 वृहत संहिता के अनुसार, ईश्वर वहीं क्रीड़ा करते हैं जहां झीलों की गोद में कमल खिलते  हों और सूर्य की किरणें उसके पत्तों के बीच से झांकती हो, जहां हंस कमल के  फूलों के बीच क्रीड़ा करते हों...जहां प्राकृतिक सौंदर्य की अद्भुत छटा  बिखरी पड़ी हो।' हिमालय पर्वत का दृश्य इससे भिन्न नहीं है। इसलिए इस  पर्वत को ईश्वर का निवास स्थान भी कहा गया है। भगवदगीता में भगवान श्री  कृष्ण ने कहा है, 'पर्वतों में मैं हिमालय हूं।' यही वजह है कि हिंदू धर्म  में हिमालय पर्वत को विशेष स्थान प्राप्त है। हिंदुओं के पवीत्रतम नदी  गंगा का उद्भव भी इसी हिमालय पर्वत से होता है।
वृहत संहिता के अनुसार, ईश्वर वहीं क्रीड़ा करते हैं जहां झीलों की गोद में कमल खिलते  हों और सूर्य की किरणें उसके पत्तों के बीच से झांकती हो, जहां हंस कमल के  फूलों के बीच क्रीड़ा करते हों...जहां प्राकृतिक सौंदर्य की अद्भुत छटा  बिखरी पड़ी हो।' हिमालय पर्वत का दृश्य इससे भिन्न नहीं है। इसलिए इस  पर्वत को ईश्वर का निवास स्थान भी कहा गया है। भगवदगीता में भगवान श्री  कृष्ण ने कहा है, 'पर्वतों में मैं हिमालय हूं।' यही वजह है कि हिंदू धर्म  में हिमालय पर्वत को विशेष स्थान प्राप्त है। हिंदुओं के पवीत्रतम नदी  गंगा का उद्भव भी इसी हिमालय पर्वत से होता है।
जुलाई-अगस्त के दौरान पवित्र मणिमहेश झील हजारों तीर्थयात्रियों से भर जाता है। यहीं पर सात दिनों तक चलने वाले मेला का आयोजन भी किया जाता है। यह मेला जन्माष्टमी के दिन समाप्त होता है। जिस तिथि को यह उत्सव समाप्त होता है उसी दिन भरमौर के प्रधान पूजारी मणिमहेश डल के लिए यात्रा प्रारंभ करते हैं। यात्रा के दौरान कैलाश चोटि (18,556) झील के निर्मल जल से सराबोर हो जाता है। कैलाश चोटि के ठीक नीचे से मणीमहेश गंगा का उदभव होता है। इस नदी का कुछ अंश झील से होकर एक बहुत ही खूबसूरत झरने के रूप में बाहर निकलती है। पवित्र झील की परिक्रमा (तीन बार) करने से पहले झील में स्नान करके संगमरमर से निर्मित भगवान शिव की चौमुख वाले मूर्ति की पूजा अर्चना की जाती है। कैलाश पर्वत की चोटि पर चट्टान के आकार में बने शिवलिंग का इस यात्रा में पूजा की जाती है। अगर मौसम उपयुक्त रहता है तो तीर्थयात्री भगवान शिव के इस मूर्ति का दर्शन लाभ लेते हैं।
स्थानीय लोगों के अनुसार कैलाश उनकी अनेक आपदाओं से रक्षा करता है, यही वजह है कि स्थानीय लोगों में महान कैलाश के लिए काफी श्रद्धा और विश्वास है। यात्रा शुरू होने से पहले गद्दी वाले अपने भेड़ों के साथ पहाड़ों पर चढ़ते हैं और रास्ते से अवरोधकों को यात्रियों के लिए हटाते हैं। ताकि यात्रा सुगम और कम कष्टप्रद हो। कैलाश चोटि के नीचे एक बहुत बड़ा हिमाच्छादित मैदान है जिसको भगवान शिव के क्रीड़ास्थल 'शिव का चौगान' के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि यहीं पर भगवान शिव और देवी पार्वती क्रीड़ा करते हैं। वहीं झील के कुछ पहले जल का दो स्रोत है। इसको शिव क्रोत्रि और गौरि कुंड के नाम से जाना जाता है।
चंबा के पुलिस उपायुक्त देवेश कुमार ने बताया, ""छ़डी यात्रा के लिए सारे प्रबंध कर लिए गए हैं। यह यात्रा चंबा जिले में 1,000 वर्ष पुराने लक्ष्मीनारायण मंदिर से शुरू होगी।"" वर्ष में एक बार एक महीने तक चलने वाली पवित्र "मणिमहेश तीर्थयात्रा" की शुरूआत 20 अगस्त को हुई थी और यह 15 सितंबर को राधाअष्टमी के दिन समाप्त हो जाएगी। राधाअष्टमी के दिन ही हजारों श्रद्धालू मणिमहेश झील में स्नान करते हैं। इस तीर्थस्थान के बारे में कहा जाता है कि श्रद्धालु कैलाश पर्वत का दर्शन तभी कर पाते हैं जब भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। जब यह चोटी बादलों के पीछे छुप जाती है तो माना जाता है कि भगवान शिव प्रसन्न नहीं हुए।
तो इस बार आशाराम बापू भी अपने हेलीकाप्टर से इस यात्रा के लिए पहुचे और वापस आने पर उन्होंने कहा वहां कोई मणि - वणी नहीं है, असली मणि तो मेरे पास है, जो मेरे सत्संग का लाभ उठाता है उसे इस यात्रा करने को कोई जरुरत ही नहीं है. मेरे लिए यह यात्रा एक सजा के सामान थी. 
आशाराम जी के इस बयान की स्थानीय लोगों में काफी आलोचना हो रही है और सभी धार्मिक और सामाजिक संघटनो ने भरी रोष भी जताया है, हिन्दू जागरण मंच ने कहा की आशाराम जी ने मणि तो नहीं देखी लेकिन उनका स्टिंग ऑपरेशन सभी ने देखा है.
शिवसेना ने कहा है कि आशाराम जी को अपने इस बयान के लिए पूरे देश से माफ़ी मांगनी चाहिए.
पूरा हिमाचल प्रदेश आशाराम जी के इस बयान से अचंभित है और आशाराम जी के प्रति लोगो की आस्था में भारी कमी आ गई है, लोग तो यहाँ तक बोल रहें हैं कि आशाराम जी को दंभ हो गया है, वो टीवी के भगवान् बन गएँ हैं.
 
 
 
 
 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
asharam = aish+aaraam
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