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कश्मीर समस्या नेहरू परिवार का एक विशेष ‘तोहफा’ - आडवाणी

भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का मानना है कि कश्मीर समस्या देश को दिया गया नेहरू परिवार का विशेषउपहारहै और विभाजन के समय इसका समाधान कर पाने में जवाहर लाल नेहरू की असफलता की देश भारी कीमत चुका रहा है।

आडवाणी ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि दुख की बात है कि न तो दिल्ली में नेहरू सरकार और न हीश्रीनगर में शेख अब्दुल्ला सरकार ने कभी इस बात को माना कि जम्मू-कश्मीर का भारत संघ में पूरी तरह एकीकरण करने की जरूरत है।

शेख अब्दुल्ला के मामले में समस्या यह थी कि उनकी एक तरह से स्वतंत्र कश्मीर का एकछत्र नेता बनने की महत्वाकांक्षा थी, जबकि नेहरूजी की ओर से इस मामले में साहस और दूरदर्शिता की कमी रही।

भाजपा नेता के मुताबिक, अनुच्छेद 370, जिसे पंडित नेहरू ने भी एक अस्थायी प्रावधान घोषित किया था, उसे अब तक रद्द नहीं किया गया है। इसी का परिणाम है कि पाकिस्तान के भारत विरोधी प्रतिष्ठानों द्वारा मदद पा रहे अलगाववादी बल कश्मीर में लगातार अपना जहरीला प्रचार कर रहे हैं। ये बल लगातार यह फैला रहे हैं कि भारत से जम्मू-कश्मीर का जुड़ना अंतिम नहीं था और खास तौर पर कश्मीर, भारत का भाग नहीं है।

आडवाणी ने लिखा है कि विभाजन के समय पर ही कश्मीर मुद्दे का समाधान कर पाने में नेहरू की असफलता की देश भारी कीमत चुका रहा है और नेहरू की इस भूल की उपेक्षा नहीं की जा सकती।

आडवाणी के मुताबिक, गौर करने वाली बात यह है कि गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल सभी दूसरी राजशाही वाली सियासतों का भारत संघ में एकीकरण करने में सफल रहे। जब उनमें से किसी ने दुविधा दिखाई या पाकिस्तान में शामिल होने की इच्छा जाहिर की, तो पटेल ने उन्हें उनकी जगह दिखा दी। उदाहरण के लिए, हैदराबाद के निजाम के सशस्त्र विद्रोह को कुचल दिया गया।

उन्होंने लिखा है कि जम्मू-कश्मीर राजशाही वाला एकमात्र ऐसा राज्य था, जिसे भारत से जोड़े जाने की प्रक्रिया सीधे प्रधानमंत्री नेहरू की देखरेख में हो रही थी। कश्मीर को पाने के लिए भारत के खिलाफ पाकिस्तान की 1947 की पहली जंग ने भी नेहरू सरकार को इस बात का बेहतरीन मौका दिया था कि वह न केवल हमला करने वालों को खदेड़ देती, बल्कि पाकिस्तान के साथ हमेशा के लिए कश्मीर मुद्दे को सुलझा देती।

भाजपा के वरिष्ठ नेता ने लिखा है कि भारत ने ऐसा दूसरा बड़ा मौका 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी गंवाया, जिसमें भारत ने न केवल पाकिस्तान को हराया, बल्कि पाकिस्तान के लगभग 90000 युद्धबंदी भी भारत में आ गए।

आडवाणी ने लिखा है कि देश के लोगों को यह पता होना चाहिए कि कश्मीर समस्या देश के लोगों के लिए नेहरू परिवार का एक विशेष ‘तोहफा’ है। आडवाणी के मुताबिक, इस ‘तोहफे’ के छह परिणाम आज तक देखने को मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसका पहला परिणाम, पाकिस्तान की ओर से सबसे पहले कश्मीर और बाद में भारत के विभिन्न हिस्सों में सीमा पार से आतंकवाद का निर्यात है।

आडवाणी ने लिखा, ‘दूसरा, पाकिस्तान की ओर से कश्मीर और बाद में देश के दूसरे हिस्सों में फैले धार्मिक चरमपंथ का निर्यात। तीसरा, हमारे सुरक्षा बलों के हजारों जवानों और नागरिकों की मौत। चौथा, सैन्य और अर्धसैनिक बलों पर खर्च होने वाले हजारों करोड़ों रुपए। आडवाणी ने लिखा है कि इसी ‘तोहफे’ की बदौलत बाहरी ताकतें भारत और पाकिस्तान के तनावपूर्ण संबंधों का फायदा उठा रही हैं।

भाजपा नेता ने लिखा है कि इस तोहफे का अंतिम नुकसान कश्मीरी पंडितों के पूरे समुदाय को उठाना पड़ रहा है, जो अपनी जमीन से विस्थापित होकर अपनी ही मातृभूमि में शरणार्थी बनकर रहने को मजबूर हो गए हैं।

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