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ब्राम्हण को फेंकेंगे, पूजा और मंदिर जाना बंद करेंगे तब संघ समाप्त होगा: ज्ञानेश महाराव, संपादक चित्रलेखा

चित्रलेखा’के संपादक एवं धर्मद्रोही ज्ञानेश महाराव ने ३१ अक्तूबर को हिंदुओं पर अश्लाघ्य आलोचना करते हुए कहा कि समाज को अपनी अयोग्यता छिपाने हेतु पत्थर के भगवान की आवश्यकता है । वे किसी की प्रेतयात्रा में नहीं जाते हैं; परंतु भगवान गणपति के (गणेश चतुर्थी को) एक मिट्टी के गोले को पहुंचाने हेतु भारी संख्या में जाते हैं, इस बात की उन्हें लज्जा आनी चाहिए । जिस दिन आप ब्राम्हण को फेंकेंगे, पूजन-अर्चन तथा मंदिर में जाना बंद करेंगे, उस दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समाप्त होगा ।

हिंदुओ, आप धर्मशिक्षा लेकर संगठित न होनेके कारण ही हिंदूद्रोही स्पष्ट रूपसे आपके धर्म के विषयमें इतने निम्न स्तर पर जाकर आलोचना करने का साहस कर रहे हैं । क्या उनके लिए मुसलमान अथवा ईसाईयों के विरुद्ध इस प्रकार भाष्य करने का साहस दिखाना कभी संभव था ? इससे शिक्षा लेकर अब तो धर्मरक्षा के लिए संगठित होकर वैधानिक मार्ग से धर्मद्रोहियों को फटकारें ...

अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निर्मूलन समितिके प्रवक्ता एवं पत्रकार पुरुषोत्तम आवारे-पाटिल लिखित 'रोखठोक' दीपावली अंक के प्रकाशन के कार्यक्रम में महाराव बोल रहे थे । इस अवसर पर 'रोखठोक' दीपावली अंक में प्रकाशित 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ – किसका शत्रु ? किसका त्राता ?' प्रमुख विषय पर चर्चासत्र आयोजित किया गया था । इस अवसर पर महाराव के साथ भाजपा के महाराष्ट्र प्रवक्ता श्री. माधव भंडारी, रा.स्व. संघके कोकणप्रांत प्रचार प्रमुख श्री. प्रमोद बापट, लेखक संजय सोनावनी, कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं लेखक चंद्रकांत वामनखेडे, एस.एन.डीटी महाविद्यालय की प्रा. नम्रता गन्नेरी, पत्रकार प्रमोद चुंचूवार एवं आवारे-पाटिल चर्चासत्र में सम्मिलित हुए थे । इस अवसरपर साप्ताहिक 'कलमनामा' के संपादक युवराज मोहिते भी उपस्थित थे । इस अवसरपर जैसे तैसे ५० नागरिक उपस्थित थे । अधिकांश सभागृह रिक्त ही था ।

निम्न स्तर पर जाकर वक्तव्य देने वाले ज्ञानेश महाराव की कुछ और टिप्पणियां :

१.'सनातन वैदिक धर्म के प्रमुख शंकराचार्य ही होते हैं । वह परस्त्रीगामी, गंजेडी, हत्यारा हो, तो भी शंकराचार्य ही प्रमुख होता है; क्योंकि वह ब्राह्मण होता है । (शंकराचार्य के विषयमें इस प्रकार निम्न स्तर के विशेषण प्रयुक्त कर महारावने अपनी खोखली / निम्नस्तरीय नैतिकता का ही परिचय दिया है । इस व्यक्ति को सुधारक  कहते हैं ! परंतु महाराव ने जो विशेषण बताए हैं, उन विशेषणों से पूरी तरह संपन्न लोग दोनों कांग्रेस में विद्यमान हैं । महारावने उनके विरुद्ध कभी ऐसा वक्तव्य दिया है अथवा अपने नियतकालिकमें कभी लिखा है, ऐसा नहीं दिखाई दिया है । ) वहां दलित अथवा महिला शंकराचार्य नहीं चलता । 

एक बार ब्राह्मण महामंडलेश्वर महिलाने कहा, ‘मैं  शंकराचार्य बनूंगी’ । उस समय कभी एकत्रित न आने वाले चारों शंकराचार्यों ने एकत्रित आकर कहा कि महिला शंकराचार्य नहीं बन सकती । आदिमाता, भूमाता, गोमाता कहनेवाले शंकराचार्यों को महिला क्यों नहीं चलती ? (हिंदुओं के शंकराचार्यों की ऐसी निंदा करने वाले कभी ईसाईयों के पोप अथवा मुसलमानों के धर्मगुरुके संदर्भ में वहां महिला अथवा दलित चाहिए ऐसी मांग क्यों नहीं करते ? उसी प्रकार अंनिस एवं वामपंथी लोग इस बात का उत्तर दें कि वे स्वयं निवृत्त होकर अपने पदों पर प्रथम महिलाओं की नियुक्ति क्यों नहीं करते ? । 'लोगोंको बताएं ब्रह्मज्ञान, परंतु स्वयं कोरे पाषाण' इस कहावत के अनुसार आचरण करनेवाले विश्वासघाती लोगों का षडयंत्र विफल करें ! )  क्या ये लोग पिता की कोख से बाहर आए हैं । मां क्यों नहीं चलती ? ये सब लोग झूठे हैं । संघ भी वैसा ही है । उनमें सर्वत्र बाह्मण लोग ही प्रमुख हैं । तावडे-मुंडे आदि मराठे-बहुजन केवल नचवाने के लिए ही हैं । (हिंदुओ, यह ध्यान रखें कि यह आपके धर्म के विषय में बुद्धिभेद कर आपमें अंतर करने हेतु किया गया सुनियोजित षडयंत्र है !)

२. संघ क्यों बढ रहा है, तो समाज की अयोग्यता के कारण । संघ के अनेक लोग भगवान को नहीं मानते; परंतु भगवान को मानने हेतु अन्य लोगों को विवश करने का कार्य करते हैं । संघ का सेवाकार्य एवं अन्य कार्य प्रचुर मात्रा में है; तो भी इन लोगोंने ८८ वर्षोंमें विविध प्रकार से अत्यधिक संपत्ति जुटाई है । वह देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि और ५०० वर्षों तक संघ समाप्त नहीं होगा । (क्या संघ इस विषय में कुछ भाष्य करेगा ? )

३. हिंदू नाम की कोई बात शेष नहीं है । हिंदुओं की वैचारिक सुंथा हुई है तथा हिंदुओं का सांस्कृतिक बाप्तिस्मा हुआ है । संघवाले केवल लोगों को फंसाने हेतु हिंदू हिंदू कहते हैं । (रा.स्व. संघके कार्यसे भारतमें कुछ तो हिंदू संस्कृति जीवित है । रा.स्व. संघका द्वेष करनेवाली कांग्रेस एवं साम्यवादियोंने विदेशी कुप्रथाओंको प्रोत्साहित कर भारतके हिंदुओंको अपनी संस्कृतिसे दूर किया है । )

संघ के विषय में अपप्रचार करने हेतु वामपंथियों द्वारा सुनियोजित अंतर्राराष्ट्रीय षडयंत्र रचा गया है ! - श्री. माधव भंडारी, प्रदेश प्रवक्ता, भाजपा

१. दीपावली अंक पढने पर ध्यान में आया कि लेखक ने संघ के विषय में क्या फैलाना है, क्या उत्तर देना है, यह पूर्व से ही निश्चित किया एवं उसके  पश्चात उस पर प्रश्न निकाले हैं ।

२. संघ ने ठाणे जनपद के अनेक आदिवासी क्षेत्रों में अच्छा कार्य किया है । अतः वहां अब तक नक्सलवाद को पांव रखना संभव नहीं हुआ । इसी प्रकार जहां कहीं भी संघ ने कार्य किया है, वहां नक्सलवाद बढना संभव नहीं हुआ । यह बात जिसको पसंद नहीं आई, वे संघ की निंदा करने हेतु ऐसी पुस्तकें प्रकाशित कर रहे हैं ।

३. इस पुस्तक के ११९ पृष्ठपर संगणकीय फेरफार कर दंगा करते समय का झूठा छायाचित्र रेखांकित कर जानबूझकर संघ का अनादर किया गया है । संपादकीय नीतिमत्ताको अलग रखकर एक षडयंत्र द्वारा चित्र सिद्ध किया गया है । ऐसा होते हुए भी बौद्धिक चर्चाका प्रयास क्यों किया जाता है ?

४. आयोजकों पर अप्रत्यक्ष आलोचना करते समय भंडारी ने कहा कि भारत में स्वयं को निरपेक्षतावादी (निधर्मी ) कहलाने वाला एक विलक्षण एवं अंतिम  विचारांध वर्ग है । धर्मांध समान वह अत्यधिक कटू नहीं है, तो भी ‘कोई अस्पृश्यता का पालन न करे’ ऐसा कहते हुए यह वर्ग वैचारिक, बौद्धिक एवं सामाजिक अस्पृश्यता का पालन करने का कार्र्य अत्यंत कटुता के साथ कर रहा है । यह वर्ग जानबूझ कर इतिहास तथा वस्तुस्थिति का विकृतीकरण, कल-परसों घटित घटनाओंके भी विकृतीकरण का कार्य कर रहा है । उसी प्रकार मैं जो कहता हूं, उसे सत्य में साकार करता हूं । वह आप की सुनता नहीं, क्योंकि आप निरपेक्षतावादी नहीं हो । इस प्रकार का वैचारिक प्रदूषण पैâलाने का कार्य करता है ।

५. ब्रिटेन की गुप्तचर संस्था में रूस की केजीबी गुप्तचर संस्था के दलाल मिलनेके पश्चात उसके लिए एक आयोग स्थापित किया गया । इस आयोग ने अपने ब्यौरे में कहा कि यदि ब्रिटेन में साम्यवादियों को चुनाव में मतपेटी के माध्यम से सत्ता नहीं मिली, तो वे शिक्षा, प्रसार माध्यम एवं कामगार अभियानमें प्रवेश कर देशका वातावरण परिवर्तित करने के लिए आरंभ करेंगे । आज भारत में यही स्थिति है । विदेशके लेखक मित्र किनाई की पुस्तकमें कहा है कि केजीबी ने १९७७ में भारत के कांग्रेस एवं मित्र पक्ष के २२ उम्मीदवारों पर व्यय किया था । उसी प्रकार रूस की महिला पत्रकार बोरीस वेलसिन ने, स्टेट विदिन स्टेट पुस्तक में शासकीय जानकारी के आधार पर केजीबी ने, भारत के राजघरानों को कितने  धन की आपूर्ति की, इस बात की जानकारी दी है । ये तीन उदाहरण इसलिए दिए कि संघों के विरोध में जो प्रचार चल रहा है, वह इस प्रकार सुनियोजित पद्धति से किया गया दुष्प्रचार है । यह दीपावली अंक उसका ही एक उदाहरण है । यह जानबूझकर चूक चित्र निर्माण किया गया है ।

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