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पढ़िए साध्वी प्रज्ञा का न्यायाधीश को लिखा एक मार्मिक पत्र


सोनिया कांग्रेस के दरबारी महासचिव दिग्विजय सिंह ने एक जुमला उछाला 'भगवा आतंकवाद', तो सोनिया की अध्यक्षता वाली संप्रग सरकार ने उसे सिद्ध करने के लिए कुछ षड्यंत्र रचे। आतंकवाद विरोधी दस्ते (एंटी टेरेरिस्ट स्क्वाड-एटीएस) ने सरकार के इशारे पर समझौता एक्सप्रेस विस्फोट, मालेगांव विस्फोट, मक्का मस्जिद में धमाका आदि मामले दोबारा खंगाले और झूठी कहानी, झूठे सुबूत गढ़कर कुछ हिन्दुओं को पकड़ा, उनमें स्वामी असीमानंद और साध्वी प्रज्ञा सिंह प्रमुख हैं। 

हालांकि 5 साल बाद भी इनमें से किसी के भी खिलाफ पुख्ता जानकारी नहीं दी गई है, पर विचाराधीन कैदी बनाकर प्रताड़ित किया जा रहा है, ताकि 'भगवा आतंकवाद' के नाम पर कुछ भगवा वेशधारी चेहरों को प्रस्तुत किया जा सके। मालेगांव विस्फोट के संदर्भ में गिरफ्तार साध्वी प्रज्ञा सिंह इन दिनों बहुत बीमार हैं और उन्होंने जेल से ही न्यायाधीश महोदय को जो मार्मिक पत्र लिखा, उसे यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं, पूरी सच्चाई आपके समक्ष स्वत: ही आ जाएगी।




मा. न्यायाधीश महोदय,
उच्च न्यायालय, मुम्बई (महाराष्ट्र)
द्वारा- श्रीमान अधीक्षक, केन्द्रीय कारागृह भोपाल (म.प्र.)
विषय- स्वास्थ्य विषय से सम्बन्धित।

महोदय,

मैं, साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर मालेगांव विस्फोट प्रकरण (2008) में विचाराधीन कैदी हूं और अभी एक अन्य प्रकरण में मध्य प्रदेश की भोपाल स्थित केन्द्रीय जेल में हूं। आज दिनांक 16 जनवरी, 2013 को जो सज्जन मुझसे जेल भेंट करने आये उन्होंने आपके द्वारा आदेशित पत्र मुझे दिखाया, जिसमें आपने मेरी अस्वस्थता के उपचार हेतु उचित स्थान के चयन का निर्णय करने को कहा है। महोदय, मैं यह जानकर कि आपने मेरे स्वास्थ्य की संवेदनापूर्वक चिंता कर आदेश दिया, मैं आपकी बहुत-बहुत आभारी हूं। आपके आदेश से ही मुझे यह हौसला मिला है कि मैं आपसे अपनी मन:स्थिति व्यक्त करूं। मुझे लगता है कि आप मेरी सारी शारीरिक स्थिति, मानसिक स्थिति और विवशता को भली-भांति समझ सकेंगे। अत: मैं आपसे अपनी बात संक्षेप में कहती हूं, जो इस प्रकार है-

0 मैं बचपन से ही सत्यनिष्ठ, कर्तव्यनिष्ठ, सिद्वान्तवादी व राष्ट्रभक्त हूं। मेरे पिता ने मेरा निर्माण इन्हीं संस्कारों में गढ़कर किया है। मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता व देश की संभ्रांत नागरिक हूं।

0 मैं जनवरी, 2007 से संन्यासी हूं।

0 अक्टूबर, 2008 में मुझे सूरत से एटीएस इंस्पेक्टर सावंत का फोन आया कि आप कानून की मदद करिए, सूरत आ जाइये, मुझे आपसे एक 'बाइक' के बारे में जानकारी चाहिए। मैं कानून को मदद पहुंचाने व अपने कर्तव्य को निभाने हेतु 10 अक्टूबर सुबह सूरत पहुंची।

0 इं. सावंत ने अपने साथियों सहित अपने बड़े साहब के समक्ष पेश कर देने को कहकर 16 अक्टूबर की रात्रि को मुझे मुम्बई लाये। मुम्बई की काला चौकी में मुझे 13 दिनों तक गैरकानूनी रुप से रखा और भयानक शारीरिक, मानसिक व अश्लील प्रताड़नाएं दीं।

0 एक स्त्री होने पर भी मुझे बड़े-बड़े पुलिस अधिकारियों ने सामूहिक रुप से गोल घेरे में घेर कर बेल्टों से पीटा, पटका, गालियां दीं तथा अश्लील सी.डी. सुनवाई। उनका (एटीएस का) यह क्रम दिन-रात चलता रहा।

0 फिर पता नहीं क्यों मुझे राजपूत होटल ले गये और अत्यधिक प्रताड़ित किया जिससे मेरे पेट के पास फेफड़े की झिल्ली फट गयी। मेरे बेहोश हो जाने व सांस न आने पर मुझे एक प्राइवेट हास्पिटल  'सुश्रुशा' में आक्सीजन पर रखा गया। इसी हास्पिटल में झिल्ली फटने की रपट है। आपके आदेश पर वह रपट आपके समक्ष उपस्थित की जायेगी। दो दिन सुश्रुशा हास्पिटल में रखकर गुप्त रूप से फिर हास्पिटल बदल दिया और एक अन्य प्राइवेट हास्पिटल में आक्सीजन पर ही रखा गया। इस प्रकार 5 दिनों तक मुझे आक्सीजन पर रखा गया।

0 थोड़ा आराम मिलने पर पुन: काला चौकी के मि. सावंत के आफिस रूम में रखा गया तथा पुन: अश्लील गालियां, प्रताड़नाएं दी जाती रहीं।

0 फिर मुझे यहीं से रात्रि को लेकर नासिक गये, फिर 13 दिन बाद गिरफ्तार दिखाया गया। इतने दिनों मैंने कुछ खाया नहीं तथा प्रताड़नाओं और मुंह बांधकर रखे जाने से मैं बहुत ही विक्षिप्त अवस्था में आ गई थी।

0 इस बीच बेहोशी की अवस्था में मेरा भगवा वस्त्र उतार कर मुझे सलवार-सूट पहनाया गया।

0 बिना न्यायालय की अनुमति के, गैरकानूनी तरीके से मेरा नाकर्ो पौलिग्राफी व ब्रेन मैपिंग किया गया। फिर गिरफ्तारी के पश्चात पुन: ये सभी टेस्ट दोबारा किये गये।

0 जज साहब, इतनी अमानुषिक प्रताड़नाएं दिए जाने के कारण मुझे गम्भीर रूप से रीढ़ की हड्डी की तकलीफ व अन्य तकलीफें होने से मैं चलने, उठने, बैठने में असमर्थ हूं। इनकी (एटीएस की) प्रताड़नाओं से मानसिक रुप से भी बहुत ही परेशान हूंं। अब सहनशीलता की भी कमी हो रही है।

0 कारागृह में मुझे यह पांचवा वर्ष चल रहा है। इस कारागृही जीवन में भी मेरी सात्विकता नष्ट करने के लिये मुम्बई जेल में मेरे भोजन में अण्डा दिया गया। इस विपरीत वातावरण से मुझे अब और भी कोई गम्भीर बीमारियां हो गई हैं। अब मैं कैंसर (ब्रेस्ट) के रोग से भी ग्रस्त हो गयी हूं। परिणामस्वरुप मैं अब डाक्टरों के द्वारा बताया गया भोजन करने में भी असमर्थ हूं।

0 इन्ही तकलीफों के चलते मुझे इलाज के लिए, टेस्ट के लिये न्यायालय के आदेश पर मुम्बई व नासिक के अस्पताल भेजा जाता था, किन्तु वहां के पुलिसकर्मी जे.जे. हास्पिटल अथवा किसी सरकारी हास्पिटल अथवा आयुर्वेदिक हास्पिटल ले जाते, जहां न्यायालय का आदेश देखकर मुझे 'एडमिट' तो किया जाता था, कागजी कार्रवाई की जाती, किन्तु मेरा उपचार नहीं किया जाता था।

0 2009 में एक बार मेरा ब्रेस्ट का आपरेशन किया गया, 2010 में पुन: वहां तकलीफ हुई। मैं मकोका हटने पर नासिक के कारागृह में थी। वहां मुझे जिला अस्पताल भेजा गया। न्यायालय के आदेश पर एक टीम बनाई गई जिसने अपनी रपट में पुन:. आपरेशन की सलाह दी। किन्तु मकोका लगने पर मुझे पुन: मुम्बई ले जाया गया।

0  अभी मैं मार्च, 2012 से म.प्र. की भोपाल जेल में हूं। यहां मेरा स्वास्थ्य बिगड़ने पर जब अस्पताल भेजा गया तो वहां भी पुलिस वालों ने जबरन पेरशान किया। जेल प्रशासन इलाज करवाना चाहता था, किन्तु जो सुरक्षा अधिकारी मेरे साथ थे, वे अमानवीय गैरकानूनी व्यवहार करते रहे। अत: मुझे अस्पताल से बिना उपचार के वापस आना पड़ा। ऐसा कई बार हुआ।

0 ऐसा अभी तक निरन्तर होता आ रहा है। मैं इलाज लेना चाहती थी, टेस्ट भी करवाने अस्पताल गयी, किन्तु सरकारी रवैया, कोर्ट, कानून, पुलिस के झंझटों से डरकर कोई उपचार ही नहीं करना चाहता। अब मैं पांच वर्षों से इन सभी परेशानियों को झेलते-झेलते थक गई हूं।

0 महोदय मैंने अब यही तय किया कि संन्यासी जीवन के इस शरीर को तमाम बीमारियों से अब योग-प्राणायाम से जितने दिन चल जाये, उतना ठीक है, किन्तु अब जेल अभिरक्षा में रहते हुए कोई इलाज नहीं करवाऊंगी। महोदय, मैंने यह निर्णय स्वेच्छा से नहीं लिया है। कारागृही जीवन, तमाम प्रतिबन्धों के परिणामस्वरुप तनाव से शरीर पर विपरीत असर होने के चलते विवश होकर ही मैंने यह निर्णय लिया है। आप इसे अन्यथा न लें और मेरी भावना व परिस्थिति को समझें।

0 महोदय मैं एक संन्यासी हूं। हमारा त्यागपूर्ण संयमी जीवन होता है। स्वतंत्र प्रकृति से स्वतंत्र वातावरण में ही यह संभव होता है। 5 वर्षों से मेरी प्रकृति, दिनचर्या, मर्यादा, मेरे जीवन मूल्यों के विपरीत मुझे अकारण कारागृह में रखा गया है। अत: इन प्रताड़नाओं व अमानवीयता से एक संन्यासी का संवेदनशील जीवन असम्भव है।

0  मैंने सभी विपरीत परिस्थितियों से अपने को अलग करने का प्रयास कर इन शारीरिक कष्टों को सहते हुए अपने ठाकुर (ईश्वर) के स्मरण में ही अपने को सीमित कर दिया है। जितने दिन जिऊंगी, ठीक है, किन्तु उचित उपचार व जांच से दूर रहूंगी। यदि स्वतंत्र हुई तो अपनी पंसद का उपचार, बिना किसी बंधन के करवा कर इस शरीर को स्वस्थ करने तथा संन्यासी जीवन पद्धति से मन को ठीक कर कुछ समय जी सकूंगी।

0 महोदय आपसे अनुरोध है कि आप मेरे तथा भारतीय संस्कृति में एक संन्यासी जीवन की पद्धति व इसके विपरीत दुष्परिणामों को अनुभूत करेंगे। मेरे निर्णय को उचित समझकर मेरे निवेदन पर ध्यान देंगे। यदि मेरे लिये कानून के अन्तर्गत स्वतंत्रता (जमानत) का प्रावधान है, क्योंकि में अभी संशयित (विचारधीन) हूं, तो आप अपने विवेकीय मापदण्डों पर मुझे जमानत देने की कृपा करें।

0 मेरे द्वारा लिखे गये प्रत्येक कारण के लिखित सबूत हैं, यदि आपका आदेश हुआ तो वह सभी सबूत आपके समक्ष (मेरी रपट सहित) प्रस्तुत की जा सकती है। मैं कानून की धाराएं नहीं जानती हूं। बस इतना है कि मैंने कोई अपराध नहीं किया है। मैंने हमेशा एक राष्ट्रभक्तिपूर्ण, संवैधानिक, नियमानुसार जीवन जिया है, अभी भी जी रही हूं। आज तक मेरा कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं है। मुझे मुम्बई एटीएस ने जबरन इस प्रकरण में फंसाया है।

निवेदक
प्रज्ञा सिंह

साभार : पाञ्चजन्य

5 comments :

  1. Congress ka mahapaap, ab janta shikhayeygi sabak..

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  2. kya ye hindu rashtra he jaha ak sadhvi ke amanviya tarike ke sath vyvahar hota he jiska abhi tk jurm sabit bhi nahi hua vo bhi narko poligraphi ur bren meping test kiya gya aur atangvadi joki sare aam desh ki sansad me ghus kr katle aam kr gya us pr karodo ka kharch aur unko mot bhi rat ke andero me di jati fir bhi mera desh soya hua he ab to mere hindusthaniyo nahi to hindu sanskrti ka vajud mishr ki bhati kitabo me mebhi nahi milega kyuki hindutv ko nasht krne vale koi ger nahi apne hi he teyar hojao dosto ab samay agya he uth khade hokr is desh me jo un nokar shahi chaplus tantr ko jad se nasht karne ka age bado aur sadvi pragya ke sath hone vale in amanviy krtyo ko band karvane aur unko punh apna adhikar dilvane ke liye age bado

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  3. जरुरी है कि हर हिन्दु युवा इस काग्रेस के कारनामों को जाने तथा इसे भरपूर उत्तर दें

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  4. Shame on congress or shame on BJP? and allies? If being official opposition party they can not protect right of prisoner what more we can expect from them when they become ruling party?

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  5. pragya is a bhagwa terrorist .it has been prooved very clearly by martyr and a true hindu hemant karkare..she shoulld be treated same as kasab and afzal....

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