पढ़िए २०१६ साल के आखिरी ‘मन की बात में मोदी जी ने क्या कहा


मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। आप सभी को क्रिसमस की अनेक-अनेक शुभकामनायें। आज का दिन सेवा, त्याग और करुणा को अपने जीवन में महत्व देने का अवसर है। ईसा मसीह ने कहा “गरीबों को हमारा उपकार नहीं, हमारा स्वीकार चाहिये”। Saint Luke के Gospel में लिखा है “जीसस ने न केवल गरीबों की सेवा की है, बल्कि गरीबों के द्वारा की गयी सेवा की भी सराहना की है” और यही तो असली empowerment है। इससे जुड़ी एक कहानी भी बहुत प्रचलित है। उस कहानी में बताया गया है कि जीसस एक temple treasury के पास खड़े थे। कई अमीर लोग आए, ढेर सारे दान दिए। उसके बाद एक ग़रीब विधवा आई और उसने दो तांबे के सिक्के डाले। एक तरह से देखा जाए दो तांबे के सिक्के, कुछ मायने नहीं रखते। वहाँ खड़े भक्तों के मन में, कौतुहल होना बड़ा स्वाभाविक था, तब जीसस ने कहा, कि उस विधवा महिला ने सबसे ज्यादा दान किया है, क्योंकि औरों ने बहुत कुछ दिया, लेकिन इस विधवा ने तो अपना सब कुछ दे दिया है। 

आज 25 दिसम्बर, महामना मदन मोहन मालवीय जी की भी जयन्ती है। भारतीय जनमानस में संकल्प और आत्मविश्वास जगाने वाले मालवीय जी ने आधुनिक शिक्षा को एक नई दिशा दी। उनकी जयन्ती पर भाव-भीनी श्रद्धांजलि। अभी दो दिन पहले, मालवीय जी की तपोभूमि बनारस में मुझे कई सारे विकास के कार्यों का शुभारम्भ करने का अवसर मिला। मैंने वाराणसी में, BHU में, महामना मदन मोहन मालवीय Cancer Centre का भी शिलान्यास किया है। इस पूरे क्षेत्र में निर्माण हो रहा है एक Cancer Centre. न सिर्फ़ पूर्वी उत्तर-प्रदेश, लेकिन, झारखण्ड-बिहार तक के लोगों के लिये एक बहुत बड़ा वरदान होगा। 

आज, भारत रत्न एवं पूर्व प्रधानमंत्री आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयी जी का भी जन्मदिन है। ये देश अटल जी के योगदान को कभी नहीं भुला सकता। उनके नेतृत्व में हमने परमाणु शक्ति में भी, देश का सिर ऊपर किया। पार्टी नेता हो, संसद सदस्य हो, मंत्री हो या प्रधानमंत्री, अटल जी ने प्रत्येक भूमिका में, एक आदर्श को प्रतिष्ठित किया। अटल जी के जन्मदिन पर मैं उनको प्रणाम करता हूँ और उनके उत्तम स्वास्थ्य के लिये ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ। एक कार्यकर्ता के नाते अटल जी के साथ कार्य करने का सौभाग्य मिला। अनेक स्मृतियाँ आँखों के सामने उभर करके आती हैं। आज सुबह-सुबह जब मैंने tweet किया तो एक पुराना video भी मैंने share किया है। एक छोटे कार्यकर्ता के रूप में अटल जी का स्नेह-वर्षा का सौभाग्य कैसा मिलता था, उस video को देख करके ही पता चलेगा। 

आज क्रिसमस के दिन, सौगात के रूप में, देशवासियों को दो योजनाओं का लाभ मिलने जा रहा है। एक प्रकार से दो नवतर योजनाओं का आरम्भ हो रहा है। पूरे देश में, गाँव हो या शहर हो, पढ़े लिखे हो या अनपढ़ हो, cashless क्या है! Cashless कारोबार कैसे चल सकता है! बिना cash खरीदारी कैसे की जा सकती है! चारों तरफ़ एक जिज्ञासा का माहौल बना है। हर कोई एक-दूसरे से सीखना-समझना चाहता है। इस बात को बढ़ावा देने के लिये, mobile banking को ताक़त मिले इसलिये, e-payment की आदत लगे इसलिये, भारत सरकार ने, ग्राहकों के लिये और छोटे व्यापारियों के लिये ‘प्रोत्साहक योजना’ का आज से प्रारंभ हो रहा है। ग्राहकों को प्रोत्साहन करने के लिये योजना है - ‘lucky ग्राहक योजना’ और व्यापारियों को प्रोत्साहन करने के लिये योजना है - ‘Digi धन व्यापार योजना’। आज 

25 दिसम्बर को क्रिसमस की सौगात के रूप में, पंद्रह हज़ार लोगों को draw system से ईनाम मिलेगा और पंद्रह हज़ार के हर-एक के खाते में एक-एक हज़ार रूपये का ईनाम जाएगा और ये सिर्फ़ आज एक दिन के लिये नहीं है, ये योजना आज से शुरू हो करके 100 दिन तक चलने वाली है। हर दिन, पंद्रह हज़ार लोगों को एक-एक हज़ार रूपये का ईनाम मिलने वाला है। 100 दिन में, लाखों परिवारों तक, करोड़ों रुपयों की सौगात पहुँचने वाली है, लेकिन, ये ईनाम के हक़दार आप तब बनेंगे जब आप mobile banking, e-banking, RuPay Card, UPI, USSD ये जितने digital भुगतान के तरीक़े हैं उनका उपयोग करोगे, उसी के आधार पर draw निकलेगा। इसके साथ-साथ ऐसे ग्राहकों के लिये सप्ताह में एक दिन बड़ा draw होगा जिसमें ईनाम भी लाखों में होंगे और तीन महीने के बाद, 14 अप्रैल डॉक्टर बाबा साहेब आंबेडकर की जन्म जयन्ती है उस दिन एक bumper draw होगा जिसमें करोड़ों के ईनाम होंगे। ‘Digi धन व्यापार योजना’ प्रमुख रूप से व्यापारियों के लिये है। व्यापारी स्वयं इस योजना से जुडें और अपना कारोबार भी cashless बनाने के लिए ग्राहकों को भी जोड़ें। ऐसे व्यापारियों को भी अलग़ से ईनाम दिये जाएँगे और ये ईनाम हज़ारों की तादात में हैं। व्यापारियों का अपना व्यापार भी चलेगा और ऊपर से ईनाम का अवसर भी मिलेगा। ये योजना, समाज के सभी वर्गों, खास करके ग़रीब एवं निम्न मध्यम-वर्ग, उनको केंद्र में रख करके बनायी गई है और इसलिये जो 50 रूपये से ऊपर खरीदते हैं और तीन हज़ार से कम पैसों की खरीदी करते हैं, उन्हीं को इसका लाभ मिलेगा। तीन हज़ार रुपये से ज़्यादा खरीदी करने वाले को इस ईनाम का लाभ नहीं मिलेगा। ग़रीब से ग़रीब लोग भी USSD का इस्तेमाल कर feature फोन, साधारण फोन के माध्यम से भी सामान खरीद भी सकते हैं, सामान बेच भी सकते हैं और पैसों का भुगतान भी कर सकते हैं और वे सब इस ईनाम योजना के लाभार्थी भी बन सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोग AEPS के माध्यम से खरीद-बिक्री कर सकते हैं और वे भी ईनाम जीत सकते हैं। कइयों को आश्चर्य होगा, भारत में आज लगभग 30 करोड़ RuPay Card हैं, जिसमें से 20 करोड़ ग़रीब परिवार जो जन-धन खाता वाले लोग हैं, उनके पास है। ये 30 करोड़ लोग तो तुरंत इस ईनामी योजना का हिस्सा बन सकते हैं। मुझे विश्वास है कि देशवासी इस व्यवस्था में रुचि लेंगे और आपके अगल-बगल में जो नौजवान होंगे, वो ज़रूर इन चीज़ों को जानते होंगे, आप थोड़ा सा उनको पूछोगे वो बता देंगे। अरे, आपके परिवार में भी 10वीं-12वीं का बच्चा होगा, तो वो भी भली-भाँति चीज़ आपको सिखा देगा। ये बहुत सरल है - जैसे आप मोबाइल फोन से WhatsApp भेजते हैं न उतना ही सरल है। 

मेरे प्यारे देशवासियो, मुझे ये जान करके ख़ुशी होती है कि देश में technology का उपयोग कैसे करना, e-payment कैसे करना, online payment कैसे करना, इसकी जागरूकता बहुत तेज़ी से बढ़ रही है। पिछले कुछ ही दिनों में cashless कारोबार, बिना नगद का कारोबार, 200 से 300 प्रतिशत बढ़ा है। इसको बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार ने एक बहुत बड़ा फैसला लिया है। ये फैसला कितना बड़ा है इसका अंदाज़ तो व्यापारी बहुत अच्छी तरह लगा सकते हैं। जो व्यापारी digital लेन-देन करेंगे, अपने कारोबार में नगद के बज़ाय online payment की पद्धति विकसित करेंगे, ऐसे व्यापारियों को Income Tax में छूट दे दी गई है। 

मैं देश के सभी राज्यों को भी बधाई देता हूँ। Union Territory को भी बधाई देता हूँ। सबने अपने-अपने प्रकार से इस अभियान को आगे बढ़ाया है। आंध्र के मुख्यमंत्री श्रीमान् चंद्रबाबू नायडू की अध्यक्षता में एक committee भी बनाई है, जो इसके लिये अनेक योजनाओं पर विचार कर रही है, लेकिन मैंने देखा कि सरकारों ने भी अपने तरीक़े से कई योजनाएँ लागू की है, आरंभ की है। किसी ने मुझे बताया की असम सरकार ने property tax और व्यापार license fee का digital भुगतान करने पर 10 फ़ीसदी छूट देने का निर्णय किया है। ग्रामीण बैंको के branch अपने 75% उपभोक्ता से जनवरी से मार्च के बीच कम से कम दो digital transaction करवाते हैं, तो उन्हें सरकार की ओर से 50 हज़ार रूपये ईनाम मिलने वाले हैं। 31 मार्च 2017 तक अगर 100% digital transaction करने वाले गाँवों को सरकार की ओर से Uttam Panchayat for Digi-Transaction के तहत 5 लाख रुपये का ईनाम देने की उन्होंने घोषणा की है। उन्होंने किसानों के लिये Digital Krishak Shiromani असम सरकार ने ऐसे पहले 10 किसानों को 5 हज़ार रुपया ईनाम देने का निर्णय किया है जो बीज और खाद की ख़रीद के लिए पूरी तरह digital भुगतान का इस्तेमाल करते हैं। मैं असम सरकार को बधाई देता हूँ लेकिन इस प्रकार से initiative लिये सभी सरकारों को बधाई देता हूँ। कई Organisations ने भी गाँव ग़रीब किसानों के बीच digital लेन-देन को बढ़ावा देने के कई सफल प्रयोग किये हैं। मुझे किसी ने बताया GNFC Gujarat Narmada valley Fertilizer और Chemical limited जो मुख्यतः खाद का काम करता है, उन्होंने किसानों को सुविधा हो इसलिये एक हज़ार Pose Machine खाद जहाँ बेचते हैं, वहाँ लगाए हैं और कुछ ही दिनों में 35 हज़ार किसानों को 5 लाख खाद के बोरे digital भुगतान के माध्यम से कर दिये और ये सब सिर्फ दो हफ्ते में किया है। और मज़ा यह है कि पिछले वर्ष की तुलना में GNFC की खाद की बिक्री में 27 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। 

भाइयो-बहनो, हमारी अर्थव्यवस्था में, हमारी जीवन व्यवस्था में, Informal Sector बहुत बढ़ा है और ज्यादातर इन लोगों का मज़दूरी का पैसा, काम का पैसा या पगार नग़द में दिया जाता है, Cash में salary दी जाती है और हमें पता है, उसके कारण मजदूरों का शोषण भी होता है। 100 रूपए मिलने चाहिये तो 80 मिलते हैं, 80 मिलने चाहिये तो 50 मिलते हैं और insurance जैसे health sector की दृष्टि से अन्य कई सुविधाएँ होती हैं उससे वो वंचित रह जाते हैं लेकिन अब cashless payment हो रहा है। सीधा पैसा बैंक में जमा हो रहा है। एक प्रकार से Informal Sector formal convert होता जा रहा है, शोषण बंद हो रहा है, cut देना पड़ता था वो cut भी अब बंद हो रहा है और मज़दूर को, कारीगर को, ऐसे ग़रीब व्यक्ति को पूरे पैसे मिलना संभव हुआ है। साथ-साथ अन्य जो लाभ मिलते हैं वे लाभ का भी वो हक़दार बन रहा है। हमारा देश तो सर्वाधिक युवाओं वाला देश है। Technology हमें सहज़ साध्य है। भारत जैसे देश ने तो इस क्षेत्र में सबसे आगे होना चाहिये। हमारे नौजवानों ने Start-Up से काफ़ी प्रगति की है। ये digital movement एक सुनहरा अवसर है हमारे नौजवान नये-नये idea के साथ, नयी-नयी technology के साथ, नयी-नयी पद्धति के साथ इस क्षेत्र को जितना बल दे सकते हैं देना चाहिये, लेकिन देश को काले धन से, भ्रष्टाचार से मुक्त कराने के अभियान में पूरी ताक़त से हमें जुड़ना चाहिये। 

मेरे प्यारे देशवासियो, मैं हर महीने ‘मन की बात’ के पहले लोगों से आग्रह करता हूँ कि आप मुझे अपने सुझाव दीजिये, अपने विचार बताइए और हज़ारों की तादाद में MyGov पर और NarendraModiApp पर इस बार जो सुझाव आये, मैं कह सकता हूँ 80-90 प्रतिशत सुझाव भ्रष्टाचार और काले धन के ख़िलाफ़ की लड़ाई के संबंध में आये, नोटबंदी की चर्चा आयी। इन सारी चीज़ों को जब मैंने देखा तो मैं मोटे-मोटे तौर पर कह सकता हूँ कि मैं उसको तीन भागों में विभाजित करता हूँ। कुछ लोगों ने जो मुझे लिखा है, उसमें नागरिकों को कैसी-कैसी कठिनाइयाँ हो रही है, कैसी असुविधायें हो रही हैं। इसके संबंध में विस्तार से लिखा है। लिखने वालों का दूसरा तबक़ा वो है जिन्होंने ज्यादातर उन बातों पर बल दिया है कि इतना अच्छा काम, देश की भलाई का काम, इतना पवित्र काम, लेकिन उसके बावजूद भी कहाँ-कहाँ कैसी-कैसी धांधली हो रही है, किस प्रकार से बेईमानी के नये-नये रास्ते खोज़े जा रहे हैं, इसका भी ज़िक्र लोगों ने किया है। और तीसरा वो तबक़ा है जिन्होंने जो हुआ है, उसका तो समर्थन किया है लेकिन साथ-साथ ये लड़ाई आगे बढ़नी चाहिये। भ्रष्टाचार, काला धन पूर्णतः नष्ट होना चाहिये, इसके लिए और कठोर कदम उठाने चाहिये तो उठाने चाहिये, ऐसा बड़ा ही बल दे करके लिखने वाले लोग भी हैं। 

मैं देशवासियों का आभारी हूँ कि इतनी सारी चिट्ठियाँ लिख करके मुझे आपने मदद की है। श्रीमान गुरुमणि केवल ने My Gov पर लिखा है काले धन पर लगाम लगाने का ये कदम प्रसंशा के योग्य है। हम नागरिकों को परेशानी हो रही है, लेकिन हम सब भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे हैं और इस लड़ाई में हम जो सहयोग दे रहे हैं, उससे हम खुश हैं। हम भ्रष्टाचार, काला धन इत्यादि के खिलाफ़ Military Forces की तरह लड़ रहे हैं। गुरु मणिकेवल जी ने जो बात लिखी है देश के हर कोने में से यही भावना उजागर हो रही है। हम सब इसको अनुभव कर रहे हैं। लेकिन ये बात सही है जब जनता कष्ट झेलती है, तकलीफ झेलती है तो कौन इंसान होगा जिसको पीड़ा न होती हो। जितनी पीड़ा आपको होती है, उतनी ही पीड़ा मुझे भी होती है। लेकिन एक उत्तम ध्येय के लिये, एक उच्च इरादे को पार करने के लिये, साफ नीयत के साथ जब काम होता है तो ये कष्ट के बीच, दुख के बीच, पीड़ा के बीच भी देशवासी हिम्मत के साथ डटे रहते हैं। ये लोग ही असल में Agent of Change बदलाव के पुरोधा हैं। मैं लोगों को एक और कारण के लिये भी धन्यवाद देता हूँ कि उन्होंने न केवल परेशानियाँ उठाई हैं, बल्कि उन चुनिन्दा लोगों को करारा जवाब भी दिया है, जो जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं। कितनी सारी अफवाहें फैलाइ गई। भ्रष्टाचार और काले धन जैसी लड़ाई को भी साम्प्रदायिकता के रंग से रंगने का भी कितना प्रयास किया गया। किसी ने अफवाह फैलाइ नोट पर लिखी Spelling गलत है, किसी ने कह दिया नमक का दाम बढ़ गया है, किसी ने अफवाह चला दी 2000 के नोट भी जाने वाली है, 500 और 100 के भी जाने वाली है, ये भी फिर से जाने वाला है, लेकिन मैंने देखा भाँति-भाँति अफवाहों के बावज़ूद भी देशवासियों के मन को कोई डुला नहीं सका है। इतना ही नहीं, कई लोग मैदान में आए, अपने Creativity के द्वारा , अपने बुद्धि शक्ति के द्वारा अफवाह फैलाने वालों को भी बेनकाब किया, अफवाहों को भी बेनकाब कर दिया और सत्य लाकर के खड़ा कर दिया। मैं जनता के इस सामर्थ्य को भी शत-शत नमन करता हूँ। 

मेरे प्यारे देशवासियो, ये मैं साफ अनुभव कर रहा हूँ, हर पल अनुभव कर रहा हूँ। जब सवा-सौ करोड़ देशवासी आपके के साथ खड़े हों तब कुछ भी असंभव नहीं होता है और जनता जनार्दन ही तो ईश्वर का रूप होती है और जनता के आशीर्वाद, ईश्वर के ही आशीर्वाद बन जाते हैं। मैं देश की जनता को धन्यवाद देता हूँ, उन्हें नमन करता हूँ कि भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ इस महायज्ञ में लोगों ने पूरे उत्साह के साथ भाग लिया है। मैं चाहता था कि सदन में भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ जो लड़ाई चल रही है राजनैतिक दलों के लिये भी, Political Funding के लिये भी, व्यापक चर्चा हो। अगर सदन चला होता तो ज़रूर अच्छी चर्चा होती। जो लोग अफवाहें फैला रहे हैं कि राजनैतिक दलों को सब छूट-छाट है, ये गलत है। कानून सब के लिये समान होता है और कानून का पालन भी चाहे व्यक्ति हो, संगठन हो या राजनैतिक दल हो, हर किसी को कानून का पालन करना ही होता है और करना ही पड़ेगा। जो लोग खुल कर के भ्रष्टाचार और काले धन का समर्थन नहीं कर पाते हैं, वे सरकार की कमियाँ ढूंढने के लिए पूरी देर लगे रहते हैं। एक बात ये भी आती है बार-बार नियम क्यों बदलते हैं। ये सरकार जनता-जनार्दन के लिये है। जनता का लगातार feedback लेने का प्रयास सरकार करती है। जनता-जनार्दन को कहाँ कठिनाई हो रही है! किस नियम के कारण दिक्कत आती है! उसका क्या रास्ता खोजा जा सकता है! हर पल सरकार एक सवेंदनशील सरकार होने के कारण जनता-जनार्धन की सुख-सुविधा को ध्यान में रखते हुए जितने भी नियम बदलने पड़ते हैं, बदलती है, ताकि लोगों की परेशानी कम हो। दूसरी तरफ, मैंने पहले ही दिन कहा था, 8 तारीख को कहा था, ये लड़ाई असामान्य है। 70 साल से बेईमानी और भ्रष्टाचार के काले कारोबार में कैसी शक्तियाँ जुड़ी हुई है? उनकी ताक़त कितनी है? ऐसे लोगों से मैंने जब मुकाबला करना ठान लिया है तो वे भी तो सरकार को पराजित करने के लिए रोज नये तरीके अपनाते हैं। जब वो नये तरीके अपनाते हैं तो हमें भी तो उसके काट के लिये नया तरीका अपनाना पड़ता है। तू डाल-डाल, तो मैं पात-पात, क्योंकि हमने तय किया है कि भ्रष्टाचारियों को, काले कारोबारों को, काले धन को, मिटाना है। दूसरी तरफ, कई लोगों के पत्र इस बात को लेकर के आए हैं जिसमें किस प्रकार की धाँधलियां हो रही हैं, किस प्रकार से नये-नये रास्ते खोजे जा रहे हैं इसकी चर्चा है। 

मैं प्यारे देशवासियों को एक बात का हृदय से अभिनन्दन करना चाहता हूँ। आज आप लोग टी.वी. पर समाचार-पत्रों में देखते होंगे! रोज़ नये-नये लोग पकड़े जा रहे हैं! नोटें पकड़े जा रहे हैं! छापे मारे जा रहे है! अच्छे-अच्छे लोग पकड़े जा रहे हैं। ये कैसे संभव हुआ है? मैं Secret बता दूँ। Secret ये है कि जानकारियाँ मुझे लोगों की तरफ से मिल रही हैं। सरकारी व्यवस्था से जितनी जानकारी आती है उस से अनेक गुना ज्यादा सामान्य नागरिकों से जानकारियाँ आ रही हैं और ज्यादातर हमें सफलता मिल रही है वो जन-सामान्य की जागरूकता के कारण मिल रही है। कोई कल्पना कर सकता है - मेरे देश का जागरूक नागरिक ऐसे तत्वों को बेनकाब करने के लिए कितना risk ले रहा है और जो जानकारियाँ आ रही हैं उसमें ज्यादातर सफलता मिल रही है। मुझे विश्वास है कि सरकार ने इसके लिये जो एक e-mail address इस प्रकार की ख़बरें देना चाहते हैं उनके लिए बनाया है। उस पर भी भेज सकते हो, MyGov पर भी भेज सकते हो। सरकार ऐसी सारी बुराइयों के साथ लड़ने के लिए प्रतिबद्ध है और जब आपका सहयोग है तो फिर लड़ना बहुत आसान है। 

तीसरे पत्र, लेखकों का ग्रुप ऐसा है, वे भी बहुत बड़ी संख्या में हैं। वो कहते हैं मोदी जी थक मत जाना, रुक मत जाना और जितना कठोर कदम उठा सकते हो, उठाओ, लेकिन अब एक बार रास्ता पकड़ा है तो मंजिल तक पहुंचना ही है। मैं ऐसे पत्र लिखने वाले सब को विशेष रूप से धन्यवाद करता हूँ क्योंकि उनके पत्र में एक प्रकार से विश्वास भी है, आशीर्वाद भी है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि ये पूर्ण विराम नहीं है, ये तो अभी शुरुआत है, ये जंग जीतना है और थकने का तो सवाल ही कहाँ उठता है, रुकने का तो सवाल ही नहीं उठता है और जिस बात पर सवा-सौ करोड़ देशवासियों का आशीर्वाद हो, उसमें तो पीछे हटने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है। आपको मालूम होगा हमारे देश में ‘बेनामी संपत्ति’ का एक कानून है। Nineteen Eighty Eight, उन्नीस सौ अठास्सी में बना था, लेकिन कभी भी न उसके Rules बनें, उसको Notify नहीं किया, ऐसे ही वो ठंडे बस्ते में पड़ा रहा। हमनें उसको निकाला है और बड़ा धार-धार ‘बेनामी संपत्ति’ का कानून हमने बनाया है। आने वाले दिनों में वो कानून भी अपना काम करेगा। देशहित के लिये, जनहित के लिये, जो भी करना पड़े, ये हमारी प्राथमिकता है। 

मेरे प्यारे देशवासियो, पिछली बार भी ‘मन की बात’ में मैंने कहा था कि इन कठिनाइयों के बीच भी हमारे किसानों ने कड़ी मेहनत कर के ‘बुवाई’ में पिछले साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। कृषि क्षेत्र के दृष्टि से ये शुभ संकेत हैं। इस देश का मजदूर हो, इस देश का किसान हो, इस देश का नौजवान हो इन सब के परिश्रम आज नये रंग ला रहे हैं। पिछले दिनों विश्व के ‘अर्थ मंच’ पर भारत ने अनेक क्षेत्र में अपना नाम बड़े गौरव के साथ अंकित करवाया है। हमारे देशवासियों के लगातार प्रयासों का परिणाम है कि अलग-अलग Indicators के ज़रिये अलग-अलग Indicators के ज़रिये भारत की वैश्विक ranking में बढ़ोतरी दिखाई दे रही है। World Bank की doing business report में भारत की ranking बढ़ी है। हम भारत में business practices को दुनिया के best Practices के बराबर बनाने का तेज़ी से प्रयास कर रहे हैं और सफलता मिल रही है। UNCTAD उसके द्वारा जारी world Investment report के अनुसार top prospective host economies for 2016-18 में भारत का स्थान तीसरा पहुँच गया है। World Economic Forum के global competitiveness Report में भारत ने 32 Rank की छलांग लगाई है। Global Innovation Index 2016 में हमने 16 स्थानों की बढ़त हासिल की है और World Bank के Logistics Performance Index 2016 में 19 rank की बढ़ोतरी हुई है। कई report ऐसे हैं जिसके मूल्यांकन भी इसी ओर इशारा करते हैं। भारत तेज़ी से आगे बढ़ रहा है । 

मेरे प्यारे देशवासियो, इस बार संसद का सत्र देशवासियों की नाराज़गी का कारण बना, चारों तरफ संसद के गतिविधि के संबंध में रोष प्रकट हुआ। राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति जी ने भी प्रकट रूप से नाराज़गी व्यक्त की, लेकिन इस हालत में भी, कभी-कभी कुछ अच्छी बात भी हो जाती है और तब मन को एक बहुत संतोष मिलता है। संसद के हो-हल्ले के बीच एक ऐसा उत्तम काम हुआ जिसकी तरफ देश का ध्यान नहीं गया है। भाइयो-बहनो, आज मुझे इस बात को बताते हुए गर्व और हर्ष की अनुभूति हो रही है कि दिव्यांग-जनों पर जिस Mission को ले करके मेरी सरकार चली थी, उससे जुड़ा एक बिल संसद में पारित हो गया, इसके लिये मैं लोकसभा और राज्यसभा के सभी सांसदों का आभार व्यक्त करता हूँ, देश के करोड़ों दिव्यांग-जनों की तरफ से आभार व्यक्त करता हूँ। दिव्यांगों के लिए हमारी सरकार Committed है। मैंने निजी-तौर पर भी इसे लेकर मुहिम को गति देने की कोशिश भी की है। मेरा इरादा था, दिव्यांग-जनों को उनका हक़ मिले, सम्मान मिले, जिसके वो अधिकारी हैं। हमारे प्रयासों और भरोसों को हमारे दिव्यांग भाई-बहनों ने उस वक़्त और मजबूती दी जब वे Paralympics में चार Medal जीत करके ले आये, उन्होंने अपनी जीत से न केवल देश का मान बढ़ाया बल्कि अपनी क्षमता से लोगों को आश्चर्य चकित भी कर दिया। हमारे दिव्यांग भाई-बहन भी देश के हर नागरिक की तरह हमारी एक अनमोल विरासत है, अनमोल शक्ति है। मैं आज बेहद खुश हूँ कि दिव्यांग-जनों के हित के लिए ये कानून पास होने के बाद दिव्यांगों के पास नौकरी के ज्यादा अवसर होंगे। सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा बढ़ा करके 4% कर दी गयी है। इस कानून से दिव्यांगो की शिक्षा, सुविधा और शिकायतों के लिए विशेष प्रावधान भी किये गए हैं। दिव्यांगों को ले करके सरकार कितनी संवेदनशील है इसका अंदाज़ आप इस बात से लगा सकते हैं कि केंद्र सरकार ने पिछले दो वर्ष में दिव्यांग-जनों के लिए चार हज़ार तीन सौ पचास कैंप लगाए। तीन सौ बावन करोड़ रूपयों की राशि खर्च करके पाँच लाख अस्सी हज़ार दिव्यांग भाई-बहनों को उपकरण बाँटे। सरकार ने United Nation की भावना के अनुरूप ही नया कानून पारित किया है। पहले दिव्यांगों की श्रेणी सात प्रकार की हुआ करती थी, लेकिन अब कानून बना करके उसे इक्कीस प्रकार की कर दी गई हैं। इसमें चौदह नई श्रेणियाँ और जोड़ दी हैं। दिव्यांगों की कई ऐसी श्रेणियाँ शामिल की गयी हैं जिसे पहली बार न्याय मिला है, अवसर मिला है। जैसे- Thalassemia, Parkinson’s, या फिर बौनापन, ऐसे क्षेत्रों को भी इस श्रेणी के साथ जोड़ दिया गया है। मेरे युवा साथियो, पिछले कुछ हफ्तों में खेल के मैदान में ऐसी ख़बरें आईं जिसने हम सब को गौरवान्वित कर दिया। भारतीय होने के नाते हम सब को गर्व होना बहुत स्वाभाविक है। भारतीय cricket टीम की इंग्लैंड के खिलाफ़ चार शून्य से सीरीज में जीत हुई है। इसमें कुछ युवा खिलाड़ियों की Performance काबिले तारीफ़ रही। हमारे नौजवान करुण नायर ने Triple Century लगाई, तो, के.एल. राहुल ने 199 रनों की पारी खेली। टेस्ट कप्तान विराट कोहली ने तो अच्छी batting के साथ-साथ अच्छा नेतृत्व भी दिया। भारतीय क्रिकेट टीम के off-spinner गेंदबाज आर. अश्विन को ।CC ने वर्ष 2016 का ‘Cricketer Of The Year’ और ‘Best Test Cricketer’ घोषित किया है। इन सब को मेरी बहुत-बहुत बधाईयाँ, ढेर सारी शुभकामनायें। हॉकी के क्षेत्र में भी पंद्रह साल के बाद बहुत अच्छी खबर आई, शानदार खबर आई। Jun।or Hockey Team ने World Cup पर कब्ज़ा कर लिया। पंद्रह साल के बाद ये मौका आया है जब Jun।or Hockey Team ने World Cup जीता। इस उपलब्धि के लिये नौजवान खिलाड़ियों को बहुत-बहुत बधाई। ये उपलब्धि भारतीय हॉकी टीम के भविष्य के लिये शुभ संकेत है। पिछले महीने हमारी महिला खिलाड़ियों ने भी कमाल करके दिखाया। भारत की महिला हॉकी टीम ने As।an Champions Trophy भी जीती और अभी-अभी कुछ ही दिन पहले Under 18 As।a Cup भारत की महिला हॉकी टीम ने Bronze Medal हासिल किया। मैं क्रिकेट और हॉकी टीम के सभी खिलाड़ियों को ह्रदय से बहुत-बहुत अभिनन्दन करता हूँ। 

मेरे प्यारे देशवासियो, 2017 का वर्ष नई उमंग और उत्साह का वर्ष बने, आपके सारे संकल्प सिद्ध हों, विकास की नई ऊँचाइयों को हम पार करें। सुख चैन की ज़िन्दगी जीने के लिए ग़रीब से ग़रीब को अवसर मिले, ऐसा हमारा 2017 का वर्ष रहे। 2017 के वर्ष के लिये मेरी तरफ से सभी देशवासियों को अनेक-अनेक शुभकामनायें। बहुत-बहुत धन्यवाद।

पढ़िए 27 नवंबर को प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ कार्यक्रम का पूरा भाषण


मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। पिछले महीने हम सब दिवाली का आनंद ले रहे थे। हर वर्ष की तरह इस बार दिवाली के मौके पर, मैं फिर एक बार जवानों के साथ दिवाली मनाने के लिये, चीन की सीमा पर, सरहद पर गया था। ITBP के जवान, सेना के जवान - उन सबके साथ हिमालय की ऊंचाइयों में दिवाली मनाई। मैं हर बार जाता हूँ, लेकिन इस दिवाली का अनुभव कुछ और था। देश के सवा-सौ करोड़ देशवासियों ने, जिस अनूठे अंदाज़ में, यह दिवाली सेना के जवानों को समर्पित की, सुरक्षा बलों को समर्पित की, इसका असर वहाँ हर जवानों के चेहरे पर अभिव्यक्त होता था। वो भावनाओं से भरे-भरे दिखते थे और इतना ही नहीं, देशवासियों ने जो शुभकामनायें-सन्देश भेजे, अपनी ख़ुशियों में देश के सुरक्षा बलों को शामिल किया, एक अद्भुत response था। और लोगों ने सिर्फ़ सन्देश भेजे, ऐसा नहीं, मन से जुड़ गए थे; किसी ने कविता लिखी, किसी ने चित्र बनाए, किसी ने कार्टून बनाए, किसी ने वीडियो बनाए, यानि न जाने हर घर सेनानियों की जैसे चौकी बन गया था। और जब भी ये चिट्ठियाँ मैं देखता था, तो मुझे भी बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि कितनी कल्पकता है, कितनी भावनायें भरी हैं और उसी में से MyGov को विचार आया कि कुछ चुनिन्दा चीज़ें निकाल करके उसकी एक Coffee Table Book बनाई जाए। काम चल रहा है, आप सबके योगदान से, देश के सेना के जवानों की भावनाओं को आप सबकी कल्पकता से, देश के सुरक्षा बलों के प्रति आपका जो भाव-विश्व है, वह इस ग्रन्थ में संकलित होगा।

सेना के एक जवान ने मुझे लिखा - प्रधानमंत्री जी, हम सैनिकों के लिये होली, दिवाली हर त्योहार सरहद पर ही होता है, हर वक्त देश की हिफाज़त में डूबे रहते हैं। हाँ, फिर भी त्योहारों के समय घर की याद आ ही जाती है। लेकिन सच कहूँ, इस बार ऐसा नहीं लगा। ऐसा कतई feel नहीं हुआ कि त्योहार है और मैं घर नहीं हूँ। ऐसा महसूस हुआ मानो हम भी, सवा-सौ करोड़ भारतवासियों के साथ दिवाली मना रहे हैं।

मेरे प्यारे देशवासियो, जो अहसास इस दिवाली, इस माहौल में जो अनुभूति, हमारे देश के सुरक्षा बलों के बीच, जवानों के बीच जगा है, क्या ये सिर्फ़ कुछ मौकों पर ही सीमित रहना चाहिये? मेरी आपसे appeal है कि हम, एक समाज के रूप में, राष्ट्र के रूप में, अपना स्वभाव बनाएँ, हमारी प्रकृति बनाएँ। कोई भी उत्सव हो, त्योहार हो, खुशी का माहौल हो, हमारे देश के सेना के जवानों को हम किसी-न- किसी रूप में ज़रूर याद करें। जब सारा राष्ट्र सेना के साथ खड़ा होता है, तो सेना की ताक़त 125 करोड़ गुना बढ़ जाती है।

कुछ समय पहले मुझे जम्मू-कश्मीर से, वहाँ के गाँव के सारे प्रधान मिलने आये थे। Jammu-Kashmir Panchayat Conference के ये लोग थे। कश्मीर घाटी से अलग-अलग गाँवों से आए थे। क़रीब 40-50 प्रधान थे। काफ़ी देर तक उनसे मुझे बातें करने का अवसर मिला। वे अपने गाँव के विकास की कुछ बातें लेकर के आए थे, कुछ माँगें लेकर के आए थे, लेकिन जब बात का दौर चल पड़ा, तो स्वाभाविक था, घाटी के हालात, क़ानून व्यवस्था, बच्चों का भविष्य, ये सारी बातें निकलना बड़ा स्वाभाविक था। और इतने प्यार से, इतने खुलेपन से, गाँव के इन प्रधानों ने बातें की, हर चीज़ मेरे दिल को छूने वाली थी। बातों-बातों में, कश्मीर में जो स्कूलें जलाई जाती थीं, उसकी चर्चा भी हुई और मैंने देखा कि जितना दुःख हम देशवासियों को होता है, इन प्रधानों को भी इतनी ही पीड़ा थी और वो भी मानते थे कि स्कूल नहीं, बच्चों का भविष्य जलाया गया है। मैंने उनसे आग्रह किया था कि आप जाकर के इन बच्चों के भविष्य पर अपना ध्यान केन्द्रित करें। आज मुझे ख़ुशी हो रही है कि कश्मीर घाटी से आए हुए इन सभी प्रधानों ने मुझे जो वचन दिया था, उसको भली-भाँति निभाया; गाँव में जाकर के सब दूर लोगों को जागृत किया। अभी कुछ दिन पहले जब Board की exam हुई, तो कश्मीर के बेटे और बेटियों ने क़रीब 95%, पचानबे फ़ीसदी कश्मीर के छात्र-छात्राओं ने Board की परीक्षा में हिस्सा लिया। Board की परीक्षाओं में इतनी बड़ी तादाद में छात्रों का सम्मिलित होना, इस बात की ओर इशारा करता है कि जम्मू-कश्मीर के हमारे बच्चे उज्ज्वल भविष्य के लिये, शिक्षा के माध्यम से - विकास की नई ऊँचाइयों को पाने के लिये कृतसंकल्प हैं। उनके इस उत्साह के लिये, मैं छात्रों को तो अभिनन्दन करता हूँ, लेकिन उनके माता-पिता को, उनके परिजनों को, उनके शिक्षकों को और सभी ग्राम प्रधानों को भी ह्रदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।

प्यारे भाइयो और बहनों, इस बार जब मैंने ‘मन की बात’ के लिये लोगों के सुझाव मांगे, तो मैं कह सकता हूँ कि एकतरफ़ा ही सबके सुझाव आए। सब कहते थे कि 500/- और 1000/- वाले नोटों पर और विस्तार से बातें करें। वैसे 8 नवम्बर, रात 8 बजे राष्ट्र के नाम संबोधन करते हुए, देश में सुधार लाने के एक महाभियान का आरम्भ करने की मैंने चर्चा की थी। जिस समय मैंने ये निर्णय किया था, आपके सामने प्रस्तुत रखा था, तब भी मैंने सबके सामने कहा था कि निर्णय सामान्य नहीं है, कठिनाइयों से भरा हुआ है। लेकिन निर्णय जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही उस निर्णय को लागू करना है। और मुझे ये भी अंदाज़ था कि हमारे सामान्य जीवन में अनेक प्रकार की नयी–नयी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। और तब भी मैंने कहा था कि निर्णय इतना बड़ा है, इसके प्रभाव में से बाहर निकलने में 50 दिन तो लग ही जाएँगे। और तब जाकर के normal अवस्था की ओर हम क़दम बढ़ा पाएँगे। 70 साल से जिस बीमारियों को हम झेल रहे हैं उस बीमारियों से मुक्ति का अभियान सरल नहीं हो सकता है। आपकी कठिनाइयों को मैं भली-भांति समझ सकता हूँ। लेकिन जब मैं आपका समर्थन देखता हूँ, आपका सहयोग देखता हूँ; आपको भ्रमित करने के लिये ढेर सारे प्रयास चल रहे हैं, उसके बावजूद भी, कभी-कभी मन को विचलित करने वाली घटनायें सामने आते हुए भी, आपने सच्चाई के इस मार्ग को भली-भांति समझा है, देशहित की इस बात को भली-भांति आपने स्वीकार किया है।

पाँच सौ और हज़ार के नोट और इतना बड़ा देश, इतनी करेंसियों की भरमार, अरबों-खरबों नोटें और ये निर्णय - पूरा विश्व बहुत बारीक़ी से देख रहा है, हर कोई अर्थशास्त्री इसका बहुत analysis कर रहा है, मूल्यांकन कर रहा है। पूरा विश्व इस बात को देख रहा है कि हिन्दुस्तान के सवा-सौ करोड़ देशवासी कठिनाइयाँ झेल करके भी सफलता प्राप्त करेंगे क्या! विश्व के मन में शायद प्रश्न-चिन्ह हो सकता है! भारत को भारत के सवा-सौ करोड़ देशवासियों के प्रति, सिर्फ़ श्रद्धा ही श्रद्धा है, विश्वास ही विश्वास है कि सवा-सौ करोड़ देशवासी संकल्प पूर्ण करके ही रहेंगे। और हमारा देश, सोने की तरह हर प्रकार से तप करके, निखर करके निकलेगा और उसका कारण इस देश का नागरिक है, उसका कारण आप हैं, इस सफलता का मार्ग भी आपके कारण ही संभव हुआ है।

पूरे देश में केंद्र सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय स्वराज संस्थाओं की सारी इकाइयाँ, एक लाख तीस हज़ार bank branch, लाखों बैंक कर्मचारी, डेढ़ लाख से ज़्यादा पोस्ट ऑफिस, एक लाख से ज़्यादा बैंक-मित्र - दिन-रात इस काम में जुटे हुए हैं, समर्पित भाव से जुटे हुए हैं। भाँति-भाँति के तनाव के बीच, ये सभी लोग बहुत ही शांत-चित्त रूप से, इसे देश-सेवा का एक यज्ञ मान करके, एक महान परिवर्तन का प्रयास मान करके कार्यरत हैं। सुबह शुरू करते हैं, रात कब पूरा होगा, पता तक नहीं रहता है, लेकिन सब कर रहे हैं। और उसी का कारण है कि भारत इसमें सफल होगा, ये स्पष्ट दिखाई दे रहा है। और मैंने देखा है कि इतनी कठिनाइयों के बीच बैंक के, पोस्ट ऑफिस के सभी लोग काम कर रहे हैं। और जब मानवता के मुद्दे की बात आ जाए, तो वो दो क़दम आगे दिखाई देते हैं। किसी ने मुझे कहा कि खंडवा में एक बुज़ुर्ग इंसान का accident हो गया। अचानक पैसों की ज़रूरत पड़ गई। वहाँ स्थानीय बैंक के कर्मचारी के ध्यान में आया और मुझे ये जान करके खुशी हुई कि ख़ुद जाकर के उनके घर, उस बुज़ुर्ग को उन्होंने पैसे पहुँचाए, ताकि इलाज़ में मदद हो जाए। ऐसे तो अनगिनत किस्से हर दिन टी.वी. में, मीडिया में, अख़बारों में, बातचीत में सामने आते हैं। इस महायज्ञ के अन्दर परिश्रम करने वाले, पुरुषार्थ करने वाले इन सभी साथियों का भी मैं ह्रदय से धन्यवाद करता हूँ। शक्ति की पहचान तो तब होती है, जब कसौटी से पार उतरते हैं। मुझे बराबर याद है, जब प्रधानमंत्री के द्वारा जन-धन योजना का अभियान चल रहा था और बैंक के कर्मचारियों ने जिस प्रकार से उसको अपने कंधे पर उठाया था और जो काम 70 साल में नहीं हुआ था, उन्होंने करके दिखाया था। उनके सामर्थ्य का परिचय हुआ। आज फिर एक बार, उस चुनौती को उन्होंने लिया है और मुझे विश्वास है कि सवा-सौ करोड़ देशवासियों का संकल्प, सबका सामूहिक पुरुषार्थ, इस राष्ट्र को एक नई ताक़त बना करके प्रशस्त करेगा।

लेकिन बुराइयाँ इतनी फैली हुई हैं कि आज भी कुछ लोगों की बुराइयों की आदत जाती नहीं है। अभी भी कुछ लोगों को लगता है कि ये भ्रष्टाचार के पैसे, ये काले धन, ये बेहिसाबी पैसे, ये बेनामी पैसे, कोई-न-कोई रास्ता खोज करके व्यवस्था में फिर से ला दूँ। वो अपने पैसे बचाने के फ़िराक़ में गैर-क़ानूनी रास्ते ढूंढ़ रहे हैं। दुःख की बात ये है कि इसमें भी उन्होंने ग़रीबों का उपयोग करने का रास्ता चुनने का पसंद किया है। ग़रीबों को भ्रमित कर, लालच या प्रलोभन की बातें करके, उनके खातों में पैसे डाल करके या उनसे कोई काम करवा करके, पैसे बचाने की कुछ लोग कोशिश कर रहे हैं। मैं ऐसे लोगों से आज कहना चाहता हूँ - सुधरना, न सुधरना आपकी मर्ज़ी, क़ानून का पालन करना, न करना आपकी मर्ज़ी, वो क़ानून देखेगा क्या करना? लेकिन, मेहरबानी करके आप ग़रीबों की ज़िंदगी के साथ मत खेलिए। आप ऐसा कुछ न करें कि record पर ग़रीब का नाम आ जाए और बाद में जब जाँच हो, तब मेरा प्यारा ग़रीब आपके पाप के कारण मुसीबत में फँस जाए। और बेनामी संपत्ति का इतना कठोर क़ानून बना है, जो इसमें लागू हो रहा है, कितनी कठिनाई आएगी। और सरकार नहीं चाहती है कि हमारे देशवासियों को कोई कठिनाई आए।

मध्य प्रदेश के कोई श्रीमान आशीष ने इस पाँच सौ और हज़ार के माध्यम से भ्रष्टाचार और काले धन के ख़िलाफ़ जो लड़ाई छेड़ी गयी है, उन्होंने मुझे टेलीफ़ोन किया है, उसे सराहा है: -

“सर नमस्ते, मेरा नाम आशीष पारे है। मैं ग्राम तिराली, तहसील तिराली, ज़िला हरदा, मध्य प्रदेश का एक आम नागरिक हूँ। आप के द्वारा जो मुद्रा हज़ार-पाँच सौ के नोट बंद किए गए हैं, यह बहुत ही सराहनीय है। मैं चाहता हूँ कि ‘मन की बात’ में कई उदाहरण लोगों को बताइए कि लोगों ने असुविधा सहन करने के बावजूद भी उन्होंने राष्ट्र उन्नति के लिये यह कड़ा क़दम के लिए स्वागत किया है, जिससे लोग एक तरह से उत्साहवर्द्धित होंगे और राष्ट्र निर्माण के लिए cashless प्रणाली बहुत आवश्यक है और मैं पूरे देश के साथ हूँ और मैं बहुत खुश हूँ कि आपने हज़ार-पाँच सौ के नोट बंद करा दिए।’

वैसा ही मुझे एक फ़ोन कर्नाटक के श्रीमान येलप्पा वेलान्कर जी की तरफ़ से आया है: -

‘मोदी जी नमस्ते, मैं कर्नाटक का कोप्पल डिस्ट्रिक्ट का इस गाँव से येलप्पा वेलान्कर बात कर रहा हूँ। आपको मन से मैं धन्यवाद देना चाहता हूँ, क्योंकि आपने कहा था कि अच्छे दिन आएँगे, लेकिन किसी ने भी नहीं सोचा कि ऐसा बड़ा क़दम आप उठाएँगे। पाँच सौ का और हज़ार का नोट, ये सब देखकर के काला धन और भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाया। हर एक भारत के नागरिक को इससे अच्छे दिन कभी नहीं आएँगे। इसी के लिए मैं आपको मनपूर्ण धन्यवाद करना चाहता हूँ।

कुछ बातें मीडिया के माध्यम से, लोगों के माध्यम से, सरकारी सूत्रों के माध्यम से जानने को मिलती हैं, तो काम करने का उत्साह भी बहुत बढ़ जाता है। इतना आनंद होता है, इतना गर्व होता है कि मेरे देश में सामान्य मानव का क्या अद्भुत सामर्थ्य है। महाराष्ट्र के अकोला में National Highway NH-6 वहाँ कोई एक restaurant है। उन्होंने एक बहुत बड़ा board लगाया है कि अगर आप की जेब में पुराने नोट हैं और आप खाना खाना चाहते हैं, तो आप पैसों की चिंता न करें, यहाँ से भूखा मत जाइए, खाना खा के ही जाइए और फिर कभी इस रास्ते से गुजरने का आ जाए आपको मौका, तो ज़रूर पैसे दे कर के जाना। और लोग वहाँ जाते हैं, खाना खाते हैं और 2-4-6 दिन के बाद जब वहाँ से फिर से गुजरते हैं, तो फिर से पैसे भी लौटा देते हैं। ये है मेरे देश की ताक़त, जिसमें सेवा-भाव, त्याग-भाव भी है और प्रामाणिकता भी है।

मैं चुनाव में चाय पर चर्चा करता था और सारे विश्व में ये बात पहुँच गई थी। दुनिया के कई देश के लोग चाय पर चर्चा शब्द भी बोलना सीख गए थे। लेकिन मुझे पता नहीं कि चाय पर चर्चा में, शादी भी होती है। मुझे पता चला कि 17 नवम्बर को सूरत में, एक ऐसी शादी हुई, जो शादी चाय पर चर्चा के साथ हुई। गुजरात में सूरत में एक बेटी ने अपने यहाँ शादी में जो लोग आए, उनको सिर्फ़ चाय पिलाई और कोई जलसा नहीं किया, न कोई खाने का कार्यक्रम, कुछ नहीं - क्योंकि नोटबंदी के कारण कुछ कठिनाई आई थी पैसों की। बारातियों ने भी उसे इतना ही सम्मान माना। सूरत के भरत मारू और दक्षा परमार - उन्होंने अपनी शादी के माध्यम से भ्रष्टाचार के खिलाफ़, काले धन के खिलाफ़, ये जो लड़ाई चल रही है, उसमें जो योगदान किया है, ये अपने आप में प्रेरक है। नवपरिणीत भरत और दक्षा को मैं बहुत-बहुत आशीर्वाद भी देता हूँ और शादी के मौके को भी इस महान यज्ञ में परिवर्तित करके एक नये अवसर में पलट देने के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। और जब ऐसे संकट आते हैं, लोग रास्ते भी बढ़िया खोज लेते हैं।

मैंने एक बार टीवी न्यूज़ में देखा, रात देर से आया था, तो देख रहा था। असम में धेकियाजुली करके एक छोटा सा गाँव है। Tea-worker रहते हैं और Tea-worker को साप्ताहिक रूप से पैसे मिलते हैं। अब 2000 रुपये का नोट मिला, तो उन्होंने क्या किया? चार अड़ोस-पड़ोस की महिलायें इकट्ठी हो गयी और चारों ने साथ जाकर के ख़रीदी की और 2000 रुपये का नोट payment किया, तो उनको छोटी currency की जरुरत ही नहीं पड़ी, क्योंकि चारों ने मिलकर ख़रीदा और तय किया कि अगले हफ़्ते मिलेंगे, तब उसका हिसाब हम कर लेंगे बैठ करके। लोग अपने-आप रास्ते खोज रहे हैं। और इसका बदलाव भी देखिए! सरकार के पास एक message आया, असम के Tea garden के लोग कह रहे हैं कि हमारे यहाँ ATM लगाओ। देखिए, किस प्रकार से गाँव के जीवन में भी बदलाव आ रहा है। इस अभियान का कुछ लोगों को तत्काल लाभ मिल गया है। देश को तो लाभ आने वाले दिनों में मिलेगा, लेकिन कुछ लोगों को तो तत्काल लाभ मिल गया है। थोड़ा हिसाब पूछा, क्या हुआ है, तो मैंने छोटे-छोटे जो शहर हैं, वहाँ की थोड़ी जानकारी पाई। क़रीब 40-50 शहरों की जानकारी जो मुझे मिली कि इस नोट बंद करने के कारण उनके जितने पुराने पैसे बाक़ी थे, लोग पैसे नहीं देते थे tax के - पानी का tax नहीं, बिजली का नहीं, पैसे देते ही नहीं थे और आप भली-भाँति जानते हैं - ग़रीब लोग 2 दिन पहले जा कर के पाई-पाई चुकता करने की आदत रखते हैं। ये जो बड़े लोग होते हैं न, जिनकी पहुँच होती है, जिनको पता है कि कभी भी उनको कोई पूछने वाला नहीं है, वो ही पैसे नहीं देते हैं। और इसके लिए काफ़ी बकाया रहता है। हर municipality को tax का मुश्किल से 50% आता है। लेकिन इस बार 8 तारीख़ के इस निर्णय के कारण सब लोग अपने पुराने नोटें जमा कराने के लिए दौड़ गए। 47 शहरी इकाइयों में पिछले साल इस समय क़रीब तीन-साढ़े तीन हज़ार करोड़ रुपये का tax आया था। आपको जान कर के आश्चर्य होगा, आनंद भी होगा - इस एक सप्ताह में उनको 13 हज़ार करोड़ रुपये जमा हो गया। कहाँ तीन-साढ़े तीन हज़ार और कहाँ 13 हज़ार! और वो भी सामने से आकर के। अब उन municipality में 4 गुना ये पैसा आ गया, तो स्वाभाविक है, ग़रीब बस्तियों में गटर की व्यवस्था होगी, पानी की व्यवस्था होगी, आंगनबाड़ी की व्यवस्था होगी। ऐसे तो कई उदाहरण मिल रहे हैं कि जिसमें इसका सीधा-सीधा लाभ भी नज़र आने लगा है।

भाइयो-बहनो, हमारा गाँव, हमारा किसान ये हमारे देश की अर्थव्यवस्था की एक मज़बूत धुरी हैं। एक तरफ़ अर्थव्यवस्था के इस नये बदलाव के कारण, कठिनाइयों के बीच, हर कोई नागरिक अपने आपको adjust कर रहा है। लेकिन मैं मेरे देश के किसानों का आज विशेष रूप से अभिनंदन करना चाहता हूँ। अभी मैं इस फ़सल की बुआई के आँकड़े ले रहा था। मुझे ख़ुशी हुई, चाहे गेहूँ हो, चाहे दलहन हो, चाहे तिलहन हो; नवम्बर की 20 तारीख़ तक का मेरे पास हिसाब था, पिछले वर्ष की तुलना में काफ़ी मात्रा में बुआई बढ़ी है। कठिनाइयों के बीच भी, किसान ने रास्ते खोजे हैं। सरकार ने भी कई महत्वपूर्ण निर्णय किए हैं, जिसमें किसानों को और गाँवों को प्राथमिकता दी है। उसके बाद भी कठिनाइयाँ तो हैं, लेकिन मुझे विश्वास है कि जो किसान हमारी हर कठिनाइयाँ, प्राकृतिक कठिनाइयाँ हो, उसको झेलते हुए भी हमेशा डट करके खड़ा रहता है, इस समय भी वो डट करके खड़ा है।

हमारे देश के छोटे व्यापारी, वे रोजगार भी देते हैं, आर्थिक गतिविधि भी बढ़ाते हैं। पिछले बजट में हमने एक महत्वपूर्ण निर्णय किया था कि बड़े-बड़े mall की तरह गाँव के छोटे-छोटे दुकानदार भी अब चौबीसों घंटा अपना व्यापार कर सकते हैं, कोई क़ानून उनको रोकेगा नहीं। क्योंकि मेरा मत था, बड़े-बड़े mall को 24 घंटे मिलते हैं, तो गाँव के ग़रीब दुकानदार को क्यों नहीं मिलना चाहिये? मुद्रा-योजना से उनको loan देने की दिशा में काफी initiative लिए। लाखों-करोड़ों रुपये मुद्रा-योजना से ऐसे छोटे-छोटे लोगों को दिए, क्योंकि ये छोटा कारोबार, करोड़ों की तादाद में लोग करते हैं और अरबों-खरबों रुपये के व्यापार को गति देते हैं। लेकिन इस निर्णय के कारण उनको भी कठिनाई होना स्वाभाविक था। लेकिन मैंने देखा है कि अब तो हमारे इन छोटे-छोटे व्यापारी भी technology के माध्यम से, Mobile App के माध्यम से, मोबाइल बैंक के माध्यम से, क्रेडिट कार्ड के माध्यम से, अपने-अपने तरीक़े से ग्राहकों की सेवा कर रहे हैं, विश्वास के आधार पर भी कर रहे हैं। और मैं अपने छोटे व्यापारी भाइयो-बहनों से कहना चाहता हूँ कि मौका है, आप भी digital दुनिया में प्रवेश कर लीजिए। आप भी अपने मोबाइल फ़ोन पर बैंकों की App download कर दीजिए। आप भी क्रेडिट कार्ड के लिए POS मशीन रख लीजिए। आप भी बिना नोट कैसे व्यापार हो सकता है, सीख लीजिए। आप देखिए, बड़े-बड़े मॉल technology के माध्यम से अपने व्यापार को जिस प्रकार से बढ़ाते हैं, एक छोटा व्यापारी भी इस सामान्य user friendly technology से अपना व्यापार बढ़ा सकता है। बिगड़ने का तो सवाल ही नहीं उठता है, बढ़ाने का अवसर है। मैं आप को निमंत्रण देता हूँ कि cashless society बनाने में आप बहुत बड़ा योगदान दे सकते हैं, आप अपने व्यापार को बढ़ाने में, mobile phone पर पूरी banking व्यवस्था खड़ी कर सकते हैं और आज नोटों के सिवाय अनेक रास्ते हैं, जिससे हम कारोबार चला सकते हैं। technological रास्ते हैं, safe है, secure है और त्वरित है। मैं चाहूँगा कि आप सिर्फ़ इस अभियान को सफल करने के लिए मदद करें, इतना नहीं, आप बदलाव का भी नेतृत्व करें और मुझे विश्वास है, आप बदलाव का नेतृत्व कर सकते हैं। आप पूरे गाँव के कारोबार में ये technology के आधार पर काम कर सकते हैं, मेरा विश्वास है।I मैं मज़दूर भाइयों-बहनों को भी कहना चाहता हूँ, आप का बहुत शोषण हुआ है। कागज़ पर एक पगार होता है और जब हाथ में दिया जाता है, तब दूसरा होता है। कभी पगार पूरा मिलता है, तो बाहर कोई खड़ा होता है, उसको cut देना पड़ता है और मज़दूर मजबूरन इस शोषण को जीवन का हिस्सा बना देता है। इस नई व्यवस्था से हम चाहते हैं कि आपका बैंक में खाता हो, आपके पगार के पैसे आपके बैंक में जमा हों, ताकि minimum wages का पालन हो। आपको पूरा पैसा मिले, कोई cut ना करे। आपका शोषण न हो। और एक बार आपके बैंक खाते में पैसे आ गए, तो आप भी तो छोटे से मोबाइल फ़ोन पर - कोई बड़ा smart phone की ज़रूरत नहीं हैं, आजकल तो आपका mobile phone भी ई-बटुवे का काम करता है - आप उसी mobile phone से अड़ोस-पड़ोस की छोटी-मोटी दुकान में जो भी खरीदना है, खरीद भी सकते हैं, उसी से पैसे भी दे सकते हैं। इसलिए मैं मज़दूर भाइयों-बहनों को इस योजना में भागीदार बनने के लिए विशेष आग्रह करता हूँ, क्योंकि आखिरकार इतना बड़ा मैंने निर्णय देश के ग़रीब के लिये, किसान के लिये, मज़दूर के लिये, वंचित के लिये, पीड़ित के लिये लिया है, उसका benefit उसको मिलना चाहिए।

आज मैं विशेष रूप से युवक मित्रों से बात करना चाहता हूँ। हम दुनिया में गाजे-बाजे के साथ कहते हैं कि भारत ऐसा देश है कि जिसके पास 65% जनसंख्या, 35 साल से कम उम्र की है। आप मेरे देश के युवा और युवतियाँ, मैं जानता हूँ, मेरा निर्णय तो आपको पसन्द आया है। मैं ये भी जानता हूँ कि आप इस निर्णय का समर्थन करते हैं। मैं ये भी जानता हूँ कि आप इस बात को सकारात्मक रूप से आगे बढ़ाने के लिए बहुत योगदान भी करते हैं। लेकिन दोस्तो, आप मेरे सच्चे सिपाही हो, आप मेरे सच्चे साथी हो। माँ भारती की सेवा करने का एक अद्भुत मौका हमारे सामने आया है, देश को आर्थिक ऊंचाइयों पर ले जाने का अवसर आया है। मेरे नौजवानो, आप मेरी मदद कर सकते हो क्या? मुझे साथ दोगे, इतने से बात बनने वाली नहीं है। जितना आज की दुनिया का अनुभव आपको है, पुरानी पीढ़ी को नहीं है। हो सकता है, आपके परिवार में बड़े भाई साहब को भी मालूम नहीं होगा और माता-पिता, चाचा-चाची, मामा-मामी को भी शायद मालूम नहीं होगा। आप App क्या होती है, वो जानते हो, online banking क्या होता है, जानते हो, online ticket booking कैसे होता है, आप जानते हो। आपके लिये चीज़ें बहुत सामान्य हैं और आप उपयोग भी करते हो। लेकिन आज देश जिस महान कार्य को करना चाहता है, हमारा सपना है cashless society. ये ठीक है कि शत-प्रतिशत cashless society संभव नहीं होती है। लेकिन क्यों न भारत less-cash society की तो शुरुआत करे। एक बार अगर आज हम less-cash society की शुरुआत कर दें, तो cashless society की मंज़िल दूर नहीं होगी। और मुझे इसमें आपकी physical मदद चाहिए, ख़ुद का समय चाहिए, ख़ुद का संकल्प चाहिए। और आप मुझे कभी निराश नहीं करोगे, मुझे विश्वास है, क्योंकि हम सब हिंदुस्तान के ग़रीब की ज़िंदगी बदलने की इच्छा रखने वाले लोग हैं। आप जानते हैं, cashless society के लिये, digital banking के लिये या mobile banking के लिये आज कितने सारे अवसर हैं। हर बैंक online सुविधा देता है। हिंदुस्तान के हर एक बैंक की अपनी mobile app है। हर बैंक का अपना wallet है। wallet का सीधा-सीधा मतलब है e-बटुवा। कई तरह के card उपलब्ध हैं। जन-धन योजना के तहत भारत के करोड़ों-करोड़ ग़रीब परिवारों के पास Rupay Card है और 8 तारीख़ के बाद तो जो Rupay Card का बहुत कम उपयोग होता था, गरीबों ने Rupay Card का उपयोग करना शुरू किया और क़रीब-करीब 300% उसमें वृद्धि हुई है। जैसे mobile phone में prepaid card आता है, वैसा बैंकों में भी पैसा ख़र्च करने के लिये prepaid card मिलता है। एक बढ़िया platform है, कारोबार करने की UPI, जिससे आप ख़रीदी भी कर सकते हैं, पैसे भी भेज सकते हैं, पैसे ले भी सकते हैं। और ये काम इतना simple है जितना कि आप WhatsApp भेजते हैं। कुछ भी ना पढ़ा-लिखा व्यक्ति होगा, उसको भी आज WhatsApp कैसे भेजना है, वो आता है, forward कैसे करना है, आता है। इतना ही नहीं, technology इतनी सरल होती जा रही है कि इस काम के लिए कोई बड़े smart phone की भी आवश्यकता नहीं है। साधारण जो feature phone होता है, उससे भी cash transfer हो सकती है। धोबी हो, सब्ज़ी बेचनेवाला हो, दूध बेचनेवाला हो, अख़बार बेचनेवाला हो, चाय बेचनेवाला हो, चने बेचनेवाला हो, हर कोई इसका आराम से उपयोग कर सकता है। और मैंने भी इस व्यवस्था को और अधिक सरल बनाने के लिए और ज़ोर दिया है। सभी बैंक इस पर लगी हुई हैं, कर रही हैं। और अब तो हमने ये online surcharge का भी ख़र्चा आता था, वो भी cancel कर दिया है। और भी इस प्रकार के कार्ड वगैरह का जो ख़र्चा आता था, उसे आपने देखा होगा पिछले 2-4 दिन में अख़बारों में, सारे ख़र्चे ख़त्म कर दिए, ताकि cashless society की movement को बल मिले।

मेरे नौजवान दोस्तो, ये सब होने के बाद भी एक पूरी पीढ़ी ऐसी है कि जो इससे अपरिचित है। और आप सभी लोग, मैं भली-भांति जानता हूँ, इस महान कार्य में सक्रिय हैं। WhatsApp पर जिस प्रकार के creative message आप देते हैं - slogan, कवितायेँ, किस्से, cartoon, नयी-नयी कल्पना, हंसी-मज़ाक - सब कुछ मैं देख रहा हूँ और चुनौतियों के बीच ये हमारी युवा पीढ़ी की जो सृजन शक्ति है, तो ऐसा लग रहा है, जैसे ये भारत भूमि की विशेषता है कि किसी ज़माने में युद्ध के मैदान में गीता का जन्म हुआ था, वैसे ही आज इतने बड़े बदलाव के काल से हम गुजर रहे हैं, तब आपके अन्दर भी मौलिक creativity प्रकट हो रही है। लेकिन मेरे प्यारे नौजवान मित्रो, मैं फिर एक बार कहता हूँ, मुझे इस काम में आपकी मदद चाहिए। जी-जी-जी, मैं दुबारा कहता हूँ, मुझे आपकी मदद चाहिए और आप, आप मुझे विश्वास है मेरे देश के करोड़ों नौजवान इस काम को करेंगे। आप एक काम कीजिए, आज से ही संकल्प लीजिए कि आप स्वयं cashless society के लिए ख़ुद एक हिस्सा बनेंगे। आपके mobile phone पर online ख़र्च करने की जितनी technology है, वो सब मौजूद होगी। इतना ही नहीं, हर दिन आधा-घंटा, घंटा, दो घंटा निकाल करके कम से कम 10 परिवारों को आप ये technology क्या है, technology का कैसे उपयोग करते हैं, कैसे अपनी बैंकों की App download करते हैं? अपने खाते में जो पैसे पड़े हैं, वो पैसे कैसे ख़र्च किए जा सकते हैं? कैसे दुकानदार को दिए जा सकते हैं? दुकानदार को भी सिखाइये कि कैसे व्यापार किया जा सकता है? आप स्वेच्छा से इस cashless society, इन नोटों के चक्कर से बाहर लाने का महाभियान, देश को भ्रष्टाचार मुक्त करने का अभियान, काला-धन से मुक्ति दिलाने का अभियान, लोगों को कठिनाइयों-समस्याओं से मुक्त करने का अभियान - इसका नेतृत्व करना है आपको। एक बार लोगों को Rupay Card का उपयोग कैसे हो, ये आप सिखा देंगे, तो ग़रीब आपको आशीर्वाद देगा। सामान्य नागरिक को ये व्यवस्थायें सिखा दोगे, तो उसको तो शायद सारी चिंताओं से मुक्ति मिल जाएगी और ये काम अगर हिंदुस्तान के सारे नौजवान लग जाएँ, मैं नहीं मानता हूँ, ज्यादा समय लगेगा। एक महीने के भीतर-भीतर हम विश्व के अन्दर एक नये आधुनिक हिंदुस्तान के रूप में खड़े हो सकते हैं और ये काम आप अपने mobile phone के ज़रिये कर सकते हो, रोज़ 10 घरों में जाकर के कर सकते हो, रोज़ 10 घरों को इसमें जोड़ करके कर सकते हो। मैं आपको निमंत्रण देता हूँ – आइए, सिर्फ समर्थन नहीं, हम इस परिवर्तन के सेनानी बनें और परिवर्तन लेकर ही रहेंगे। देश को भ्रष्टाचार और काले-धन से मुक्त करने की ये लड़ाई को हम आगे बढ़ाएँगे और दुनिया में बहुत देश हैं, जहाँ के नौजवानों ने उस राष्ट्र के जीवन को बदल दिया है और ये बात माननी पड़ेगी, जो बदलाव लाता है, वो नौजवान लाता है, क्रांति करता है, वो युवा करता है। केन्या, उसने बीड़ा उठाया, M-PESA ऐसी एक mobile व्यवस्था खड़ी की, technology का उपयोग किया, M-PESA नाम रखा और आज क़रीब-क़रीब Africa के इस इलाक़े में केन्या में पूरा कारोबार इस पर shift होने की तैयारी में आ गया है। एक बड़ी क्रांति की है इस देश ने।

मेरे नौजवानो, मैं फिर एक बार, फिर एक बार बड़े आग्रह से आपको कहता हूँ कि आप इस अभियान को आगे बढ़ाइए। हर school, college, university, NCC, NSS, सामूहिक रूप से, व्यक्तिगत रूप से इस काम को करने के लिए मैं आपको निमंत्रण देता हूँ। हम इस बात को आगे बढ़ाएँ। देश की उत्तम सेवा करने का हमें अवसर मिला है, मौक़ा गंवाना नहीं है।

प्यारे भाइयो-बहनो, हमारे देश के एक महान कवि - श्रीमान हरिवंशराय बच्चन जी का आज जन्म-जयंती का दिन है और आज हरिवंशराय जी के जन्मदिन पर श्रीमान अमिताभ बच्चन जी ने “स्वच्छता अभियान” के लिये एक नारा दिया है। आपने देखा होगा, इस सदी के सर्वाधिक लोकप्रिय कलाकार अमिताभ जी स्वच्छता के अभियान को बहुत जी-जान से आगे बढ़ा रहे हैं। जैसे लग रहा है कि स्वच्छता का विषय उनके रग-रग में फैल गया है और तभी तो अपने पिताजी की जन्म-जयंती पर भी उनको स्वच्छता का ही काम याद आयाI उन्होंने लिखा है कि हरिवंशराय जी की एक कविता है और उसकी एक पंक्ति उन्होंने लिखी है ”मिट्टी का तन, मस्ती का मन, क्षण भर जीवन, मेरा परिचय।“ हरिवंशराय जी इसके माध्यम से अपना परिचय दिया करते थेI ‘मिट्टी का तन, मस्ती का मन, क्षण भर जीवन, मेरा परिचय’, तो उनके सुपुत्र श्रीमान अमिताभ जी ने, जिसकी रगों में स्वच्छता का mission दौड़ रहा है, उन्होंने मुझे लिखकर के भेजा है हरिवंशराय जी की कविता का उपयोग करते हुए - “‘स्वच्छ तन, स्वच्छ मन, स्वच्छ भारत, मेरा परिचय”’। मैं हरिवंशराय जी को आदर-पूर्वक नमन करता हूँ। श्रीमान अमिताभ जी को भी ‘मन की बात’ में इस प्रकार से जुड़ने के लिये और स्वच्छता के काम को आगे बढ़ाने के लिये भी धन्यवाद करता हूँ।

मेरे प्यारे देशवासियो, अब तो ‘मन की बात’ के माध्यम से आपके विचार, आपकी भावनायें आपके पत्रों के माध्यम से, MyGov पर, NarendraModiApp पर लगातार मुझे आपको जोड़ करके रखती हैं। अब तो 11 बजे ये ‘मन की बात’ होती है, लेकिन प्रादेशिक भाषाओं में इसे पूरा करने के तुरंत बाद शुरू करने वाले हैं। मैं आकाशवाणी का आभारी हूँ, ये नया उन्होंने जो Initiative लिया है, ताकि जहाँ पर हिंदी भाषा प्रचलित नहीं है, वहाँ के भी मेरे देशवासियों को ज़रूर इससे जुड़ने का अवसर मिलेगा। आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।

पढ़िए 27 दिसंबर 2015 को प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ का पूरा संवाद


मेरे प्यारे देशवासियो, आप सबको नमस्कार। 2015 - एक प्रकार से मेरी इस वर्ष की आख़िरी ‘मन की बात’। अगले ‘मन की बात’ 2016 में होगी। अभी-अभी हम लोगों ने क्रिसमस का पर्व मनाया और अब नये वर्ष के स्वागत की तैयारियाँ चल रही हैं। भारत विविधताओं से भरा हुआ है। त्योहारों की भी भरमार लगी रहती है। एक त्योहार गया नहीं कि दूसरा आया नहीं। एक प्रकार से हर त्योहार दूसरे त्योहार की प्रतीक्षा को छोड़कर चला जाता है। कभी-कभी तो लगता है कि भारत एक ऐसा देश है, जहाँ पर ‘त्योहार Driven Economy’ भी है। समाज के ग़रीब तबक़े के लोगों की आर्थिक गतिविधि का वो कारण बन जाता है। मेरी तरफ़ से सभी देशवासियों को क्रिसमस की भी बहुत-बहुत शुभकामनायें और 2016 के नववर्ष की भी बहुत-बहुत शुभकामनायें। 2016 का वर्ष आप सभी के लिए ढेरों खुशियाँ ले करके आये। नया उमंग, नया उत्साह, नया संकल्प आपको नयी ऊंचाइयों पर पहुंचाए। दुनिया भी संकटों से मुक्त हो, चाहे आतंकवाद हो, चाहे ग्लोबल वार्मिंग हो, चाहे प्राकृतिक आपदायें हों, चाहे मानव सृजित संकट हो। मानव जाति सुखचैन की ज़िंदगी पाये, इससे बढ़कर के खुशी क्या हो सकती है| 

आप तो जानते ही हैं कि मैं Technology का भरपूर प्रयोग करता रहता हूँ उससे मुझे बहुत सारी जानकारियाँ भी मिलती हैं। ‘MyGov.’ मेरे इस portal पर मैं काफी नज़र रखता हूँ। 

पुणे से श्रीमान गणेश वी. सावलेशवारकर, उन्होंने मुझे लिखा है कि ये season, Tourist की season होती है। बहुत बड़ी मात्रा में देश-विदेश के टूरिस्ट आते हैं। लोग भी क्रिसमस की छुट्टियाँ मनाने जाते हैं। Tourism के क्षेत्र में बाकी सब सुविधाओं की तरफ़ तो ध्यान दिया जाता है, लेकिन उन्होंने कहा है कि जहाँ-जहाँ Tourist Destination है, Tourist place है, यात्रा धाम है, प्रवास धाम है, वहाँ पर स्वच्छता के संबंध में विशेष आग्रह रखना चाहिये। हमारे पर्यटन स्थल जितने साफ़-सुथरे होंगे, दुनिया में भारत की छवि अच्छी बनेगी। मैं गणेश जी के विचारों का स्वागत करता हूँ और मैं गणेश जी की बात को देशवासियों को पहुंचा रहा हूँ और वैसे भी हम ‘अतिथि देवो भव’ कहते हैं, तो हमारे यहाँ तो जब अतिथि आने वाला होता है तो घर में हम कितनी साज-सज्जा और सफाई करते हैं। तो हमारे पर्यटन स्थल पर, Tourist Destination पर, हमारे यात्रा धामों पर, ये सचमुच में एक विशेष बल देने वाला काम तो है ही है। और मुझे ये भी खुशी है कि देश में स्वच्छता के संबंध में लगातार ख़बरें आती रहती हैं। मैं Day one से इस विषय में मीडिया के मित्रों का तो धन्यवाद करता ही रहता हूँ, क्योंकि ऐसी छोटी-छोटी, अच्छी-अच्छी चीजें खोज-खोज करके वो लोगों के सामने रखते हैं। अभी मैंने एक अखबार में एक चीज़ पढ़ी थी। मैं चाहूँगा कि देशवासियों को मैं बताऊँ। 

मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के भोजपुरा गाँव में एक बुज़ुर्ग कारीगर दिलीप सिंह मालविया। अब वो सामान्य कारीगर हैं जो meson का काम करते हैं, मज़दूरी करते हैं। उन्होंने एक ऐसा अनूठा काम किया कि अखबार ने उनकी एक कथा छापी। और मेरे ध्यान में आई तो मुझे भी लगा कि मैं इस बात को आप तक पहुचाऊँ। छोटे से गाँव के दिलीप सिंह मालविया, उन्होंने तय किया कि गाँव में अगर कोई material provide करता है तो शौचालय बनाने की जो मज़दूरी लगेगी, वो नहीं लेंगे और वो मुफ़्त में meson के नाते काम करते हुए शौचालय बना देंगे। भोजपुरा गाँव में उन्होंने अपने परिश्रम से, मज़दूरी लिये बिना, ये काम एक पवित्र काम है इसे मान करके अब तक उन्होंने 100 शौचालयों का निर्माण कर दिया है। मैं दिलीप सिंह मालविया को ह्रदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूँ, अभिनन्दन देता हूँ। देश के संबंध में निराशा की बातें कभी-कभी सुनते हैं। लेकिन ऐसे कोटि-कोटि दिलीप सिंह हैं इस देश में जो अपने तरीक़े से कुछ-न-कुछ अच्छा कर रहे हैं। यही तो देश की ताकत है। यही तो देश की आशा है और यही तो बातें हैं जो देश को आगे बढ़ाती हैं और तब ‘मन की बात’ में दिलीप सिंह का गर्व करना, उनका गौरव करना बहुत स्वाभाविक लगता है। 

अनेक लोगों के अथक प्रयास का परिणाम है कि देश बहुत तेज़ गति से आगे बढ़ रहा है। क़दम से क़दम मिला करके सवा सौ करोड़ देशवासी एक-एक क़दम ख़ुद भी आगे बढ़ रहे हैं, देश को भी आगे बढ़ा रहे हैं। बेहतर शिक्षा, उत्तम कौशल एवं रोज़गार के नित्य नए अवसर। चाहे नागरिकों को बीमा सुरक्षा कवर से लेकर बैंकिंग सुविधायें पहुँचाने की बात हो। वैश्विक फ़लक पर ‘Ease of Doing Business’ में सुधार, व्यापार और नये व्यवसाय करने के लिए सुविधाजनक व्यवस्थाएँ उपलब्ध कराना। सामान्य परिवार के लोग जो कभी बैंक के दरवाज़े तक नहीं पहुँच पाते थे, ‘मुद्रा योजना’ के तहत आसान ऋण उपलब्ध करवाना। 

हर भारतीय को जब ये पता चलता है कि पूरा विश्व योग के प्रति आकर्षित हुआ है और दुनिया ने जब ‘अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस’ मनाया और पूरा विश्व जुड़ गया तब हमें विश्वास पैदा हो गया कि वाह, ये तो है न हिन्दुस्तान। ये भाव जब पैदा होता है न, ये तब होता है जब हम विराट रूप के दर्शन करते हैं। यशोदा माता और कृष्ण की वो घटना कौन भूलेगा, जब श्री बालकृष्ण ने अपना मुँह खोला और पूरे ब्रह्माण्ड का माता यशोदा को दर्शन करा दिये, तब उनको ताक़त का अहसास हुआ। योग की घटना ने भारत को वो अहसास दिलाया है। 

स्वच्छता की बात एक प्रकार से घर-घर में गूंज रही है। नागरिकों का सहभाग भी बढ़ता चला जा रहा है। आज़ादी के इतने सालों के बाद जिस गाँव में बिजली का खम्भा पहुँचता होगा, शायद हम शहर में रहने वाले लोगों को, या जो बिजली का उपभोग करते हैं उनको कभी अंदाज़ नहीं होगा कि अँधेरा छंटता है तो उत्साह और उमंग की सीमा क्या होती है। भारत सरकार का और राज्य सरकारों का ऊर्जा विभाग काम तो पहले भी करता था लेकिन जब से गांवों में बिजली पहुँचाने का 1000 दिन का जो संकल्प किया है और हर दिन जब ख़बर आती है कि आज उस गाँव में बिजली पहुँची, आज उस गाँव में बिजली पहुँची, तो साथ-साथ उस गाँव के उमंग और उत्साह की ख़बरें भी आती हैं। अभी तक व्यापक रूप से मीडिया में इसकी चर्चा नहीं पहुँची है लेकिन मुझे विश्वास है कि मीडिया ऐसे गांवों में ज़रूर पहुंचेगा और वहाँ का उत्साह-उमंग कैसा है उससे देश को परिचित करवाएगा और उसके कारण सबसे बड़ा तो लाभ ये होगा कि सरकार के जो मुलाज़िम इस काम को कर रहे हैं, उनको एक इतना satisfaction मिलेगा, इतना आनंद मिलेगा कि उन्होंने कुछ ऐसा किया है जो किसी गाँव की, किसी की ज़िंदगी में बदलाव लाने वाला है। किसान हो, ग़रीब हो, युवा हो, महिला हो, क्या इन सबको ये सारी बातें पहुंचनी चाहिये कि नहीं पहुंचनी चाहिये? पहुंचनी इसलिये नहीं चाहिये कि किस सरकार ने क्या काम किया और किस सरकार ने काम क्या नहीं किया! पहुंचनी इसलिये चाहिए कि वो अगर इस बात का हक़दार है तो हक़ जाने न दे। उसके हक़ को पाने के लिए भी तो उसको जानकारी मिलनी चाहिये न! हम सबको कोशिश करनी चाहिये कि सही बातें, अच्छी बातें, सामान्य मानव के काम की बातें जितने ज़्यादा लोगों को पहुँचती हैं, पहुंचानी चाहिए। यह भी एक सेवा का ही काम है। मैंने अपने तरीक़े से भी इस काम को करने का एक छोटा सा प्रयास किया है। मैं अकेला तो सब कुछ नहीं कर सकता हूँ। लेकिन जो मैं कह रहा हूँ तो कुछ मुझे भी करना चाहिये न। एक सामान्य नागरिक भी अपने मोबाइल फ़ोन पर ‘Narendra Modi App’ को download करके मुझसे जुड़ सकता है। और ऐसी छोटी-छोटी-छोटी बातें मैं उस पर शेयर करता रहता हूँ। और मेरे लिए खुशी की बात है कि लोग भी मुझे बहुत सारी बातें बताते हैं। आप भी अपने तरीक़े से ज़रूर इस प्रयास में जुड़िये, सवा सौ करोड़ देशवासियों तक पहुंचना है। आपकी मदद के बिना मैं कैसे पहुंचूंगा। आइये, हम सब मिलकर के सामान्य मानव की हितों की बातें, सामान्य मानव की भाषा में पहुंचाएं और उनको प्रेरित करें, उनके हक़ की चीजों को पाने के लिए। 

मेरे प्यारे नौजवान साथियो, 15 अगस्त को लाल किले से मैंने ‘Start-up India, Stand-up India’ उसके संबंध में एक प्राथमिक चर्चा की थी। उसके बाद सरकार के सभी विभागों में ये बात चल पड़ी। क्या भारत ‘Start-up Capital’ बन सकता है? क्या हमारे राज्यों के बीच नौजवानों के लिए एक उत्तम अवसर के रूप में नये–नये Start-ups, अनेक with Start-ups, नये-नये Innovations! चाहे manufacturing में हो, चाहे Service Sector में हो, चाहे Agriculture में हो। हर चीज़ में नयापन, नया तरीका, नयी सोच, दुनिया Innovation के बिना आगे बढ़ती नहीं है। ‘Start-up India, Stand-up India’ युवा पीढ़ी के लिए एक बहुत बड़ा अवसर लेकर आयी है। मेरे नौजवान साथियो, 16 जनवरी को भारत सरकार ‘Start-up India, Stand-up India’ उसका पूरा action-plan launch करने वाली है। कैसे होगा? क्या होगा? क्यों होगा? एक ख़ाका आपके सामने प्रस्तुत किया जाएगा। और इस कार्यक्रम में देशभर की IITs, IIMs, Central Universities, NITs, जहाँ-जहाँ युवा पीढ़ी है, उन सबको live-connectivity के द्वारा इस कार्यक्रम में जोड़ा जाएगा। 

Start-up के संबंध में हमारे यहाँ एक सोच बंधी-बंधाई बन गयी है। जैसे digital world हो या IT profession हो ये start-up उन्हीं के लिए है! जी नहीं, हमें तो उसको भारत की आवश्यकताओं के अनुसार बदलाव लाना है। ग़रीब व्यक्ति कहीं मजदूरी करता है, उसको शारीरिक श्रम पड़ता है, लेकिन कोई नौजवान Innovation के द्वारा एक ऐसी चीज़ बना दे कि ग़रीब को मज़दूरी में थोड़ी सुविधा हो जाये। मैं इसको भी Start-up मानता हूँ। मैं बैंक को कहूँगा कि ऐसे नौजवान को मदद करो, मैं उसको भी कहूँगा कि हिम्मत से आगे बढ़ो। Market मिल जायेगा। उसी प्रकार से क्या हमारे युवा पीढ़ी की बुद्धि-संपदा कुछ ही शहरों में सीमित है क्या? ये सोच गलत है। हिन्दुस्तान के हर कोने में नौजवानों के पास प्रतिभा है, उन्हें अवसर चाहिये। ये ‘Start-up India, Stand-up India’ कुछ शहरों में सीमित नहीं रहना चाहिये, हिन्दुस्तान के हर कोने में फैलना चाहिये। और इसे मैं राज्य सरकारों से भी आग्रह कर रहा हूँ कि इस बात को हम आगे बढाएं। 16 जनवरी को मैं ज़रूर आप सबसे रूबरू हो करके विस्तार से इस विषय में बातचीत करूंगा और हमेशा आपके सुझावों का स्वागत रहेगा। 

प्यारे नौजवान साथियो, 12 जनवरी स्वामी विवेकानंद जी की जन्म-जयंती है। मेरे जैसे इस देश के कोटि-कोटि लोग हैं जिनको स्वामी विवेकानंद जी से प्रेरणा मिलती रही है। 1995 से 12 जनवरी स्वामी विवेकानंद जयंती को एक National Youth Festival के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष ये 12 जनवरी से 16 जनवरी तक छत्तीसगढ़ के रायपुर में होने वाला है। और मुझे जानकारी मिली कि इस बार की उनकी जो theme है, क्योंकि उनका ये event them based होता है, theme बहुत बढ़िया है ‘Indian Youth on development skill and harmony’. मुझे बताया गया कि सभी राज्यों से, हिंदुस्तान के कोने-कोने से, 10 हज़ार से ज़्यादा युवा इकट्ठे होने वाले हैं। एक लघु भारत का दृश्य वहाँ पैदा होने वाला है। युवा भारत का दृश्य पैदा होने वाला है। एक प्रकार से सपनों की बाढ़ नज़र आने वाली है। संकल्प का एहसास होने वाला है। इस Youth Festival के संबंध में क्या आप मुझे अपने सुझाव दे सकते हैं? मैं ख़ास कर के युवा दोस्तों से आग्रह करता हूँ कि मेरी जो ‘Narendra Modi App’ है उस पर आप directly मुझे अपने विचार भेजिए। मैं आपके मन को जानना-समझना चाहता हूँ और जो ये National Youth Festival में reflect हो, मैं सरकार में उसके लिए उचित सुझाव भी दूँगा, सूचनाएँ भी दूँगा। तो मैं इंतज़ार करूँगा दोस्तो, ‘Narendra Modi App’ पर Youth Festival के संबंध में आपके विचार जानने के लिए। 

अहमदाबाद, गुजरात के दिलीप चौहान, जो एक visually challenged teacher हैं, उन्होंने अपने स्कूल में ‘Accessible India Day’ उसको मनाया। उन्होंने मुझे फ़ोन कर के अपनी भावनाएं व्यक्त की हैं: - 

“Sir, we celebrated Accessible India Campaign in my school. I am a visually challenged teacher and I addressed 2000 children on the issue of disability and how we can spread awareness and help differently abled people. And the students’ response was fantastic, we enjoyed in the school and the students were inspired and motivated to help the disabled people in the society. I think it was a great initiative by you.” 

दिलीप जी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। और आप तो स्वयं इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं। आप भली-भाँति इन बातों को समझते हैं और आपने तो बहुत सारी कठिनाइयाँ भी झेली होंगी। कभी-कभी समाज में इस प्रकार के किसी व्यक्ति से मिलने का अवसर आता है, तो हमारे मन में ढेर सारे विचार आते हैं। हमारी सोच के अनुसार हम उसे देखने का अपना नज़रिया भी व्यक्त करते हैं। कई लोग होते हैं जो हादसे के शिकार होने के कारण अपना कोई अंग गवाँ देते हैं। कुछ लोग होते हैं कि जन्मजात ही कोई क्षति रह जाती है। और ऐसे लोगों के लिए दुनिया में अनेक-अनेक शब्द प्रयोग हुए हैं, लेकिन हमेशा इन शब्दों के प्रति भी चिंतन चलता रहा है। हर समय लोगों को लगा कि नहीं-नहीं-नहीं, ये उनके लिए ये शब्द की पहचान अच्छी नहीं लगती है, सम्मानजनक नहीं लगती है। और आपने देखा होगा कि कितने शब्द आ चुके हैं। कभी Handicapped शब्द सुनते थे, तो कभी Disable शब्द सुनते थे, तो कभी Specially Abled Persons - अनेक शब्द आते रहते हैं। ये बात सही है कि शब्दों का भी अपना एक महत्व होता हैI इस वर्ष जब भारत सरकार ने सुगम्य भारत अभियान का प्रारंभ किया, उस कार्यक्रम में मैं जाने वाला था, लेकिन तमिलनाडु के कुछ ज़िलों में और ख़ास कर के चेन्नई में भयंकर बाढ़ के कारण मेरा वहाँ जाने का कार्यक्रम बना, उस दिन मैं उस कार्यक्रम में रह नहीं पाया था। लेकिन उस कार्यक्रम में जाना था तो मेरे मन में कुछ-न-कुछ विचार चलते रहते थे। तो उस समय मेरे मन में विचार आया था कि परमात्मा ने जिसको शरीर में कोई कमी दी है, कोई क्षति दी है, एकाध अंग ठीक से काम नहीं कर रहा है - हम उसे विकलांग कहते हैं और विकलांग के रूप में जानते हैं। लेकिन कभी-कभी उनके परिचय में आते हैं तो पता चलता है कि हमें आँखों से उसकी एक कमी दिखती है, लेकिन ईश्वर ने उसको कोई extra power दिया होता है। एक अलग शक्ति का उसके अन्दर परमात्मा ने निरूपण किया होता है। जो अपनी आँखों से हम नहीं देख पाते हैं, लेकिन जब उसे देखते हैं काम करते हुए, उसे अपने काबिलियत की ओर तो ध्यान जाता है। अरे वाह! ये कैसे करता है? तो फिर मेरे मन में विचार आया कि आँख से तो हमें लगता है कि शायद वो विकलांग है, लेकिन अनुभव से लगता है कि उसके पास कोई extra power, अतिरिक्त शक्ति है। और तब जाकर के मेरे मन में विचार आया, क्यों न हम हमारे देश में विकलांग की जगह पर “दिव्यांग” शब्द का उपयोग करें। ये वो लोग हैं जिनके पास वो ऐसा एक अंग है या एक से अधिक ऐसे अंग हैं, जिसमें दिव्यता है, दिव्य शक्ति का संचार है, जो हम सामान्य शरीर वालों के पास नहीं है। मुझे ये शब्द बहुत अच्छा लग रहा है। क्या मेरे देशवासी हम आदतन विकलांग की जगह पर “दिव्यांग” शब्द को प्रचलित कर सकते हैं क्या? मैं आशा करता हूँ कि इस बात को आप आगे बढ़ाएंगे। 

उस दिन हमने ‘सुगम्य भारत’ अभियान की शुरुआत की है। इसके तहत हम physical और virtual - दोनों तरह के Infrastructure में सुधार कर उन्हें “दिव्यांग” लोगों के लिए सुगम्य बनायेंगे। स्कूल हो, अस्पताल हो, सरकारी दफ़्तर हो, बस अड्डे हों, रेलवे स्टेशन में ramps हो, accessible parking, accessible lifts, ब्रेल लिपि; कितनी बातें हैं। इन सब में उसे सुगम्य बनाने के लिए Innovation चाहिए, technology चाहिए, व्यवस्था चाहिए, संवेदनशीलता चाहिएI इस काम का बीड़ा उठाया हैI जन-भागीदारी भी मिल रहीं है। लोगों को अच्छा लगा है। आप भी अपने तरीके से ज़रूर इसमें जुड़ सकते हैं। 

मेरे प्यारे देशवासियो, सरकार की योजनायें तो निरंतर आती रहती हैं, चलती रहती हैं, लेकिन ये बहुत आवश्यक होता है कि योजनायें हमेशा प्राणवान रहनी चाहियें। योजनायें आखरी व्यक्ति तक जीवंत होनी चाहियें। वो फाइलों में मृतप्राय नहीं होनी चाहियें। आखिर योजना बनती है सामान्य व्यक्ति के लिए, ग़रीब व्यक्ति के लिए। पिछले दिनों भारत सरकार ने एक प्रयास किया कि योजना के जो हक़दार हैं उनके पास सरलता से लाभ कैसे पहुँचे। हमारे देश में गैस सिलेंडर में सब्सिडी दी जाती है। करोड़ों रुपये उसमें जाते हैं लेकिन ये हिसाब-किताब नहीं था कि जो लाभार्थी है उसी के पास पहुँच रहे हैं कि नहीं पहुँच रहे हैं। सही समय पर पहुँच रहे हैं कि नहीं पहुँच रहे हैं। सरकार ने इसमें थोड़ा बदलाव किया। जन-धन एकाउंट हो, आधार कार्ड हो, इन सब की मदद से विश्व की सबसे बड़ी, largest ‘Direct Benefit Transfer Scheme’ के द्वारा सीधा लाभार्थियों के बैंक खाते में सब्सिडी पहुँचना। देशवासियों को ये बताते हुए मुझे गर्व हो रहा है कि अभी-अभी ‘गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में इसे स्थान मिल गया कि दुनिया की सबसे बड़ी ‘Direct Benefit Transfer Scheme’ है, जो सफलतापूर्वक लागू कर दी गई है। ‘पहल’ नाम से ये योजना प्रचलित है और प्रयोग बहुत सफल रहा है। नवम्बर अंत तक करीब-करीब 15 करोड़ LPG उपभोक्ता ‘पहल’ योजना के लाभार्थी बन चुके हैं, 15 करोड़ लोगों के खाते में बैंक एकाउंट में सरकारी पैसे सीधे जाने लगे हैं। न कोई बिचौलिया, न कोई सिफ़ारिश की ज़रूरत, न कोई भ्रष्टाचार की सम्भावना। एक तरफ़ आधार कार्ड का अभियान, दूसरी तरफ़ जन-धन एकाउंट खोलना, तीसरी तरफ़ राज्य सरकार और भारत सरकार मिल कर के लाभार्थियों की सूची तैयार करना। उनको आधार से और एकाउंट से जोड़ना। ये सिलसिला चल रहा है। इन दिनों तो मनरेगा जो कि गाँव में रोजगार का अवसर देता है, वो मनरेगा के पैसे, बहुत शिकायत आती थी। कई स्थानों पर अब वो सीधा पैसा उस मजदूरी करने वाले व्यक्ति के खाते में जमा होने लगे हैं। Students को Scholarship में भी कई कठिनाइयाँ होती थीं, शिकायतें भी आती थीं, उनमें भी अब प्रारंभ कर दिया है, धीरे-धीरे आगे बढ़ाएंगे। अब तक करीब-करीब 40 हज़ार करोड़ रूपये सीधे ही लाभार्थी के खाते में जाने लगे हैं अलग-अलग योजनाओं के माध्यम से। एक मोटा-मोटा मेरा अंदाज़ है, करीब-करीब 35 से 40 योजनायें अब सीधी-सीधी ‘Direct Benefit Transfer’ के अंदर समाहित की जा रही हैं। 

मेरे प्यारे देशवासियो, 26 जनवरी - भारतीय गणतंत्र दिवस का एक सुनहरा पल। ये भी सुखद संयोग है कि इस बार डॉ. बाबा साहब अम्बेडकर, हमारे संविधान के निर्माता, उनकी 125वी जयंती है। संसद में भी दो दिन संविधान पर विशेष चर्चा रखी गई थी और बहुत अच्छा अनुभव रहा। सभी दलों ने, सभी सांसदों ने संविधान की पवित्रता, संविधान का महत्व, संविधान को सही स्वरुप में समझना - बहुत ही उत्तम चर्चा की। इस बात को हमें आगे बढ़ाना चाहिए। गणतंत्र दिवस सही अर्थ में जन-जन को तंत्र के साथ जोड़ सकता है क्या और तंत्र को जन-जन के साथ जोड़ सकता है क्या? हमारा संविधान हमें बहुत अधिकार देता है और अधिकारों की चर्चा सहज रूप से होती है और होनी भी चाहिए। उसका भी उतना ही महत्व है। लेकिन संविधान कर्तव्य पर भी बल देता है। लेकिन देखा ये गया है कि कर्तव्य की चर्चा बहुत कम होती है। ज्यादा से ज्यादा जब चुनाव होते हैं तो चारों तरफ़ advertisement होते हैं, दीवारों पर लिखा जाता है, hoardings लगाये जाते हैं कि मतदान करना हमारा पवित्र कर्तव्य है। मतदान के समय तो कर्तव्य की बात बहुत होती है लेकिन क्यों न सहज जीवन में भी कर्तव्य की बातें हों। जब इस वर्ष हम बाबा साहेब अम्बेडकर की 125वी जयंती मना रहे हैं तो क्या हम 26 जनवरी को निमित्त बना करके स्कूलों में, colleges में, अपने गांवों में, अपने शहर में, भिन्न-भिन्न societies में, संगठनों में - ‘कर्तव्य’ इसी विषय पर निबंध स्पर्द्धा, काव्य स्पर्द्धा, वक्तृत्व स्पर्द्धा ये कर सकते हैं क्या? अगर सवा सौ करोड़ देशवासी कर्तव्य भाव से एक के बाद एक कदम उठाते चले जाएँ तो कितना बड़ा इतिहास बन सकता है। लेकिन चर्चा से शुरू तो करें। मेरे मन में एक विचार आता है, अगर आप मुझे 26 जनवरी के पहले ड्यूटी, कर्तव्य - अपनी भाषा में, अपनी भाषा के उपरांत अगर आपको हिंदी में लिखना है तो हिंदी में, अंग्रेज़ी में लिखना है तो अंग्रेज़ी में कर्तव्य पर काव्य रचनाएँ हो, कर्तव्य पर एसे राइटिंग हो, निबंध लिखें आप। मुझे भेज सकते हैं क्या? मैं आपके विचारों को जानना चाहता हूँ। ‘My Gov.’ मेरे इस पोर्टल पर भेजिए। मैं ज़रूर चाहूँगा कि मेरे देश की युवा पीढ़ी कर्तव्य के संबंध में क्या सोचती है। 

एक छोटा सा सुझाव देने का मन करता है। 26 जनवरी जब हम गणतंत्र दिवस मनाते हैं, क्या हम नागरिकों के द्वारा, स्कूल-कॉलेज के बालकों के द्वारा हमारे शहर में जितनी भी महापुरुषों की प्रतिमायें हैं, statue लगे हैं, उसकी सफाई, उस परिसर की सफाई, उत्तम से उत्तम स्वच्छता, उत्तम से उत्तम सुशोभन 26 जनवरी निमित्त कर सकते हैं क्या? और ये मैं सरकारी राह पर नहीं कह रहा हूँ। नागरिकों के द्वारा, जिन महापुरुषों का statue लगाने के लिए हम इतने emotional होते हैं, लेकिन बाद में उसको संभालने में हम उतने ही उदासीन होते हैं| समाज के नाते, देश के नाते, क्या ये हम अपना सहज़ स्वभाव बना सकते हैं क्या, इस 26 जनवरी को हम सब मिल के प्रयास करें कि ऐसे महापुरुषों की प्रतिमाओं का सम्मान, वहाँ सफाई, परिसर की सफाई और ये सब जनता-जनार्दन द्वारा, नागरिकों द्वारा सहज रूप से हो। 

प्यारे देशवासियो, फिर एक बार नव वर्ष की, 2016 की ढेर सारी शुभकामनायें। बहुत-बहुत धन्यवाद। 

पूरी पढ़िए - 14वीं बार रेडियो पर प्रधानमन्त्री की 'मन की बात'


प्यारे देशवासियो, नमस्ते। 

दीपावली के पावन पर्व के दरम्यान आपने छुट्टियाँ बहुत अच्छे ढंग से मनायी होंगी। कहीं जाने का अवसर भी मिला होगा। और नए उमंग-उत्साह के साथ व्यापार रोज़गार भी प्रारंभ हो गए होंगे। दूसरी ओर क्रिसमस की तैयारियाँ भी शुरू हो गयी होंगी। समाज जीवन में उत्सव का अपना एक महत्त्व होता है। कभी उत्सव घाव भरने के लिये काम आते हैं, तो कभी उत्सव नई ऊर्ज़ा देते हैं। लेकिन कभी-कभी उत्सव के इस समय में जब संकट आ जाए तो ज्यादा पीड़ादायक हो जाता है, और पीड़ादायक लगता है। दुनिया के हर कोने में से लगातार प्राकृतिक आपदा की ख़बरें आया ही करती हैं। और न कभी सुना हो और न कभी सोचा हो, ऐसी-ऐसी प्राकृतिक आपदाओं की ख़बरें आती रहती हैं। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कितना तेजी से बढ़ रहा है यह अब हम लोग अनुभव कर रहे हैं। हमारे ही देश में, पिछले दिनों जिस प्रकार से अति वर्षा और वो भी बेमौसमी वर्षा और लम्बे अरसे तक वर्षा, ख़ासकर के तमिलनाडु में जो नुकसान हुआ है, और राज्यों को भी इसका असर हुआ है। कई लोगों की जानें गयीं। मैं इस संकट की घड़ी में उन सभी परिवारों के प्रति अपनी शोक-संवेदना प्रकट करता हूँ। राज्य सरकारें राहत और बचाव कार्यों में पूरी शक्ति से जुट जाती हैं। केंद्र सरकार भी हमेशा कंधे से कन्धा मिलाकर काम करती है। अभी भारत सरकार की एक टीम तमिलनाडु गयी हुई है। लेकिन मुझे विश्वास है तमिलनाडु की शक्ति पर इस संकट के बावज़ूद भी वो फ़िर एक बार बहुत तेज़ गति से आगे बढ़ने लग जाएगा। और देश को आगे बढ़ाने में जो उसकी भूमिका है वो निभाता रहेगा। 

लेकिन जब ये चारों तरफ़ संकटों की बातें देखते हैं तो हमें इसमें काफी बदलाव लाने की आवश्यकता हो गयी है। आज से 15 साल पहले प्राकृतिक आपदा एक कृषि विभाग का हिस्सा हुआ करता था, क्योंकि तब ज़्यादा से ज़्यादा प्राकृतिक आपदाएँ यानि अकाल यहीं तक सीमित था। आज तो इसका रूप ही बदल गया है। हर level पे हमें अपनी Capacity Building के लिए काम करना बहुत अनिवार्य हो गया है। सरकारों ने civil society ने, नागरिकों ने, हर छोटी-मोटी संस्थाओं ने बहुत वैज्ञानिक तरीके से Capacity Building के लिए काम करना ही पड़ेगा। नेपाल के भूकंप के बाद मैंने पकिस्तान के प्रधानमंत्री श्रीमान नवाज़ शरीफ़ से बात की थी। और मैंने उनसे एक सुझाव दिया था कि हम SAARC देशों ने मिल करके Disaster Preparedness के लिए एक joint exercise करना चाहिये। मुझे खुशी है कि SAARC देशों के एक table talk exercise और best practices का seminar workshop दिल्ली में संपन्न हुआ। एक अच्छी शुरुआत हुई है। 

मुझे आज पंजाब के जलंधर से लखविंदर सिंह का phone मिला है। ‘मैं लखविंदर सिंह, पंजाब जिला जलंधर से बोल रहा हूँ। हम यहाँ पर जैविक खेती करते हैं और काफी लोगों को खेती के बारे में guide भी करते हैं। मेरा एक सवाल है कि जो ये खेतों को लोग आग लगाते हैं, पुआल को या गेहूँ के झाड़ को कैसे इनको लोगों को guide किया जाए कि धरती माँ को जो सूक्ष्म जीवाणु हैं, उन पर कितना खराब कर रहे हैं और जो ये प्रदूषण हो रहा है दिल्ली में, हरियाणा में, पंजाब में इससे कैसे राहत मिले।’ लखविंदर सिंह जी मुझे बहुत खुशी हुई आपके सन्देश सुन करके। एक तो आनंद इस बात का हुआ कि आप जैविक खेती करने वाले किसान हैं। और स्वयं जैविक खेती करते हैं ये इतना ही नहीं आप किसानों की समस्या को भली-भाँति समझते हैं। और आपकी चिंता सही है लेकिन ये सिर्फ़ पंजाब, हरियाणा में ही होता है ऐसा नहीं है। पूरे हिन्दुस्तान में ये हम लोगों की आदत है और परंपरागत रूप से हम इसी प्रकार से अपने फसल के अवशेषों को जलाने के रास्ते पर चल पड़ते हैं। एक तो पहले नुकसान का अंदाज़ नहीं था। सब करते हैं इसलिए हम करते हैं वो ही आदत थी। दूसरा, उपाय क्या होते हैं उसका भी प्रशिक्षण नहीं हुआ। और उसके कारण ये चलता ही गया, बढ़ता ही गया और आज जो जलवायु परिवर्तन का संकट है, उसमें वो जुड़ता गया। और जब इस संकट का प्रभाव शहरों की ओर आने लगा तो ज़रा आवाज़ भी सुनाई देने लगी। लेकिन आपने जो दर्द व्यक्त किया है वो सही है। सबसे पहला तो उपाय है हमें हमारे किसान भाइयो-बहनों को प्रशिक्षित करना पड़ेगा उनको सत्य समझाना पड़ेगा कि फसल के अवशेष जलाने से हो सकता है समय बचता होगा, मेहनत बचती होगी। अगली फसल के लिए खेत तैयार हो जाता होगा। लेकिन ये सच्चाई नहीं है। फसल के अवशेष भी बहुत कीमती होते हैं। वे अपने आप में वो एक जैविक खाद होता है। हम उसको बर्बाद करते हैं। इतना ही नहीं है अगर उसको छोटे-छोटे टुकड़े कर दिये जाएँ तो वो पशुओं के लिए तो dry-fruit बन जाता है। दूसरा ये जलाने के कारण ज़मीन की जो ऊपरी परत होती है वो जल जाती है। 

मेरे किसान भाई-बहन पल भर के लिये ये सोचिए कि हमारी हड्डियाँ मज़बूत हों, हमारा ह्रदय मज़बूत हो, kidney अच्छी हो, सब कुछ हो लेकिन अगर शरीर के ऊपर की चमड़ी जल जाए तो क्या होगा? हम जिन्दा बच पायेंगे क्या? हृदय साबुत होगा तो भी जिन्दा नहीं बच पायेंगे। जैसे शरीर की हमारी चमड़ी जल जाए तो जीना मुश्किल हो जाता है। वैसे ही, ये फसल के अवशेष ठूंठ जलाने से सिर्फ़ ठूंठ नहीं जलते, ये पृथ्वी माता की चमड़ी जल जाती है। हमारी जमीन के ऊपर की परत जल जाती है, जो हमारे उर्वरा भूमि को मृत्यु की ओर धकेल देती है। और इसलिए उसके सकारात्मक प्रयास करने चाहिए। इस ठूंठ को फिर से एक बार ज़मीन में दबोच दिया, तो भी वो खाद बन जाता है। या अगर किसी गड्ढे में ढेर करके केंचुए डालकर के थोड़ा पानी डाल दिया तो उत्तम प्रकार का जैविक खाद बन करके आ जाता है। पशु के खाने के काम तो आता ही आता है, और हमारी ज़मीन बचती है इतना ही नहीं, उस ज़मीन में तैयार हुआ खाद उसमें डाला जाए, तो वो double फायदा देती है। 

मुझे एक बार केले की खेती करने वाले किसान भाइयों से बातचीत करने का मौका मिला। और उन्होंने मुझे एक बड़ा अच्छा अनुभव बताया। पहले वो जब केले की खेती करते थे और जब केले की फसल समाप्त होती थी तो केले के जो ठूंठ रहते थे, उसको साफ़ करने के लिए प्रति hectare कभी-कभी उनको 5 हज़ार, 10 हज़ार, 15 हज़ार रूपये का खर्च करना पड़ता था। और जब तक उसको उठाने वाले लोग ट्रैक्टर-वैक्टर लेकर आते नहीं तब तक वो ऐसे ही खड़ा रहता था। लेकिन कुछ किसानों ने prove किया उस ठूंठ के ही 6—6, 8-8 inch के टुकड़े किये और उसको ज़मीन में गाड़ दिए। तो अनुभव ये आया इस केले के ठूंठ में इतना पानी होता है कि जहाँ उसको गाड़ दिया जाता है, वहाँ अगर कोई पेड़ है, कोई पौधा है, कोई फसल है तो तीन महीने तक बाहर के पाने की ज़रुरत नहीं पड़ती। वो ठूंठ में जो पानी है, वही पानी फसल को जिन्दा रखता है। और आज़ तो उनके ठूंठ भी बड़े कीमती हो गए हैं। उनके ठूंठ में से ही उनको आय होने लगी है। जो पहले ठूंठ की सफ़ाई का खर्चा करना पड़ता था, आज वो ठूंठ की मांग बढ़ गयी है। छोटा सा प्रयोग भी कितना बड़ा फायदा कर सकता है, ये तो हमारे किसान भाई किसी भी वैज्ञानिक से कम नहीं हैं। 

प्यारे देशवासियो आगामी 3 दिसम्बर को ‘International Day of Persons with Disabilities’ पूरा विश्व याद करेगा। पिछली बार ‘मन की बात’ में मैंने ‘Organ Donation’ पर चर्चा की थी। ‘Organ Donation’ के लिए मैंने NOTO के helpline की भी चर्चा की थी और मुझे बताया गया कि मन की उस बात के बाद phone calls में क़रीब 7 गुना वृद्धि हो गयी। और website पर ढाई गुना वृद्धि हो गयी। 27 नवम्बर को ‘Indian Organ Donation Day’ के रूप में मनाया गया। समाज के कई नामी व्यक्तियों ने हिस्सा लिया। फिल्म अभिनेत्री रवीना टंडन सहित, बहुत नामी लोग इससे जुड़े। ‘Organ Donation’ मूल्यवान जिंदगियों को बचा सकता है। ‘अंगदान’ एक प्रकार से अमरता ले करके आ जाता है। एक शरीर से दूसरे शरीर में जब अंग जाता है तो उस अंग को नया जीवन मिल जाता है लेकिन उस जीवन को नयी ज़िंदगी मिल जाती है। इससे बड़ा सर्वोत्तम दान और क्या हो सकता है। Transplant के लिए इंतज़ार कर रहे मरीज़ों, organ donors, organ transplantation की एक national registry 27 नवम्बर को launch कर दी गयी है। NOTO का logo, donor card और slogan design करने के लिए ‘mygov.in’ के द्वारा एक national competition रखी गयी और मेरे लिए ताज्ज़ुब था कि इतने लोगों इतना हिस्सा लिया, इतने innovative way में और बड़ी संवेदना के साथ बातें बताईं। मुझे विश्वास है कि इस क्षेत्र पर भी व्यापक जागरूकता बढ़ेगी और सच्चे अर्थ में जरूरतमंद को उत्तम से उत्तम मदद मिलेगी, क्योंकि ये मदद कहीं से और से नहीं मिल सकती जब तक कि कोई दान न करे। 

जैसे मैंने पहले बताया 3 दिसम्बर विकलांग दिवस के रूप में मनाया जाता है। शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग वे भी एक अप्रतिम साहस और सामर्थ्य के धनी होते हैं। कभी-कभी पीड़ा तब होती है जब कहीं कभी उनका उपहास हो जाता है। कभी-कभार करुणा और दया का भाव प्रकट किया जाता है। लेकिन अगर हम हमारी दृष्टि बदलें, उनकी ओर देखने का नज़रिया बदलें तो ये लोग हमें जीने की प्रेरणा दे सकते हैं। कुछ कर गुजरने की प्रेरणा दे सकते हैं। हम छोटी सी भी मुसीबत आ जाए तो रोने के लिए बैठ जाते हैं। तब याद आता है कि मेरा तो संकट बहुत छोटा है, ये कैसे गुजारा करता है? ये कैसे जीता है? कैसे काम करता है? और इसलिए ये सब हमारे लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। उनकी संकल्प शक्ति, उनका जीवन के साथ जूझने का तरीका और संकट को भी सामर्थ्य में परिवर्तित कर देने की उनकी ललक काबिले-दाद होती है। 

जावेद अहमद, मैं आज उनकी बात बताना चाहता हूँ। 40–42 साल की उम्र है। 1996 कश्मीर में, जावेद अहमद को आतंकवादियों ने गोली मार दी थी। वे आतंकियों के शिकार हो गए, लेकिन बच गए। लेकिन, आतंकवादियों की गोलियों के कारण kidney गँवा दी। Intestine और आँत का एक हिस्सा खो दिया। serious nature की spinal injury हो गयी। अपने पैरों पर खड़े होने का सामर्थ्य हमेशा-हमेशा के लिए चला गया, लेकिन जावेद अहमद ने हार नहीं मानी। आतंकवाद की चोट भी उनको चित्त नहीं कर पायी। उनका अपना जज़्बा, लेकिन सबसे बड़ी बात ये है बिना कारण एक निर्दोष इंसान को इतनी बड़ी मुसीबत झेलनी पड़ी हो, जवानी खतरे में पड़ गयी हो लेकिन न कोई आक्रोश, न कोई रोष इस संकट को भी जावेद अहमद ने संवेदना में बदल दिया। उन्होंने अपने जीवन को समाजसेवा में अर्पित कर दिया। शरीर साथ नहीं देता है लेकिन 20 साल से वे बच्चों की पढ़ाई में डूब गए हैं। शारीरिक रूप से विकलांग लोगों के लिए infrastructure में सुधार कैसे आएँ? सार्वजनिक स्थानों पर, सरकारी दफ्तरों में विकलांग के लिए व्यवस्थाएँ कैसे विकसित की जाएँ? उस पर वो काम कर रहे हैं। उन्होंने अपनी पढ़ाई भी उसी दिशा में ढाल दी। उन्होंने social work में Master Degree ले ली और एक समाजसेवक के रूप में एक जागरूक नागरिक के नाते विकलांगों के मसीहा बन कर के वे आज एक silent revolution कर रहे है। क्या जावेद का जीवन हिंदुस्तान के हर कोने में हमे प्रेरणा देने के लिए काफ़ी नहीं है क्या? मैं जावेद अहमद के जीवन को, उनकी इस तपस्या को और उनके समर्पण को 3 दिसम्बर को विशेष रूप से याद करता हूँ। समय अभाव में मैं भले ही जावेद की बात कर रहा हूँ लेकिन हिंदुस्तान के हर कोने में ऐसे प्रेरणा के दीप जल रहे हैं। जीने की नई रोशनी दे रहे हैं, रास्ता दिखा रहे हैं। 3 दिसम्बर ऐसे सब हर किसी को याद कर के उनसे प्रेरणा पाने का अवसर है। 

हमारा देश इतना विशाल है। बहुत-सी बातें होती हैं जिसमें हम सरकारों पर dependent होते हैं। मध्यम-वर्ग का व्यक्ति हो, निम्न-मध्यम वर्ग का व्यक्ति हो, गरीब हो, दलित, पीड़ित, शोषित, वंचित उनके लिए तो सरकार के साथ सरकारी व्यवस्थाओं के साथ लगातार संबंध आता है। और एक नागरिक के नाते जीवन में कभी न कभी तो किसी न किसी सरकारी बाबू से बुरा अनुभव आता ही आता है। और वो एकाध बुरा अनुभव जीवन भर हमें सरकारी व्यवस्था के प्रति देखने का हमारा नज़रिया बदल देता है। उसमें सच्चाई भी है लेकिन कभी-कभी इसी सरकार में बैठे हुए लाखों लोग सेवा-भाव से, समर्पण-भाव से, ऐसे उत्तम काम करते हैं जो कभी हमारी नज़र में नहीं आते। कभी हमें पता भी नहीं होता है, क्योंकि इतना सहज होता है हमें पता ही नहीं होता है कि कोई सरकारी व्यवस्था, कोई सरकारी मुलाज़िम ये काम कर रहा है। 

हमारे देश में ASHA Workers जो पूरे देश में network है। हम भारत के लोगों के बीच में कभी-कभी ASHA Workers के संबंध में चर्चा न मैंने सुनी है न आपने सुनी होगी। लेकिन मुझे जब बिलगेट्स फाउंडेशन के विश्व प्रसिद्ध परिवार entrepreneur के रूप में दुनिया में उनकी सफलता एक मिसाल बन चुकी है।ऐसे बिलगेट्स और मिलिंडागेट्स उन दोनों को हमने joint पद्म विभूषण दिया था पिछली बार। वे भारत में बहुत सामाजिक काम करते हैं। उनका अपना निवृत्ति का समय और जीवन भर जो कुछ भी कमाया है गरीबों के लिए काम करने में खपा रहे हैं। वे जब भी आते हैं, मिलते हैं और जिन-जिन ASHA Workers के साथ उनको काम करने का अवसर मिला है, उनकी इतनी तारीफ़ करते हैं, इतनी तारीफ़ करते हैं, और उनके पास कहने के लिए इतना होता है कि ये आशा-वर्कर को क्या समर्पण है कितनी मेहनत करते है। नया-नया सीखने के लिए कितना उत्साह होता है। ये सारी बातें वो बताते हैं। पिछले दिनों उड़ीसा गवर्नमेंट ने एक ASHA Worker का स्वतंत्रता दिवस पर विशेष सम्मान किया। उड़ीसा के बालासोर ज़िले का एक छोटा सा गाँव तेंदागाँव एक आशा-कार्यकर्ता और वहाँ की सारी जनसंख्या शिड्यूल-ट्राइब की है। अनुसूचित-जनजातियों के वहाँ लोग हैं, ग़रीबी है। और मलेरिया से प्रभावित क्षेत्र है। और इस गाँव की एक आशा-वर्कर “जमुना मणिसिंह” उसने ठान ली कि अब मैं इस तेंदागाँव में मलेरिया से किसी को मरने नहीं दूँगी। वो घर-घर जाना छोटे सा भी बुखार की ख़बर आ जाए तो पहुँच जाना।उसको जो प्राथमिक व्यवस्थायें सिखाई गई हैं उसके आधार पर उपचार के लिए लग जाना। हर घर कीटनाशक मच्छरदानी का उपयोग करे उस पर बल देना। जैसे अपना ही बच्चा ठीक से सो जाये और जितनी केयर करनी चाहिए वैसी ASHA Worker “जमुना मणिसिंह” पूरा गाँव मच्छरों से बच के रहे इसके लिए पूरे समर्पण भाव से काम करती रहती हैं। और उसने मलेरिया से मुकाबला किया, पूरे गाँव को मुकाबला करने के लिए तैयार किया।ऐसे तो कितनी “जमुना मणि” होंगी। कितने लाखों लोग होंगे जो हमारे अगल-बगल में होंगे। हम थोड़ा सा उनकी तरफ़ एक आदर भाव से देखेंगे।ऐसे लोग हमारे देश की कितनी बड़ी ताकत बन जाते हैं। समाज के सुख-दुख के कैसे बड़े साथी बन जाते हैं। मैं ऐसे सभी ASHA Workers को “जमुना मणि” के माध्यम से उनका गौरवगान करता हूँ। 

मेरे प्यारे नौजवान मित्रो, मैंने ख़ास युवा पीढ़ी के लिए जो कि इंटरनेट पर, सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं। MyGov उस पर मैंने 3 E-book रखी है। एक E-book है स्वच्छ भारत की प्रेरक घटनाओं को लेकर के, सांसदों के आदर्श ग्राम के संबंध में और हेल्थ सेक्टर के संबंध में, स्वास्थ्य के संबंध में। मैं आपसे आग्रह करता हूँ आप इसको देखिये। देखिये इतना ही नहीं औरों को भी दिखाइये इसको पढ़िए और हो सकता है आपको कोई ऐसी बातें जोड़ने का मन कर जाए। तो ज़रूर आप ‘MyGov.in’ को भेज दीजिये। ऐसी बातें ऐसी होती है कि बहुत जल्द हमारे ध्यान में नहीं आती है लेकिन समाज की तो वही सही ताकत होती है। सकारात्मक शक्ति ही सबसे बड़ी ऊर्जा होती है। आप भी अच्छी घटनाओं को शेयर करें। इन E-books को शेयर करें। E-books पर चर्चा करें और अगर कोई उत्साही नौजवान इन्हीं E-book को लेकर के अड़ोस-पड़ोस के स्कूलों में जाकर के आठवीं, नोवीं, दसवीं कक्षा के बच्चों को बतायें कि देखों भाई ऐसा यहाँ हुआ ऐसा वहाँ हुआ। तो आप सच्चे अर्थ में एक समाज शिक्षक बन सकते है। मैं आपको निमंत्रण देता हूँ आइये राष्ट्र निर्माण में आप भी जुड़ जाइये। 

मेरे प्यारे देशवासियों, पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन से चिंतित है। climate change, global warming, डगर-डगर पर उसकी चर्चा भी है चिंता भी है और हर काम को अब करने से पहले एक मानक के रूप में इसको स्वीकृति मिलती जा रही है। पृथ्वी का तापमान अब बढ़ना नहीं चाहिए। ये हर किसी की ज़िम्मेवारी भी है चिंता भी है। और तापमान से बचने का एक सबसे पहला रास्ता है, ऊर्जा की बचत “energy conservation” 14 दिसम्बर “National Energy Conservation Day” है। सरकार की तरफ़ से कई योजनायें चल रही हैं। L.E.D बल्ब की योजना चल रही है। मैंने एक बार कहा था कि पूर्णिमा की रात को street lights बंद करके अँधेरा करके घंटे भर पूर्ण चाँद की रोशनी में नहाना चाहिए। उस चाँद की रोशनी का अनुभव करना चाहिए। एक किसी मित्र ने मुझे एक link भेजा था देखने के लिए और मुझे उसको देखने का अवसर मिला, तो मन कर गया कि मैं आपको भी ये बात बताऊँ। वैसे इसकी credit तो Zee News को जाती है। क्योंकि वो link Zee News का था। कानपुर में नूरजहाँ करके एक महिला TV पर से लगता नहीं है कोई उसको ज्यादा पढ़ने का सौभाग्य मिला होगा।लेकिन एक ऐसा काम वो कर रही हैं जो शायद किसी ने सोचा ही नहीं होगा। वह solar ऊर्जा से सूर्य शक्ति का उपयोग करते हुए ग़रीबों को रोशनी देने का काम कर रही है। वह अंधेरे से जंग लड़ रही है और अपने नाम को रोशन कर रही है। उसने महिलाओं की एक समिति बनाई है और solar ऊर्जा से चलने वाली लालटेन उसका एक plant लगाया है और महीने के 100/- रू. के किराये से वो लालटेन देती है। लोग शाम को लालटेन ले जाते हैं, सुबह आकर के फिर charging के लिए दे जाते हैं और बहुत बड़ी मात्रा में करीब मैंने सुना है कि 500 घरों में लोग आते हैं लालटेन ले जाते हैं। रोज का करीब 3-4 रू. का खर्च होता है लेकिन पूरे घर में रोशनी रहती है और ये नूरजहाँ उस plant में solar energy से ये लालटेन को recharge करने का दिनभर काम करती रहती है। अब देखिये जलवायु परिवर्तन के लिए विश्व के बड़े-बड़े लोग क्या-क्या करते होंगे लेकिन एक नूरजहाँ शायद हर किसी को प्रेरणा दे, ऐसा काम कर रही है। और वैसे भी, नूरजहाँ को तो मतलब ही है संसार को रोशन करना। इस काम के द्वारा रोशनी फैला रही हैं। मैं नूरजहाँ को बधाई देता हूँ और मैं Zee TV को भी बधाई देता हूँ क्योंकि उन्होंने कानपुर के एक छोटे से कोने में चल रहा इस काम देश और दुनिया के सामने प्रस्तुत कर दिया। बहुत-बहुत बधाई। 

मुझे उत्तर प्रदेश के श्रीमान अभिषेक कुमार पाण्डे ने एक फ़ोन किया है “जी नमस्कार मैं अभिषेक कुमार पाण्डे बोल रहा हूँ गोरखपुर से बतौर entrepreneur मैं आज यहाँ working हूँ, प्रधानमन्त्री जी को मैं बहुत ही बधाइयाँ देना चाहूँगा कि उन्होंने एक कार्यक्रम शुरू किया MUDRA Bank, हम प्रधानमंत्री जी से जानना चाहेंगे कि जो भी ये MUDRA Bank चल रहा है इसमें किस तरह से हम जैसे entrepreneurs उधमियों को support किया जा रहा है? सहयोग किया जा रहा है?” अभिषेक जी धन्यवाद। गोरखपुर से आपने जो मुझे सन्देश भेजा। प्रधानमंत्री MUDRA योजना fund the unfunded। जिसको धनराशि नहीं मिलती है उनको धनराशि मिले। और मकसद है अगर मैं सरल भाषा में समझाऊं तो “3 तीन E, Enterprises, Earning, Empowerment. मुद्रा enterprise को encourage कर रहा है, मुद्रा earning के अवसर पैदा करता है और मुद्रा सच्चे अर्थ में empower करता है। छोटे-छोटे उद्यमियों को मदद करने के लिए ये MUDRA योजना चल रही है। वैसे मैं जिस गति से जाना चाहता हूँ वो गति तो अभी आनी बाकी है। लेकिन शुरुआत अच्छी हुई है इतने कम समय में क़रीब 66 लाख़ लोगों को 42 हज़ार करोड़ रूपया प्रधानमंत्री MUDRA योजना से उन लोगों को मिला। धोबी हो, नाई हो, अख़बार बेचनेवाला हो, दूध बेचनेवाला हो। छोटे-छोटे कारोबार करने वाले लोग और मुझे तो ख़ुशी इस बात की हुई कि क़रीब इन 66 लाख़ में 24 लाख़ महिलाए है। और ज़्यादातर ये मदद पाने वाले SC, ST, OBC इस वर्ग के लोग हैं जो खुद मेहनत करके अपने पैरों पर सम्मान से परिवार को चलाने का प्रयास करते हैं। अभिषेक ने तो खुद ने अपने उत्साह की बात बताई है। मेरे पास भी काफ़ी कुछ ख़बरें आती रहती हैं। मुझे अभी किसी ने बताया कि मुंबई में कोई शैलेश भोसले करके हैं। उन्होंने MUDRA योजना के तहत बैंक से उनको साढ़े आठ लाख रुपयों का क़र्ज़ मिला। और उन्होंने sewage dress, सफाई का business शुरू किया। मैंने अपने स्वच्छता अभियान के समय संबंध में कहा था कि स्वच्छता अभियान ऐसा है के जो नए entrepreneur तैयार करेगा। और शैलेश भोसले ने कर दिखाया। वे एक टैंकर लाये हैं उस काम को कर रहे है और मुझे बताया गया कि इतने कम समय में 2 लाख़ रूपए तो उन्होंने बैंक को वापिस भी कर दिया। आखिरकार हमारा MUDRA योजना के तहत ये ही इरादा है। मुझे भोपाल की ममता शर्मा के विषय में किसी ने बताया कि उसको ये प्रधानमंत्री MUDRA योजना से बैंक से 40 हज़ार रूपए मिले। वो बटुवा बनाने का काम कर रही है। और बटुवा बनाती है लेकिन पहले वो ज़्यादा ब्याज़ से पैसे लाती थी और बड़ी मुश्किल से कारोबार को चलती थी। अब उसको अच्छी मात्रा में एक साथ रूपया हाथ आने के कारण उसने अपने काम को आधिक अच्छा बना दिया। और पहले जो अतिरिक्त ब्याज़ के कारण और, और कारणों से उसको जो अधिक खर्चा होता था इन दिनों ये पैसे उसके हाथ में आने के कारण हर महिना क़रीब-क़रीब एक हज़ार रूपए ज़्यादा बचने लग गया। और उनके परिवार को एक अच्छा व्यवसाय भी धीरे-धीरे पनपने लग गया। लेकिन मैं चाहूँगा कि योजना का और प्रचार हो। हमारी सभी बैंक और ज़्यादा संवेदनशील हों और ज़्यादा से ज़्यादा छोटे लोगों को मदद करें। सचमुच में देश की economy को यही लोग चलाते हैं। छोटा-छोटा काम करने वाले लोग ही देश के अर्थ का आर्थिक शक्ति होते हैं। हम उसी को बल देना चाहतें है। अच्छा हुआ है, लेकिन और अच्छा करना है। 

मेरे प्यारे देशवासियो, 31 अक्टूबर सरदार पटेल की जयंती के दिन मैंने “एक भारत-श्रेष्ठ भारत की चर्चा की थी। ये चीज़े होती है जो समाज जीवन में निरंतर जागरूकता बनी रहनी चाहिये। राष्ट्र्याम जाग्रयाम व्यम “Internal vigilance is the prize of liberty” देश की एकता ये संस्कार सरिता चलती रहनी चाहिये। “एक भारत-श्रेष्ठ भारत” इसको मैं एक योजना का रूप देना चाहता हूँ। MyGov उस पर सुझाव माँगे थे। Programme का structure कैसा हो? लोगो क्या हो? जन-भागीदारी कैसे बढ़े? क्या रूप हो? सारे सुझाव के लिए मैंने कहा था। मुझे बताया गया कि काफ़ी सुझाव आ रहे हैं। लेकिन मैं और अधिक सुझाव की अपेक्षा करता हूँ। बहुत specific scheme की अपेक्षा करता हूँ। और मुझे बताया गया है कि इसमें हिस्सा लेने वालों को certificate मिलने वाला है। कोई बड़े-बड़े prizes भी घोषित किये गए हैं। आप भी अपना creative mind लगाइए। एकता अखंडता के इस मन्त्र को ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ इस मन्त्र को एक-एक हिन्दुस्तानी को जोड़ने वाला कैसे बना सकते हैं। कैसी योजना हो, कैसा कार्यक्रम हो। जानदार भी हो, शानदार भी हो, प्राणवान भी हो और हर किसी को जोड़ने के लिए सहज सरल हो। सरकार क्या करे? समाज क्या करे? Civil Society क्या करे? बहुत सी बातें हो सकती हैं। मुझे विश्वास है कि आपके सुझाव ज़रूर काम आयेंगे। 

मेरे प्यारे भाइयो-बहनो, ठण्ड का मौसम शुरू हो रहा है लेकिन ठण्ड में खाने का तो मज़ा आता ही आता है। कपड़े पहनने का मज़ा आता है, लेकिन मेरा आग्रह रहेगा व्यायाम कीजिये। मेरा आग्रह रहेगा शरीर को तंदुरुस्त रखने के लिए ज़रूर कुछ न कुछ समय ये अच्छे मौसम का उपयोग व्यायाम-योग उसके लिए ज़रूर करेंगे। और परिवार में ही माहौल बनाये, परिवार का एक उत्सव ही हो, एक घंटा सब मिल करके यही करना है। आप देखिये कैसी चेतना आ जाती है।और पूरे दिनभर शरीर कितना साथ देता है। तो अच्छा मौसम है, तो अच्छी आदत भी हो जाए। मेरे प्यारे देशवासियो को फिर एक बार बहुत बहुत शुभकामनाएँ। 

जयहिन्द।  

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पढ़िए 26 जुलाई 2015 को प्रधानमंत्री जी की मन की पूरी बात

मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार! 

इस वर्ष बारिश की अच्छी शुरुआत हुई है। हमारे किसान भाईयों, बहनों को खरीफ की बुआई करने में अवश्य मदद मिलेगी। और एक ख़ुशी की बात मेरे ध्यान में आयी है और मुझे बड़ा आनंद हुआ। हमारे देश में दलहन की और तिलहन की - pulses की और oilseeds की - बहुत कमी रहती है। ग़रीब को दलहन चाहिये, खाने के लिये सब्ज़ी वगैरह में थोड़ा तेल भी चाहिये। मेरे लिये ख़ुशी की बात है कि इस बार जो उगाई हुई है, उसमें दलहन में क़रीब-क़रीब 50 प्रतिशत वृद्धि हुई है। और तिलहन में क़रीब-क़रीब 33 प्रतिशत वृद्धि हुई है। मेरे किसान भाई-बहनों को इसलिए सविशेष बधाई देता हूँ, उनका बहुत अभिनन्दन करता हूँ। 

मेरे प्यारे देशवासियो, 26 जुलाई, हमारे देश के इतिहास में कारगिल विजय दिवस के रूप में अंकित है। देश के किसान का नाता, ज़मीन से जितना है, उतना ही देश के जवान का भी है। कारगिल युद्ध में, हमारा एक-एक जवान, सौ-सौ दुश्मनों पर भारी पड़ा। अपने प्राणों की परवाह न करके, दुश्मनों की कोशिशों को नाकाम करने वाले उन वीर सैनिकों को शत-शत नमन करता हूँ। कारगिल का युद्ध केवल सीमाओं पर नहीं लड़ा गया, भारत के हर शहर, हर गाँव में, इस युद्ध में योगदान था। ये युद्ध, उन माताओं, उन बहनों ने लड़ा, जिनका जवान बेटा या भाई, कारगिल में दुश्मनों से लड़ रहा था। उन बेटियों ने लड़ा, जिनके हाथों से अभी, पीहर की मेहंदी नहीं उतरी थी। पिता ने लड़ा, जो अपने जवान बेटों को देखकर, ख़ुद को जवान महसूस करता था। और उस बेटे ने लड़ा, जिसने अभी अपने पिता की उंगली पकड़कर चलना भी नहीं सीखा था। इनके बलिदान के कारण ही आज भारत दुनिया में सर उठाकर बात कर पाता है। और इसलिए, आज कारगिल विजय दिवस पर इन सभी हमारे सेनानियों को मेरा शत-शत प्रणाम। 

26 जुलाई, एक और दृष्टि से भी मैं ज़रा महत्वपूर्ण मानता हूँ, क्योंकि, 2014 में हमारी सरकार बनने के बाद, कुछ ही महीनों में 26 जुलाई को हमनें MyGov को प्रारंभ किया था। लोकतंत्र में जन-भागीदारी बढ़ाने का हमारा संकल्प, जन-जन को विकास के कार्य में जोड़ना, और मुझे आज एक साल के बाद यह कहते हुए यह ख़ुशी है, क़रीब दो करोड़ लोगों ने MyGov को देखा। क़रीब-क़रीब साढ़े पांच लाख लोगों ने comments किये, और सबसे ज्यादा खुशी की बात तो ये है कि पचास हजार से ज़्यादा लोगों ने PMO applications पर सुझाव दिए, उन्होंने समय निकाला, mind apply किया, इस काम को महत्वपूर्ण माना। 

और कैसे महत्वपूर्ण सुझाव आये! कानपुर से अखिलेश वाजपेयी जी ने एक अच्छा सुझाव भेजा था कि विकलांग व्यक्तियों को रेलवे के अंदर ।RCTC Website के माध्यम से कोटा वाला टिकट क्यों नहीं दिया जाना चाहिये? अगर विकलांग को भी टिकट पाने के लिए वही कठिनाइयां झेलनी पड़े, कितना उचित है? अब यूं तो बात छोटी है, लेकिन न कभी सरकार में किसी को ये ध्यान आया, न कभी इस पर सोचा गया। लेकिन भाई अखिलेश वाजपेयी के सुझाव पर सरकार ने गंभीरता से विचार किया, और आज हमारे विकलांग भाइयों-बहनों के लिए, इस व्यवस्था को लागू कर दिया गया। आज जो लोगो बनते हैं, tag-line बनते हैं, कार्यक्रम की रचना होती है, policy बनती है, MyGov पर बहुत ही सकारात्मक सुझाव आते हैं। शासन व्यवस्था में एक नयी fresh air का अनुभव होता है। एक नई चेतना का अनुभव होता है। इन दिनों मुझे MyGov पर ये भी सुझाव आने लगे हैं, कि मुझे 15 अगस्त को क्या बोलना चाहिये। 

चेन्नई से सुचित्रा राघवाचारी, उन्होंने काफ़ी कुछ सुझाव भेजे हैं। बेटी-बचाओ, बेटी-पढ़ाओ पर बोलिये, क्लीन गंगा पर बोलिये, स्वच्छ भारत पर बोलिए। लेकिन इससे मुझे एक विचार आया, क्या इस बार 15 अगस्त को मुझे क्या बोलना चाहिये। क्या आप मुझे सुझाव भेज सकते हैं? MyGov पर भेज सकते हैं, आकाशवाणी पर चिठ्ठी लिख सकते हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय में चिठ्ठी लिख सकते हैं। 

देखें! मैं मानता हूँ, शायद ये एक अच्छा विचार है कि 15 अगस्त के मेरे भाषण को, जनता जनार्दन से सुझाव लिए जायें। मुझे विश्वास है कि आप ज़रुर अच्छे सुझाव भेजेंगे। 

एक बात की ओर मैं अपनी चिंता जताना चाहता हूँ। मैं कोई उपदेश नहीं देना चाहता हूँ और न ही मैं राज्य सरकार, केंद्र सरकार या स्थानीय स्वराज की संस्थाओं की इकाइयों की ज़िम्मेवारियों से बचने का रास्ता खोज रहा हूँ। 

अभी दो दिन पहले, दिल्ली की एक दुर्घटना के दृश्य पर मेरी नज़र पड़ी। और दुर्घटना के बाद वो स्कूटर चालक 10 मिनट तक तड़पता रहा। उसे कोई मदद नहीं मिली। वैसे भी मैंने देखा है कि मुझे कई लोग लगातार इस बात पर लिखते रहते हैं कि भई आप road safety पर कुछ बोलिये। लोगों को सचेत कीजिये। बेंगलूरु के होशाकोटे अक्षय हों, पुणे के अमेय जोशी हों, कर्नाटक के मुरबिदरी के प्रसन्ना काकुंजे हों। इन सबने, यानि काफ़ी लोगों के हैं नाम, मैं सबके नाम तो नहीं बता रहा हूँ - इस विषय पर चिंता जताई है और कहा। है आप सबकी चिंता सही है। और जब आंकड़ों की तरफ़ देखते हैं तो हृदय हिल जाता है। हमारे देश में हर मिनट एक दुर्घटना होती है। दुर्घटना के कारण, road accident के कारण, हर 4 मिनट में एक मृत्यु होती है। और सबसे बड़ी चिंता का विषय ये भी है, क़रीब-क़रीब एक तिहाई मरने वालों में 15 से 25 साल की उम्र के नौजवान होते हैं और एक मृत्यु पूरे परिवार को हिला देती है। शासन को तो जो काम करने चाहिये वो करने ही चाहिए, लेकिन मैं माँ-बाप से गुज़ारिश करता हूँ, अपने बच्चों को - चाहे two-wheeler चलाते हों या four-wheeler चलाते हों - safety की जितनी बातें है, उस पर ज़रूर ध्यान देने का माहौल परिवार में भी बढाना चाहिए। कभी-कभी हम ऑटो-रिक्शा पर देखते हैं, पीछे लिखा होता है ‘पापा जल्दी घर आ जाना’, पढते हैं तो कितना touching लगता है, और इसलिए मैं कहता हूँ, ये बात सही है कि सरकार ने इस दिशा में काफ़ी नये initiatives लिये हैं... Road Safety के लिए चाहे education का मामला हो, रोड की रचना का engineering हो, क़ानून को enforce करने की बात हो - या accident के बाद घायल लोगों को emergency care की बात हो, इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए Road Transport and Safety Bill हम लाने जा रहे हैं। आने वाले दिनों में National Road Safety Policy और Road Safety Action Plan का implementation करने की दिशा में भी हम कई महत्वपूर्ण क़दम उठाने के लिए सोच रहे हैं। 

एक और project हम लिए है, आगे चलकर इसका विस्तार भी होने वाला है, Cashless Treatment... गुडगाँव, जयपुर और वड़ोदरा... वहाँ से लेकर के मुंबई, राँची, रणगाँव, मौंडिया राजमार्गों के लिए, हम एक Cashless Treatment... और उसका अर्थ है कि पहले पचास घंटे - पैसे हैं कि नहीं, पैसे कौन देगा, कौन नहीं देगा, इन सारी चिंता छोड़कर के - एक बार road accident में जो घायल है, उसको उत्तम से उत्तम सेवा कैसे मिले, सारवार कैसे मिले, उसको हम प्राथमिकता दे रहे हैं। देशभर में हादसों के संबंध में जानकारी देने के लिए टोल-फ्री 1033 नंबर, ambulance की व्यवस्था, ये सारी बातें... लेकिन ये सारी चीज़ें accident के बाद की हैं। Accident न हो इसके लिए तो हम सबने सचमुच में... एक-एक जान बहुत प्यारी होती है, एक-एक जीवन बहुत प्यारा होता है, उस रूप में उसको देखने की आवश्यकता है। 

कभी-कभी मैं कहता हूँ, कर्मचारी कर्मयोगी बनें। पिछले दिनों कुछ घटनाएं मेरे ध्यान में आई, मुझे अच्छा लगा कि मैं आपसे बात करूँ, कभी-कभार नौकरी करते-करते इंसान थक जाता है, और कुछ सालों की बात तो “ठीक है, तनख़्वाह मिल जाती है, काम कर लेंगे”, यही भाव होता है। लेकिन मुझे पिछले दिनों, रेलवे के कर्मचारी के विषय में एक जानकारी मिली, नागपुर डिवीज़न में विजय बिस्वाल करके एक TTE हैं, अब उनको painting का शौक़ है, अब वो कहीं पर भी जाके painting कर सकते थे, लेकिन उन्होंने रेलवे को ही अपना आराध्य माना और वे रेलवे में नौकरी करते हैं और रेलवे के ही संबंधित भिन्न-भिन्न दृश्यों का painting करते रहते हैं, उनको एक आनंद भी मिलता है और उस काम के अंदर इतनी रूचि बढ़ जाती है। मुझे बड़ा ये उदाहरण देख कर के अच्छा लगा कि अपने काम में भी कैसे प्राणतत्व लाया जा सकता है। अपनी रूचि, अपनी कला, अपनी क्षमता को अपने कार्य के साथ कैसे जोड़ा जा सकता है, ये विजय बिस्वाल ने बताया है। हो सकता है अब विजय बिस्वाल के painting की चर्चा आने वाले दिनों में ज़रुर होगी। 

और भी मेरे ध्यान में एक बात आई - मध्य प्रदेश के हरदा ज़िले के सरकारी अधिकारियों की पूरी टीम, पूरी टोली ने एक ऐसा काम शुरू किया जो मेरे मन को छू गया और मुझे बहुत पसंद है उनका ये कामI उन्होंने शुरू किया “ऑपरेशन मलयुद्ध” - अब ये कोई, इसका सुनते हुए लगेगा कुछ और ही बात होगीI लेकिन मूल बात ये है उन्होंने स्वच्छ भारत अभियान को नया मोड़ दिया है और उन्होंने पूरे ज़िले में एक अभियान चलाया है ‘Brother Number One’, यानि वो सबसे उत्तम भाई जो अपनी बहन को रक्षाबंधन पर एक toilet भेंट करे, और उन्होंने बीड़ा उठाया है कि ऐसे सभी भाइयों को प्रेरित करके उनकी बहनों को toilet देंगे और पूरे ज़िले में खुले में कहीं माताओं-बहनों को शौच ना जाना पड़े, ये काम रक्षाबंधन के पर्व पर वो कर रहे हैं। देखिये रक्षाबंधन का अर्थ कैसा बदल गया, मैं हरदा ज़िले के सरकारी अधिकारियों की पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। 

अभी एक समाचार मेरे कान पे आये थे, कभी-कभी ये छोटी-छोटी चीज़ें बहुत मेरे मन को आनंद देती हैं। इसलिए मैं आपसे शेयर कर रहा हूँ। छत्तीसगढ़ के राजनंदगाँव में केश्ला करके एक छोटा सा गाँव है। उस गाँव के लोगों ने पिछले कुछ महीनों से कोशिश करके toilet बनाने का अभियान चलाया। और अब उस गाँव में किसी भी व्यक्ति को खुले में शौच नहीं जाना पड़ता है। ये तो उन्होंने किया, लेकिन, जब पूरा काम पूरा हुआ तो पूरे गाँव ने जैसे कोई बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाता है वैसा उत्सव मनाया। गाँव ने ये सिद्धि प्राप्त की। केश्ला गाँव समस्त ने मिल कर के एक बहुत बड़ा आनंदोत्सव मनाया। समाज जीवन में मूल्य कैसे बदल रहे हैं, जन-मन कैसे बदल रहा है और देश का नागरिक देश को कैसे आगे ले जा रहा है इसके ये उत्तम उदाहरण मेरे सामने आ रहे हैं। 

मुझे भावेश डेका, गुवाहाटी से लिख रहे हैं, नॉर्थ-ईस्ट के सवालों के संबंध में। वैसे नॉर्थ-ईस्ट के लोग active भी बहुत हैं। वो काफ़ी कुछ लिखते रहते हैं, अच्छी बात है। लेकिन मैं आज ख़ुशी से उनको कहना चाहता हूँ कि नॉर्थ-ईस्ट के लिए एक अलग Ministry बनी हुई है। जब अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रधानमंत्री थे तब एक DONER Ministry बनी थी ‘Development of North-East Region’. हमारी सरकार बनने के बाद, हमारे DONER Department में बड़ा महत्वपूर्ण निर्णय किया है कि नॉर्थ-ईस्ट का भला दिल्ली में बैठ कर के हो जाएगा क्या? और सबने मिल कर के तय किया कि भारत सरकार के अधिकारियों की टीम नॉर्थ-ईस्ट के उन राज्यों में जाएगी... नागालैंड हो, मणिपुर हो, अरुणाचल हो, त्रिपुरा हो, असम हो, सिक्किम हो और सात दिन वहाँ camp करेंगे। ज़िलों में जायेंगे, गांवों में जायेंगे, वहां के स्थानीय सरकार के अधिकारियों से मिलेंगे, जनप्रतिनिधियों से बातें करेंगे, नागरिकों से बातें करेंगे। समस्याओं को सुनेंगे, समस्याओं का समाधान करने की दिशा में भारत सरकार को जो करना है, उसको भी करेंगे। ये प्रयास आने वाले दिनों में बहुत अच्छे परिणाम लाएगा। और जो अधिकारी जा कर के आते हैं, उनको भी लगता है कितना सुंदर प्रदेश, कितने अच्छे लोग, अब इस इलाक़े को विकसित करके ही रहना है, उनकी समस्याओं का समाधान करके ही रहना है। इस संकल्प के साथ लौटते हैं तो दिल्ली आने के बाद भी अब उनको वहाँ की समस्याओं को समझना भी बहुत सरल हो गया है। तो एक अच्छा प्रयास, दिल्ली से दूर-दूर पूरब तक जाने का प्रयास, जो मैं ‘Act East Policy’ कह रहा हूँ ना, यही तो act है। 

मेरे प्यारे देशवासियो, हम सब इस बात के लिए गर्व करते हैं कि ‘Mars Mission’ की सफलता का हमें आनंद होता है। अभी पिछले दिनों भारत के PSLV C-28 ने UK के पाँच satellite launch किये। भारत ने अब तक लॉन्च किये हुए ये सबसे ज़्यादा Heavyweight satellite launch किये हैं। ये ख़बरें ऐसी होती है कि कुछ पल के लिए आती हैं, चली जाती हैं, इस पर हमारा ध्यान नहीं जाता। लेकिन ये बहुत बड़ा achievement है। लेकिन कभी-कभी ये भी विचार आता है, आज हम युवा पीढ़ी से अगर बात करते हैं और उनको पूछें कि आप आगे क्या बनना चाहते हो, तो 100 में से बड़ी मुश्किल से एक-आध कोई student मिल जाएगा जो ये कहेगा कि मुझे scientist बनना है। Science के प्रति रुझान कम होना ये बहुत चिंता का विषय है। 

Science and Technology एक प्रकार से विकास का DNA है। हमारी नई पीढ़ी scientist बनने के सपने देखे, Research, Innovation में रूचि ले, उनको प्रोत्साहन मिले, उनकी क्षमताओं को जाना जाये, एक बहुत बड़ी आवश्यकता है। अभी भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय ने एक राष्ट्रीय आविष्कार अभियान शुरू किया है। हमारे राष्ट्र के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम जी ने इसका आरम्भ किया है। इस अभियान के तहत IIT, NIT, Central और State Universities एक mentor के तौर पर, जहां-जहां इस प्रकार की संभावनाएं हैं, वहां उन बालकों को प्रोत्साहित करना, उनको मार्गदर्शन करना, उनको मदद करना, उस पर ध्यान केन्द्रित करने वाले हैं। मैं तो सरकार के IAS अफसरों को भी कहता रहता हूँ कि आप इतना पढ़ लिखकर आगे बढ़े हो तो आप भी तो कभी सप्ताह में दो चार घंटे अपने नज़दीक के किसी स्कूल-कॉलेज में जा करके बच्चों से ज़रुर बात कीजिये। आपका जो अनुभव है, आपकी जो शक्ति है वो ज़रुर इस नई पीढ़ी के काम आयेगी। 

हमने एक बहुत बड़ा बीड़ा उठाया हुआ है, क्या हमारे देश के गाँवों को 24 घंटे बिजली मिलनी चाहिये कि नहीं मिलनी चाहिये? काम कठिन है, लेकिन करना है। हमने इसका शुभारम्भ कर दिया है। और आने वाले वर्षों में, हम गाँवों को 24 घंटे बिजली प्राप्त हो। गाँव के बच्चों को भी, परीक्षा के दिनों में पढ़ना हो तो बिजली की तकलीफ़ न हो। गाँव में भी छोटे-मोटे उद्योग लगाने हों तो बिजली प्राप्त हो। आज तो मोबाइल charge करना हो तो भी दूसरे गाँव जाना पड़ता है। जो लाभ शहरों को मिलता है वो गांवों को मिलना चाहिये। ग़रीब के घर तक जाना चाहिये। और इसीलिये हमने प्रारंभ किया है ‘दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति कार्यक्रम’। मैं जानता हूँ इतना बड़ा देश, लाखों गाँव, दूर-दूर तक पहुँचना है, घर-घर पहुँचना है। लेकिन, ग़रीब के लिए ही तो दौड़ना है। हम इसको करेंगे, आरम्भ कर दिया है। ज़रुर करेंगे। आज मन की बात में भांति-भांति की बातें करने का मन कर गया। 

एक प्रकार से हमारे देश में अगस्त महीना, सितम्बर महीना, त्योहारों का ही अवसर रहता है। ढेर सारे त्यौहार रहते हैं। मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं। 15 अगस्त के लिए मुझे ज़रुर सुझाव भेजिये। आपके विचार मेरे बहुत काम आयेंगे। 

बहुत-बहुत धन्यवाद। 

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