आशा जी पहली कश्मीरी पंडित महिला हैं जो मुस्लिम बहुल और उग्रवाद प्रभावित कश्मीर घाटी में पंच चुनी गई हैं। उन्होंने मुस्लिम महिला प्रतिद्वंद्वी सर्वा बेगम को हराकर यह चुनाव जीता।
गौरतलब है कि कश्मीर में अल्पसंख्यक माने जाने वाले पंडित समुदाय के लोग 1989-90 में उभरी भारत विरोधी हिंसा के दौरान भारी संख्या में कश्मीर छोड़ने को मजबूर हो गए थे। लेकिन आशा का परिवार गांव के उन चार परिवारों में है जो अपनी पुरखों की जमीन छोड़ने को तैयार नहीं हुए।
श्रीनगर-गुलमर्ग रोड पर स्थित कुंजेर ब्लॉक के वुसन गांव में आशा जी का मुकाबला सरवा बेगम से था। इस सीधे मुकाबले में आशा जी को 55 वोट मिले जबकि सरवा बेगम को 42 वोट।
वुसन गांव में अपने पति राधाकृष्ण और दो बच्चों के साथ रह रहीं आशा बताती हैं कि ' मेरी इस जीत से देश के अलग-अलग हिस्सों में विस्थापित जीवन बिता रहे कश्मीरी पंडितों को यह संदेश जाएगा कि कश्मीर में अब पंडितों को कोई खतरा नहीं है। वे यहां अच्छी तरह रह सकते हैं। ' उन्होंने कहा कि ' गांव के मुस्लिम निवासियों ने मुझे वोट दिया है और मैं उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करूंगी बशर्ते कि सरकार संविधान के 74वें संशोधन के मुताबिक अधिकार पंचायतों को सौंपे। '
आशा का बड़ा सुरेश कुमार बेटा जम्मू कश्मीर पुलिस में कॉन्स्टेबल है जबकि छोटा बेटा गांव में पिता राधाकृष्ण की दुकान पर उनकी मदद करता है। आशा जी बताती हैं कि उन्हें चुनाव लड़ने के लिए गांव के नंबरदार अब्दुल हामिद वनी ने प्रोत्साहित किया, ' मुझे वनी साहब ने ही कहा कि मैं चुनाव लड़ूं।
उन्होंने मेरा उत्साह बढ़ाया और कहा कि पंचायत चुनाव जीत कर मुझे अपने ब्लॉक का विकास करना चाहिए। ' आशा जी का मायका जम्मू के डोडा जिले में है और वह गर्व से बताती हैं कि वह गुलाम नबी आजाद (केंद्रीय मंत्री) के गांव की हैं।
खास बात यह कि वुसन गांव में सुरक्षा बलों का कोई कैंप तो नहीं ही है, कोई पुलिस पोस्ट भी नहीं है। हालांकि अलगाववादियों ने चुनाव के बहिष्कार का आह्वान किया था और आतंकवादियों ने चुनाव में बाधा पहुंचाने की भी कोशिश की।
गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर में पंचायत चुनाव एक दशक बाद हुए हैं। पिछले पंचायत चुनाव 2001 में हुए थे।
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