इसराइली कैबिनेट ने उस विवादित विधेयक को मंज़ूरी दे दी है जिसमें इसराइल की नागरिकता लेने वाले ग़ैर यहूदियों को इसराइल के प्रति वफ़ादारी की शपथ लेनी होगी और ये मानना होगा कि इसराइल एक लोकतांत्रिक यहूदी देश है.
इस प्रस्तावित क़ानून पर इसराइल में पहले भी हंगामा हो चुका है और इसराइल का अरब समुदाय इसका विरोध करता रहा है.इसराइल में अरब समुदाय की संख्या वहां की जनसंख्या का कुल 20 फ़ीसदी है.अगर ये विधेयक इसराइली संसद में पारित हो जाता है तो इससे वो ग़ैर यहूदी समुदाय प्रभावित होगा जो इसराइली नागरिकता ग्रहण करने की मंशा रखता है.
संवाददाताओं का कहना है कि ये क़ानून उन फ़लस्तीनियों पर लागू होगा जो इसराइली नागरिकों से विवाहित हैं और इसराइली नागरिकता ग्रहण करना चाहते हैं.इस प्रस्तावित क़ानून के निर्माता अतिवादी दक्षिणपंथी और इसराइल के विदेश मंत्री ऐविग्डर लीबरमैन हैं, उनका समर्थन प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहु ने भी किया है.हालांकि बहुत कम ग़ैर यहूदी लोग इसराइली नागरिकता के लिए आवेदन करते हैं.
ग़ौरतलब है कि ये क़ानून इसराइल के अल्पसंख्यक अरब समुदाय पर लागू नहीं होगा लेकिन अरब वकीलों का मानना है कि ये क़ानून इसराइल में रह रहे अरब नागरिकों की अधीनता को ज्यादा उजागर करेगा.साथ ही उन्होंने इस का़नून को बनाने वाले इसराइली विदेश मंत्री की मंशा पर भी शंका व्यक्त की है.दरअसल लीबरमैन ने 2004 में भी इसराइल की ग़ैर यहूदी जनता के लिए कुछ ऐसी ही योजनाओं का प्रस्ताव रखा था.
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