्न भरने को कहा जाता है तो ऐसा करना होगा। विभाग ऐसा तब करने को कहता है, जब उसे पुराने भरे गए रिटर्न में आमदनी, इनवेस्टमेंट और अन्य आंकड़ों को लेकर संदेह पैदा हो।

रिटर्न न भरने के लिए भी आपको कुछ कदम उठाने होंगे। अपनी स्थायी खाता संख्या (पैन) और बैंक ब्याज से होने वाली पूरी कमाई की जानकारी अपने नियोक्ता को देनी होगी। टैक्स रिटर्न दाखिल करने से राहत पाने के लिए सेविंग अकाउंट के ब्याज से होने वाली आय (10,000 रुपये से ज्यादा न हो) पर कंपनी के जरि टैक्स अदा करना होगा। इसके बाद फॉर्म 16 में टैक्स डिडक्शन का सर्टिफिकेट लेना होगा, जो आपके लिए रिटर्न का काम करेगा।

क्या है आयकर के नए नियम और कितनी मिलेगी छूट


अब एचयूएफ के नाम खोले गए पीपीएफ खातों को एक्सटेंशन नहीं मिलेगा। 13 मई 2005 से एचयूएफ के नए खाते खोलने की मनाही हो गई थी और अब एचयूएफ के वैसे खाते, जिनकी 15 साल की मियाद पूरी हो चुकी है उन्हें कोई एक्सटेंशन नहीं मिलेगा। इसके अलावा 15 साल पूरे होने के बाद एक्सटेंशन पर चल रहे खातों का एक्सटेंशन 31 मार्च 2011 से समाप्त हो जाएगा।

खातों की जमा रकम मय ब्याज और कर्ज (अगर कोई हो) के समायोजन के बाद कर्ता के हवाले कर दी जाएगी। इससे हतोत्साहित न हों। पीपीएफ के अलावा एचयूएफ को आयकर में लाभ के कई रास्ते हैं। आयकर अधिनियम की धारा 2(31) एचयूएफ यानी हिंदू अनडिवाइडेड फैमिली (हिंदू अविभक्त परिवार) को विशेष दर्जा देता है। इसके तहत एचयूएफ का कर्ता एचयूएफ की कमाई के लिए न सिर्फ अलग रिटर्न भर सकता है, बल्कि वह नियमानुसार उसपर छूट भी ले सकता है।

किसे कहते हैं एचयूएफ

एचयूएफ की सबसे छोटी इकाई पति-पत्नी हो सकते हैं। यानी इसके लिए परंपरागत अर्थों में संयुक्त परिवार का होना जरूरी नहीं है। शादी के साथ ही एचयूएफ का गठन हो जाता है और इसलिए एचयूएफ के पैन कार्ड बनवाने के फॉर्म में एचयूएफ के गठन की तारीख की जगह शादी की तारीख लिखी जाती है। बड़ा संयुक्त परिवार भी एचयूएफ हो सकता है।

अविवाहित बेटी होगी पिता के साथ

एकल परिवार में दंपति के बच्चे भी इसके सदस्य होते हैं। परिवार में अगर बेटी हो तो शादी के बाद पिता के एचयूएफ से उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है और वह पति के एचयूएफ में शामिल हो जाती है। ऐसा होने के लिए किसी प्रक्रिया की कोई आवश्यकता नहीं है, बल्कि यह कानूनन ऐसा हो जाता है।

कौन हो सकता है कर्ता

आयकर अधिनियम के अनुसार परिवार में पिता या वरिष्ठ पुरुष सदस्य एचयूएफ का कर्ता होगा। कर्ता की भूमिका परिवार के मैनेजर की होती है और एचयूएफ के सारे सदस्य इसके पार्टनर की तरह होते हैं। परिवार की महिला सदस्य कर्ता नहीं हो सकती।

कर्ता का साथ रहना कितना जरूरी

कर्ता के लिए परिवार के साथ एक ही छत के नीचे रहना बिल्कुल जरूरी नहीं है। जरूरी यह है कि वह परिवार के सारे मामलों की देखभाल करे। अगर कोई व्यक्ति विदेश में भी रहता है और परिवार को भारत में मैनेज करता है तो वह कर्ता की भूमिका में ठीक होगा।

एचयूएफ का कोई अपवाद

केरल में एचयूएफ की मान्यता नहीं है। केरल ज्वाइंट फैमिली सिस्टम (अबॉलिशन) एक्ट 1975 के तहत 1 दिसंबर 1976 से केरल में एचयूएफ की मान्यता खत्म हो गई है।

टिप्स

भले ही एचयूएफ के दायरे से पीपीएफ बाहर कर दिया गया है, अभी भी एचयूएफ के तहत आयकर की बहुत सी छूटें उपलब्ध हैं। अपने फाइनेंशियल प्लानर या सीए से बात कर एचयूएफ का लाभ जरूर लेना चाहिए।

आयकर रिटर्न जमा करने वालों के लिए रहत

गाँवों तथा छोटे शहरों के आयकर दाताओं को अब कर रिटर्न जमा कराने के लिए बड़े शहरों को नहीं आना होगा क्योंकि वित्त मंत्रालय इस बारे में आयकर अधिकारियों (आईटीओ) के अधिकार बढ़ाने जा रहा है।

मंत्रालय ने यह फैसला छोटी जगहों के करदाताओं के समक्ष दिक्कतों को देखते हुए किया है। नई व्यवस्था एक अप्रैल (अगले वित्त वर्ष) से लागू होगी।

नए नियमों के तहत कस्बों या छोटे शहरों के आईटीओ अब गैर कॉर्पोरेट श्रेणी में 15 लाख रुपए तथा कॉर्पोरेट श्रेणी में 20 लाख रुपए तक के आईटी रिटर्न का काम देख सकेंगे। आईटीओ इस बारे में नोडल अधिकारी रहता है।

वहीं दिल्ली, मुंबई, कोलकाता व हैदराबाद जैसे महानगरों में आईटीओ कॉर्पोरेट श्रेणी में 30 लाख रुपए तथा गैर कॉर्पोरेट श्रेणी में 20 लाख रुपए तक के रिटर्न देख सकेंगे।

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