प्रधानमंत्री #IARI में 'कृषि उन्नति मेले' में किसानों को संबोधित करेंगे


प्रधानमंत्री जैविक खेती पोर्टल का उद्घाटन करेंगे और साथ ही 25 कृषि विज्ञान केन्द्रों की भी आधारशिला रखेंगे 

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी कृषि कर्मन पुरस्कार और पंडित दीन दयाल उपाध्याय कृषि विज्ञान प्रोत्साहन पुरस्कार भी प्रदान करेंगे 

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी 17 मार्च को नई दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, आईएआरआई पूसा परिसर में वार्षिक 'कृषि उन्नति मेला' को संबोधित करेंगे। वे किसानों को संबोधित करेंगे, जैविक कृषि पर पोर्टल की शुरूआत करेंगे और 25 कृषि विज्ञान केन्द्रों की आधारशिला भी रखेंगे। इस अवसर पर प्रधानमंत्री “कृषि कर्मन” और “पंडित दीन दयाल उपाध्याय कृषि विज्ञान प्रोत्साहन” पुरस्कार भी प्रदान करेंगे।

इस मेले का थीम-2020 तक किसानों की आय दुगुना करना है। 'कृषि उन्नति मेला' का उद्देश्य किसानों के बीच कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में नवीनतम तकनीकी विकास के बारे में जागरूकता पैदा करना है।

किसानों की आय दोगुनी करने पर थीम पवेलियन, सूक्ष्म सिंचाई पर लाइव प्रदर्शन, अपशिष्ट जल उपयोग, पशुपालन और मत्स्य पालन मेले के प्रमुख आकर्षणों में से हैं। मेले में बीज, उर्वरकों और कीटनाशकों पर भी पवेलियन (मंडप) स्थापित किए जाएंगे।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में 366.64 लाख किसान कवर किये गये


प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में 366.64 लाख (26.50 प्रतिशत) किसान कवर किये गये और इस दर के आधार पर 2016-17 में खरीफ और रबी दोनों सीजन के लिए 30 प्रतिशत का निर्धारित लक्ष्‍य पार होने की संभावना है 

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) का देश में खरीफ 2016 से शुभारंभ हुआ और इसने पहले सीजन में ही बहुत प्रभावी प्रगति की है। आज की तारीख तक इस योजना के तहत 366.64 लाख किसान (26.50 प्रतिशत) आ चुके हैं और इस दर के आधार पर 2016-17 में खरीफ और रबी दोनों सीजन के लिए 30 प्रतिशत का निर्धारित लक्ष्‍य पार होने की संभावना है। 

इसके तहत कुल 388.62 लाख हेक्‍टेयर रकबा आया और 141339 करोड़ रूपये की राशि का बीमा हुआ। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को सरकार ने नई योजना के रूप में शुरू किया है, क्‍योंकि पहली मौजूदा बीमा योजनाएं किसानों की बीमा कवरेज की सभी अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पा रही थी।

खरीफ 2015, की तुलना में, इस सीजन के प्रदर्शन में किसानों की कवरेज के रूप में 18.50 प्रतिशत, रकबे की कवरेज के रूप में 15 प्रतिशत और बीमा राशि के रूप में 104 प्रतिशत का सुधार हुआ है। ऐसा गंभीर रूप से सूखा प्रभावित सीजनों के बावजूद हुआ, इसके तहत कवर किये गये किसानों की संख्‍या 309 लाख (22.33 प्रतिशत), कुल कवरेज रकबा 339 लाख हेक्टेयर और बीमित राशि रुपये 69,307 करोड़ रुपये थी। खरीफ 2016 के दौरान कार्य प्रदर्शन बेहतर रहा। हालांकि कुछ प्रारंभिक कठिनाईयां भी सामने आई। 

खरीफ 2015 की तुलना में खरीफ 2016 की उपलब्धियां विशेष रूप से महत्‍वपूर्ण हैं, क्‍योंकि खरीफ 2015 में अधिकांश राज्यों में ऋण लेने वाले किसानों के लिए बीमा का लाभ उठाने की अंतिम तिथि 30 सितंबर, 2016 निर्धारित की थी और फसल बीमा के तहत नामांकन में सूखे की लंबी अवधि के बाद बहुत बढ़ोतरी हुई, जबकि यह साल सामान्‍य मानसून का रहा और बीमा का लाभ उठाने वालों की संख्‍या कम रहीं। बीमा का लाभ उठाने की अंतिम तिथि को 31 जुलाई, 2016 से बढ़ाकर 10 अगस्त, 2016 कर दिया गया था। 

इसके अलावा, गैर-ऋणी किसानों की कवरेज के रूप में 6 गुना से भी अधिक की भारी बढ़ोतरी हुई है, जहां खरीफ 2015 में यह संख्‍या 14.88 लाख थी, वहीं खरीफ 2016 में बढ़कर 102.6 लाख हो गई। जो यह दर्शाती है कि इस योजना को गैर-ऋणी किसानों ने भी अच्‍छी तरह से अपनाया है। यह इसलिये संभव हुआ है, क्‍योंकि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में यह प्रावधान है कि बीमित राशि वित्त के पैमाने के बराबर होनी चाहिए, जो यह दर्शाती है कि इसमें पहली योजनाओं की तुलना में किसानों के अधिक जोखिम को कवर किया गया है। 

किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कर रहें, जी तोड़ प्रयास : कृषि मंत्री


किसानों की आय दोगुनी करने के लिए केन्द्र सरकार अनाज का उत्पादन बढाने, लागत कम करने तथा किसानों की आमदनी के अन्य साधनों खोलने के साथ उनकी उपज की उचित मार्केटिंग का जी तोड़ प्रयास कर रही है- श्री राधा मोहन सिंह 

किसानों को उपभोक्‍ताओं से सीधे जोड़ने के लिए वर्तमान सरकार किसानों के खेत से उत्‍पाद की सीधा खरीद को प्रोत्‍साहित कर रही है- श्री सिंह 

केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधा मोहन सिंह ने कहा है कि किसानों की आय दोगुनी करने के लिए केन्द्र सरकार अनाज का उत्पादन बढाने, लागत कम करने तथा किसानों की आमदनी के अन्य साधनों खोलने के साथ उनकी उपज की उचित मार्केटिंग का जी तोड़ प्रयास कर रही है। कृषि मंत्री ने यह बात सेंगरि ला इरोज होटेल में एसोचेम द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कही। कार्यक्रम का विषय था - किसानों को बाजार से कैसे जोड़ा जाए। 

कृषि मंत्री ने कहा कि अब यह जरूरी हो गया है कि बाजार, किसान की पहुच के अन्दर हो और उनके और उपभोक्ताओं के बीच कोई बिचौलिया नहीं हो, उपज का मूल्य पारदर्शी तरीके से तय हो और किसान को उनकी उपज का अविलंब भुगतान हो। उन्होंने बताया कि केन्द्र सरकार देश भर में एक ऐसा ढांचा खड़ा कर रही है जिसमें बाजार सीधे खेत से जुड़ जाएंगे और उपभोक्ता सीधे किसान के खेत से उपज खरीद सकेंगे। 

कृषि मंत्री ने कहा कि केन्द्र सरकार किसानों को उनकी उपज की अच्छी कीमत दिलाने के लिए पहले ही राष्ट्रीय कृषि बाजार यानी ई-नाम अप्रैल 2016 में लांच कर चुकी है। ई-नाम पोर्टल से मार्च, 2018 तक कुल 585 मंडियों को जोड़े जाने की योजना हैI सितम्बर-2016 तक 200 मंडियों के लक्ष्य के सापेक्ष 10 राज्‍यों की 250 मंडियों को ई-नाम से जोड़ दिया गया हैI उन प्रदेशों की मंडिया ई-नाम से जुड़ सकती हैं जिन्होंने अपने विपणन कानूनों में तीन सुधार कर लिये हैं - ई ट्रेडिंग की व्यवस्था, एकल बिंदु पर मंडी शुल्क की उगाही और सिंगल लाइसेंस से पूरे प्रदेश में व्यापार। दो प्रमुख राज्‍य बिहार और केरल कोई मंडी कानून न होने से अभी ई-नाम परियोजना से नहीं जुड़ पा रहे हैं। कृषि मंत्री ने इन राज्‍यों की सरकारों से किसान हित में मंडी कानून बनाकर ई-नाम परियोजना से जोड़ने का अनुरोध किया है। 

कृषि मंत्री ने कहा कि ई-नाम की इस नयी व्यवस्था में अब किसान कहीं भी बैठकर ऑनलाइन ट्रेडिंग के जरिए अपनी फसल बेच सकता है तथा इसके जरिए वह उपज की गुणवत्ता के अनुसार उत्तम मूल्य प्राप्त कर सकता है I यदि उसे मूल्य पसंद ना हो तो वह ऑनलाइन की गयी सर्वोच्च बोली खारिज भी कर सकता है। किसान को ऑनलाइन भुगतान की व्यवस्था भी है। 

इसके अतिरिक्‍त किसानों को उपभोक्‍ताओं से सीधे जोड़ने के लिए वर्तमान सरकार किसानों के खेत से उत्‍पाद की सीधा खरीद को प्रोत्‍साहित कर रही है। इसके लिए 22 राज्‍यों ने अपने विपणन कानूनों में बदलाव भी कर लिया है। 

कृषि मंत्री ने जानकारी दी कि देश में कृषि उपज का विपणन, राज्य सरकारों की विनियमित मंडियों के माध्‍यम से किया जाता है, जिनकी कुल संख्या 6746 हैI उन्होंने कहा कि वैसे तो किसानों पर गठित राष्ट्रीय आयोग की सिफारिश के अनुसार 80 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में एक मंडी होनी चाहिए, लेकिन वर्तमान में लगभग 580 वर्ग किलोमीटर में एक मंडी हैI मंडियों की संख्‍या बढ़ाने के लिए सरकार मंडी कानून में सुधार करवाकर निजी क्षेत्र की मंडियां स्‍थापित करवाने का प्रयास कर रही है। अब तक 21 राज्‍यों ने इस संबंध में अपने विपणन कानूनों में सुधार कर लिया है। 

किसानों द्वारा डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने किये ये उपाय


केन्‍द्र सरकार ने चालू रबी सीजन में किसानों के हितों के साथ-साथ अर्थव्‍यवस्‍था में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए विभिन्‍न निर्णय लिये 

500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों के चलन को निरस्‍त करने के बाद केन्‍द्र सरकार ने समाज के विभिन्‍न तबकों की जरूरतों को ध्‍यान में रखते हुए अनेक उपायों की घोषणा की है। एपीएमसी बाजार/मंडियों में किसानों और पंजीकृत व्‍यापारियों के लिए अपेक्षाकृत ज्‍यादा नकदी की निकासी सीमा, फसल बीमा प्रीमियम के भुगतान के लिए समय सीमा बढ़ाना, चुनिंदा सरकारी केन्‍द्रों इ‍त्‍यादि से 500 रुपये के पुराने बैंक नोटों से बीजों की खरीद की अनुमति जैसे विशेष उपायों की घोषणा पहले ही किसानों के हित में की जा चुकी है। बैंकों की ग्रामीण शाखाओं और 1.55 लाख डाकघरों में नकदी की उपलब्‍धता सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाये गये हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपेक्षाकृत ज्‍यादा नकदी सीमा के साथ बैंकिंग कॉरस्पोंडेंट के नेटवर्क को सक्रिय कर दिया गया है।

इस मामले में आगे समीक्षा करने के बाद सरकार ने चालू रबी सीजन में किसानों के हितों के साथ-साथ अर्थव्‍यवस्‍था में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए कुछ विशेष निर्णय लिये हैं। ये निर्णय परिचालनगत उपायों के रूप में हैं, जिनका उल्‍लेख नीचे किया गया है :

  1. नाबार्ड ने रबी सीजन में कृषि संबंधी कार्यकलापों के लिए राज्‍य सहकारी बैंकों के जरिये जिला केन्‍द्रीय सहकारी बैंकों (डीसीसीबी) को 21,000 करोड़ रुपये की सीमा उपलब्‍ध कराई है। इससे डीसीसीबी को प्राथमिक कृषि सहकारी सोसायटी (पीएसीएस) के नेटवर्क के जरिये किसानों के लिए फसल ऋणों को मंजूरी देने एवं इनका वितरण करने में सहूलियत होगी। इससे 40 फीसदी से भी ज्‍यादा ऐसे छोटे एवं सीमांत किसान लाभान्वित होंगे, जो संस्‍थागत कर्ज/फसल ऋण लेते रहे हैं। यही नहीं, आवश्‍यकता के मुताबिक नाबार्ड द्वारा अतिरिक्‍त सीमाएं सुलभ कराई जाएंगी।
  2. आरबीआई और बैंकों को डीसीसीबी में आवश्‍यक नकदी उपलब्‍ध कराने की सलाह दी गई है। इससे चालू रबी सीजन के दौरान विशेषकर बुवाई एवं अन्‍य कृषि कार्यों के लिए किसानों को ऋणों का त्‍वरित एवं निर्बाध प्रवाह के साथ-साथ आवश्‍यक नकदी भी सुनिश्चित होगी।
  3. छोटे कर्जदारों (अर्थात् एक करोड़ रुपये तक के कर्ज लेने वाले लोग) को राहत देने के उद्देश्‍य से भारतीय रिजर्व बैंक बकाया रकम के पुनर्भुगतान के लिए 60 दिनों का अतिरिक्‍त समय देने का निर्णय पहले ही ले चुका है। यह फैसला आवास एवं कृषि ऋणों  सहित उन सभी पर्सनल एवं फसल ऋणों पर लागू होगा, जो बैंकों, एनबीएफसी, डीसीसीबी, पीएसी अथवा एनबीएफसी-एमएफआई से लिये गये हैं।
  4. कुल मिलाकर 30 करोड़ रुपे डेबिट कार्ड जारी किये गये हैं, जिनमें जन धन खाता धारकों को जारी किये गये रुपे डेबिट कार्ड भी शामिल हैं। पिछले 12 दिनों में रुपे डेबिट कार्डों के इस्‍तेमाल में लगभग 300 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस डेबिट कार्ड के उपयोग को सुविधाजनक बनाने के लिए बैंकों ने 31 दिसम्‍बर, 2016 तक ट्रांजैक्‍शन शुल्‍क (एमडीआर) न लेने का निर्णय लिया है। भारतीय राष्‍ट्रीय भुगतान परिषद (एनपीसीआई) ने रुपे कार्डों के लिए स्विचिंग चार्ज को पहले ही माफ कर दिया है। इन सभी कदमों से विभिन्‍न प्रतिष्‍ठानों ने डेबिट कार्डों की स्‍वीकार्यता बढ़ेगी।
  5. डेबिट कार्डों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ-साथ कुछ निजी बैंकों ने भी 31 दिसम्‍बर, 2016 तक एमडीआर शुल्‍क को माफ करने का निर्णय लिया है। निजी क्षेत्र के अन्‍य बैंकों द्वारा भी इस आशय का निर्णय लिये जाने की आशा है। इस तरह स्विचिंग सेवाओं पर लगने वाले शुल्‍कों सहित ट्रांजैक्‍शन शुल्‍क को 31 दिसम्‍बर, 2016 तक माफ कर दिया गया है।
  6. ई-वॉलेट के जरिये भुगतान को बढ़ावा देने के उद्देश्‍य से आरबीआई ने आम लोगों के लिए मासिक ट्रांजैक्‍शन सीमा को 10,000 रुपये से बढ़ाकर 20,000 रुपये करने का निर्णय लिया है। आरबीआई ने कारोबारियों के लिए भी इस सीमा में इतनी ही बढ़ोतरी की है।
  7. यात्रियों की सुविधा के लिए भारतीय रेलवे ने आरक्षित ई-टिकट लेते समय द्वितीय श्रेणी पर 20 रुपये का सर्विस चार्ज और इससे ऊपर की श्रेणी के टिकटों पर 40 रुपये का सर्विस चार्ज 31 दिसम्‍बर, 2016 तक न लेने का निर्णय लिया है। इससे नकदी के जरिये रेलवे के काउंटरों पर टिकट खरीदने के बजाय ई-टिकटों को खरीदने के लिए यात्रीगण प्रोत्‍साहित होंगे।
  8. टिकटों की कुल खरीद में ऑनलाइन ई-टिकट खरीदने वाले यात्रियों की दैनिक औसत संख्‍या 58 प्रतिशत और नकदी के जरिये काउंटरों पर टिकट खरीदने वाले यात्रियों की दैनिक औसत संख्‍या 42 प्रतिशत है। अब ई-टिकट की खरीदारी बढ़ाने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं। उम्‍मीद की जा रही है कि इस कदम से लोग नकदी रहित लेन-देन करने के लिए प्रोत्‍साहित होंगे। 
  9. टीआरएआई ने बैंकिंग से संबंधित लेन-देन और भुगतान के लिए यूएसएसडी चार्ज को मौजूदा 1.50 रुपये प्रति सत्र से घटाकर 0.50 रुपये प्रति सत्र करने का निर्णय लिया है। इसने संबंधित चरणों की संख्‍या को भी मौजूदा पांच से बढ़ाकर आठ चरण कर दिया है। टेलीकॉम कंपनियां भी प्रति सत्र 50 पैसे के उपर्युक्‍त यूएसएसडी चार्ज को 31 दिसम्‍बर, 2016 तक माफ करने पर सहमत हो गई हैं। इसके परिणामस्‍वरूप यूएसएसडी चार्ज 31 दिसम्‍बर, 2016 तक शून्‍य रहेगा। इससे विशेषकर फीचर फोन वाले गरीब लोगों (इनकी संख्‍या फिलहाल देश में कुल फोनों का 65 फीसदी है) को डिजिटल वित्‍तीय लेन-देन की अत्‍यंत किफायती सुविधा सुलभ हो जाएगी। 
  10. वाहन चालकों को अपना काफी समय चेक पोस्‍ट और टोल प्‍लाजा पर गुजारना पड़ता है।  जहां एक ओर जीएसटी की बदौलत चेक पोस्‍ट पर यह समस्‍या दूर हो जाएगी, वहीं दूसरी ओर राष्‍ट्रीय राजमार्गों पर अवस्थित टोल प्‍लाजा पर भुगतान में सहूलियत के लिए कुछ विशेष उपाय अत्‍यंत आवश्‍यक हैं। इस तथ्‍य को ध्‍यान में रखते हुए सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय वाहन निर्माताओं को अपने सभी नये वाहनों में ईटीसी के अनुरूप 'आरएफआईडी' सुलभ कराने की सलाह दे रहा है।
  11. सभी सरकारी संगठनों, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और अन्‍य सरकारी प्राधिकरणों को सलाह दी गई है कि वे सभी हितधारकों और कर्मचारियों को भुगतान करने के लिए केवल डिजिटल भुगतान वाली प्रणालियों जैसे कि इंटरनेट बैंकिंग, एकीकृत भुगतान इंटरफेस, कार्डों, 'आधार' के अनुरूप भुगतान प्रणाली इत्‍यादि का ही उपयोग करें। भुगतान करने के समय प्राधिकरणों के लिए यह आवश्‍यक होगा कि वे कार्डों, इंटरनेट बैंकिंग, एकीकृत भुगतान इंटरफेस, 'आधार' के अनुरूप भुगतान प्रणाली इत्‍यादि के जरिये भुगतान का विकल्‍प मुहैया करायें।

नोटबंदी से रबी की फसल की बुआई पर कोई असर नहीं : कृषि मंत्री


500 और 1000 के पुराने नोट पर रोक लगाने के फैसले से रबी की फसल की बुआई पर असर नहीं :  राधा मोहन सिंह 

कृषि की आमदनी से जमा 500 और 1000 रुपये के नोट जमा करने पर किसी प्रकार का टैक्स भी नहीं है

केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा है कि देश में 500 और 1000 के पुराने नोट पर रोक लगाने का फैसला आतंकवाद, भ्रष्टाचार और काला धन के ताबूत में अंतिम कील ठोकने के लिए  लिया गया है। कृषि मंत्री ने कहा कि इसका सीधा लाभ देश के किसानों और गरीबों को मिलने वाला है। उन्होंने कहा कि इस फैसले का यह कहकर विरोध हो  रहे हैं कि इससे किसानों को नुकसान हो रहा है और इसका असर रबी की बुआई पर पड़ेगा, लेकिन सचाई यह है कि देश हित में किये गये इस निर्णय का विऱोध वे अपने स्वार्थ के लिए कर रहे हैं।

कृषि मंत्री ने कहा कि यह बात सही है कि देश के अंदर  1.25 लाख बैंक,  2 लाख एटीम और लाखों डाकघर हैं और इन तक नोट पहुंचाना निश्चित रुप से एक कठिन काम था जिसके कारण देश के नागरिकों को परेशानी जरूर हुई या हो रही है, किन्तु ध्यान रहे कि देश के गांव, गरीब और किसान की खुशहाली के लिए प्रधानमंत्री जी का आजादी के बाद का सबसे बड़़ा साहसी और लोकप्रिय निर्णय है। देशवासी थोड़ा कष्ट उठाकर भी इस निर्णय की सराहना कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि देश में 24.46 करोड़ जन धन खाते हैं, 7 करोड़ से ज्‍यादा किसान क्रेडिट कार्ड हैं, मंडियों में किसान के लिए खाता खोलने की भी नियमित प्रक्रिया जारी है। 25 हजार रुपया तक निकालने तक की छूट का प्रावधान है। शादी ब्याह के लिए 2.5 लाख रुपया निकालने का फैसला भी देश में लागू हो गया है। बीज खरीदने के लिए भारतीय बीज निगम, भा.कृ.अ.प. (ICAR) के संस्थानों, विश्वविद्यालयों, राज्य बीज निगम एवं उससे संबंधित बीज बिक्री केन्द्रों पर 500 के पुराने नोट की भी अनुमति दे दी गयी है। कृषि की आमदनी से जमा 500 और 1000 रुपये के नोट जमा करने पर किसी प्रकार का टैक्स भी नहीं है।

कुछ लोग रबी की बुआई पर असर पड़ने की बात कर किसानों को  ढाल बनाकर अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं।

कृषि मंत्री ने कहा कि विमु्द्रीकरण के बाद भी रबी की मुख्य फसलों की बुआई जैसे गेंहू की बुआई 18 नबंवर 2016 तक 79.40 लाख हैक्टेयर में किया गया है जो कि पिछले साल 2015 में इसी समय तक 78.83 लाख हैक्टेयर से अधिक है। इसी प्रकार दलहन की बुआई में 18 नबंबर 2016 तक 74.55 लाख हैक्टेयर, जो कि साल 2015 में इसी समय तक 69.98 लाख हैक्टेयर से अधिक है और तिलहन में भी 56.16 लाख हैक्टर बुआई 18 नबंबर 2016 तक की गयी है, जो कि साल 2015 में इसी समय तक 48.74 लाख हैक्टेयर से अधिक है। गेंहू, दलहन और तिलहन रबी की मुख्य फसले हैं।

कृषि मंत्री ने इस संबंध में कुछ उदाहरण भी दिए।

बंगाल में कुल रबी बुआई की रकबा 18 नबंबर 2016 तक 2.39 लाख हैक्टेयर है जो कि साल 2015 में इसी समय तक मात्र 2.25 लाख हैक्टेयर से अधिक है।

बंगाल में 18 नवंबर 2015 एवं 18 नवंबर 2016 तक मुख्य रबी फसलवार ब्यौरा इस प्रकार है-

बुआई की रकबा लाख हैक्टेयर में
फसलें
सामान्य रबी क्षेत्र
(डी.ई.एस.)
2016-17
2015-16
2016-17 और 2015-16का अंतर
गेंहू
3.29
0.12
0.11
0.01
दलहन
1.63
0.32
0.23
0.09
तिलहन
7.16
1.81
1.80
0.01
     
उत्तर प्रदेश राज्य में कुल रबी बुआई की रकबा 18 नबंबर 2016 तक 33.79 लाख हैक्टेयर है जो कि साल 2015 में इसी समय तक मात्र 25.91 लाख हैक्टेयर था।
उत्तर प्रदेश में 18 नवंबर 2015 एवं 18 नवंबर 2016 तक मुख्य रबी फसलवार ब्यौरा इस प्रकार है-
बुआई की रकबा लाख हैक्टेयर में
फसलें
सामान्य रबी क्षेत्र
(डी.ई.एस.)
2016-17
2015-16
2016-17 और 2015-16का अंतर
गेंहू
97.59
14.82
14.38
0.44
दलहन
15.14
8.52
2.68
5.84
तिलहन
6.77
10.08
8.63
1.45

भारतीय खाद्य निगम बिक्री के लिए दोगुना गेंहू पेश करेगा


दिल्‍ली में हाल में गेंहू के थोक और खुदरा मूल्‍यों में वृद्धि देखने को मिली है। लेकिन अब गेंहू का भाव दिल्‍ली में कम होने लगा है। 21 नवम्‍बर, 2016 को थोक मूल्‍य 22.75 रूपये प्रति किलोग्राम और खुदरा मूल्‍य 24 रूपये प्रति किलोग्राम रहा।

आशा की जाती है कि आयात शुल्‍क 25 प्रतिशत से घटकर 10 प्रतिशत होने से आयतित गेंहू का प्रवाह बढ़ेगा और यातायात व्‍यवस्‍था में सुधार से बाजार तथा निजी क्षेत्र की जरूरतें पूरी होगी।

इसके अतिरिक्‍त भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने नवम्‍बर के पहले सप्‍ताह में दिल्‍ली और आसपास के क्षेत्रों में खुले बाजार में बिक्री की योजना (ओएमएसएस) के माध्‍यम से 29 हजार मीट्रिक टन गेंहू दिया। निगम 24 नवम्‍बर, 2016 को बिक्री के लिए 45,500 मीट्रिक टन गेंहू दे रहा है। दिल्‍ली के लिए एफसीआई 24 नवम्‍बर, 2016 को ओएमएसएस नीलामी के लिए गेंहू की पेशकश 7 हजार मीट्रिक टन से बढ़ाकर 14 हजार मीट्रिक टन करेगा।

गाँवों में रोजगार के लिए सहकारिता की बड़ी भूमिका - राधा मोहन सिंह


ग्रामीण इलाकों में रोजगार के अवसर पैदा करने में सहकारिता बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती है: राधा मोहन सिंह

डेयरी से जुड़े सहकारी संस्थाओं ने डेयरी में बड़ी संख्या में रोजगार सृजित किया है: केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री 

केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधा मोहन सिंह ने कहा है कि ग्रामीण इलाकों में रोजगार के अवसर पैदा करने में सहकारिता बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती है और डेयरी से जुड़े सहकारी संस्थाओं ने डेयरी में बड़ी संख्या में रोजगार सृजित कर इस बात को साबित कर दिखाया है। श्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि सहकारिता ने हर क्षेत्र में अपनी प्रभुत्ता बनायी है और सहकारिता के विशाल नेटवर्क से दुनिया भर में 100 मिलियन लोगों को रोजगार मिला है। केंद्रीय कृषि मंत्री ने ये बात आज यहां अशोक होटेल में आयोजित 12वीं अंतर्राष्ट्रीय सहकारी संघ-एशिया प्रशांत (आईसीए) की रीजनल असैम्बली की बैठक एवं 9वीं सहकारी फोरम में कही। श्री सिंह ने सम्मेलन में हिस्सा ले रहे एशिया-प्रशांत क्षेत्र के करीब 250 विदेशी प्रतिनिधियों का स्वागत किया और उम्मीद जताई कि यह सम्मेलन भारत और एशिया-प्रशांत की सहकारिता को मजबूत करने में मील का पत्थर साबित होगा ।

केंद्रीय कृषि एंव किसान कल्याण मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने कई महत्वपूर्ण योजनाओं की शुरूआत की है जैसे स्कूलों में शौचालय, जन - धन योजना, स्वच्छ - भारत अभियान, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, मेक इन इंडिया, सॉयल हेल्थ कार्ड स्कीम आदि। इन्हें लागू करने में सहकारिता संस्थाएं काफी काम की साबित हो सकती है क्योंकि सहकारिता का विशाल और विस्तृत नेटवर्क गांवों और सूदूर क्षेत्रों में फैला हुआ है। श्री सिंह ने कहा कि सरकार ने कौशल युक्त रोजगार के सृजन पर काफी बल दिया है और आज जबकि देश की 65 प्रतिशत जनसंख्या 38 साल से कम लोगों की है, ऐसे में सहकारिता की ग्रामीण इलाकों में विस्तृत पहुँच, रोजगार के अवसर पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

श्री राधा मोहन सिंह ने बताया कि आईसीए रिजनल अंसेंबली का थीम ’सतत् विकास’ है जो आज के संदर्भ में काफी प्रांसगिक है। यह संयुक्त राष्ट्र के 2030 के सतत् विकास एजेंडा के अनुरूप है जिसने ’सतत विकास’ के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये एक दूरगामी नीति बनाने पर बल दिया है जिसमें गरीबी-उन्मूलन, स्वास्थ्य सेवा, रोजगार सृजन, जलवायु परिवर्तन की रोकथाम जैसे विषय शामिल हैं।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि देश में 6 लाख से ज्यादा सहकारी समितिया हैं जिनकी सदस्य संख्या 2491.20 मिलियन है। इन समितियों ने सहकारी आंदोलन को विश्व में सबसे बड़ा आंदोलन बनाया है। ये समितियां उर्वरक वितरण, चीनी उत्पादन, हथकरघा, रिटेल क्षेत्र में कार्यरत हैं। सहकारी क्षेत्र 17.80 मिलियन लोगों को स्व-रोजगार प्रदान करता है और मत्स्य, श्रम, हथकरघा, और महिला सहकारिताओं ने समाज के निर्बल वर्ग की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दूध सहकारिता ने श्वेत क्रान्ति द्वारा भारत को दूध उत्पादन में आत्मनिर्भर बना दिया है। आवास सहकारिता ने समाज के कमजोर वर्ग को कम दाम पर आवास की सुविधायें प्रदान की हैं।

#WorldEggDay: भारत में प्रति व्यक्ति, प्रति वर्ष 63 अंडे उपलब्ध


भारत में प्रति व्यक्ति, प्रति वर्ष 63 अंडे उपलब्ध हैं जबकि राष्ट्रीय पोषण संस्थान के अनुसार प्रति व्यक्ति करीब 180 अंडे उपलब्ध होने चाहिए 

अंडे के उत्पादन में भारत शीर्ष उत्पादकों में एक है और देश में अंडे का उत्पादन 83 अरब के करीब है- श्री राधा मोहन सिंह 

भारत सरकार, राष्ट्रीय पशुधन मिशन के माध्यम से मुर्गी पालन को बढ़ावा दे रही है- श्री राधा मोहन सिंह 

विश्व अंडा दिवस समारोह 2016

केन्द्रीय कृषि एवं किसान मंत्री श्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि भारत में प्रति व्यक्ति, प्रति वर्ष 63 अंडे उपलब्ध हैं जबकि राष्ट्रीय पोषण संस्थान के अनुसार प्रति व्यक्ति करीब 180 अंडे उपलब्ध होने चाहिए। कृषि मंत्री पूसा में विश्व अंडा दिवस पर डीएडीएफ द्वारा आयोजित एक समारोह को संबोधित कर रहे थे । इस समारोह मे मुख्य रूप से पोल्ट्री कृषक और विभिन्न हितधारक हिस्सा ले रहे हैं।

श्री सिंह ने कहा कि अंडे के उत्पादन में भारत शीर्ष उत्पादकों में एक है और देश में अंडे का उत्पादन 83 अरब के करीब है। उन्होंने कहा कि अंडे उत्पादन तीन गुना बढ़ाने के लिए कई कदम एक साथ उठाने होंगे ताकि देश के बच्चों के स्वास्थ्य और पोल्ट्री किसान दोनों को फायदा हो। उन्होंने कहा कि भारत सरकार राष्ट्रीय पशुधन मिशन के माध्यम से मुर्गी पालन को बढ़ावा दे रही है। ग्रामीण इलाके मे घरों के पीछे बीपीएल परिवारों को मुर्गी पालन के लिए आर्थिक मदद दी जा रही है। उद्यमिता विकास और रोजगार सृजन घटक के तहत भी मुर्गी पालन को आगे बढ़ाया जा रहा है।

कृषि मंत्री ने इस मौके पर कहा कि अंडे के पोषक तत्वों के बारे में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है और इस काम में डॉक्टर, पोषण विशेषज्ञ, शिक्षाविद्, महिला एवं बाल संस्थान, अंडा प्रसंस्करण उद्योग और संबंधित नीति निर्माता अच्छी भूमिका निभा सकते हैं।

श्री सिंह ने कहा कि विश्व में 5 साल की उम्र तक के चार बच्चों में एक कुपोषण का शिकार हैं। भारत मे सभी आय वर्ग मे कमज़ोर बच्चों की एक बड़ी संख्या है। ऐसे में कुपोषण से लड़ने में अंडा हमारी बड़ी मदद कर सकता है।

कृषि मंत्री ने कहा कि अंडे में उच्च पोषक तत्व काफी मात्रा में मौजूद रहते हैं, साथ ही अंडा प्रोटीन,विटामिन ए, विटामिन बी-6, बी-12, अमीनो एसिड और फोलेट, आयरन, फास्फोरस, सेलेनियम जैसे खनिज आदि का भी अच्छा स्त्रोत माना जाता है। उन्होंने कहा कि हाल के शोध से पता लगा है कि अंडे के पोषक तत्व अंधेपन को कम करने में भी सहायक होते हैं। उन्होंने कहा कि नेशनल एग कोऑर्डिनेशन कमेटी, कंपाउंड लाइवस्टॉक फीड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, पशु स्वास्थ्य कंपनियां, पोल्ट्री फेडरेशन ऑफ इंडिया और पोल्ट्री संघों ने इस कार्यक्रम मे अच्छा योगदान किया है।

इसके पहले श्री सिंह आज भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नयी दिल्ली द्वारा अरहर की नयी उन्नत प्रजाति पूसा 16 का निरीक्षण किया। अरहर की ये प्रजाति, अतिशीघ्र, 120 दिनों में पकती है जबकि मौजूदा दूसरी किस्मों को पकने में 165 से 180 दिन लगते हैं। यह प्रजाति एक साथ पकती है और मशीन से कटाई के लिए उपयुक्त है। इस प्रजाति के बाद खेत में सरसों, आलू, गेंहू आदि फसलें आसानी से लगाई जा सकती है। इसकी पैदावार 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और इसमें प्रोटीन की मात्रा 23.5 प्रतिशत होती है।

केंद्र ने राज्यों से पशुधन मिशन हेतु आवंटित 292 करोड़ उपयोग करने को कहा


केन्‍द्र ने चारा विकास के लिए राज्‍यों से 292 करोड़ रुपये का उपयोग करने और इसके लिए कार्य योजना शीघ्र बनाने को कहा

अधिकता वाले क्षेत्र से चारे की कमी वाले क्षेत्र में चारा भेजने के लिए केन्‍द्र रेलवे से सहयोग करेगा

कृषि और किसान कल्‍याण मंत्रालय में पशुपालन, डेयरी तथा मछली पालन विभाग के सचिव श्री देवेन्‍द्र चौधरी ने राज्‍यों के प्रधान पशुपालन सचिवों के साथ वीडियो कॉन्‍फ्रेंस बैठक की। इसमें निम्‍नलिखित निर्णय लिए गए :

1. विभिन्‍न राज्‍यों/केन्‍द्र शासित प्रदेशों के लिए राष्‍ट्रीय पशुधन मिशन के अंतर्गत 292 करोड़ रुपये का आवंटन। चारा विकास (वृद्धि तथा उत्‍पादन संबंधी गतिविधि) शुरू करने के लिए इस धन का शीघ्र इस्‍तेमाल करना। इसके लिए राष्‍ट्रीय पशुधन मिशन कार्य योजना (एनएपी) शीघ्र तैयार करना आवश्‍यक है, ताकि कम वर्षा वाले विशेषकर महाराष्‍ट्र, कर्नाटक, राजस्‍थान, तेलंगाना तथा मध्‍यप्रदेश जैसे चारे की कमी वाले राज्‍यों में पशुओं के चारे की उपलब्‍धता सुनिश्चित की जा सके।

2. चारा विकास कार्यक्रम उपयोजना के अंतर्गत राष्‍ट्रीय किसान विकास योजना (आरकेवीवाई) के तहत अलग से 100 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया। इसके अंतर्गत सूखा प्रभावित क्षेत्रों में चारा विकास के लिए प्रति हेक्‍टेयर (अधिकतम 2 हेक्‍टेयर के लिए) 3200 रुपए सहायता दी जाती है। एनएलएम और आरकेवीवाई को एमएनआरईजीए के साथ जोड़कर एक एकीकृत योजना बनाई जाएगी।

3. अधिक उपलब्‍धता वाले क्षेत्रों से कमी वाले क्षेत्रों में चारा ले जाने के लिए रेलवे के साथ सहयोग किया जाएगा। यह भुगतान आधार पर किया जाएगा।

सचिव श्री देवेन्‍द्र चौधरी ने 15 मई, 2016 तक पिछले वर्ष में धन के उपयोग का प्रमाण प्रस्‍तुत करने और चालू वर्ष के लिए प्रस्‍ताव पेश करने को कहा। अगला वीडियो कांफ्रेंस 19 मई, 2016 को होगा।

दालों के उत्पादन हेतु 500 करोड़,बीज हब का निर्माण,50 हजार टन बफर स्टॉक


राष्ट्र में बीज हब का निर्माण किया जा रहा है- श्री राधा मोहन सिंह 

दलहनी फसलों की उत्पादकता तथा उत्पादन बढ़ाने हेतु 500 करोड़ रू. के बजट का प्रावधान 

दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर भारत 

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री, श्री राधा मोहन सिंह ने भारतीय दलहन अनुसंधान संस्‍थान, कानपुर द्वारा अंतर्राष्‍ट्रीय दलहन वर्ष के उपलक्ष्‍य में कार्यक्रम को सम्बोधित किया। श्री सिंह कहा कि भारत सरकार ने इस वर्ष के आम बजट में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के अंतर्गत दलहनी फसलों की उत्पादकता तथा उत्पादन बढ़ाने हेतु 500 करोड़ रू. के बजट का प्रावधान रखा है जिससे देश में दलहन सुरक्षा की ओर हम कई कदम आगे बढ़ेंगे। दालों के उच्च गुणवत्तायुक्त बीजों की उपलब्धता बढ़ाने हेतु राष्ट्र में बीज हब का निर्माण किया जा रहा है। आने वाले समय में उच्य गुणवत्ता वाला बीज दलहन उत्पादन में क्रांति लाएगा। 

श्री सिंह कहा कि दलहनी फसलों में क्षमता के अनुरूप (1.2 से 2.0 टन) उत्पादन न मिल पाने के बाधक कारकों में दलहन उत्पादन क्षेत्रों में व्याप्त जैविकएवं अजैविक कारक तथा सामाजिक एंव आर्थिक कारण प्रमुख हैं। जैविक कारकों में मुख्य रूप से रोगों एंव कीटों की बहुतायात इन फसलों की उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। अजैविक कारकों में मुख्य रूप से फसल पकते समय सूखे की स्थिति एवं उच्च तापमान, पौधा वृद्धि के समय तथा फूल आने के समय शीत के प्रति अतिसंवेदनशीलता और मृदा की लवणता एवं क्षारीयता प्रमुख हैं। इन सभी कारणों से दलहनी फसलों में उत्पादन कम होता है और उत्पादकता स्थिर नहीं रहती है। फलतः दलहनी फसलों को निम्न उत्पादकता युक्त तथा जोखिम भरी फसलों के रूप में देखा जाता रहा हैं। 

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधा मोहन सिंह के संबोधन का मूल पाठ निम्नलिखित है 

“अंतर्राष्‍ट्रीय दलहन वर्ष के उपलक्ष्‍य में यहां आप सभी के बीच आकर मुझे प्रसन्‍नता का अनुभव हो रहा है। शाकाहारी भोजन में दलहनी फसलों का महत्वपूर्ण स्थान है। दलहनी फसलों में प्रोटीन की मात्रा धान्य फसलों की अपेक्षा 2.3 गुना अधिक पायी जाती है। विभिन्न दालों में प्रोटीन की मात्रा औसतन 22 से 24 प्रतिशत तक पायी जाती है। प्रोटीन के साथ अन्य पोषक तत्व जैसे कार्बोहाईड्रेट,खनिज पदार्थ,विटामिन व अन्य पोषक तत्व भी दालों में प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। लौह तत्व जो कि एनिमिया रोग का नाश करने में सहायक है भी दलहनी फसलों में पाए जाते हैं। भारत एंव दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में दालों का पोषक तत्वों तथा शाकाहारी जनसंख्या की बहुलता के कारण साथ अन्य देशों की अपेक्षा अधिक महत्व है। अमेरिकी तथा अन्य यूरोपीय देशों में भी दालों के विभिन्न उत्पाद जैसे सूप,चटनी,बेकरी एवं ग्लुटेन मुक्त उत्पाद लोकप्रिय हैं। देश के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में लगभग एक दर्जन से भी अधिक दलहनी फसलें उगायी जाती हैं। मुख्य रूप से उगाई जानी वाली दलहनी फसलों में चना (41 फीसदी), अरहर (15 फीसदी), उड़द (10 फीसदी), मूँग (9 फीसदी), लोबिया (7 फीसदी), मसूर एंव मटर (5 फीसदी) हैं। इसके अलावा राजमा, कुल्थी, खेसारी, ग्वार इत्यादि अन्य दलहनी फसलें भी भारत में उगाई जाती हैं। 

सन् 2010 से पहले देश में दालों का उत्पादन स्थिरता की स्थिति से जूझ रहा था और 140-150 लाख टन के आसपास बना हुआ था। 2010 के पश्चात् दलहन उत्पादन में राष्ट्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन दर्ज किया गया और उत्पादन 192.50 लाख टन (2013-14) के रिकार्ड स्तर तक जा पहुँचा जो अभी तक का सबसे अधिक उत्पादन रहा है। यह शानदार उपलब्धि दलहन शोधकर्ताओं और दलहन उत्पादक कृषकों के लिए प्रेरणा का कारण बनी है तथा इस ने शोधकर्ताओं एवं कृषकों को देश को दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कार्य करने हेतु प्रोत्साहित किया है। 

भारत विश्व का सबसे बड़ा दलहन उत्पादक एवं उपभोक्ता देश है। विश्व के कुल उत्पादन (लगभग 800 लाख टन) का लगभग 25 फीसदी भारत में ही पैदा होता है। इसके साथ लगभग इतनी ही मात्रा में (28 फीसदी) दालों का उपभोग भी यह देश करता है। सन् 2012-13 में कुल दलहन उत्पादन लगभग 183.40 लाख टन दर्ज किया गया था जो पिछले साल की अपेक्षा 7.31 फीसदी अधिक था। यह 2013-14 में बढ़कर 192.50 लाख टन पहुँच गया किंतु वर्ष 2014-15 दलहन उत्पादन के लिए अच्छा नही रहा। इसके पीछे मुख्य रूपसे प्रतिकूल मौसम का प्रभाव था। फलस्वरूप भारत में 2014-15 में दलहन उत्पादन 172.0 लाख टन रहा यद्यपि यह गिरावट स्थायी नही है और अगले वर्ष इसकी क्षतिपूर्ति करने के लिए राष्ट्र प्रतिबद्ध है। 

दलहन उत्पादन एवं उत्पादकता में सन् 2000-2012 के मध्य सकारात्मक वृद्धि दर्ज की गयी जो पिछले तीन दशकों में उच्चतम स्तर की वृद्धि है। पिछले चार दशकों (1970-2010) में दलहन उत्पादन की विकास दर 2.61 फीसदी रही जो गेहूँ (1.89 फीसदी), धान (1.59 फीसदी) और सभी धान्य फसलों (1.88 फीसदी) से अधिक थी। यह एक स्पष्ट संकेत है कि दलहन उत्पादन में वृद्धि की संभावनायें अन्य फसलों से अधिक हैं। विभिन्न दलहनी फसलों के तुलनात्मक अध्ययन में सबसे ज्यादा वृद्धि दर चना उत्पादन (5.89 फीसदी) में दर्ज की गई। इसके पश्चात 2.61 फीसदी वृद्धि अरहर में दर्ज की गई। आधुनिक तकनीकी, इनका सही समय पर किसानों को हस्तान्तरण तथा किसानों द्वारा इनका अंगीकरण इन फसलों में वृद्धि के प्रमुख कारक हैं। शोधकर्ताओं के अथक प्रयास, सरकार की ओर से सकारात्मक पहल, सहयोगी विभागों की सक्रियता, नीति निर्माताओं की सकारात्मक सोच और सबसे ऊपर किसानों की सक्रिय भागीदरी से यह वृद्धि दर प्राप्त हो पाई है। 

इन सभी कारणों के साथ साथ अनुकूल वातावरण के प्रभाव को भी नकारा नही जा सकता। साथ ही दलहनी फसलों की उन्नतशील प्रजातियों का विकास, गुणवत्तायुक्त बीजों की उपलब्धता, फसल प्रबंधन एंव सुरक्षा तकनीक और अन्य सहयोगी विभागों की सक्रियता की भूमिका को भी नकारा नही जा सकता जो कुल मिलाकर दलहन उत्पादन को बढ़ानें के मुख्य आधार रहे हैं। इसके बावजूद वर्तमान में देश में दलहन सुनिश्चितता हेतु प्रतिवर्ष लगभग 30-40 लाख टन दालों का आयात विदेशों से करना पड़ता है जो सरकारी खजाने पर काफी बोझ ड़ालता है। ऐसी स्थिति में राष्ट्र में दलहन उत्पादन बढ़ाने की दिशा में सतत् प्रयास करनेकी आवश्यकता है। इस दिशा में दलहनी फसलों का क्षेत्र विस्तार जो कि लगभग 40-50 लाख हे0 का है, में अथक प्रयास करने से भारत अवश्य ही दलहन उत्पादन में स्वावलम्बी बन सकेगा। 

दलहनी फसलों में क्षमता के अनुरूप (1.2 से 2.0 टन) उत्पादन न मिल पाने के बाधक कारकों में दलहन उत्पादन क्षेत्रों में व्याप्त जैविकएवं अजैविक कारक तथा सामाजिक एंव आर्थिक कारण प्रमुख हैं। जैविक कारकों में मुख्य रूप से रोगों एंव कीटों की बहुतायात इन फसलों की उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। अजैविक कारकों में मुख्य रूप से फसल पकते समय सूखे की स्थिति एवं उच्च तापमान, पौधा वृद्धि के समय तथा फूल आने के समय शीत के प्रति अतिसंवेदनशीलता और मृदा की लवणता एवं क्षारीयता प्रमुख हैं। इन सभी कारणों से दलहनी फसलों में उत्पादन कम होता है और उत्पादकता स्थिर नहीं रहती है। फलतः दलहनी फसलों को निम्न उत्पादकता युक्त तथा जोखिम भरी फसलों के रूप में देखा जाता रहा हैं। 

नई उपलब्ध तकनीकों के अलावा दालों को गैर-परंपरागत क्षेत्रों में उगाने की पहल भी नई उम्मीदें लेकर सामने आयी है। साथ ही धान परती क्षेत्रों में दालें उगाने की संभावनाओं से क्षेत्रफल विस्तार की संम्भावनाओं को बल मिला है। शोधकर्ताओं ने चने और अरहर के जीनोम को पूर्णतया अनुक्रमित कर लिया है। इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने मूँग के जीनोम का भी मसौदा तैयार कर लिया है। इन फसलों में जीनोम के अनुक्रमित हो जाने से वांछित गुण वाली प्रजातियों के शीघ्र विकास में सहायता मिलेगी। ट्रान्सजेनिक अरहर और चने के विकास में भी शीघ्रता आयेगी जो फली भेदक कीट के प्रति प्रतिरोधिता प्रदान करेगा और इन कीटों का फसलों पर प्रभाव न के बराबर होगा। अनुसंधान के अलावा तकनीकी प्रसार को बढा़वा देने के लिए बहुत सारी परियोजनायें संस्थान द्वारा चलायी जा रही है जिनमें मुख्य रूप से कृषक भागीदारी द्वारा बीज उत्पादन, किसान से किसान तक विस्तार मॉडल, दलहन बीज गाँव का विकास, अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन, किसान अनुकूल साहित्य का प्रकाशन और आनलाइन किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए पल्स एक्सपर्ट प्रणाली का विकास शामिल हैं।

दलहनी फसलों में क्षमता के अनुरूप उत्पादन प्राप्त करने तथा तकनीकी अन्तराल को कम करने हेतु अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। इनमें मुख्य रूप से गुणवत्तायुक्त बीज का उत्पादन, खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग, सुलभ सिंचाई पद्धति का विकास, अरहर में संकर प्रजतियों का विकास, नई पौध किस्‍म का विकास, मार्कर सहायतार्थ अनुसंधान को बढ़ावा तथा विशिष्ट क्षेत्रों के लिए प्रजातियों का विकास शामिल है। इन सभी प्रयासों के समन्वय से निश्चय ही दलहन उत्पादन बढा़या जा सकेगा। 

मानव भोजन तथा मृदा में दलहनी फसलों की उपयोगिता को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में वर्ष 2016 को अंतर्राष्ट्रीय दलहन वर्ष घोषित किया गया हैं ताकि संपूर्ण विश्व में आम जनमानस को दलहनी फसलों के उपयोगों के बारे में जागरूक किया जा सके। तथा इनका प्रचार एवं प्रसार संपूर्णं विश्व में हो। भारत सरकार दलहनी फसलों के आम जीवन में महत्व को भली प्रकार से जानती है तथा इन्हें लाभकारी बनाने हेतु सरकार ने अनेक क्रांतिकारी योजनाएं बनायी हैं तथा क्रियान्वित की हैं। किसानों को प्रतिकूल मौसम तथा प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए बेहद कम प्रीमियम पर फसल बीमा योजना प्रारंभ की गयी है। साथ ही प्रतिकूल परिस्थितियों में आकस्मि‍कता से निपटने हेतु देश में दालों का बफर स्टॅाक भी बनाया जा रहा है जिसमें अब तक 50000 टन से अधिक बफर स्टॉक तैयार किया जा चुका है। इसके साथ ही बाजार भाव पर दालों के अधिग्रहण की प्रक्रिया भी प्रारंभ की गयी है। दलहन कृषकों को प्रोत्साहित करने हेतु सभी मुख्य दलहनी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाया गया है। गत वर्ष में चना का समर्थन मूल्य 2.42 प्रतिशत, अरहर का 1.16 प्रतिशत, मूंग का 2.22 प्रतिशत, उड़द का 1.16 प्रतिशत तथा मसूर का 4.24 प्रतिशत बढ़ाया गया है। 

भारत सरकार ने इस वर्ष के आम बजट में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के अंतर्गत दलहनी फसलों की उत्पादकता तथा उत्पादन बढ़ाने हेतु 500 करोड़ रू. के बजट का प्रावधान रखा है जिससे देश में दलहन सुरक्षा की ओर हम कई कदम आगे बढ़ेंगे। दालों के उच्च गुणवत्तायुक्त बीजों की उपलब्धता बढ़ाने हेतु राष्ट्र में बीज हब का निर्माण किया जा रहा है। आने वाले समय में उच्य गुणवत्ता वाला बीज दलहन उत्पादन में क्रांति लाएगा। 

उपरोक्त के अतिरिक्त दलहनी फसलों में कई अन्य कार्यक्रम जैसे दलहन ग्राम, राष्ट्रीय किसान विकास योजना, ए 3 पी तथा मेरा गांव मेरा गौरव जैसी अनेक महत्वाकांक्षी योजनाऐं भी प्रगतिशील हैं और मुझे पूर्णं विश्वास है कि इन योजनाओं का संपूर्ण लाभ किसानों को मिलेगा। 

दलहन की खेती हमेशा से वर्षा आधारित क्षेत्रों एवम् कम उपजाऊ क्षमता वाली भूमि में होती रही है। इसकी वजह से उत्पादन एंवम उत्पादकता में स्थिरता नही लायी जा सकी है। विश्व की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ने के कारणपोषण युक्त खाद्य सुरक्षा मुहैया कराना बहुत मुश्किल होगा। इस मांग को पूरा करने के लिए दलहन उत्पादन को बढ़ाने की दिशा में नए कदम उठाने होंगे। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2050 तक देश में दालों की मांग 390 लाख टन के आसपास होगी। इस मांग को पूरा करने के लिए हमें 2.14 प्रतिशत की दर से विकास हासिल करना होगा, इसके अलावा 40-50लाख हे0 नये क्षेत्रफल को दलहन उत्पादन में लाना होगा। कटाई के बाद होने वाली हानि को रोकने के साथ 10 प्रतिशत अधिक बीज उत्पादन करना होगा, अनुसंधान एंव तकनीकी में मूलभूत परिर्वतन के साथ इसके प्रसारण और व्यापार को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देना होगा। दलहनी फसलों का भौगोलिक स्थानान्तरण इस बात का सूचक है कि दलहन को विविध जलवायु वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है।कम अवधि में पकने वाली प्रजातियों के विकास से चने का उत्पादन मध्य और दक्षिण भारत के क्षेत्रों में भी होने लगा है। साथ ही गर्मी वाली मूँग की खेती राजस्थान में भी होने लगी है।फसल की सघनता और फसल पद्धति में बदलाव करके दलहन उत्पादन को सिंचित और अंसिचित क्षेत्रों में भी फैलाये जाने की संभावना है। 

धान- गेंहू फसल पद्धति का 10.5 मिलियन हेक्‍टेयर क्षेत्रफल भी दलहन उत्पादन के प्रयोग में लाना होगा। उसी तरह से पूर्वी भारत का क्षेत्र जो धान की फसल लेने के बाद खाली रह जाता है, को भी दलहन उत्पादन में प्रयोग में लाना होगा। दलहनी फसलों को गन्ने, बाजरा और ज्वार की दो पंक्तियों के मध्य बोने से 25 लाख हे0 अतिरिक्त क्षेत्रफल दलहन उत्पादन के प्रयोग में लाया जा सकेगा।जलवायु परिवर्तन आज के दौर में एक और चुनौती के रूप में उभर रहा है। तदनुसार दलहन शोधकर्ताओं को इन चुनौतियों से निपटने के लिए दलहनी फसलों के व्यापक विभिन्नताओं वाले प्रारूप के साथ तैयार रहना होगा। 

मुझे पूर्ण विश्‍वास है कि हमारे मेहनतकश किसानों की लगन और वैज्ञानिकों द्वारा नित नवीन अनुसंधान तकनीकों के समन्‍वय से राष्‍ट्र दलहन उत्‍पादन के क्षेत्र में प्रगति पथ पर अग्रसर होगा। मेरा सभी किसान भाईयों से अनुरोध है कि वे विज्ञान द्वारा विकसित नई-नई तकनीकों का इस्‍तेमाल करें और केन्‍द्र सरकार द्वारा चलाई जा रही किसान कल्‍याणकारी योजनाओं का लाभ उठाएं। 

जय हिन्द !

किसानों हेतु क्रॉप इंश्योरेंस व एग्रीमार्केट मोबाइल एप लांच, डाउनलोड करें


केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधामोहन सिंह ने किसानों के लिए दो मोबाइल एप लांच किया। मोबाइल एप “क्रॉप इंश्योरेंस” से किसानों को न केवल उनके क्षेत्र में उपलब्ध बीमा कवर के बारे में पूरी जानकारी मिलेगी बल्कि ऋण लेने वाले किसानों को अधिसूचित फसल के लिए इंश्योरेंस प्रीमियम, कवरेज राशि तथा ऋण राशि की गणना में भी मदद मिलेगी। मोबाइल एप “एग्रीमार्केट मोबाइल” का 50 किलोमीटर के दायरे इस्तेमाल करते हुए किसान 50 किलोमीटर के दायरे की मंडियों में फसलों का मूल्य तथा देश की अन्य मंडियों में मूल्य के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते है।

श्री राधामोहन सिंह ने दोनों मोबाइल एप जारी करते हुए कहा कि कृषि तथा किसान कल्याण मंत्रालय श्री अटल बिहारी वाजपेयी तथा चौधरी चरण सिंह की जयंती मनाने के लिए 25 दिसंबर से किसान जय विज्ञान सप्ताह आयोजित कर रहा है। मोबाइल एप की लांचिंग सप्ताहभर के समारोह का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि कृषि तथा किसान कल्याण मंत्रालय का प्रयास किसानों तथा अन्य हितधारकों को सभी आवश्यक सूचनाएं समय पर उपलब्ध कराना है ताकि कृषि उत्पादकता और विश्वस्तरीय आय के लिए उचित वातावरण बनाया जा सके। इस दिशा में कृषि क्षेत्र में राष्ट्रीय ई-गर्वंनेंस योजना लांच की गई है। सभी राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों में ब्लॉक स्तरों तक हार्डवेयर देने के अतिरिक्त परियोजना में 12 क्लस्टर सेवाओं (65 से अधिक सचेत वेबसाइटों/एप्लीकेशनों के साथ) का विकास शामिल है।

कृषि और किसान कल्याण मंत्री ने कहा कि इनमें से 36 एप्लीकेशन तथा वेबपोर्टल चालू कर दिए गए हैं और इनका उपयोग विभिन्न विभाग तथा केन्द्र और राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों के हितधारकों द्वारा किया जा रहा है। इनमें से कुछ हैं एम किसान, किसान पोर्टल, इंश्योरेंस पोर्टल, नाउकास्ट, प्लांट क्वारेंटाइन इंफॉरमेशन सिस्टम, एगमार्कनेट तथा किसान नॉलेज प्रबंधन सिस्टम। परियोजना में टच स्क्रीन कियोस्क, एसएमएस, यूएसएसडी तथा मोबाइल के जरिए वेब आधारित चैनलों से सेवाएं उपलब्ध कराना शामिल है। ग्रामीण भारत में इंटरनेट की पहुंच अभी काफी कम है लेकिन किसानों तथा दूरदराजों के लोगों में मोबाइलों की संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि कृषि तथा किसान कल्याण मंत्रालय ने मोबाइल प्लेटफॉर्मों से अपनी सभी वर्तमान और भविष्य की सेवाओं को उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है। मंत्रालय के एम किसान पोर्टल को भारी सफलता मिली है। आज एसएमएस से सलाह प्राप्त करने के लिए पंजीकृत किसानों की संख्या लगभग दो करोड़ है। यह सलाह अधिकारियों तथा सभी राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों के विज्ञानिकों, आईसीएआर, आईएमडी और कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा दी जाती है।

श्री राधामोहन सिंह ने कहा कि सरकार अगले महीने नई फसल बीमा योजना लांच करेगी। इसका उद्देश्य कम प्रीमियम के साथ दावों का तेजी से निपटारा होगा।

लांच किए गए मोबाइल एप की विशेषताएः

क्रॉप इंश्योरेंस मोबाइल एप:

भारत सरकार किसानों को फसल बीमा प्रदान करने के लिए बड़ी राशि खर्च करती है ताकि किसानों को अप्रत्याशित परिस्थितियों में राहत दी जा सके। सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियां फसल बीमा प्रदान करती हैं। जिलों/ब्लॉकों में विभिन्न फसलों के लिए बीमा कवच प्रदान करने के लिए बीमा कंपनियों को राज्य/केन्द्रशासित प्रदेश नामित करते है। एक विशेष अवधि के तहत किसान इस सुविधा का लाभ उठाते है। प्राशसनिक तथा तकनीकी कारणों से सूचना किसानों तक समय पर नहीं पहुंच पाती ताकि वे लाभ उठा सके। “क्रॉप इंश्योरेंस मोबाइल एप” से किसानों को न केवल उनके क्षेत्र में उपलब्ध बीमा कवर के बारे में पूरी जानकारी मिलेगी बल्कि ऋण लेने वाले किसानों को अधिसूचित फसल के लिए इंश्योरेंस प्रीमियम, कवरेज राशि तथा ऋण राशि की गणना में भी मदद मिलेगी। इसका इस्तेमाल सामान्य बीमा राशि, विस्तारित बीमा राशि, प्रीमियम ब्यौरा तथा अधिसूचित क्षेत्र में किसी अधिसूचित फसल की सब्सिडी सूचना के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

एग्रीमार्केट मोबाइल एप:

सही बाजार सूचना के अभाव में किसानों को बिक्री में नुकसान उठाना पड़ता है। इस मोबाइल एप से किसान बाजार भावों के बारे में सूचना एकत्र कर अपना निर्णय ले सकते हैं और यह समझ सकते हैं कि बिक्री के लिए उन्हें आस-पास की किस मंडी में उत्पाद ले जाना चाहिए। यह एप किसानों को आस-पास के फसल मूल्यों से अवगत कराने के उद्देश्य से विकसित किया गया है। एग्रीमार्केट मोबाइल एप के इस्तेमाल से 50 किलोमीटर के दायरे की मंडियों में फसलों का बाजार मूल्य प्राप्त किया जा सकता है। यह एप स्वतः मोबाइल जीपीएस इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति के स्थान की पहचान करता है और 50 किलोमीटर के दायरे में आने वाले बाजारों में फसलों की कीमतों को उपलब्ध कराता है। यदि कोई व्यक्ति जीपीएस लोकेशन का उपयोग करना नहीं चाहता तो उसके लिए भी किसी अन्य बाजार या फसल का मूल्य प्राप्त करने का विकल्प है। मूल्य एगमार्कनेट पोर्टल से लिए जाते है|

यह दोनों मोबाइल एप कृषि सहकारिता तथा किसान कल्याण विभाग के आईटी प्रभाग द्वारा विकसति किए गए हैं और इन्हें गूगल स्टोर या एम किसान पोर्टल http://mkisan.gov.in/Default.aspx से डाउनलोड किया जा सकता है। 

यदि कोई राज्य इन मोबाइल एप्लीकेशनों को अपनी भाषा में बदलना चाहता है तो ऐसा अपनी भाषा में कुछ महत्वपूर्ण शब्दों के नाम उपलब्ध कराकर कर सकते है। यह एप्लीकेशन उस भाषा में तैयार हो जाएगा।

रबी सम्मेलन- 2015: 14 करोड़ किसानों को मिलेगा मृदा स्‍वास्‍थ्‍य कार्ड

कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्री श्री राधा मोहन सिंह ने 22 सितम्बर 2015 को दो दिवसीय रबी सम्मेलन- 2015 का शुभारम्भ किया। सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने जानकारी दी कि “रबी 2014-15 के लिए निर्धारित 130.75 मिलियन टन के लक्ष्‍य की तुलना में रबी 2015-16 के लिए 132.78 मिलियन टन का महत्‍वकांक्षी खाद्यान्‍न लक्ष्‍य निर्धारित किया गया है। श्री सिंह ने यह भी जानकारी दी कि दलहन के लिए एनएफएसएम के तहत 50 प्रतिशत निधियां निर्धारित कि गई है। कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्री ने कहा कि मृदा स्‍वास्‍थ्‍य कार्ड के अन्तरगत सभी जोतों को कवर करने के प्रयास किए जा रहे हैं और वर्तमान वर्ष 2015-16 के लिए लक्ष्‍य को 83 लाख से बढ़ाकर 100 लाख नमूने कर दिया गया है। 

कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्री श्री राधा मोहन सिंह का संबोधन निम्नवत है: 

“मुझे आज सुबह आप सबके समक्ष उपस्‍थित होकर प्रसन्‍नता का अनुभव हो रहा है। हम सब यहां देश के सफल रबी फसलन कार्यक्रम के लिए विचार-विमर्श करने के लिए एकत्र हुए हैं। मुझे पक्‍का विश्‍वास है कि रबी सम्‍मेलन 2015-16 आगामी रबी मौसम के लिए कार्यक्रम तैयार करने में सफल विचार-विमर्श, चिंतन व अनुभव बांटने के लिए मंच प्रदान करेगा। रबी 2014-15 के लिए निर्धारित 130.75 मिलियन टन के लक्ष्‍य की तुलना में रबी 2015-16 के लिए 132.78 मिलियन टन का महत्‍वकांक्षी खाद्यान्‍न लक्ष्‍य निर्धारित किया गया है। 

मुझे यह जानकर खुशी है कि कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों में लक्षित 4 प्रतिशत वार्षिक विकास प्राप्‍त करने के लिए वर्ष 2014-15 से कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्रालय की विभिन्‍न स्‍कीमों को विशिष्‍ट मिशनों, स्‍कीमों व कार्यक्रमों में पुन:संरचित किया गया है। 17.8.2015 को जारी चतुर्थ अग्रिम आकलन के अनुसार 2013-14 के दौरान 265.04 मिलियन टन उत्‍पादन की तुलना में 2014-15 के दौरान कुल खाद्यान्‍न उत्‍पादन 252.68 मिलियन टन था। उत्‍पादन में कमी असमान व असामयिक वर्षा व प्राकृतिक आपदाओं के कारण थी। 886.9 मिमी की सामान्‍य वर्षा की तुलना में वर्ष 2014-15 में देश में 777.5 मिमी वर्षा हुई जो 12 प्रतिशत कम थी। रबी 2014-15 में बाढ़ व ओलावृष्‍टि जैसी प्राकृतिक आपदा आई जिससे उत्‍पादन प्रभावित हुआ। मॉनसून की ऐसी अनियमितताओं के बावजूद हमारे मेहनती किसानों ने देश में पर्याप्‍त उत्‍पादन सुनिश्‍चित किया है। 

जैसा कि आप सब जानते हैं, इस वर्ष भारत में सामान्‍य से कम वर्षा हुई (दक्षिण पश्‍चिम मॉनसून) जिससे राष्‍ट्रीय स्‍तर पर 21 सितम्‍बर यानी आज की स्‍थिति के अनुसार 14 प्रतिशत कम वर्षा हुई। देश के कुछ क्षेत्रों में इससे भी कम वर्षा हुई। उत्‍तर पश्‍चिमी भारत में 20 प्रतिशत व प्रायद्वीपीय भारत में 14 प्रतिशत कम वर्षा हुई। दूसरी तरफ असम व गुजरात में विनाशकारी बाढ़ आई। कुल मिलाकर देश में 317 जिलों (जिलों का 52 प्रतिशत) में कम वर्षा हुई। देश ने सूखे से उत्‍पन्‍न आकस्‍मिक स्‍थिति से निपटने के लिए अपने आपको तैयार कर लिया है। केंदीय शुष्‍कभूमि क्षेत्र अनुसंधान संस्‍थान (सीआरआईडीए) ने देश में सूखा प्रभावित जिलों के लिए जिला-वार आकस्‍मिक योजना तैयार की। राष्‍ट्रीय कृषि विश्‍वविद्यालयों (एसएयू) के परामर्श से राज्‍य सरकारों ने आकस्‍मिक स्‍थिति से निपटने के लिए अपने क्षेत्र के लिए उपयुक्‍त योजनाओं में संशोधन किया। जून, 2015 में कुछ सीमा तक प्रारंभिक कमी पूरी की गई। इसके कारण सितम्‍बर, 2015 को खरीफ अनाज के तहत फसल कवरेज 54.94 मिलियन है जो 2014-15 के इसी सप्‍ताह के लिए सामान्‍य से अधिक है। मुझे खुशी है कि चावल, दलहन व तिलहन के तहत कुल कवरेज संतोषजनक रही है। दुर्भाग्‍य से ज्‍वार जैसे मोटे अनाज में सामान्‍य से कम क्षेत्रफल रिकार्ड किया गया। हालांकि देश के लिए खरीफ में समग्र फसल कवरेज संतोषजनक रही है। 

हालांकि दलहन उत्‍पादन में भारत का पहला स्‍थान है, लेकिन उत्‍पादन व खपत में अभी भी अंतर है। इसलिए भारत सरकार क्षेत्र विस्‍तार व उत्‍पादकता वृद्धि के जरिए दालों के उत्‍पादन में वृद्धि करने के लिए देश में फसल विकास कार्यक्रम अर्थात्‍राष्‍ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) व राष्‍ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के माध्‍यम से रबी दलहन को बढ़ावा देने पर ध्‍यान दे रही है। दलहन की खेती को बढ़ावा देने के लिए पहाड़ी और पूर्वोत्‍तर राज्‍यों सहित 27 राज्‍यों के 622 जिलों में एनएफएसएम – दलहन का कार्यान्‍वयन किया जा रहा है। भारत के लिए दलहन के महत्‍व को ध्‍यान में रखते हुए हमने दलहन के लिए एनएफएसएम के तहत 50 प्रतिशत निधियां भी निर्धारित की है। इससे पोषाहारीय सुरक्षा में योगदान मिलेगा। रबी के दौरान अरहर, मटर व मसूर को बढ़ावा देने के लिए 2012-13 से रबी/ग्रीष्‍म के दौरान दलहन उत्‍पादन बढ़ाने के लिए अतिरिक्‍त क्षेत्रफल कवरेज कार्यक्रम का कार्यान्‍वयन किया जा रहा है। वर्तमान वर्ष के दौरान 440 करोड़ रुपये भारत सरकार का 220 करोड़ रुपये का अंशदान परिव्‍यय प्रस्‍तावित है। दलहन उत्‍पादन को बढ़ाने के लिए दूसरा कार्यक्रम जिसे अनुमोदित किया गया है, वह 27 दलहन उगाने वाले राज्‍यों में कृषि विज्ञान केंद्रों को शामिल करना है। 12 करोड़ रुपये के परिव्‍यय से इनमें नई बीज किस्‍मों और प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन किया जाएगा ताकि अधिक उत्‍पादन किया जा सके। 

हाल के वर्षों में खाद्य तेलों की घरेलू खपत में काफी वृद्धि हुई है और वर्ष 2013-14 के दौरान इसका स्‍तर 21.06 मिलियन टन हो गया है। अभी भी वर्ष 2013-14 के दौरान हमने 56000 करोड़ रुपये से भी अधिक की लागत से 11 मिलियन टन वनस्‍पति तेल का आयात किया है ताकि वनस्‍पति तेल के उत्‍पादन और खपत के बीच के अंतर को समाप्‍त किया जा सके। अत: तिलहन उत्‍पादन एक बड़ी चुनौती है ताकि घरेलू मांग को पूरा किया जा सके और आयात बिल में कमी की जा सके। 

खरीफ और रबी/ग्रीष्‍म मौसम के दौरान लगभग 27 मिलियन हैक्‍टेयर क्षेत्र में देश भर में तिलहन की खेती की जाती है। मूंगफली और सोयाबीन दो प्रमुख तिलहन फसलें हैं जिन्‍हें अधिक निवेश जोखिम के साथ वर्षा सिंचित स्‍थिति में बृह्त स्‍तर पर बोया जाता है। तोरिया और सरसों प्रमुख रबी फसलें हैं जिन्‍हें पछेती खरीफ वर्षा पर निर्भर करते हुए 6-7 मिलियन हैक्‍टेयर क्षेत्र में बोया जाता है। सरसों की फसल में निम्‍न बीज दर (4-5 किग्रा. प्रति हैक्‍टेयर) का अतिरिक्‍त लाभ है और गेहूं (बीज 80-100 किग्रा. प्रति हैक्‍टेयर) की तुलना में सिंचाई सहित अन्‍य आदान का लाभ है। अत: गेहूं के कुछ वर्षा सिंचित क्षेत्रों में पहले से ही सरसों की खेती की जा रही है। अत: गेहूं के मामले में सरप्‍लस उत्‍पादन है और खाद्य तेलों के मामले में बहुत अधिक कमी है। कम गेहूं उत्‍पादक क्षेत्रों में सरसों की खेती की शुरूआत से न केवल आयात पर हमारी निर्भरता कम होगी बल्‍कि किसानों को बेहतर लाभ भी मिलेगा। 

तिलहन के आयात को कम करने के लिए आयात शुल्‍क को कच्‍चे खाद्य तेल पर 2.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 7.5 प्रतिशत कर दिया गया था और रिफाइन्‍ड तेल के मामले में यह शुल्‍क 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत कर दिया गया है। एनएमओओपी के तहत देश में बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए तिलहन के उत्‍पादन हेतु 200 करोड़ रुपये के परिव्‍यय से एक अतिरिक्‍त कार्यक्रम की शुरूआत की गई है। 8 करोड़ रुपये के परिव्‍यय से कृषि विज्ञान केंद्रों के तहत नई बीज प्रौद्योगिकी के प्रदर्शन के लिए दूसरे कार्यक्रम की शुरूआत की गई है। ऐसे राज्‍य, जहां चावल की परती भूमि वाले क्षेत्र उपलब्‍ध हैं, उनमें पूर्वी भारत में हरित क्रांति लाने के तहत प्रदर्शन की शुरूआत की गई। यह उपयोगी होगा यदि अन्‍य राज्‍य भी इस प्रकार के क्षेत्रों, जिनमें परती भूमि को तिलहन और दलहन की खेती के लिए उपयोग में लाया जा सके, को चिन्‍हित करें। इससे उपलब्‍ध नमी का लाभ लेने में मदद मिलेगी और देश की फसल गहनता में भी वृद्धि होगी। 

विलम्‍ब से और कम वर्षा की स्‍थिति में किसानों को प्रतिपूर्ति के लिए तिलहन फसलों हेतु वर्धित बीज राजसहायता प्रदान की गई थी। यह एनएमओओपी के तहत सामान्‍य किस्‍मों के मामले में 1200 से बढ़कर 1800 रुपये प्रति क्‍विंटल और तिलहन की संकर किस्‍मों के लिए 2500 रुपये से बढ़कर 2750 रुपये हो गई। एनएफएसएम के तहत चावल, गेहूं, दलहन और मोटे अनाजों के लिए भी इसी प्रकार की वृद्धि की गई है ताकि विलम्‍बित और कम मॉनसून की स्‍थिति में फसलों की पुन:बुआई के लिए किसानों को प्रतिपूर्ति प्रदान की जा सके।

जैसा कि आप जानते हैं कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी देश के किसानों के कल्‍याण के लिए कार्य करने हेतु तत्‍पर और कृतसंकल्‍प हैं। 15 अगस्‍त, 2015 को उन्‍होंने घोषणा की है कि हमारा मंत्रालय किसान कल्‍याण पर ध्‍यान केंद्रित करेगा ताकि हम कृषि क्षेत्र के दीर्घावधिक विकास को बढ़ावा दे सकें। अब हमारे मंत्रालय का नाम कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्रालय हो गया है। हमारे विभाग का नाम कृषि, सहकारिता और किसान कल्‍याण विभाग हो गया है। एक संयुक्‍त सचिव स्‍तरीय अधिकारी की देखरेख में किसान कल्‍याण के लिए विभाग के भीतर एक प्रभाग तैयार किया गया है। अब से हम न केवल फसलों के उत्‍पदन और उत्‍पादकता को बढ़ाने के लिए काम करेंगे बल्‍कि किसानों की निवल आय को बढ़ाने पर भी ध्‍यान देंगे। रणनीति में निम्‍न लागत प्रौद्योगिकी को अपनाने के माध्‍यम से खेती की लागत को कम करना, समेकित राष्‍ट्रीय मंडी के माध्‍यम से उत्‍पाद का बेहतर मूल्‍य प्रदान करना, समग्र बीमा योजना के माध्‍यम से जोखिम कम करना और अन्‍य महत्‍वपूर्ण कल्‍याणकारी कार्यकलाप शुरू करना शामिल हैं। मैं अपने किसानों के जीवन को बेहतर बनाने में नवाचारी कार्यक्रम तैयार करने और शुरू करने में सभी राज्‍यों की सक्रिय भागीदारी की आशा करता हूं। इस संबंध में बेहतर परिणाम प्राप्‍त करने में केंद्र और राज्‍य दोनों को मिलकर काम करने की आवश्‍यकता है। 

सरकार किसानों के दीर्घावधिक हित के लिए कई कदम उठा रही है। मृदा स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ावा देना इस प्रकार के महत्‍वपूर्ण कार्यक्रमों में से एक हैं। फरवरी, 2015 में माननीय प्रधानमंत्री द्वारा एक नई योजना – मृदा स्‍वास्‍थ्‍य कार्ड की शुरूआत की गई थी। देश में 14 करोड़ जोतों में मृदा परीक्षण आधारित उर्वरकों और आवश्‍यक मृदा पोषकतत्‍वों के प्रयोग को बढ़ावा देने का लक्ष्‍य है। 12 मापदंडों पर मृदा आधारित सेंपलिंग और परीक्षण में एकरूपता लाने पर जोर है। इन मृदा स्‍वास्‍थ्‍य कार्डों का प्रत्‍येक 3 वर्ष में नवीनीकरण किया जाएगा ताकि मृदा स्‍वास्‍थ्‍य स्‍थिति में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का लगातार मॉनिटरिंग किया जा सके। शुरूआत में योजना की अवधि 3 वर्ष की है। तथापि प्रथम चरण के दौरान 2 वर्षों के भीतर अर्थात वर्ष 2015-16 और 2016-17 में सभी जोतों को कवर करने के प्रयास किए जा रहे हैं। अत: वर्तमान वर्ष 2015-16 के लिए लक्ष्‍य को 83 लाख से बढ़ाकर 100 लाख नमूने कर दिया गया है। मृदा नमूना संकलन फील्‍ड स्‍तर पर सकारात्‍मक वातावरण सृजित करके अभियान मोड में किया जाएगा। मैं आपकी पूरी सहायता चाहता हूं। आप सभी यह जानते हैं कि वर्ष 2015 को ‘अंतर्राष्‍ट्रीय मृदा वर्ष’ के रूप में मनाया जा रहा है। 

हम राज्‍य सरकार की सक्रिय भागीदारी से इस लक्ष्‍य को पूरा करने के लिए कृतसंकल्‍प है और वे आईसीएआर संस्‍थानों, एसएयू और केवीके को भी शामिल कर सकते हैं। राज्‍य सरकार अपने स्‍टाफ और प्रयोगशालाओं का उपयोग कर सकते हैं तथा वे मृदा परीक्षण के प्रयोजन के लिए निजी एजेंसियों को भी ऑउटसोर्स कर सकते हैं। दिशा निर्देशों में कुछ नमूनों के संकलन हेतु स्‍थानीय व्‍यक्‍ति को भी काम पर लगाने की व्‍यवस्‍था की गई है। इस स्‍कीम से ऐसे उर्वरकों, जो लागत की बचत करने वाले हैं, के संतुलित उपयोग को अपनाने के लिए किसानों को भी लाभ मिलेगा तथा प्रति यूनिट फसल उपज में सुधार होगा। 

नई मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं शीघ्र स्‍थापित करके तथा वर्तमान प्रयोगशाला जिनके पास सूक्ष्‍म पोषकतत्‍व पैरामीटरों को विश्‍लेषण करने की सुविधा नहीं है, को उन्‍नत बनाकर मृदा परीक्षण अवसंरचना को अद्यतन बनाया जाए तथा साथ ही आईसीएआर के सभी केंद्रों, एसएयू तथा केवीके की प्रयोगशाला सुविधाओं का भी उपयोग किया जाए। राज्‍य सरकार, आईसीएआर, एसएयू और केवीके के सेवा क्षेत्र तथा विभिन्‍न परीक्षण प्रयोगशाला के बीच विस्‍तृत मानचित्रण किया जाए ताकि मृदा नमूना संकलन तथा एसएचसी के वितरण के बीच में एक कड़ी हो। राज्‍य सरकारों सहित विभिन्‍न एजेंसियों के नियंत्रणाधीन सभी मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं को प्रतिदिन न्‍यूनतम 2 शिफ्ट में काम करने की सलाह दी जाए। स्‍थैतिक और गतिशील मृदा परीक्षण प्रयोगशाला को मजबूत बनाने के अलावा किए गए विस्‍तृत मानचित्रण के आधार पर जहां आवश्‍यक हो, अंतर को पाटने के लिए मिनी प्रयोगशालाओं का इस्‍तेमाल किया जाए। आईसीएआर ने ‘मृदा-परीक्षक’ नामक मिनी प्रयोगशाला विकसित की है। 

मुझे इस बात की जानकारी है कि राज्‍यों द्वारा इस संबंध में की गई प्रगति संतोषजनक है और कुछ राज्‍यों ने 60 प्रतिशत से भी अधिक लक्ष्‍य की प्राप्‍ति की है। फिर भी, हम मार्च 2016 तक 100 लाख मृदा संकलन और परीक्षण प्राप्‍त करना चाहेंगे। आपको अधिक तेजी से स्‍कीम की योजना बनानी होगी तथा उसे कार्यान्‍वित करना होगा। हमारे पास शेष मृदा नमूनों के संकलन के लिए अक्‍तूबर और नवम्‍बर दो महीने का अल्‍प समय होगा। हम इसके लिए तत्‍पर हैं कि किसान शीघ्र ही मृदा स्‍वास्‍थ्‍य कार्ड प्राप्‍त करें तथा इससे लाभ उठाएं। मंत्रालय में मेरे अधिकारी इस कार्य को समय पर पूरा करना सुनिश्‍चित करने के लिए सभी संभावित सहायता प्रदान करेंगे। 

हमारी सरकार ने देश में केवल नीम कोटिड यूरिया उत्‍पादित करने के लिए इस वर्ष एक महत्‍वपूर्ण निर्णय लिया। यह पौधों को आसानी से पोषकतत्‍व उपलब्‍ध कराएगा। मैं आपको इसके उपयोग को बढ़ावा देने तथा अत्‍यधिक उपयोग तथा बरबादी से बचने की सलाह दूंगा। 

अन्‍य उभरती चिंता विभिन्‍न प्रकार उर्वरकों के उपयोग, जिससे मृदा स्‍वास्‍थ्‍य बिगड़ रही है, में असंतुलन को लेकर है। जैव कृषि को बढ़ावा देने तथा जैव उत्‍पादों को सक्षम मंडियों का विकास करने के लिए मेरे मंत्रालय ने राष्‍ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए) के तहत ‘परम्‍परागत कृषि विकास योजना’ के अधीन दिशा-निर्देश तैयार किए हैं। यह व्‍यापक जैव कृषि पद्धति को बढ़ावा देता है और यह मुख्‍यत: वर्षा सिंचित और पहाड़ी क्षेत्रों पर अपना ध्‍यान केंद्रित करेगा। राज्‍यों को उन क्षेत्रों में किसानों को प्रेरित करना चाहिए जो कम अकार्बनिक उर्वरकों का उपयोग करते हैं तथा उन्‍हें 50 एकड़ के समूह में संघटित करना चाहिए। यदि क्षेत्र कम्‍पैक्‍ट है तो जैव उत्‍पादों को अपनाना आसान होगा। किसानों को अपने आप को जैव किसान में परिवर्तित करने के लिए 3 वर्षों के दौरान प्रति एकड़ 20000 रुपये दिए जाएंगे। हमारा लक्ष्‍य देश में 5 लाख एकड़ तक प्रमाणित क्षेत्र बढ़ाने के लिए प्रत्‍येक 50 एकड़ के 10000 समूह का विकास करना है। हम प्रमाणीकरण की सहभागी प्रणाली अपना रहे हैं जिसमें किसान स्‍वयं जिम्‍मेवार होंगे। आपको यह सुनिश्‍चित करना होगा कि पीजीएस – इंडिया सफल हो तथा बाजार में विश्‍वसनीयता प्राप्‍त करे। 

सरकार ने वर्ष 2015-16 हेतु 300 करोड़ रुपये का आबंटन किया है। 6068 समूहों के विकास के लिए भारत सरकार के शेयर के 214.68 करोड़ रुपये से 22 राज्‍यों और एक संघशासित क्षेत्र की वार्षिक कार्य योजना का अनुमोदन किया गया है; इसमें से 163 करोड़ रुपये राज्‍यों को पहले ही निर्गत किए जा चुके हैं। जिन राज्‍यों में अब तक अपनी वार्षिक कार्य योजना नहीं भेजी है, वे शीघ्र ही प्रस्‍ताव प्रस्‍तुत करें और जिन राज्‍यों ने निधियां प्राप्‍त कर लीं हैं प्रस्‍तावित समूह के गठन हेतु कार्य शुरू करें। 

अब हम जल के संबंध में विचार-विमर्श करना चाहते हैं क्‍योंकि यह फसल उत्‍पादन के लिए महत्‍वपूर्ण साधन है। इस संबंध में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) शुरू की गई जिसके अंतर्गत 5 वर्षों (2015-16 से 2019-20) के लिए 50000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्रालय को पीएमकेएसवाई के कार्यान्‍वयन हेतु नोडल विभाग के रूप में अभिनामित किया गया है। वर्तमान वित्‍तीय वर्ष के लिए 5300 करोड़ रुपये का परिव्‍यय किया गया है जिसमें कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्रालय के लिए 1800 करोड़ रुपये शामिल हैं। 

पीएमकेएसवाई सिंचाई आपूर्ति श्रृंखला के संपूर्ण समाधान के परिकल्‍पना करती है अर्थात जल संसाधन, वितरण नेटवर्क फार्म स्‍तर अनुप्रयोग और नई प्रौद्योगिकियों एवं सूचना पर विस्‍तार सेवाएं। स्‍कीम को ‘विकेन्‍द्रीकृत राज्‍य स्‍तर योजना एवं परियोजनात्‍मक निष्‍पादन’ अपनाते हुए क्षेत्र विकास पद्धति से कार्यान्‍वित किया जाएगा जिसमें राज्‍यों को उनकी स्‍वयं की सिंचाई विकास योजनाएं तैयार करने के लिए अनुमत्‍य किया जाएगा। यह स्‍कीम उप जिला/जिला/राज्‍य स्‍तर पर व्‍यापक सिंचाई योजना के माध्‍यम से खेत स्‍तर पर सिंचाई में निवेश की समाभिरूपता के लिए एक प्‍लेटफॉर्म के रूप में सेवा करेगी। कृपया याद रहे कि ये स्‍कीमें केवल स्रोत सृजन पर फोकस की गई पिछली सिंचाई स्‍कीमों से भिन्‍न हैं और पीएमकेएसवाई का उद्देश्‍य स्रोत सृजन और जल प्रयोग कौशल दोनों पर है। माननीय प्रधानमंत्री ने सलाह दी है कि नौजवान आईएएस एवं आईएफएस अधिकारियों को प्रशिक्षित किया जाए और जिला सिंचाई योजनाएं तैयार करने के लिए नियोजित किया जाए। मैं इस बारे में आपका सक्रिय समर्थन चाहूंगा। 

बागवानी क्षेत्र में विभिन्‍न स्‍कीमों के कार्यान्‍वयन में संकेन्‍द्रित दृष्‍टिकोण के साथ भारत विश्‍व में फलों के विश्‍व में सबसे बड़े उत्‍पादक के रूप में उभरा है। इसी प्रकार भारत सब्‍जियों के लिए भी विश्‍व का सबसे बड़ा उत्‍पादक के रूप में उभरा है। हमनें फूलों, मसालों इत्‍यादि के उत्‍पादन में भी पर्याप्‍त उपलब्‍धि हासिल की है। बागवानी क्षेत्र के विकास के लिए कार्यान्‍वित की गई सभी स्‍कीमों एवं मिशनों को अब एकीकृत बागवानी विकास मिशन (एमआईडीएच) के छाते के तहत लाया गया है। इस क्षेत्र को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी द्वारा भी आदान मिल रहे हैं। हमने 2014 में ‘सीएचएएमएएन’ (चमन) प्रारंभ किया है जो बागवानी फसल के उत्‍पादन एवं क्षेत्र मूल्‍यांकन के लिए नई दूर संवेदी सुविधा है। उपभोक्‍ताओं को उचित दरों पर फल एवं सब्‍जियां उपलब्‍ध कराने के लिए दिल्‍ली में किसान मंडी स्‍थापित की जा रही है। इस बीच में किसान उत्‍पादन संगठनों (एफपीओ) द्वारा फलों एवं सब्‍जियों का सीधा विक्रय भी प्रारंभ किया गया है। मेरा मंत्रालय अनाजों के साथ-साथ फलों, सब्‍जियों, दलहनों एवं तिलहनों को बढ़ावा देने का इच्‍छुक है जिससे कि न केवल खाद्य सुरक्षा से संतोष किया जाए बल्‍कि देश की पोषक तत्‍व सुरक्षा भी हासिल की जा सके।

सतत उत्‍पादन पर जोर देने के साथ-साथ, हमें उस लाभ को भी ध्‍यान में रखना आवश्‍यक है जो एक किसान को उसके उत्‍पाद से प्राप्‍त होता है। वर्तमान में भारतीय कृषि बाजार एपीएमसी द्वारा विभाजित है। ये बाजार किसानों के लाभ के लिए अकुशल हैं। हमारी सरकार एक एकीकृत राष्‍ट्रीय बाजार सृजन करने के लिए प्रतिबद्ध है, वह किसानों को बेहतर लाभ वसूली में मदद करेगा। इस बारे में सरकार ने पहले ही ‘राष्‍ट्रीय कृषि बाजार’ के कार्यान्‍वयन की पहल कर दी है जिसे जुलाई, 2015 में घोषित किया गया था। स्‍कीम के अनुसार, देश में चुनिंदा 585 थोक विक्रय विनियंत्रित बाजारों को जोड़ने के लिए एक सांझा ई-नीलामी प्‍लेटफार्म नियोजित किया जाएगा। सरकार संबंधित अवसंरचना/उपस्‍कर अधिप्राप्‍त करने के लिए प्रति मंडी 30 लाख रू. और राज्‍यों को नि:शुल्‍क साफ्टवेयर उपलब्‍ध कराएगी। सफलता प्रत्‍येक मंडी में मानकीकरण एवं ग्रेडिंग सुविधाएं स्‍थापित करने पर निर्भर करेगी। ऐसी सहायता के लिए अर्हता के लिए राज्‍यों को अपने एपीएमसी अधिनियम को संशोधित करना होगा जिससे कि एकल बिन्‍दु शुल्‍क प्राप्‍ति, एकल व्‍यापार लाइसेंस, राज्‍य के मध्‍य जिंसों का मुक्‍त संचलन और ई-नीलामी प्‍लेटफार्म पर व्‍यापार को समर्थ बनाया जा सके। हमारा साफ्टवेयर दिसंबर के मध्‍य तक प्रारंभ किया जाएगा और आप सभी प्‍लेटफार्म प्रयोग करने के लिए तब तक तैयार रहें। हमारा लक्ष्‍य मार्च, 2016 तक कम से कम थोक बाजारों को जोड़ने का है। 

सूखा प्रभावित क्षेत्रों की आवश्‍यकताओं को पूरा करने के लिए हमारी सरकार ने 100 करोड़ रू. के आवंटन से फसलों की सिंचाई हेतु डीजल सब्‍सिडी स्‍कीम के कार्यान्‍वयन; बीजों की उपयुक्‍त किस्‍मों की पुन: बुवाई और/अथवा खरीद में किए गए अतिरिक्‍त व्‍यय हेतु किसानों को आंशिक रूप से क्षतिपूर्ति करने के लिए बीज सब्‍सिडी पर सीमा में वृद्धि; समेकित बागवानी विकास मिशन (एमआईडीएच) के तहत 150 करेाड़ रू. के अतिरिक्‍त आवंटन से बारहमासी बागवानी फसलों से संबंधित कार्यों के कार्यान्‍वयन; और 50 करोड़ के आवंटन से राष्‍ट्रीय कृषि विकास योजना की उप स्‍कीम के रूप में अतिरक्‍त चारा विकास कार्यक्रम (एएफडीपी) के कार्यान्‍वयन की घोषणा की। 

सूखे की लंबी अवधि के वर्षा पैटर्न में हाल ही में हुए परिवर्तन जिसके परिणामस्‍वरूप कुछ क्षेत्रों में भू-जल के अति दोहन के साथ-साथ सूखे की स्‍थिति में भू-जल स्‍तर में तेजी से कमी आई है, पर विचार करते हुए केन्‍द्रीय भू-जल बोर्ड ने लगभग 150 ऐसे प्रखंडों/तालुकाओं को अधिसूचित किया है जो सर्वाधिक संवेदनशील है। ये क्षेत्र नियमित रूप से कृषि संकट का सामना कर रहे हैं तथा किसान दबाव की स्‍थिति में है। स्‍थिति की गंभीरता को महसूस करते हुए भारत सरकार ने सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करने के लिए पहली बार प्रयास किया है जिनमें प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) के तहत जल संरक्षण हेतु तत्‍काल ध्‍यान देने की आवश्‍यकता है। कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्‍याण विभाग ने हाल में सूखे के प्रभाव को कम करने तथा भू-जल पुनर्भरण में सुधार करने की प्रक्रिया में पहल करने के लिए 20 राज्‍यों/संघ शासित क्षेत्रों में भू-जल प्रखंडों को कवर करने के लिए वर्तमान वित्‍तीय वर्ष के दौरान 410 करोड़ रू. की राशि का आवंटन किया है।

चूंकि रबी मौसम आ रहा है, इसलिए राज्‍य सरकारें फसलों की अपेक्षित किस्‍मों की गुणवत्‍ता बीजों की पर्याप्‍त मात्रा की खरीद की योजना शुरू कर सकते हैं, किसानों के लिए उर्वरकों की पर्याप्‍त मात्रा एकत्र कर सकते हैं तथा सुनिश्‍चित कर सकते हैं कि बुआई मौसम के दौरान आदानों की कोई कमी ना रहे। राज्‍य सरकारें नहर प्रणाली तथा विद्युत में सिंचाई जल की पर्याप्‍त मात्रा छोड़ने के लिए भी प्रयास कर सकते हैं, जहां समय पर बुआई तथा रबी फसलों के क्षेत्र कवरेज में टयूबवेल सिंचाई प्रचलन में है। ऋण संपर्क एक अन्‍य महत्‍वपूर्ण संपर्क है जिसे हमें सुनिश्‍चित करने की आवश्‍यकता है। उपज क्षमता सुनिश्‍चित करने में समय पर बुआई बहुत महत्‍वपूर्ण है। समय समय पर किसानों के साथ उत्‍पादन प्रौद्योगिकी शेयर करने के लिए विस्‍तार कर्मियों को प्रोत्‍साहित किया जाना चाहिए। समय पर किसानों के लिए महत्‍वपूर्ण सूचना पहुंचाने के लिए हमें सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करना है। मेरे मंत्रालय ने इस उद्देश्‍य से सॉफ्टवेयर विकसित किया है। कृपया उचित परामर्श भेजने के लिए एसएमएस सुविधा तथा किसान कॉल केन्‍द्र का उपयोग करें। हमने इस वर्ष किसान चैनल की शुरूआत की है, जो कृषि क्षेत्र के लिए समर्पित है। राज्‍य सरकारों द्वारा प्रभावपूर्ण तरीके से इसका उपयोग किया जाना चाहिए। 

अंत में, एक बार फिर मैं आप सबको तथा किसानों को कृषि क्षेत्र में प्राप्‍त महत्‍वपूर्ण उपलब्‍धियों के लिए बधाई देना चाहूंगा। हमारे किसान राष्‍ट्र की खाद्य सुरक्षा उपलब्‍धियों के लिए उत्‍तरदायी हैं। वे कई अन्‍य उत्‍पादों का भी उत्‍पादन कर रहे हैं जो कृषि-प्रसंस्‍करण उद्योग को बढ़ावा देता है तथा ऑफ-फार्म नौकरियां भी पैदा करता है। मुझे विश्‍वास है कि हमारे सम्‍मिलित प्रयासों से, हम 12 वीं पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान परिकल्‍पित 25 मिलियन टन अतिरिक्‍त खाद्यान उत्‍पादन का लक्ष्‍य प्राप्‍त करने के योग्‍य होंगे। आज हमारे पास कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्‍याण विभाग, पशुपालन एवं डेयरी विकास विभाग, कृषि अनुसंधान एवं शिक्षण विभाग, उर्वरक विभाग के साथ नाबार्ड के प्रशासक एवं वैज्ञानिक हैं। हमारे पास आईसीएआर के वैज्ञानिक भी हैं। वे सभी आपकी सेवा में हैं। केन्‍द्र तथा राज्‍य सरकार दोनों को भारत के किसानों के हित में एक साथ कार्य करना होगा तथा मैं आप सभी से सम्‍मिलित तरीके से काम करने के लिए अपील करता हूं। 

मैं इस आशा के साथ भाषण समाप्‍त करता हूं कि राज्‍यों/संघ राज्‍य क्षेत्रों तथा अन्‍य विशिष्‍ट सहभागियों के बीच इस 2 दिवसीय परस्‍पर वार्ता से नई कार्य नीतियों के निर्माण में सहायता प्राप्‍त होगी जिससे देश को रबी मौसम में सफलता प्राप्‍त करने तथा देश के आर्थिक विकास तथा किसानों के कल्‍याण के लिए योगदान के लिए सहायता मिलेगी। 

मैं सम्‍मेलन के सफल होने की कामना करता हूं। 

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