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बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान DNA टेस्ट से कराने पर विचार


असम में हुए भयावह दंगों के बाद केंद्र सरकार वहां घुसपैठियों की पहचान की योजना के काम में तेजी लाने जा रही है। राज्य में इस साल के अंत तक एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन) का कार्य शुरू किया जाएगा।

इसके साथ ही वहां बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान के लिए वैज्ञानिक जांच का सहारा लेने पर भी विचार किया जा रहा है। इसके तहत संदिग्ध मामलों में संबंधित व्यक्ति का डीएनए टेस्ट कराया जाएगा, ताकि यह पता किया जा सके कि वह असम मूल का है या बांग्लादेशी है। 

दो साल पहले इस रजिस्टर को अपडेट करने का काम शुरू किया गया था। लेकिन कुछ इलाकों में इसकी वजह से हुए उपद्रव के बाद काम बंद कर दिया गया था।

असम देश का ऐसा राज्य है जहां पर केंद्रीय गृह मंत्रालय के राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के साथ ही राज्य के नागरिकों की गणना के लिए एनआरसी की व्यवस्था है। इस रजिस्टर का अंतिम अपडेट 1951 में हुआ था। 

असल में असम में बोडो कार्यकर्ताओं के साथ ही स्थानीय निवासी बांग्लादेशी घुसपैठ के मामले पर लामबंद होते रहे हैं। उनका आरोप है कि राज्य में 25-30 प्रतिशत आबादी बांग्लादेशी घुसपैठियों की है। उनकी मांग है कि बांग्लादेशियों की पहचान कर उन्हें वापस उनके देश भेजा जाए, ताकि स्थानीय निवासियों को उनके राज्य के संसाधन का वास्तविक और पूरा हक मिले। लेकिन सभी बांग्लादेशियों की पहचान करना टेढ़ी खीर है।

ऐसे में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार को कहा है कि वह एनआरसी बनाने के दौरान ऐसे चुनिंदा मामले को वैज्ञानिक जांच के लिए चिन्हित करे जिसमें कागजी प्रमाण-पत्र (इसमें वोटर आई-कार्ड, राशन कार्ड, अन्य पहचान पत्र) होने के बावजूद किसी की नागरिकता को लेकर संदेह है।

जिस वैज्ञानिक जांच की सलाह उसने दी है उसमें डीएनए टेस्ट भी शामिल है। कहा जा रहा है कि हाल ही में जो उपद्रव असम में हुआ है उसकी वजह भी उल्फा कार्यकर्ताओं और एक बांग्लादेशी समूह के बीच तकरार है। इसने बाद में उग्र रूप धारण कर लिया और यह असम के चार जिलों के 8000 किमी में फैले 400 गांव तक फैल गया। इसमें अभी तक 80 से अधिक लोगों की मौत की सूचना है। 

केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, 'राज्य में एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस) रजिस्टर का काम जब शुरू होगा तो संदिग्ध मामलों में वैज्ञानिक टेस्ट का सहारा लेने की कवायद की जा रही है।

यह खासा संवेदनशील मसला है ऐसे में यह प्रयोग सिर्फ ऐसे मामलों में किया जाएगा जहां अन्य विकल्प, जिसमें विभिन्न तरह के कागजात-प्रमाण पत्र, किसी तरह के परिणाम देने में अक्षम नजर आएंगे। राज्य सरकार भी इस तरह के टेस्ट को लेकर प्रारंभिक स्तर पर सहमत है। राज्य सरकार से पूर्व में दो साल पहले और उसके बाद हाल ही में करीब पांच महीने पहले इस पर चर्चा की गई है।' 

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