राजधानी की एक अदालत ने कहा है कि मुस्लिमों की शादी को सिविल करार नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने यह व्यवस्था एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए दी।
याचिका में व्यक्ति ने अपने दाम्पत्य सम्बंध की बहाली के लिए अदालत से निर्देश जारी करने की गुजारिश की थी। इस व्यक्ति का कहना था कि अपने माता-पिता के दबाव के कारण उसकी पत्नी ने उसे अकेला छोड़ दिया है।
याचिका में व्यक्ति ने अपने दाम्पत्य सम्बंध की बहाली के लिए अदालत से निर्देश जारी करने की गुजारिश की थी। इस व्यक्ति का कहना था कि अपने माता-पिता के दबाव के कारण उसकी पत्नी ने उसे अकेला छोड़ दिया है।
अतिरिक्त जिला जज राजेन्दर कुमार शास्त्री ने मुल्ला के "प्रिन्सिपल्स ऑफ मोहम्मडन लॉ" की इस परिभाषा से भिन्न राय जताई कि निकाह एक करार है।
जज ने कहा, भरण-पोषण का हक, वंश चलाने का अधिकार, सुख-दुख बांटना, एक-दूसरे के प्रति लगाव, साझा मालिकाना और एकजुटता की भावना आदि बातें ऎसी विशेषताएं हैं जो कि शादी को सिविल करार से जुदा करती हैं।
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