शेल कंपनियों और हितधारी स्वामित्व के विषय में विशेष जांच दल (एसआईटी) की तीसरी रिपोर्ट में कहा गया है :-
“शेल कंपनियों और हितधारी स्वामित्व (तीसरी एसआईटी रिपोर्ट में उल्लेख पृष्ठ 73-76)
“भारत और विदेशों में काले धन की रोकथाम के उपाय” पर सीबीटीडी के अध्यक्ष के नेतृत्व में गठित समिति ने 2012 में जो रिपोर्ट दी थी, उसमें कहा गया था : -
“3.4 काले धन के स्रोत का पहला तरीका यह है कि रसीदें नहीं बनायी जातीं और खर्चों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया जाता है। रसीदें न तैयार करने के दायरे में व्यापारिक और औद्योगिक गतिविधियां आती हैं, जिन्हें सामान्य रूप से बिक्री रसीदों, वास्तविक उत्पादन, आवश्यक रकम की तुलना में वसूली आदि को नियमानुसार तर्क संगत बनाना आवश्यक होता है।
3.6 बहरहाल, रसीदों को दबा देने से हर बार आय में हेरफेर करना संभव नहीं होता, इसलिए करदाता खर्चा बढ़ा-चढ़ा कर दिखाते हैं और इसके लिए बिल बनाने वाले व्यक्तियों से फर्जी रसीदें बनवा लेते हैं। रसीद बनाने वाले मामूली कमीशन पर फर्जी रसीदें बना देते हैं। ऐसे व्यक्तियों के पास साधनों की कमी होती है और जांच होने पर वे अपना व्यापार समेट कर दूसरे स्थान पर चले जाते हैं। ऐसे लोगों का अता-पता न होने के कारण बकाया आयकर धनराशि बढ़ती जाती है।
3.7 इसी तरह ‘एंट्री ऑपरेटर्स’ का एक वर्ग ऐसा है जो नकद स्वीकार करके उसकी जगह चैक/ डिमांड ड्राफ्ट जारी करता है। यह रकम कर्ज/ अग्रिम/ शेयर पूंजी के रूप में जारी की जाती है और इस तरह मामूली कमीशन पर काले धन को बड़ी मात्रा में सफेद किया जाता है। एंट्री ऑपरेटर्स एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते जाते रहते हैं, इसलिए आयकर अधिनियम के तहत इनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पाती। अपीलीय कर संस्थान भी इनकी आय पर मामूली आयकर लगाते हैं। इस तरह की फर्जी रसीदों पर कर लगाने के अलावा और कोई प्रभावशाली उपाय नहीं है।”
काले धन को सफेद बनाने के लिए शेल कंपनियों का इस्तेमाल किया जाता है। जांच के दौरान इस संबंध में कई बड़े मामलों का खुलासा हुआ है।
इस खतरे से निपटने के लिए दोहरी रणनीति का इस्तेमाल करना होगा –
i. शेल कंपनियों की पहचान : इसके लिए कानून लागू करने वाली विभिन्न एजेंसियों को सतर्कता से जांच करनी होगी और नियमित रूप से इनके कारोबार के बारे में आंकड़े जमा करने होंगे।
ii. शेल कंपनियां बनाने वाले व्यक्तियों के खिलाफ रोकथाम करने के लिए कानूनी कार्रवाइयां करनी होंगी।
इस संबंध में निम्न सिफारिशें की गई हैं:
i. शेल कंपनियों की पहचान : कंपनी मंत्रालय के अधीन गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) को सक्रिय और नियमित रूप से रेड फ्लैग संकेतकों के लिए एमसीए 21 डाटाबेस की निगरानी करनी होगी। ये रेड फ्लैग संकेतक सामान्य डीआईएन नम्बरों पर आधारित हो सकते हैं, जिनके तहत कई कंपनियों, समान पते वाली कंपनियों, समान टेलीफोन नम्बरों, केवल मोबाईल नम्बरों के इस्तेमाल, आयकर रिटर्न में अचानक और अस्वाभाविक कारोबार का ब्यौरा शामिल है। ये संकेतक सजीव होते हैं और एसएफआईओ कार्यालय, सीबीडीटी, ईडी और एफआईयू जैसी कानून लागू करने वाली एजेंसियों के अनुभवों और उनके साथ सलाह करके तैयार कर सकता है।
ii. कानून लागू करने वाली एजेंसियों के साथ ऐसी अधिक जोखिम वाली कंपनियों के बारे में सूचनाओं को साझा करना : आंकड़ों के जरिये इस तरह की कंपनियों की पहचान कर लेने के बाद उनकी गहन निगरानी के लिए सीबीडीटी और एफआईयू के साथ सूचनाओं को साझा किया जाना चाहिए।
iii. सीबीडीटी द्वारा जांच/ मूल्यांकन हो जाने के बाद मामले को एसएफआईओ को भेज दिया जाए ताकि भारतीय दंड विधान की संबंधित धाराओं के अंतर्गत धोखाधड़ी का मामला चलाया जा सके। मनीलांड्रिंग के मामलों के लिए पीएमएलए के तहत कार्रवाई करने के संबंध में एसएफआईओ मामलों को प्रवर्तन निदेशालय को भेज दे।
iv. कई मामलों में देखा गया है कि शेल कंपनियां बनाने के लिए उक्त कंपनियों के शेयरधारक और निदेशक मालिकों के ड्राइवर, रसोइये या अन्य कर्मचारी होते हैं, ताकि काले धन की सफाई हो सके। कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 89 (1) और 89 (2) के तहत व्यक्तियों को घोषित करना पड़ता है कि वे उक्त कंपनियों में हितधारक हैं या नहीं। धारा 89 (4) के तहत केंद्र सरकार को अधिकार है कि वह कंपनी में हित और हितधारी स्वामित्व की घोषणा के लिए आवश्यक नियम बनाए। कंपनी मामलों के मंत्रालय को इस संबंध में तुरंत नियम बनाने चाहिए।”
एसआईटी ने कारपोरेट मामलों के मंत्रालय से निम्न आंकड़ें उपलब्ध कराने का आग्रह किया है:
i. एक से अधिक कंपनी में निदेशक पद पर आसीन व्यक्तियों के नाम
ii. एक ही कार्यालय के पते वाली कंपनियां
कारपोरेट मामलों के मंत्रालय ने आंकड़े उपलब्ध करा दिये हैं। इनका ब्यौरा इस प्रकार है:
i. 20 से अधिक कंपनियों में निदेशक पद पर 2627 व्यक्ति आसीन हैं, जो कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 165 का उल्लंघन है। उल्लेखनीय है कि यह पूर्व के कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 275 का भी उल्लंघन है। इस मामले में कुल 77,696 कंपनियां लिप्त हैं।
ii. एक ही पते पर संचालित होने वाली कम से कम 20 कंपनियां कुल 345 पतों का इस्तेमाल कर रही हैं। कुल 13,581 कंपनियां ऐसी हैं जो कम से कम 19 कंपनियों के साथ अपने पते साझा कर रही हैं। चूंकि एक ही पते के इस्तेमाल से कंपनियों को रोकने के लिये कोई नियत कानून नहीं है, इसलिए एसआईटी को अधिक सतर्कता से काम लेना होगा। इसके लिए उसे सीबीडीटी, सीबीईसी, ईडी और एफआईयू जैसी गुप्तचर और कानून लागू करने वाली एजेंसियों के साथ मिलकर उक्त कंपनियों की गतिविधियों की निगरानी करनी होगी।
एसआईटी ने कंपनी मामलों के मंत्रालय से आग्रह किया है कि वह कंपनी अधिनियम के तहत ऐसे कंपनियों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करे। एसआईटी ने सीबीडीटी, सीबीईसी और प्रवर्तन निदेशालय से भी आग्रह किया है कि वे उक्त कंपनियों के आंकड़ों के बारे में सतर्कता से काम करें।
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